‘द वायर’ ने अपने मेटा स्टोरीज वापस लेने के एक हफ़्ते बाद, 30 अक्टूबर 2022 को पत्रकार देवेश कुमार के खिलाफ़ मीडिया आउटलेट की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के मकसद से डाक्यूमेंट्स, ईमेल और वीडियो को कथित रूप से क्रियेट और सप्लाई करने के लिए एक पुलिस कम्प्लेन दर्ज की. ‘द वायर’ के आर्टिकल्स की एक सीरीज़ पर एक महीने के लंबे नाटक के बाद ये कदम उठाया गया था. आर्टिकल्स में मुख्य रूप से ये दावा किया गया था कि BJP आईटी सेल हेड अमित मालवीय के पास ‘एक्सचेक’ नामक एक कार्यक्रम की वजह से ‘बिना किसी सवाल के’ इंस्टाग्राम के किसी भी पोस्ट को हटाने का विशेष अधिकार था. भले ही उस पोस्ट में मेटा की पॉलिसी का उल्लंघन नहीं किया गया हो. हालांकि, मेटा ने इन आरोपों से इनकार किया.

यहां ‘द न्यू रिपब्लिक’ के एसोसिएट एडिटर स्टीफ़न ग्लास से जुड़े धोखाधड़ी के बहुचर्चित मामले को याद किया जा सकता है, लेकिन मीडिया हाउस द्वारा किसी स्टोरी को लेकर अपने ही खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करने जैसी बात अब तक अनसुनी थी. और सार्वजनिक डोमेन में जानकारी के नाम पर विशेष रूप से ‘द वायर’ के संस्थापक एडिटर सिद्धार्थ वरदराजन का ये इंटरव्यू मौजूद था. ऐसा लगता है कि तकनीकी पत्रकार से रिसर्चर बने देवेश कुमार ने अकेले ही भारत के सबसे सम्मानित पत्रकार की अगुवाई वाली एडिटोरियल टीम पर तेज़ी से निशाना साधा था.

जब ऑल्ट न्यूज़ ने देवेश कुमार के बारे में जानकारी इकट्ठा करने का फैसला किया, तो हमें एक के बाद एक कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा. हमने उनके सोशल मीडिया पोस्ट्स, एंगेजमेंट्स और ब्लॉग्स देखना शुरू किया जिनमें से लगभग सभी को अब हटा दिया गया है. लेकिन हम ये पता लगा पाए कि देवेश कुमार द वायर से पहले, नई दिल्ली के UNESCO सेंटर महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ़ एजुकेशन फ़ॉर पीस एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट (MGIEP) से पेशेवर रूप से जुड़े हुए थे. हमने MGIEP की कम्युनिकेशन टीम और उसके कई कर्मचारियों से संपर्क किया. लेकिन उनमें से किसी ने भी सहयोग नहीं किया. हालांकि, UNESCO MGIEP के चार पूर्व असंतुष्ट कर्मचारी हमारे साथ अपने पूर्व सहयोगी, देवेश कुमार के बारे मे बात करने के लिए सहमत हुए. उन्होंने MGIEP के शीर्ष अधिकारियों सहित देवेश कुमार और उनकी मंडली की प्रतिक्रिया के डर से अपना नाम न छापने की रिक्वेस्ट की.

MGIEP: चप्पल पहने हुए तकनीकी जादूगर

हमने MGIEP के चार पूर्व कर्मचारियों का इंटरव्यू लिया. आर्टिकल में हम उन्हें Anon1, Anon2, Anon3 और Anon4 कहेंगें. हमने अपने रिसर्च के माध्यम से स्वतंत्र रूप से उनके दावों को वेरीफ़ाई किया. हमने नोटिस किया कि उनकी कहानी ऐसे कई दावों से मेल खाती है जो देवेश ने खुद या तो अपने ब्लॉग में किए थे या सालों से सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर डॉक्यूमेंटेड थे.

Anon1 ने कहा कि वो पहली बार 2014 में जापान में एक कांफ्रेंस के दौरान देवेश से मिले थे जो कि सस्टेनेबल डेवलपमेंट के एजुकेशन के लिए किया गया था. यहां उन्हें MGIEP द्वारा उनके यूथ प्रोग्राम्स को रिप्रेजेंट करने के लिए नॉमिनेट किया गया था. उस वक्त तक, देवेश ने माइक्रोसॉफ्ट इमेजिन कप के माध्यम से एक पेशेवर कोडर और UX डिज़ाइनर के रूप में अपनी विश्वसनीयता स्थापित कर ली थी. इसमें उन्होंने अपनी टीम के साथ, पीपल्स चॉइस अवार्ड जीता था. टीम को द डी लैब्स कहा जाता था. इसके सदस्यों में से एक के लिंक्डइन प्रोफ़ाइल या डी लैब्स के फ़ेसबुक पेज के माध्यम से वेरीफ़ाईड किया जा सकता है जहां वोट के लिए अपील की गई थी. 2012 की माइक्रोसॉफ्ट की प्रेस रिलीज़ से भी ये बात साबित होती है.

अपनी मुलाक़ात को याद करते हुए, Anon1 ने ऑल्ट न्यूज़ को बताया कि जापान में कांफ्रेंस में देवेश कुमार सामान्य कपड़े और चप्पल पहने हुए एक तकनीकी जादूगर साथ ही कार्यकर्ता के रूप में सामने आए थे. एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में पूरी तरह से पेशेवर सैकड़ों लोगों को शामिल करते हुए, देवेश ने ये सुनिश्चित किया कि वो उनसे अलग दिखें. उन्होंने सभी सही कारणों पर बात की, चाहे वो सस्टेनेबिलिटी हो या एजुकेशन हो या मेंटल हेल्थ हो, साथ ही वो अपनी कमजोरियों को व्यक्त करने से भी नहीं कतराते थे, इस तरह वो MGIEP के अधिकारियों के प्रिय बन गए.

