कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने असमानता पर हुए एक सर्वेक्षण के नतीजे ट्वीट करते हुए सरकार और प्रधानमंत्री पर हमला बोला। इस सर्वेक्षण में देश के भीतर संपन्नता के वितरण पर भारत को खराब स्थिति में दिखाया गया है। राहुल गांधी ने ट्वीट किया, ‘‘प्रिय प्रधानमंत्री, स्विट्जरलैंड में आपका स्वागत है! कृपया दावोस को बताएं कि भारत की 1% प्रतिशत आबादी के पास इसकी सम्पति का 73% प्रतिशत क्यों है?‘‘ कांग्रेस अध्यक्ष का यह ट्वीट ऐसे समय में आया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 23 जनवरी को दावोस में विश्व आर्थिक मंच के पूर्ण अधिवेशन को संबोधित कर रहे थे।

राहुल गांधी ने ऑक्‍सफेम की रिपोर्ट का हवाला दिया था जो कि 14 संगठनों का एक महासंघ है जो सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर मिल-जुलकर काम करते हैं। ‘काम को पृरस्कृत करें, संपन्नता को नहीं‘ (अनुवाद) शीर्षक से इस रिपोर्ट का प्रकाशन स्विटजरलैंड के दावोस में होने वाले विश्व आर्थिक मंच के आयोजन से ठीक पहले किया गया था। ऑक्‍सफेम की रिपोर्ट वैश्विक सम्पति रिपोर्ट, 2017 पर आधारित है जिसे एक स्विस वित्तीय सेवा कंपनी क्रेडिट स्विस द्वारा प्रत्येक वर्ष जारी किया जाता है।

तो सच्चाई क्या है? क्या भारत के 1% सर्वाधिक संपन्न लोगों को देश की कुल सम्पति का 73% हिस्‍सा मिला है जैसा कि राहुल गांधी ने दावा किया है? ऑक्‍सफेम की रिपोर्ट में जिक्र किया गया है कि वर्ष 2017 में भारत में निर्मित कुल सम्पति में से, 73% सम्पति सर्वाधिक संपन्न 1% लोगों द्वारा प्राप्त की गई। हालांकि ऑक्‍सफेम ने जिक्र किया है कि इसकी रिपोर्ट क्रेडिट स्विस की वैश्विक सम्पति रिपोर्ट 2017 पर आधारित है परंतु इस संस्था की गणना करने की अपनी खुद की पद्धति है जिसके आधार पर संभवतः यह आंकड़ा हासिल हुआ है। इसलिए इस आंकड़े को क्रेडिट स्विस रिपोर्ट के आंकड़ों से अलग करके देखना होगा।

हालांकि राहुल गांधी अपने ट्वीट में ऑक्‍सफेम रिपोर्ट का उल्लेख कर रहे थे लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि इस रिपोर्ट में उद्धृत आंकड़े वर्ष 2017 से संबंधित हैं और ये भारत में कुल सम्पति के सामान्य वितरण को व्यक्त नहीं करते हैं। जबकि दि वायर के लेख जिसका लिंक राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में दिया है, उसकी पहली लाइन में साफ तौर पर बताया गया है कि ‘भारत के सबसे अमीर 1% लोगों ने 2017 में देश में निर्मित् कुल सम्पति का 73% हासिल किया‘ राहुल गांधी के ट्वीट में ऐसा जिक्र नहीं किया गया और यह गुमराह करने वाला ट्वीट नजर आता है।

जैसा कि हमें उम्मीद थी, राहुल गांधी के इस ट्वीट की गहरी निंदा हुई। ऑपइंडिया ने एक लेख प्रकाशित किया जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष के दावे का मजाक उड़ाया गया है। ट्विटर पर कई लोगों ने भी दावा बताया कि राहुल गांधी ने गलत तथ्यों का उल्लेख किया है।

तो एनडीए सरकार के सत्ता में आने के बाद से सम्पति में असमानता की क्या स्थिति रही है? ऑल्ट न्यूज ने वर्ष 2014 से 2017 तक क्रेडिट स्विस द्वारा जारी की गई वैश्विक सम्पति डेटाबुक को देखा। ऑक्सफैम की रिपोर्ट का आधार क्रेडिट स्विस की इसी वार्षिक रिपोर्ट के निष्कर्षों से बना है। हमें ये बातें पता चलींः

