20 नवंबर को, दिल्ली पुलिस ने एक चेतावनी जारी करके लोगों से दो पुरुषों पर नज़र रखने और दिखाई देने पर पहाड़गंज थाना प्रभारी को अलर्ट करने के लिए कहा गया था। “यदि आप इनमें में से किसी को देखते या उनके बारे जानकारी प्राप्त करते हैं, तो नीचे दिए गए नंबरों को कॉल करके एक अलर्ट भेजें …” – यह संदेश पूरे पहाड़गंज क्षेत्र में लगाया गया था। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, पुलिस ने राजधानी में जैश-ए-मोहम्मद (JeM) के दो आतंकवादियों के घुसपैठ की आशंका और उनकी संभावित उपस्थिति पर यह चेतावनी जारी की।

पोस्टर में, एक माइलस्टोन के साथ खड़े सलवार कमीज और मुस्लिम टोपी पहने दो पुरुष देखे जा सकते हैं। माइलस्टोन पर उर्दू में “दिल्ली 360 किमी, फिरोजपुर 9 किमी” लिखा है। इससे यह तस्वीर पाकिस्तान में लिए जाने की संभावना लगती है।

इस पुलिस अलर्ट की पृष्ठभूमि में पंजाब पुलिस के काउंटर-इंटेलिजेंस विंग की चेतावनी थी, जो उन्होंने एक सप्ताह पहले फिरोजपुर में आतंकवादी संगठन जैश के 6-7 सदस्यों की संभावित घुसपैठ पर जारी की थी।

देश भर में समाचार संगठनों द्वारा पुलिस चेतावनी की रिपोर्ट की गई थी।

आतंकवादी नहीं, छात्र?

मीडिया के रिपोर्ट करने से चेतावनी के व्यापक रूप से प्रसारित होने के बाद, इस मामले में एक विचित्र मोड़ आया, जब दो पुरुष – तैयब और नदीम – ने सामने आकर दिल्ली पुलिस के आरोपों का खंडन किया और दावा किया कि वे पाकिस्तान में पंजाब प्रांत के फैसलाबाद जिले में एक इस्लामी शिक्षा-संस्थान के छात्र थे। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करके दोनों ने बताया, “यह तस्वीर 9 से 11 नवंबर तक आयोजित रायविंद इज्तेमा के दौरान क्लिक की गई थी। यह सप्ताहांत था जब हम लाहौर की ओर गए थे और लौटने के दौरान हमने भारत-पाक सीमा पर परेड देखने का फैसला किया था। परेड देखने के बाद हमने माइलस्टोन से लगकर एक तस्वीर बनवाई। यह सोशल मीडिया में अपलोड किया गया था।”

ऑल्ट न्यूज ने अपनी पड़ताल में पाया कि इन पुरुषों द्वारा उल्लिखित अवधि के दौरान पाकिस्तान के राइविंद में एक इज्तिमा वास्तव में आयोजित किया गया था। वह कार्यक्रम स्थानीय मीडिया द्वारा भी रिपोर्ट किया गया था। इज्तेमा दुनिया भर में आयोजित होने वाला एक इस्लामी जुटान है और लाखों मुसलमान इसमें भाग लेते हैं।

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हमने यह भी पाया कि दोनों ने पाकिस्तान के पंजाब में गांडा सिंह वाला कसुर सीमा पर माइलस्टोन के पास खड़े होकर फोटो खिंचवाई थी, जो भारत से लगती पूर्वी पाकिस्तान की सीमा पर स्थित है। 1960 और 1970 के दशक में दोनों पड़ोसी देशों के बीच यह आवाजाही का प्राथमिक बिंदु हुआ करता था, लेकिन अब यह बंद रहता है। 2005 में इसे फिर से खोलने की कोशिश हुई थी, मगर असफल रही, इसलिए, भारत में प्रवेश के लिए कोई कसूर सीमा पार नहीं कर सकता।

दिल्ली पुलिस के ‘गलत कदम’ को पाकिस्तानी मीडिया ने उठाया

प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद, पाकिस्तानी मीडिया में ‘भारत द्वारा देश के छात्रों को गलत तरीके से आतंकवादी बताने के रूप में’ इस घटना की व्यापक रिपोर्टिंग हुई।