‘मुझे नहीं लगता कि मेरे पास ज्यादा समय बचा है’: ब्रेन ट्यूमर और डिप्रेशन

देवेश ने दो व्यक्तिगत खुलासे किए जिसका ऑर्गनाइज़ेशन और उसके बाहर उनका व्यक्तित्व बनाने में रणनीतिक महत्व था. कम से कम MGIEP के कुछ कर्मचारियों को इसकी जानकारी थी. एक उनके ब्रेन ट्यूमर के बारे में था और दूसरा उनकी गोद ली हुई बेटी मंजरी के बारे में था.

हमारे सभी चार सोर्स ने व्यक्तिगत रूप से 2018 में इस प्रकरण के बारे में बात की थी जब देवेश कुमार ने इंटरनल मेलिंग लिस्ट को एक ई-मेल (नीचे स्क्रीनशॉट) लिखा था जिसमें कहा गया था कि वो ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित हैं, और कुछ समय सीमा को पूरा नहीं कर पाने के लिए माफी मांगी थी. ये इस लाइन के साथ शुरू हुआ था, “मुझे नहीं लगता (और मेरे डॉक्टर को भी) कि मेरे पास बहुत समय बचा है.” उन्होंने टेक्सास विश्वविद्यालय के MD एंडरसन कैंसर सेंटर से एक प्रिस्क्रिप्शन और एक मेडिकल रिपोर्ट शेयर की. इन पेपर्स की प्रमाणिकता के बारे में आर्गेनाइजेशन के भीतर सुगबुगाहट थी. Anon1 ने कहा कि बाद में उसी साल, उन्होंने इसके बारे में बात करना बंद कर दिया जैसे कि ये चमत्कारिक ढंग से ठीक हो गया हो.

नीचे देवेश का प्रिस्क्रिप्शन और एक मेडिकल रिपोर्ट दिया गया है जो मेल में शामिल था.

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हमने टेक्सास विश्वविद्यालय में कैंसर सेंटर को मेल किया. लेकिन सख्त प्राइवेसी लॉ की वज़ह से वो किसी भी जानकारी के लिए मदद नहीं कर सके.

प्रिस्क्रिप्शन और मेडिकल रिपोर्ट में टेक्स्ट और फॉर्मेट प्रिस्क्रिप्शन लिखने का मानक तरीका है या नहीं, ये चेक करने के लिए हमने इसे चार मेडिकल प्रोफ़ेशनल्स से चेक करवाया जिनमें से एक अमेरिका से हैं. डॉक्टरों ने कहा कि रिकॉर्ड के लैंग्वेज को देखते हुए इस बात की बहुत ज़्यादा संभावना है कि डाक्यूमेंट्स नकली थे.

उनमें से एक, हार्वर्ड मेडिकल स्कूल USA के साथी और कोलकाता स्थित एक वरिष्ठ न्यूरोसर्जन और डॉ सुजॉय सान्याल ने डाक्यूमेंट्स में 6 साफ़ विसंगतियों की ओर इशारा किया. उन्होंने कहा, “A. डॉक्यूमेंट में इस्तेमाल की गई भाषा अजीब है और इसके मेडिकल फ़ैसिलिटी से होने की संभावना नहीं है. B. ‘मरीज के वाइटल औसत थे’ निश्चित रूप से ये मेडिकल लिंगो नहीं है. C. Reteplase, अस्पताल में आपातकालीन परिस्थितियों में दी जाने वाली एक थक्का ख़त्म करने वाली दवा है और इसे 2 सप्ताह में एक बार लेने के लिए नहीं कहा जाता है और इसका खाली पेट से कोई लेना-देना नहीं है. D. हेपरिन सोडियम कभी भी गोलियों के रूप में सप्लाई नहीं की जाती है. E. ऑब्जरवेशन में कहा गया है कि इस सज्जन को इस्केमिक स्ट्रोक है जबकि सर्टिफ़िकेट में कहा गया है कि उसके ब्रेन में ट्यूमर (क्लॉट) है. इस तरह ऑब्ज़रवेशन और सर्टिफ़िकेट में काफी विरोधाभास है. ये एक रेडिएशन फ़िजिसिस्ट के कैंसर के ट्रीटमेंट से जुड़ा हो सकता है लेकिन इसका इस तरह के स्ट्रोक से कोई लेना-देना नहीं है.”

हमने डॉक्यूमेंट पर साइन करने वाले डॉक्टर मनिकम मुरुगनंधम से संपर्क करने की कोशिश की जो रेडिएशन फ़िजिक्स विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर थे. अगर उनकी और से कोई भी जवाब आया तो बाद में इस आर्टिकल को अपडेट किया जाएगा.

Anon3 और Anon4 ने हमें बताया कि उन्हें पता था कि ये सब एक चाल थी सहानुभूति पैदा करने और ये धारणा बनाने के लिए कि वो बहादुर हैं और कमजोर होने से नहीं डरते हैं. उन्होंने दूसरे लोगों को अपने जीवन के बारे में खुलकर बताया और लोगों ने उन पर विश्वास किया. Anon4 ने कहा कि ब्रेन ट्यूमर प्रकरण का समय ऐसा था कि वो अपनी परियोजनाओं को पूरा नहीं करने के लिए जांच से बचने के बहाने के रूप में इसका इस्तेमाल कर सकता था. 2020 में सुशांत सिंह राजपूत की मौत के दिन, उन्होंने अपने सहयोगियों को एक ईमेल भेजा कि कैसे वे भी डिप्रेशन से लड़ रहे थे.

गोद ली हुई बेटी जो एक अजीब दुर्घटना में मर गई

अन्य व्यक्तिगत डिटेल जो उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ शेयर की, वो उनकी गोद ली हुई बेटी मंजरी की थी. MGIEP के पूर्व कर्मचारियों ने कहा कि एक समय सभी को पता था कि देवेश ने मंजरी नाम की एक बेटी को गोद लिया है. Anon1 ने कहा कि ये उस इमेज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था जिसे देवेश ने खुद बनाया था. असल में Anon1 और Anon2 इस बात से इतने प्रभावित हुए कि वो दोनों परेशान हो गए जब एक दिन देवेश ने ये बताया कि सड़क पर चलते वक्त सिर पर ईंट गिरने से मंजरी की मौत हो गई. देवेश नाटकीय ढंग से एक मीटिंग के बीच में अपने सहयोगियों को इस ख़बर के बारे में बताया और कार्यालय से बाहर भाग गया.

