आगरा की रहनेवाली ललिता कुमारी, उम्र 17 साल, पिछले 19 महीनों से एप्लास्टिक एनीमिया से पीड़ित है। परिवार को उसके इलाज के लिए 10 लाख रुपये की आवश्यकता है, जिसकी अपील पिछले साल जुलाई में पीएमओ से की गई थी। दो महीने बाद, सितम्बर 2018 में, ललिता को 3 लाख रुपये की आंशिक वित्तीय सहायता प्रदान की गई थी।

उसके बाद परिवार अन्य 7 लाख रुपये की राशि को जुटाने की मेहनत कर रहा है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने 22 जून, 2019 को लेख प्रकाशित किया था कि, परीवारवालों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखा है और लड़की इच्छामृत्य की मांग कर रही है। इसके तुरंत बाद, मीडिया रिपोर्टों ने यह दावा करना शुरू कर दिया कि प्रधानमंत्री ने बीमार बच्चे के लिए 30 लाख रुपये की सहायता राशि बढ़ाई है।

ललिता के परिवार ने कहा,”झूठी खबर”

22 जून को, ANI ने एक रिपोर्ट में दावा किया कि परिवार को पीएमओ द्वारा 30 लाख रुपये की वित्तीय सहायता दी गई थी। कुछ मीडिया संगठनों ने इसके बाद ANI की रिपोर्ट के आधारित लेख भी प्रकाशित किये, जिसमें टाइम्स नाउ, द क्विंट, एसीएन ऐज, इंडिया टुडे, रिपब्लिक, फाइनेंशियल एक्सप्रेस, हिंदुस्तान टाइम्स, डीएनए और डेक्कन क्रॉनिकल शामिल थे। द क्विंट ने दावा किया कि परिवार को पहले ही 30 लाख रुपये की सहायता मिल चुकी थी और वह अधिक पैसों के लिए नए सिरे से अपील कर रहा है।

दैनिक जागरण और जनसत्ता ने भी इस “30 लाख रुपये” की बात पर लेख प्रकाशित किया। दैनिक जागरण की इस रिपोर्ट का शीर्षक है कि- “पीएम ने सुन ली पुकार, ललिता को अब इच्‍छा मृत्‍यु नहीं जीवन का मिलेगा उपहार”।

पश्चिम बंगाल के भाजपा विधायक बाबुल सुप्रियो ने इंडिया टुडे के लेख को ट्वीट किया, इस ट्वीट को लगभग 6,000 बार लाइक और 900 से अधिक बार रीट्वीट्स किया गया, जिसमें दावा किया गया था कि पीएम मोदी ने बीमार बच्चे को 30 लाख रुपये का मुआवज़ा दिया।

द टाइम्स ऑफ़ इंडिया के 23 जून के लेख को, परिवार ने “झूठा” बताया और कहा कि,“वित्तीय सहायता के लिए पीएमओ को पत्र लिखने वाले एटा के सांसद राजवीर सिंह के हस्तक्षेप के बाद, पिछले साल 30 सितंबर को केवल 3 लाख रुपये मंजूर किए गए थे। 30 लाख रुपये के अनुदान की रिपोर्ट फ़र्ज़ी है और इससे मेरी बेटी को मदद दिलवाने के हमारे प्रयासों को नुकसान पहुंचेगा। हमें अपनी मरने वाली लड़की के लिए मदद चाहिए। इस फ़र्ज़ी खबर से मेरी बेटी की जान जा सकती है”।

ललिता, जो बिस्तर पर है, उसने TOI को कहा,“अगर पीएमओ ने 10 लाख रुपये की आवश्यकता के मुकाबले 30 लाख रुपये दिए होते, तो मुझे नया जीवन मिल गया होता। यह बहुत निर्दयी बात है। जिसने भी यह फ़र्ज़ी खबर फैलाई है वह मुझसे मिलने और मेरी हालत देखने के लिए जरूर आए। मेरे परिवार ने अपनी पूरी बचत और जमीन खो दी है और मेरे इलाज के बिल के भुगतान करने के लिए हमारे घर को गिरवी रख दिया है”

