[हिंसक और ग्राफ़िक कॉन्टेंट, वीडियो विचलित कर सकता है.]
भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) ने 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की तारीखों की आधिकारिक घोषणा कर दी है. 7 चरणों में होने वाली चुनाव 19 अप्रैल से लेकर 1 जून तक चलेगी. देश इस चुनाव के लिए तैयार हो रहा है जिसमें मात्र एक महीने का समय बचा है. इस डिजिटल युग में, मेटा जैसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जो फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम की पैरेंट कंपनी है, राजनीतिक विज्ञापन के लिए युद्धक्षेत्र में तब्दील हो गई है. इसी के साथ इन प्लेटफार्मों की पॉलिसीज़ और उन्हें लागू करने की कार्यशैली पर भी नज़र तेज़ हो गई है.
भारत में राजनीतिक पार्टियां मतदाताओं के दिलों-दिमाग पर अपनी पकड़ बनाने के लिए ऑनलाइन विज्ञापन में महत्वपूर्ण संसाधन लगा रहे हैं और काफी पैसे खर्च कर रहे हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक, पिछले तीन महीनों में ही राजनीतिक विज्ञापन खर्च 102.7 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस खर्च में सबसे आगे है, जिसने आधिकारिक तौर पर सिर्फ ऑनलाइन विज्ञापनों में 37 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किया है जो कि विपक्ष की मुख्य पार्टी से 300 गुना अधिक है.
इस विशाल डिजिटल अभियान के बीच, “MemeXpress“ नामक फ़ेसबुक पेज ने विपक्षी दलों को निशाना बनाते हुए और भाजपा का प्रचार करने वाले राजनीतिक विज्ञापनों पर 1 करोड़ रुपये से ज़्यादा खर्च किया है. मेटा एड लाइब्रेरी में मौजूद जानकारी के मुताबिक, 12 दिसंबर 2023 में बना ये पेज अब तक 310 से ज्यादा राजनीतिक विज्ञापन पोस्ट कर चुका है. हालाँकि, इनमें से चार विज्ञापनों में एक बार सांसद, पांच बार विधायक रहे और कई आपराधिक मामलों के आरोपी अतीक अहमद की हत्या का वीडियो है जो सनसनीखेज और अत्यधिक हिंसक कॉन्टेन्ट के खिलाफ़ मेटा के एडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड्स का उल्लंघन करता है.
नोट: कॉन्टेन्ट में अत्यधिक हिंसा की वजह से हमने वीडियो के उस हिस्से को ब्लर कर दिया है.
मीम एक्सप्रेस पेज पर इस विज्ञापन का कैप्शन कुछ यूं है, “बस एक बुलडोज़र चाहिए बंगाल में, सभी अकड़ू शाहजहाँ सीधे हो जाएँगे”. ऊपर अतीक अहमद पर हुए जानलेवा हमले का वीडियो है जिसमें उसकी मौत हो गई थी. इसके उपर लिखा है “Criminals in UP”, वहीं वीडियो में नीचे पश्चिम बंगाल के संदेशखाली में हुई हिंसा के मुख्य आरोपी शाहजहाँ शेख का वीडियो है जिसमें उसे गिरफ़्तार कर बशीरहाट कोर्ट लाया जा रहा था. इसके उपर लिखा है “Criminals in West Bengal”. इस विज्ञापन के ज़रिए एक हत्या का महिमामंडन किया जा रहा है.
मेटा की पॉलिसी स्पष्ट रूप से ऐसे कॉन्टेन्ट को प्रतिबंधित करती है जिसमें हिंसा का महिमामंडन किया जा रहा हो. प्लेटफ़ॉर्म के एडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड्स में बताया गया है कि विज्ञापनों में चौंकाने वाली, सनसनीखेज या अत्यधिक हिंसक कॉन्टेन्ट नहीं होनी चाहिए जिसमें ग्राफिक क्राइम सीन भी शामिल है. इसके बावजूद, इस वीडियो में न केवल बेहद हिंसा है, बल्कि इसमें हत्या का महिमामंडन और समर्थन भी किया गया है. फ़ेसबुक पर इस विज्ञापन के दो वर्जन 8 मार्च से लेकर 15 मार्च तक निरंतर बिना किसी रोक-टोक के चलता रहा जिसपर 20 लाख से ज़्यादा व्यूज हैं.