इस स्टोरी की पुष्टि करने के लिए आगे तलाश करने पर हमें अप्रैल 2016 में देवेश कुमार द्वारा पब्लिश एक ब्लॉग मिला. ब्लॉग में उनकी बेटी मंजरी के लिए भविष्य में सेट किए गए लेटर्स थे. देवेश ने ये ज़िक्र किया कि वो 2011 में HIV+ रोगियों के साथ काम करते वक्त मंजरी की मां से मिले थे. जाहिर तौर पर, वो अपने एक सामाजिक कार्य के दौरान बच्चे के जन्म के दौरान मौजूद थे और बच्चे के जन्म के बाद मां की मौत हो जाने से उसे गोद ले लिया था.

यहां गौर करें कि भारत में गोद लेने के कानून के मुताबिक, एक अकेला पुरुष किसी लड़की को गोद नहीं ले सकता है.

देवेश के मुताबिक, फ़रवरी 2018 में स्कूल से घर जाते वक्त मंजरी के सिर पर ईंट गिरने से उसकी मौत हो गई थी. देवेश अपने ब्लॉग ‘ओनोस्मोसिस’ पर अपने दुख के बारे में बात की. हमारे सोर्स ने भी इस घटना के बारे में डिटेल में बताया था. हमें पता चला कि MGIEP के एक कर्मचारी ने रांची के अपोलो अस्पताल से तत्काल संपर्क किया. उन्होंने रिकॉर्ड चेक कर उन्हें सूचित किया कि 6 महीने से ज़्यादा समय में किसी भी बच्चे की आकस्मिक मौत की सूचना नहीं मिली है.

दिलचस्प बात ये है कि जब हमने देवेश के फ़ेसबुक अकाउंट को चेक कर उनके दोस्तों के बारे जानकारी इकठ्ठा की तो हमने देखा कि मंजरी नाम की एक लड़की उनके परिवार में मौजूद थी. वो उनकी एक बुआ की बेटी थी. फ़ेसबुक से उनकी एक तस्वीर यहां दी गई है.

2011 की गर्मियों में हुई मौतों ने देवेश की संभावनाओं को बिगाड़ दिया

देवेश के नेरेटिव में मंजरी की मौत इस तरह की इकलौती कहानी नहीं है.

2011 में Quora पर एक सवाल का जवाब देते हुए, देवेश ने एक असफल पहल के बारे में बात की जो ऐसी कई कहानियों में से एक है. उनका कहना है कि उन्होंने 2009 में कॉलेज में रहते हुए अपने 12 दोस्तों के साथ एक कंपनी शुरू की थी. कॉलेज में आने से पहले ही उनके पास Microsoft, IBM, Verizon, Aricent आदि के साथ प्रोजेक्ट थे और वो रिमोटली काम करते थे. हालांकि, 2011 में जब वो एक ऐसे प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे जिससे उनका जीवन बदल सकता था, तो प्रोजेक्ट का नेतृत्व करने वाली मानवी की कई हेल्थ कंडीशन्स की वजह से मौत हो गई. उसके बिना, उनकी प्रेजेंटेशन अविश्वसनीय थी और इसलिए ये अधूरी रह गई. देवेश ने ज़िक्र किया है कि मानवी की मौत 6 से 11 अगस्त 2011 के बीच हुई थी.

फिर से, 2017 में Quora पर एक और सवाल का जवाब देते हुए वो अपने जीवन की एक अजीब तरह की कहानी सुनाते हैं. एक और करीबी दोस्त की भी 2011 की गर्मियों में यानी, मानवी की मौत के आसपास मौत हो गई. राब्या नाम की दोस्त हैदराबाद की थी और वो भी रिमोटली काम करती थी. देवेश के मुताबिक, वो कुछ सबसे जटिल कोडिंग लैंग्वेज जानती थी. राब्या को ब्रैस्ट कैंसर था और जब देवेश कोलकाता में इंटर्नशिप कर रहे थे तब उसकी मौत हो गई.

दो और लोग भी हैं जिनका देवेश ने अपने ब्लॉग में ज़िक्र किया है. 2016 के एक ‘व्हाट मेक्स मी होपफुल‘ टाइटल वाले ब्लॉग पोस्ट में देवेश ने राधिका (12 साल) नाम की एक बच्ची के बारे में बात की जिसका एक पुलिसकर्मी ने कथित रूप से बलात्कार किया जिसके बाद उसे HIV हो गया था. वो उससे 2009 में राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (NACO) में मिले थे. 2013 में उसकी मौत हो गई. इसी ब्लॉग में देवेश ने एक और दोस्त के बारे में बात की जो एक कुशल व्यक्तित्व से मादक पदार्थों के सेवन का शिकार बन गई थी. जब उसने अपने पहले बच्चे को जन्म दिया तो उसने बच्चे का नाम अपने एक सहकर्मी के नाम पर रखा जिसकी मौत हो गई थी.

MGIEP के रैंक्स में देवेश का उदय

Anon4 ने पक्के तौर पर कहा कि MGIEP में सहयोग धारणाओं पर बनाया गया था न कि वास्तविक प्रदर्शन के आधार पर. देवेश ने MGIEP में अपना रास्ता बनाया क्योंकि उसने अपने चारों ओर एक निश्चित औरा बना लिया था. उन्हें एक तकनीकी जादूगर के रूप में देखा गया जिन्होंने कम ग्लैमरस लेकिन सामाजिक रूप से सार्थक शिक्षा क्षेत्र में काम करने के लिए Microsoft, Amazon आदि के ऑफ़र को ठुकरा दिया था.