एक और “शून्य”

पिछले साल, BMT RK बिरला कैंसर SMS अस्पताल, जयपुर ने ललिता के इलाज के लिए 10 लाख रुपये की सहायता दी थी। TOI के पत्रकार अरविंद चौहान ने ऐसे ही एक पत्र को ट्वीट भी किया था।

परिवार ने पिछले साल जुलाई में, एटा के भाजपा सांसद राजवीर सिंह के माध्यम से पीएमओ को एक पत्र भेजा था, जिसमें उन्होंने वित्तीय सहायता की मांग की थी। प्रधानमंत्री कार्यालय ने दो महीने बाद, सितंबर 2018 में कहा कि प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष से इस परिवार को 3 लाख रुपये की आंशिक राशि देती है।

चौहान ने 23 जून, 2019 के ट्वीट में पीएमओ के जवाब को साझा किया था। पत्र में लिखा गया था,“कृपया श्री राजवीर सिंह (राजू भैया) से…दिनांक 14/07/2018 के दिन को प्राप्त पत्र का जवाब देते हुए, ललिता कुमारी की अविकसीत अनीमिया के लिए वित्तीय सहायता के बारे में … प्रधान मंत्री ने 300000.0 / – रु। की मदद मंजूर की है। प्रधान मंत्री राष्ट्रीय राहत कोष सर्जरी / उपचार में शामिल स्थितियों को आंशिक रूप से उल्लिखित मदद के लिए आंशिक रूप से भुगतान करने के लिए… ”-(अनुवाद)।

ना सिर्फ मीडिया ने गलत जानकारी प्रकाशित की, बल्कि पीएम की प्रमुख स्वास्थ्य योजना आयुष्मान भारत के डिप्टी CEO डॉ.दिनेश अरोड़ा ने भी एक ट्वीट को रीट्वीट किया, जिसमें गलत दावा किया गया था कि परिवार को 30 लाख रुपये दिए गए है।

स्पष्ट रूप से साझा किये गए पत्र के बावजूद यह कहते हुए कि 3 लाख रुपये की सहायता मंजूर की गई थी, मदद राशि की घोषणा के 9 महीनों बाद मीडिया रिपोर्ट्स में एक अन्य “0” को जगह दी गई। इसके अलावा, पीएमओ की ओर से अतिरिक्त वित्तीय सहायता की कोई नई घोषणा नहीं की गई है, जो की अरोड़ा के ट्वीट से स्पष्ट है जहां पर उन्होंने कहा, “राज्य से मदद करने का अनुरोध किया है …”

ऑल्ट न्यूज़ ने चौहान से संपर्क किया, जिन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने अब लड़की की मदद करने की पेशकश की है। उन्होंने ऑल्ट न्यूज़ को बताया कि,“CMO आगरा ने SGPGI लखनऊ में ललिता के लिए मुफ्त इलाज की व्यवस्था की पेशकश की है”। मीडिया में भी यह खबर आई थी।

लगभग हर मीडिया संगठन द्वारा यह गलत खबर की गई है, जिससे ललिता के उपचार में नुकसान हो सकता है। यह विशेष रूप से अजीब है कि 9 महीनों बाद पुरानी सहायता राशि की मदद को दस गुना बढ़ाकर और मीडिया द्वारा हाल ही में परिवार ने वित्तीय सहायता के लिए की गई अपील बताया।

ANI और इंडिया टूडे ने बिना किसी स्पष्टीकरण के अपना लेख डिलीट कर दिया है, जबकि द क्विंट ने स्पष्टीकरण देते हुए इस पर अपने लेख में सुधार किया है। जागरण और जनसत्ता ने भी अपने लेख को अपडेट कर दिया है।

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Pooja Chaudhuri is a senior editor at Alt News.