9-10 नवंबर को, पैगंबर मोहम्मद के जन्मदिन के जश्न के तौर पर कश्मीर के हज़रतबल मंदिर में ईद मिलाद-उन-नबी मनाया गया था। कश्मीरी पत्रकार पीरज़ादा आशिक की द हिन्दू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, “मस्जिद के सभी दरवाज़े, शहर के बाहरी इलाके में हबक क्षेत्र और पुराने शहर में रैनावारी और सदरबल इलाका सभी बंद किये गए है। सुरक्षा बलों ने सड़कों पर कॉन्सर्टिना के तारों को लगाना शुरू कर दिया है और प्रतीबंध लगाने के अभ्यास के तौर पर शनिवार को शहर के कई हिस्सों में मोबाइल बंकर का इस्तेमाल किया गया था।” (अनुवाद)

1990 से दुआ में हिस्सा ले रहे एक स्थानीय ने मीडिया संगठन को बताया, “ऐसा मेरी ज़िन्दगी में पहली बार हुआ है कि कश्मीर के इस बड़े जश्न के दिन इतने कम लोग इबादत के लिए पहुंचे हो। केवल नज़दीक के इलाकों में रहने वाले लोग ही इबादत के लिए पहुंचे थे।” (अनुवाद)

अन्य मीडिया संगठन ने भी ऐसी ही खबर प्रकाशित की है, जिसमें PTI की खबर के मुताबिक, “अधिकारियों ने रविवार को अयोध्या मामले में बाद फैसले और ईद-मिलाद-उन-नबी के कारण कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए हज़रत बल की तरफ जाने वाले सभी रास्तों को बंद कर दिया गया था।” (अनुवाद) स्थानीय पत्रकारों ने भी यह समान दावा किया कि बड़ी सभाओं पर पाबंदी लगाई गयी थी।

कोई पाबंदी नहीं, मीडिया के एक हिस्से का दावा

हालांकि, मीडिया के एक हिस्से ने एक वीडियो प्रसारित कर कश्मीर में पाबंदी के दावे से इनकार किया। इनमें सबसे पहले रिपब्लिक टीवी के आदित्य राज कॉल ने यह दावा किया कि हज़ारों लोग इस उत्सव में शामिल हुए थे।

इसके तुरंत बाद, ABP न्यूज़ के आशीष सिंह, पत्रकार आरती टीकू सिंह और दूरदर्शन ने भी इस वीडियो को शेयर किया था। समाचार संगठन ANI ने भी यह दावा किया कि हज़ारों लोग दुआ के लिए इक्क्ठा हुए थे।

वहीं, टाइम्स नाउ इसके दो दिन बाद इस वीडियो पर “ब्रेकिंग न्यूज़, सबसे पहले “ -अनुवाद, एक कार्यक्रम भी चलाया।

सच क्या है?

यह ध्यान में वाली बात है कि कई मुख्यधारा के मीडिया संगठन और पत्रकारों ने यह गलत खबर चलायी कि इबादद करने पर प्रतिबंध लगाने की बात गलत है। हालांकि, यह गलत है। समाचार संगठन जिन्होंने ईद मिलाद पर खबर प्रकाशित की उन्होंने इसे “प्रतिबंधित” बताया था, ना कि “रोक लगाई गई थी।”

उदाहरण के लिए द ट्रिब्यून के लेख के मुताबिक, “ईद मिलाद की शाम हज़रतबल दरगाह के आसपास जनसमूह के इक्क्ठा होने पर प्रतिबंध लगाया गया।” (अनुवाद)

कश्मीरी पत्रकार को उद्वरित करते हुए NDTV की पत्रकार निधि राज़दान ने “प्रतिबंध” शब्द का इस्तेमाल किया है। हालांकि, इसके जवाब में आरती टीकू सिंह ने लिखा, “मीडिया के एक हिस्से ने यह गलत खबर प्रसारित की कि सुरक्षा बलों ने हज़रतबल में नमाज़ पढ़ने पर पाबंदी लगाई है।” (अनुवाद)

ऑल्ट न्यूज़ ने घाटी के कई स्वतंत्र पत्रकार और फोटो जर्नालिस्ट से बात की जिन्होंने बताया कि नमाज़ पढ़ी गयी थी लेकिन इबादत के लिए काफी कम लोग इक्क्ठा हुए थे। फोटोजर्नलिस्ट शेख यामीन ने बताया कि करीब दोपहर 2:30 बजे तक 400-500 लोग इक्क्ठा हुए थे, जो उनके हिसाब से मुख्य समय था। यामीन ने आगे बताया, “समारोह में हज़ारों लोग आते मगर पाबंदी के कारण काफी कम लोग आये थे। ज़्यादातर लोग नज़दीक के इलाकों से इक्क्ठा हुए थे। सुरक्षाकर्मियों ने वाहन पर प्रतिबंध लगाया था, हालांकि लोग पैदल चल कर आये।” -अनुवादित।