इस पॉइंट को समझाने के लिए anon1 ने हमें MGIEP में देवेश के कार्यकाल के बारे में बताया. 2015 के आसपास, जब MGIEP टीम शिक्षा और स्थिरता के लिए वन-स्टॉप प्लेटफॉर्म, नॉलेज कॉमन्स प्लेटफॉर्म विकसित करना चाह रही थी, तो MGIEP में एक परियोजना अधिकारी (करिकुलम रिफॉर्म्स) ने विशेष रूप से IT बैकग्राउंड के कारण देवेश की सिफारिश की थी. देवेश उस वक्त मुंबई में रहते थे जहां CoBeats Inc. का कार्यालय रजिस्टर हुआ था. ये एक कंपनी थी जिसे देवेश ने विन्नी लोहान के साथ स्थापित की थी. देवेश को अनौपचारिक रूप से एक MGIEP प्रोजेक्ट में शामिल किया गया था जो कि एक सैंपल सर्वे था इस बारे में कि भारत में युवा शिक्षा के बारे में क्या सोचते हैं.

हमारे सूत्रों ने बताया कि नॉलेज कॉमन्स प्लेटफॉर्म प्रोजेक्ट ने बहुत कुछ करने का वादा किया था, लेकिन बहुत कम कर पाया. फ़िलहाल UNESCO MGIEP वेबसाइट पर योगदान के लिए लिंक के साथ एक नॉलेज कॉमन्स पेज है. इस लिंक से नीचे दिया गया पेज खुलता है. पाठकों को ध्यान देना चाहिए कि जब हमने अपनी जांच के दौरान इसे देखा तो ये एक फ़ंक्शनल वेबसाइट थी. 24 दिसंबर, 2022 को हमने UNESCO एथिक्स कमेटी को देवेश कुमार के साथ इसके एसोसिएशन के बारे में लिखकर पूछा. उसके बाद, हमने देखा कि वेबसाइट अब एक्सेसिबल नहीं थी.

नॉलेज कॉमन्स प्लेटफॉर्म का एक वैकल्पिक डोमेन (https://kcommons.org/) भी है जिसका आर्काइव लिंक यहां देखा जा सकता है.

2016 में देवेश ने घोषणा की कि उन्होंने डिस्लेक्सिया के लिए एक ऐप विकसित किया है. उन्होंने डिस्लेक्सिया पर भारत में अनलर्न प्रोग्राम टाइटल से एक कांफ्रेंस ऑर्गनाइज़्ड करने का प्रस्ताव रखा. ये IIT दिल्ली में बड़े पैमाने पर ऑर्गनाइज़्ड किया गया था और इसमें दिल्ली के स्कूल शिक्षकों और कई इंटरनेशनल रिसोर्सेज ने भाग लिया था. उनमें से एक थीं नंदिनी चटर्जी सिंह जो एक कॉग्निटिव न्यूरोसाइंटिस्ट हैं. उन्होंने भारत के नेशनल ब्रेन रिसर्च सेंटर में पहली संज्ञानात्मक और न्यूरो-इमेजिंग लेबोरेटरी स्थापित की थी. आखिरकार, उन्हें 2017 में MGIEP में एक वरिष्ठ परियोजना अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया. सम्मेलन की सफलता और नंदिनी के साथ देवेश के एसोसिएशन से ऑर्गेनाइज़ेशन में उनकी प्रतिष्ठा बढ़ी.

हमारे सभी सूत्रों ने ज़िक्र किया कि MGIEP प्रबंधन पर देवेश का एक असामान्य प्रभाव था. औपचारिक रूप से शामिल किए जाने से बहुत पहले वो उनके व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन के बारे में जानते थे. चाहे वो कंपनी रिट्रीट का आयोजन हो या प्रोजेक्ट्स पर इनपुट हो, उनकी भूमिका एक युवा प्रतिनिधि के रूप में काम करने वाले स्वयंसेवक के तौर पर स्वाभाविक रूप से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण थी.

2015 तक, उन्होंने पहले से ही संगठन में खुद को इस तरह से स्थापित कर लिया था कि वो MGIEP उनके व्यक्तिगत पहलों को बढ़ावा और समर्थन दे सके. उदाहरण के लिए, उन्होंने REVA नामक कार्यक्रम का आयोजन किया जिसके बारे में उन्होंने दावा किया कि ये ‘अंडरप्रिविलेज़्ड बच्चों के लिए सबसे बड़ा आयोजन है, और भारत के तीन से ज़्यादा शहरों में हर साल इस कार्यक्रम की मेजबानी की जाती है.’ इस कार्यक्रम का औपचारिक रूप से UNESCO MGIEP द्वारा समर्थन किया गया था.

उन्होंने involvED कांफ्रेंस और रेवा उत्सव जैसी कई पहलों के लिए क्राउडफंडिंग की मांग की. इन दोनों सम्मेलनों का आयोजन व्हाइटशार्क द्वारा किया गया था जिसे देवेश ने विन्नी लोहान के साथ मिलकर स्थापित किया था. 2018 में MGIEP इंटर्न प्रियंका पटेल ने ट्वीट किया कि देवेश ने भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति को बदलने के लिए दुनिया की सबसे बड़ी प्रतियोगिता शुरू की है. ‘ओकेडिप्रेशन’ नाम की ये प्रतियोगिता मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के लिए बड़े पैमाने पर समाधान तलाश रही थी, और विजेताओं को इम्प्लीमेंटेशन के लिए $50,000 से सम्मानित किया जाएगा.

ऑल्ट न्यूज़ ने ईमेल और अन्य माध्यमों से प्रियंका पटेल से संपर्क किया. लेकिन उन्होंने हमारे मेसेजेज़ का कोई जवाब नहीं दिया.

इन सब के आलावा उनके फ़ाइनेंसेज के बारे में इस फ़ैक्ट से भी सवाल उठता है कि जब कोविड के कारण लॉकडाउन के दौरान, देवेश टेकफ़ॉग इन्वेस्टीगेशन पर काम कर रहे थे, उनके मुताबिक तब उनका मासिक बिल 45,000-55,000 रुपये तक था.