पाकिस्तानी मीडिया ने भारत के “आतंकवाद राग” की खूब निंदा की। दिल्ली पुलिस की चेतावनी के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय और रक्षा मंत्रालय समेत महत्वपूर्ण सरकारी कार्यालयों में सुरक्षा कड़ी कर दी गई थी।

पुलिस ने फटाफट पोस्टर हटाए

प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद, दिल्ली पुलिस ने चुपचाप शहर भर में लगे चेतावनी पोस्टरों को हटा दिया। 28 नवंबर को, नवभारत टाइम्स ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की — “हर कोने में लगाए गए ‘आतंकवादियों’ के पोस्टर पुलिस ने रात को हटा दिए।” मीडिया संगठन के अनुसार, खुफिया एजेंसियों ने दिल्ली पुलिस को आंतरिक निगरानी के लिए तस्वीर भेजी थी, लेकिन, पुलिस ने अपरिपक्व तरीके से काम करते हुए उन्हें सार्वजनिक बना दिया।

नवभारत टाइम्स ने यह भी बताया कि सूत्रों के मुताबिक, खुफिया एजेंसियां ​​व्हाट्सएप, फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया समूहों पर नजर रखती हैं। चैट की निगरानी में ही माइलस्टोन से लगे दो पाकिस्तानी पुरुषों की तस्वीर की खोज की गई। चूंकि माइलस्टोन पर उल्लिखित स्थानों में से एक ‘दिल्ली’ था, इसलिए खुफिया एजेंसियों ने पुलिस को नजर रखने के लिए कहा। लेकिन, पुलिस ने ज्यादा तेजी दिखलाते हुए होटल, गैस स्टेशन समेत शहर भर में पोस्टर लगवा दिए।

हालांकि, दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने दोनों पुरुषों के ‘छात्र’ होने से इनकार किया है। नवभारत टाइम्स के अनुसार, स्पेशल सेल ने दावा किया कि इसके ‘ठोस प्रमाण’ हैं कि वे आतंकवादी थे। कुछ अज्ञात कारणों से, सेल ने मामले पर और जानकारी देने से मना कर दिया।

जब ऑल्ट न्यूज़ ने पोस्टर हटाने के उनके कारणों पर बात करने के लिए दिल्ली पुलिस से संपर्क करने की कोशिश की, तो हमारी कॉल एक अधिकारी से दूसरे को स्थानांतरित कर दी गई, और कोई जवाब नहीं दिया गया।

29 नवंबर को, द प्रिंट ने स्पेशल सेल के दो अधिकारियों के बयान प्रकाशित किए। उनमें से एक ने कहा कि चेतावनी को हटा दिया गया, क्योंकि दोनों लोग पाकिस्तान लौट गए थे; जबकि दूसरे अधिकारी ने दावा किया कि दोनों ने कभी सीमा पार नहीं की। हालांकि, दोनों इसपर टिके रहे कि उनकी भारत में घुसपैठ की योजना की प्रारंभिक सूचना वास्तविक थी।

हिंदुस्तान टाइम्स से बात करते हुए, दिल्ली पुलिस के जनसम्पर्क अधिकारी, पुलिस उपायुक्त मदुर वर्मा ने कहा कि पोस्टर “उच्च एजेंसियों द्वारा साझा वर्गीकृत इनपुट” था।

डीसीपी वर्मा ने कहा, “संबंधित एजेंसियों ने हमें बताया था कि ये दो पुरुष परेशानी पैदा कर सकते हैं और क्योंकि हम एक खास क्षेत्र में लोगों को संवेदनशील करना चाहते थे, इसलिए पोस्टर लगाए गए थे। उद्देश्य पूरा होने के बाद पोस्टर हटा दिए गए थे। इस तरह के इनपुट एक विशिष्ट समय अवधि और एक विशेष क्षेत्र के लिए होते हैं। यह एक सामान्य प्रक्रिया है।”

यह निर्विवाद है कि शहर भर में कथित ‘आतंकवादियों’ के पोस्टर लगाने के कारण डर का माहौल बना, खासकर क्योंकि यह 26/11 के मुंबई आतंकवादी हमलों की सालगिरह का समय था। दूसरी ओर, पुलिस के बयान यह स्पष्ट करने में असफल रहे कि वास्तव में क्या गलती हुई थी।

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Pooja Chaudhuri is a senior editor at Alt News.