यामीन ने उस दिन की तस्वीरें साझा की, जिसमें सुरक्षाकर्मियों के बीच लोगों की भीड़ को खड़े हुए देखा जा सकता है। नीचे दिए गए वीडियो में 1:03 मिनट पर कुछ लोगों को इबादत करते हुए देखा जा सकता है।

अगर कोई 10 नवंबर, 2019 से सार्वजनिक हुई तस्वीरों के साथ पिछले साल के हज़रतबल के उत्सव की तुलना करे तो इक्क्ठा हुए लोगों के बीच का फर्क साफ मालूम होता है। नीचे शामिल किये तस्वीरों के कोलाज में, पहली तस्वीर हाल ही में हुए कार्यक्रम की है, जबकि दूसरी तस्वीर 2016 की, तीसरी 2011 की और चौथी तस्वीर 2014 की है।

अपना नाम ज़ाहिर ना करने की इच्छा के साथ एक स्वतंत्र पत्रकार ने हमें बताया कि करीब दोपहर 1 बजे, एक मौलवी ने इबादत के लिए पहुंचे लोगों को पैगंबर मोहम्मद की दाढ़ी का एक बाल (अवशेष) दिखाया। “साल में एक या दो बार हज़ारों लोग ज़ुहर के लिए इक्क्ठा होते है। नमाज़ पढ़ने के लिए कोई पाबंदी नहीं लगाई गई थी, हालांकि नाकाबंदी के कारण कई लोग पहुंच नहीं पाये थे।” (अनुवाद)

इस अवशेष को ना सिर्फ ईद मिलाद के मौके पर बल्कि मेहराज-उल-आलम में भी प्रदर्शित किया गया। जिसके बारे में माना जाता है कि यह रात का वह समय है जब पैगंबर मोहम्मद जन्नत पहुंचे थे। इस साल यह उत्सव अप्रैल में मनाया गया था। नीचे शामिल की गई तस्वीर में तब के और हाल के उत्सव के बीच का अंतर देखा जा सकता है। दोनों तस्वीरों में समान सफ़ेद टेंटो को देखा जा सकता है। उन्हें लाल और पीले रंग से घेरा गया है। अप्रैल 2019 की तस्वीर में, एक टेंट खुला हुआ है। हरे रंग से चिन्हित किये गए एक स्टेज पर लोगों को खड़े हुए देखा जा सकता है। पेड़ो के पीछे नीले रंग की सीमा को बैंगनी रंग से चिन्हित किये हुए देखा जा सकता है।

स्वतंत्र पत्रकार ने यह भी बताया कि यह पाबंदी अयोध्या के फैसले के कारण लगाई गयी थी, इसलिए लोगों की उपस्थिति इतनी कम थी। उनके मुताबिक यह वहाँ की जनसंख्या का तक़रीबन 20 प्रतिशत है।

9 नवंबर की मध्यरात्रि से, रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद ओर आये फैसले के बाद एतिहातन धारा144 लागू की गई। फैसला भी उसी दिन को सुनाया गया था।

समारोह में कम जनसंख्या के इक्क्ठा होने की घटना को कई कश्मीरी पत्रकार ने भी रिपोर्ट किया था।

इसके विपरीत, पिछले साल जमा हुए लोगों की संख्या बहुत ज़्यादा थी।

कश्मीर में लगातार कर्फयू की स्थिति को अयोध्या फैसले के बाद यदि मिलाद के मौके पर हज़रतबल के रास्तों में लागू हुई पाबंदी ने दुगना कर दिया है। हालांकि, ज़्यादातर पत्रकारों ने समान दावे को प्रसारित किया है मगर कई मीडिया संगठन और पत्रकारों ने कश्मीर में सामान्य स्थिति दर्शाने का प्रयास किया है। हालांकि, पिछले साल के समारोह की तस्वीरें और वीडियो को देखने और हाल के हालातों से तुलना करने पर आसानी से इस बात का पता लगाया जा सकता है वास्तविक स्थिति क्या है।

डोनेट करें!
सत्ता को आईना दिखाने वाली पत्रकारिता का कॉरपोरेट और राजनीति, दोनों के नियंत्रण से मुक्त होना बुनियादी ज़रूरत है. और ये तभी संभव है जब जनता ऐसी पत्रकारिता का हर मोड़ पर साथ दे. फ़ेक न्यूज़ और ग़लत जानकारियों के खिलाफ़ इस लड़ाई में हमारी मदद करें. नीचे दिए गए बटन पर क्लिक कर ऑल्ट न्यूज़ को डोनेट करें.

बैंक ट्रांसफ़र / चेक / DD के माध्यम से डोनेट करने सम्बंधित जानकारी के लिए यहां क्लिक करें.