भले ही हम Anon2 द्वारा बताए गए फ़ैक्ट पर विचार करें कि मोटे तौर पर 2018 और 2020 के बीच, देवेश को MGIEP में अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक वेतन मिला, भारतीय बाजार दरों के मुताबिक कंसल्टेंट्स के रेगुलर भुगतान से अलग जो उन्होंने अपने खर्चों के बारे में ऊपर बताया है वो असाधारण रूप से काफी ज़्यादा है.

2020 में देवेश ने न्यूयॉर्क के थॉमसन रॉयटर्स का एक ऑफ़र लेटर तैयार किया. इसके मुताबिक, उन्हें सालाना 192,000 USD यानी, करीब 13 लाख रुपये प्रति महीने की सालाना ग्रॉस सैलरी ऑफ़र की गई थी. हमारे सूत्रों ने स्वतंत्र रूप से हमें बताया कि देवेश ने MGIEP के साथ अपने कॉन्ट्रैक्ट के रिन्यूअल के दौरान सैलरी बढ़ाने में सौदेबाजी करने के लिए इस ऑफ़र लेटर का इस्तेमाल किया था. सूत्रों ने जोर देकर कहा कि वेतन बढ़ाने का आधार देवेश की ‘असाधारण प्रतिभा’ थी.

MGIEP के भीतर किए गए अपने ही दावों का खंडन करते हुए देवेश ने टेक फ़ॉग के खुलासे के बाद न्यूज़लॉन्ड्री के एक इंटरव्यू में सार्वजनिक रूप से दावा किया था कि उन्होंने 2020 में सात महीने तक रॉयटर्स के साथ काम किया था. हमने अलग से रायटर को क्रॉस-चेक करने के लिए लिखा और उन्होंने हमें जवाब दिया गया कि उनके पास उनके लिए काम करने वाले ऐसे किसी व्यक्ति का रिकॉर्ड नहीं है.

Anon3 ने ज़िक्र किया कि नंदिनी और देवेश द्वारा प्रबंधित एक प्रोजेक्ट के लिए MGIEP को FICCI और वोडाफ़ोन फ़ाउंडेशन से अनुदान में एक महत्वपूर्ण राशि प्राप्त होनी थी जिसकी कोई जवाबदेही नहीं थी.

हमने नीचे FICCI द्वारा देवेश को भेजे गए एक ईमेल और उसके बाद उनके सहयोगियों के साथ उनकी बातचीत की एक कॉपी अटैच की है. मेल को ध्यान से पढ़ने पर नोटिस किया जा सकता है कि देवेश ने काफी बढ़ा चढ़ा कर और भव्य घोषणाएं की है जैसा वो पहले भी करते आ रहे थे. मेल टेक्स्ट में मिलेनियम एलायंस टीम ने साफ तौर पर ज़िक्र किया है कि राउंड – 4 में उचित मेहनत के लिए डिलिजेंस प्राप्त करना अवार्ड देने का वादा नहीं है. हालांकि, देवेश ने ये घोषणा की कि वो ‘पैसा लेने जा रहे हैं.’ उसी मेल ट्रेल में, निर्देशक ने वापस देवेश को लिखा, “पता नहीं इसका क्या मतलब है लेकिन मुझे लगता है कि ये प्रक्रिया का हिस्सा है.”

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हमसे बात करते वक्त हमारा हर सूत्र बहुत ही चिंतित लगा. उन्होंने दावा किया कि MGIEP ब्रास के संरक्षण ने देवेश को संस्थान में तकनीकी संचालन तक पहुंच और नियंत्रण दिया था. ऐसे कुछ अजीब से उदाहरण भी थे जहां ईमेल अचानक इनबॉक्स से गायब हो जाते थे, और सर्वर हैक होने के बारे में अलर्ट जारी किए जाते थे जिसे सिर्फ देवेश हल कर सकते थे. दिलचस्प बात ये है कि देवेश के जांच के दायरे में आते ही हैकिंग की इसी तरह की घटनाओं को ‘द वायर’ द्वारा मेटा फ़ेस्को के दौरान रिपोर्ट किया गया था.

सवालों की लिस्ट

ये समझना मुश्किल है कि 2011 में बिट्स मेसरा में छात्र रहते हुए देवेश कुमार ने बड़ी कंपनियों के प्रोजेक्ट्स पर कैसे काम किया, एक ही समय में सामाजिक संगठनों में स्वयंसेवक और एक अलग शहर में इंटर्न के तौर पर वो काम किया करते थे. दरअसल, देवेश का पेशेवर करियर ऐसे ही अनसुलझे सवालों से भरा पड़ा है. उनमें से कुछ को हमने इस आर्टिकल में आगे आउटलाइन किया है.

Quora पर देवेश के बायो और मीडियम पर उनके ब्लॉग में उनको व्हाइटशार्क और Cobeats Inc. के सह-संस्थापक के रूप में मेनशन किया गया है. Cobeats वेबसाइट के लैंडिंग पेज पर तीन लोगों के टेस्टीमोनियल्स थे.

हमने अभिमन्यु घोषाल से संपर्क किया. उन्होंने बताया कि 2013 में उन्होंने बैंगलोर में माइक्रोसॉफ्ट के स्टार्टअप एक्सेलरेटर को कवर करते हुए ‘ग्लूपैड’ नामक एक प्रोडक्ट के बारे में लिखा था जहां व्हाइटशार्क भी प्रतिभागियों में से एक था. उन्होंने साफ़ किया कि उन्होंने टेस्टीमोनियल नहीं दिया था. और उनके पत्रकारिता कार्य को भी उनकी सहमति के बिना इस्तेमाल किया गया. उन्हें इस बात की भी जानकारी नहीं थी कि प्रोडक्ट का नाम बदलकर ‘CoBeats’ कर दिया गया है. जब हमने MGIEP को देवेश के बारे में सवाल पूछने के लिए लिखा तो इन टेस्टीमोनियल को रातों-रात लैंडिंग पेज से हटा दिया गया. हालांकि, वो वेबसाइट पर एक अलग पेज पर मौजूद हैं.