Meta Ad Library चेक करने पर पता चला कि इनमें से इंस्टाग्राम पर चलाए जा रहे एक विज्ञापन को 9 मार्च को फ्लैग करते हुए हटा दिया था. कहा गया कि ये विज्ञापन मेटा के एडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड्स का पालन नहीं कर रहा था. जबकि इसी विज्ञापन का दूसरा वर्जन लगातार इंस्टाग्राम पर 16 मार्च तक चलता रहा जिसपर कुल मिलाकर 10 लाख 45 हज़ार से ज्यादा व्यूज हैं.
यह विज्ञापन मेटा की अपनी पॉलीसीज़ को प्रभावी ढंग से लागू करने की क्षमता पर गंभीर सवाल उठाती है. 30 लाख से अधिक बार देखे जाने के साथ, प्लेटफ़ॉर्म पर विवादास्पद वीडियो की निरंतर उपस्थिति न सिर्फ मेटा की पॉलिसी और प्रैक्टिस के बीच अंतर को दर्शाती है, बल्कि विशेष रूप से चुनाव की संवेदनशील अवधि के दौरान उनकी विफलता का नमूना पेश करती है.
मेटा द्वारा पॉलिसीज़ को लागू करने में की गई लापरवाही, प्लेटफॉर्म्स की सतर्कता और जवाबदेही के महत्व को रेखांकित करती है. जैसे-जैसे चुनाव नज़दीक आ रही है, डिजिटल गवर्नेंस की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है. मेटा जैसे प्लेटफार्मों के लिए यह जरूरी है कि वे अपने कम्यूनिटी स्टैंडर्ड्स का उल्लंघन करने वाले कॉन्टेनट्स के खिलाफ त्वरित कार्रवाई करके एक ज़िम्मेदार और सुरक्षित ऑनलाइन स्पेस के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाए.
हमने इस मामले को लेकर कुछ सवाल मेटा को भेजा जिसमें हमने पूछा कि इस विज्ञापन के लिए मेटा का मॉडरेशन सिस्टम क्यों फेल हुआ? चूंकि यह भारत में चुनाव का समय है, मेटा प्लेटफॉर्म को हथियार बनाने के ऐसे तरीके को विफल करने के लिए क्या कर रही है और मेटा प्लेटफ़ॉर्म नियमों का स्पष्ट रूप से उल्लंघन कर रहे पेज पर क्या कार्रवाई होगी?
इसपर हमें मेटा के एक प्रवक्ता की तरफ से जवाब आया. उन्होंने ऑल्ट न्यूज़ द्वारा फ्लैग किये गए कॉन्टेन्ट का रिव्यू किया और इसे मेटा के स्टैंडर्ड्स का उल्लंघन पाया, इसलिए उन्होंने इसके खिलाफ़ कार्रवाई की है. हालांकि, उन्होंने ये स्पष्ट नहीं किया कि किस तरह की कार्रवाई की गई है.
जैसे-जैसे राजनीतिक पार्टियां चुनावी प्रचार के लिए अपना रूख सोशल मीडिया की ओर कर रहे हैं, प्लेटफॉर्म्स द्वारा पॉलिसीज़ को लागू किये जाने के लिए मजबूत और पारदर्शी मनोबल की आवश्यकता और भी स्पष्ट होती जा रही है. मेटा की पॉलिसी की प्रभावशीलता पर न केवल भारतीय मतदाताओं द्वारा बल्कि वैश्विक पटल पर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में विश्वास रखने वाले लोगों द्वारा भी बारीकी से नज़र रखी जाएगी.
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