ये काफी दिलचस्प है कि देवेश और उनके लंबे समय के पेशेवर साथी विन्नी लोहान के पास व्यक्तिगत त्रासदियों के बारे में एक जैसे पब्लिक नैरेटिव हैं जिन्हें बिज़नेस आइडियाज़ में बदल दिया गया है. संयोग से, विन्नी लोहान ने 2010 में माइक्रोसॉफ्ट इमेजिन कप का राष्ट्रीय फ़ाइनल जीता था और देवेश कुमार ने बाद में 2012 में इसे जीता था. दरअसल, विन्नी ने 2012 में इवेंट के दौरान देवेश की डी लैब्स टीम का मार्गदर्शन किया था.

CoBeats Inc के प्रोडक्ट्स और सर्विसेज, उनके द्वारा संयुक्त रूप से स्थापित की गई कंपनियों में से एक को MGIEP के भीतर अनुबंधित रूप से लागू किया गया था. हमारे सूत्रों ने बताया कि उन्होंने काम के सिलसिले में विन्नी लोहान को MGIEP कार्यालय जाते हुए देखा था. देवेश और विन्नी दोनों ही अपनी प्रोजेक्ट्स को ओपन-सोर्स करने के पक्ष में थे. उन्होंने स्थानीय रूप से आयोजित TEDx टॉक्स में भी नियमित रूप से भाग लिया. देवेश और विन्नी की कंपनी ने सिर्फ 21 दिनों में MGIEP के लिए ‘नॉलेज कॉमन्स’ नामक एक टूल भी बनाया.

टेक फ़ॉग के इन्वेस्टीगेशन के दौरान ‘ओपन सोर्स’ पर ये विश्वास भी सामने आया. देवेश और उनके सह-लेखक आयुष्मान कौल ने इंटरव्यू में न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि वो अपने सभी निष्कर्षों को ‘ओपन-सोर्स’ करेंगे और जानकारी को संपादित करेंगे जो उनके सोर्स से समझौता कर सकते हैं. उनकी स्टोरी पब्लिश होने के बाद, कई लोगों ने देवेश और आयुष्मान कौल से संपर्क किया. देवेश ने यू-टर्न लेते हुए एक व्यक्ति को बताया कि वो अब टेक फ़ॉग की स्टोरी से नहीं जुड़े हैं और इसमें शामिल मीडिया हाउसेस का एक संघ भविष्य की इन्वेस्टीगेशन को पब्लिश करेगा. आयुष्मान कौल ने फ़ॉरबिडन स्टोरीज, वाशिंगटन पोस्ट और द गार्डियन का नाम लिया. और इस संबंध में, द वायर का भी क्यूंकि स्टोरीज़ उन्होंने ही पब्लिश की थीं.

ऑल्ट न्यूज़ ने फ़ॉरबिडन स्टोरीज़ और द वाशिंगटन पोस्ट से संपर्क किया. दोनों संगठनों ने टेक फ़ॉग के एक्सेस से इनकार किया. फ़ॉरबिडन स्टोरीज़ ने कहा कि ‘टेक फ़ॉग डेटा तक इसकी पहुंच कभी नहीं थी और ये उस स्टोरी पर काम नहीं कर रहे हैं.’ द वाशिंगटन पोस्ट ने कहा कि ये पेगासस प्रोजेक्ट के अलावा द वायर के साथ किसी अन्य सहयोग में नहीं था.

देवेश के रेडिट और Quora ब्लॉग पोस्ट में NACO के साथ उनके काम का ज़िक्र है जो सेक्स वर्कर्स पर गेट्स फ़ाउंडेशन के लिए डॉक्यूमेंट्रीज बनाते हैं, और इससे सामाजिक रूप से जागरूक व्यक्ति के रूप में उनकी साख स्थापित होती है. हमने मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन को बिल गेट्स के मेल की प्रामाणिकता वेरीफ़ाई करने के लिए लिखा था. हमें अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है.

देवेश ने अपने एक ब्लॉग में माइक्रोसॉफ्ट में रीजनल डायरेक्टर होने का दावा किया था. हालांकि, रीजनल डायरेक्टर्स के बारे में FAQ पेज से पता चलता है कि देवेश इस क्राइटेरिया को पूरा नहीं करते हैं.

MGIEP के सोर्सेज के अलावा, हमने दीपाली सिन्हा से भी संपर्क किया जिन्हें VSCO पोस्ट में देवेश ने अपनी बहन बताया था. लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.

टेक फ़ॉग एंड मेटा: देवेश कुमार कहानी का क्लाइमैक्स

देवेश कुमार की प्रोफ़ाइल उन दो प्रोजेक्ट्स को संबोधित किए बिना अधूरी होगी जिनसे वो सुर्खियों में आए थे.

टेक फ़ॉग कथित तौर पर एक मोबाइल सॉफ़्टवेयर एप्लिकेशन है जिसका इस्तेमाल भाजपा द्वारा सोशल मीडिया के रुझानों में हेरफेर/ हाइजैक करने, ग़लत सूचना फ़ैलाने, टार्गेटेड हरासमेंट को लागू करने, सोशल मीडिया एकाउंट्स को बनाने या हटाने और यहां तक ​​कि निष्क्रिय व्हाट्सऐप एकाउंट्स को कंट्रोल करने के लिए किया जाता है.

जनवरी 2022 में जब देवेश कुमार और अभिमन्यु कौल की टेक फ़ॉग सीरीज़ के तीन पार्ट द वायर पर पब्लिश हुए, तो तकनीकी पत्रकार समर्थ बंसल ने इन दावों का आलोचनात्मक विश्लेषण किया. उनके मुताबिक़, ऐसा लग रहा था कि “इन रिपोर्ट्स में इस के दूरगामी दावों को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं थे.”

द वायर की रिपोर्ट में टेक फ़ॉग ऐप की एक विशेषता ये बताई गई है कि कोई भी एक क्लिक से सोशल मीडिया अकाउंट बना या हटा सकता है. समर्थ बंसल बताते हैं कि ऐप में इस तरह की सुविधा मौजूद होने का सुझाव देने के स्क्रीनशॉट के अलावा, द वायर स्वतंत्र रूप से इस तरह के शोषण के अस्तित्व को सत्यापित नहीं कर सका. देवेश कुमार ने समर्थ बंसल को जो सफाई दी उसका कोई मतलब नहीं बनता.

देवेश ने कहा, “हमने पूरा करने के लिए इसे बिना वेरिफिकेशन के जोड़ा था. जिन फीचर्स को हमने वेरीफ़ाई किया है उनमें से एक ये था कि कैसे बड़ी संख्या में एकाउंट्स हैशटैग ट्रेंड करने के लिए ट्वीट कर रहे थे. अगर हम उस हिस्से को नहीं जोड़ते जहां टेक फ़ॉग ऐप कई एकाउंट्स को बना या बैन कर सकता है, तो बहुत से लोग ये सवाल करते कि वो ऐसा कैसे कर रहे हैं? एक ऐप पर हज़ारों अकाउंट कैसे आ रहे हैं?”

आख़िरकार, द वायर ने टेक फ़ॉग की स्टोरीज़ को 23 अक्टूबर, 2022 को वापस ले लिया.

10 अक्टूबर, 2022 को द वायर ने अपनी पहली मेटा इन्वेस्टिगेशन स्टोरी जारी की जिसकी हेडलाइन थी, ‘एक्सक्लूसिव: बीजेपी के अमित मालवीय अगर आपके पोस्ट को रिपोर्ट करते हैं तो इंस्टाग्राम इसे हटा देगा, की सवाल नहीं पूछे जाएंगे.’ ये आर्टिकल औपचारिक रूप से 23 अक्टूबर को वापस ले लिया गया था. संक्षेप में समझाने के लिए, स्टोरी में ये दावा किया गया कि भाजपा IT सेल के हेड अमित मालवीय के पास विशेषाधिकार है जो आमतौर पर एक्सचेक कार्यक्रम के माध्यम से इंस्टाग्राम के हाई-प्रोफ़ाइल यूज़र्स को दिए जाते हैं. वॉल स्ट्रीट जर्नल द्वारा 2021 में शुरू में रिपोर्ट किया गया ये कार्यक्रम लाखों VIP यूज़र्स को कंपनी की सामान्य प्रवर्तन प्रक्रिया से बचाता है. द वायर की स्टोरी में कहा गया है, कार्यक्रम के व्यापक रूप से ज्ञात पहलू से अलग, मालवीय के पास एक विशेषाधिकार था जिसके बल पर वो न्यूडिटी के बहाने सत्तारूढ़ सरकार की आलोचना करने वाले किसी भी पोस्ट को हटा सकते थे, भले ही उस पोस्ट में न्यूडिटी के नाम पर ऐसा कुछ भी न हो. उनके दावों को सही ठहराने के लिए, द वायर ने तब सबूत के रूप में स्टोरीज की एक सीरिज पब्लिश की.

  1. इंस्टाग्राम के रिव्यू प्रोसेस का एक स्क्रीनशॉट.
  2. इंस्टाग्राम के इंटरनल वर्कस्पेस को दिखाने वाला एक वीडियो, जिसे मेटा ने ये कहते हुए खारिज कर दिया कि ऐसा URL (instagram.workspace.com) मौजूद नहीं है.
  3. मेटा में पॉलिसी कम्युनिकेशन्स डायरेक्टर एंडी स्टोन के ईमेल का स्क्रीनशॉट जिसमें वो इंटरनल डाक्यूमेंट्स के लीक होने से नाखुश थे. मेटा ने इसे मनगढ़ंत बताते हुए खारिज कर दिया.
  4. विशेषज्ञों द्वारा किए गए ईमेल का DKIM वेरिफ़िकेशन. उन विशेषज्ञों ने द वायर के दावे को सार्वजनिक रूप से खारिज कर दिया.

मेटा के प्रवक्ता एंडी स्टोन की ओरिजनल इंस्टाग्राम पोस्ट के कथित टेक-डाउन पर ये प्रतिक्रिया थी कि ये आटोमेटिक फ़्लैगिंग के कारण था..

ये बात साबित करने के लिए कि अमित मालवीय एक्सचेक कार्यक्रम के दुरुपयोग में शामिल हैं, पत्रकारों और साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों सहित कई लोगों ने द वायर के सोर्सेज और भौतिक साक्ष्यों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाए. मेटा पर चार स्टोरीज में द वायर पहले आक्रामकता से रक्षा और फिर माफीनामे तक चला गया.

दिलचस्प बात ये है कि द वायर द्वारा दायर की गई शिकायत के मुताबिक, वो देवेश ही थे जिन्होंने 6 अक्टूबर को एक स्टोरी पब्लिश होने के बाद XCheck कार्यक्रम और अमित मालवीय से संबंधित कंटेंट के साथ आउटलेट से संपर्क किया था जिसमें कहा गया था कि इंस्टाग्राम ने न्यूडिटी के सामुदायिक दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने की वजह से @cringearchivist नामक यूज़र के एक पोस्ट को हटा दिया था. द वायर ने उस पॉइंट पर अपनी इन्वेस्टीगेशन शुरू की.

पहली स्टोरी 10 अक्टूबर को जाह्नवी सेन की बायलाइन के साथ आई. दूसरी कहानी 11 अक्टूबर को सेन और सिद्धार्थ वरदराजन की बायलाइन के साथ आई. न्यूज़लॉन्ड्री की रिपोर्ट के मुताबिक, देवेश कुमार ने ये दावा करते हुए बायलाइन का विकल्प नहीं चुना कि उनका नामकरण उनके सोर्सेज या व्हिसल-ब्लोअर से समझौता करेगा. हालांकि, उन्होंने ट्विटर पर सार्वजनिक रूप से स्टोरी का बचाव किया और आलोचकों को ये आभास दिया कि स्टोरी में उनका व्यक्तिगत दांव पर था. 15 अक्टूबर को सीरीज की तीसरी स्टोरी में देवेश की बायलाइन थी. मेटा ने पहले की स्टोरीज़ का खंडन करने के लिए जो कुछ भी इस्तेमाल किया था, वो ‘पॉइंट-बाय-पॉइंट प्रतिक्रिया’ थी.

15 अक्टूबर की रिपोर्ट का टाइटल ‘मेटा सेड डैमेजिंग इंटरनल ईमेल इज’ फ़ेक’, URL ‘नॉट इन यूज़’, हियरइज एविडेंस दे आर रॉंग’ था, जिसमें DKIM सिग्नेचर वेरिफ़िकेशन को दिखाया गया है. कथित तौर पर निष्कर्षों का समर्थन करने वाले विशेषज्ञों में से एक ने देवेश को रिप्लाई किया था. लेकिन तारीख 2021 निर्धारित कर दी गई थी. जब इस पर बात की गई तो शुरूआती एक्सप्लेनेशन ये था कि ये tailsOS के साथ टाइम डिफ़ॉल्ट की वजह से हुआ था. फिर एक के बाद एक एक्सप्लेनेशन दी की गई जो कि शुरुआती एक्सप्लेनेशन से बिल्कुल अलग थी. बताया गया कि, कंप्यूटर को tailsOS का इस्तेमाल करके फ़ॉर्मेट किया गया था और कंप्यूटर सेट करते समय लेखकों में से एक ने मैन्युअल रूप से ग़लत तारीख दर्ज कर दी थी.

दबाव बढ़ने पर, 16 अक्टूबर को सिद्धार्थ वरदराजन ने घोषणा की कि द वायर का एक प्रोटोनमेल एड्रेस हैक कर लिया गया था. ये भी कहा गया था कि देवेश कुमार ने अपने जीमेल और ट्विटर तक का एक्सेस खो दिया था और बाद में एकाउंट्स तक एक्सेस वापस हासिल कर किया था. ये साफ़ नहीं था कि टू फ़ैक्टर ऑथेंटिकेशन के इस जमाने में देवेश अपने पासवर्ड सहित अपने सभी एकाउंट्स का एक्सेस कैसे खो देते है? अपनी आदत के अनुसार देवेश एक अजीब एक्सप्लेनेशन लेकर आए. उन्होंने कहा कि उन्होंने चाट खाने के लिए अपने अकाउंट को डीएक्टिवेट कर दिया था.

टेक फ़ॉग की जांच के कुछ महीने बाद देवेश ने एक ट्विटर थ्रेड में हैकिंग की इसी तरह की कहानियां सुनाईं. उन्होंने कहा कि उन्हें दिन में कभी-कभी 2-3 बार अपने कंप्यूटर को फॉर्मेट करना पड़ता है. ये MGIEP में जो हो रहा था उसके समानांतर भी है – जब देवेश पर दबाव बढ़ जाता, तो संगठन अचानक हैक हो जाता है और सिर्फ देवेश ही बचाव में आ सकता है.

इस मामले ने द वायर के लिए और भी खराब मोड़ ले लिया जब दो स्वतंत्र विशेषज्ञों ने जिनके बारे में कहा जाता था कि उन्होंने मेटा इन्वेस्टीगेशन के निष्कर्षों का समर्थन किया था, ने 18 अक्टूबर और 21 अक्टूबर को सार्वजनिक रूप से इन दावों का खंडन किया.

जब पूर्व डेटा साइंटिस्ट से व्हिसल-ब्लोअर सोफी झांग ने भी द वायर की मेटा एक्सचेक स्टोरी के बारे में शक जताया, तो देवेश ने उन्हें बताया कि एक्सचेक प्रणाली के बारे में उनका ज्ञान या तो ग़लत था या पुराना था और उन्हें इसकी बेहतर समझ थी. सोफी झांग ने खुद द कारवां को ये बात बताई थी.

उन्होंने स्वीकार किया कि देवेश की सज़ा से उन्होंने अपने कदम पीछे कर लिए और ये मान लिया कि देवेश सही थे. क्योंकि सोफी को मेटा छोड़े हुए एक साल से ज़्यादा समय हो गया था. उन्होंने द कारवां को बताया कि उन्होंने कभी भी मेटा को एक वास्तविक डॉक्यूमेंट से इनकार करते नहीं देखा था. सोफी ने कहा, “पहले जब मैं पहली बार कई देशों में पॉलिटिकल आउटकम को प्रभावित करने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे अप्रामाणिक नेटवर्क का मेटा द्वारा विरोध न किए जाने के बारे में अपने खुलासे के साथ सामने आई, तो उन्होंने मुझ पर झूठ बोलने का आरोप लगाया, लेकिन जैसे ही हमने इसके डॉक्यूमेंट पेश किए, तो वो इससे मुकर गए. उन्होंने उन डॉक्यूमेंट्स के नकली होने का आरोप नहीं लगाया.” देवेश ने सोफी को ये भी बताया कि मेटा ने ये नहीं कहा था कि द वायर द्वारा उनके दावों के समर्थन में पेश किए गए डॉक्यूमेंट्स फ़र्ज़ी थे. हालांकि, मेटा ने सामने आकर 12 अक्टूबर को कहा कि डॉक्यूमेंट्स नकली थे.

ऐसा लगता है कि मेटा स्टोरीज़ के साथ ‘आकर’ और इसे जनता को बेचते वक्त, देवेश कुमार ने संदेहास्पद संयम नैतिकता वाले संगठन, मेटा की परसेप्शन पर और नागरिक निगरानी के लिए भाजपा सरकार की भविष्यवाणी पर भरोसा किया.

इसमें कोई शक नहीं है कि मेटा स्टोरीज़ से निपटने के दौरान द वायर की ओर से बहुत सारी संपादकीय भूल थीं. लेकिन देवेश कुमार के पेशेवर इतिहास के सार्वजनिक रूप से मौजूद डिटेल्स देखने पर, एक पैटर्न देखने को मिलता है – एक जिसमें बढ़ा चढ़ा कर, जोड़-तोड़ कर, संदिग्ध दावे कर और मनगढ़ंत नैरेटिव पेश करना शामिल है.

(अर्चित मेहता के इनपुट्स के साथ)

अभिमन्यु घोषाल का एक बयान 27-01-2023 को अपडेट किया गया था.

 

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