Year Top percentile (%) Top decile (%) Gini Index (%)
2014 49 74 81.4
2015 53 76.3 83.1
2016 58.4 80.7 80.7
2017 45.1 73.3 83

शीर्ष प्रतिशत =जनसंख्या (सम्पति) का शीर्ष 1% । शीर्ष दशमक = जनसंख्या (सम्पति) का शीर्ष 10%

जैसा कि देखा जा सकता है, वर्ष 2014 में भारत में जनसंख्या के सर्वाधिक संपन्न 1% लोगों की कुल सम्पति, देश की कुल सम्पति का 49% हिस्‍सा थी। जनसंख्या के शीर्ष 10% लोगों के पास कुल सम्पति का 74% हिस्सा था। 2015 में, शीर्ष प्रतिशत का आंकड़ा 53% हो गया जबकि शीर्ष दशमक का आंकड़ा बढ़कर 76.3% हो गया। 2016 में, यही आंकड़े क्रमशः 58.4% और 80.7% थे। इसका दिलचस्प हिस्सा 2017 के आंकड़े हैं जिनमें भारत के लिए सुधार दिखाया गया है। वैश्विक सम्पति हैंडबुक 2017 के अनुसार, जनसंख्या के शीर्ष 1% लोगों के पास मौजूद सम्पति का प्रतिशत गिरकर 45.1% हो गया। शीर्ष दशमक के लिए यह आंकड़ा 73.3% पर रहा।

इसलिए रिपोर्ट के अनुसार, जनसंख्या के सर्वाधिक संपन्न 1% लोगों और सर्वाधिक संपन्न 10% लोगों के हाथों में सम्पति का अनुपात एक वर्ष पहले की तुलना में 2017 में काफी घट गया। हालांकि इसमें एक जटिलता है। क्रेडिट स्विस ने 2017 की रिपोर्ट में अपने डेटाबेस को संशोधित किया। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या अनुमानों में इस वर्ष के संशोधनों का तात्कालिक और स्वाभाविक असर प्रति वयस्क व्यक्ति सम्पति के हमारे अनुमान पर पड़ा। इसमें चीन, भारत और रूस में गैर-वित्तीय संपदायों के स्तर पर नये डेटा को संयुक्त किया गया जिसके कारण इनमें से प्रत्येक देश में प्रति वयस्क व्यक्ति सम्पति को हमें संशोधित करना पड़ा।‘‘ इसके फलस्वरूप, सर्वाधिक संपन्न 1% लोगों के पास मौजूद सम्पति के अनुपात ने इसके समकक्ष गिरावट दर्शाई है।

क्या असमानता हाल की परिघटना है?

क्या सम्पति की असमानता भारत में हाल की परिघटना है या यह कई वर्षों से बढ़ती जा रही है? ऑल्ट न्यूज ने विश्व असमानता रिपोर्ट, 2018 के डेटा पर नजर डाली। इस रिपोर्ट के निष्कर्षों के अनुसार, 1990 के शुरुआत से ही आय में असमानता बढ़ती जा रही है जब अर्थव्यवस्था का उदारीकरण किया गया था। यहां पर इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि आय की असमानता का मतलब सम्पति की असमानता से नहीं होता है।

इस व्यापक प्रवृत्ति की पुष्टि अन्य सांख्यिकीय माप द्वारा हुई हैः गिनी गुणांक एक सांख्यिकीय माप है जो देश के भीतर सापेक्षिक असमानता को निर्धारित करता है। गिनी सूचकांक द्वारा भी आम तौर पर आय में असमानता को मापा जाता है। इस सूचकांक में, 0% (या 0%) का मान परिपूर्ण समानता को दर्शाता है जबकि 1% (या 100%) का मान परिपूर्ण असमानता को दर्शाता है। 1990 में 45.18 से लेकर 2013 में 51.36 तक भारत के गिनी गुणांक में सामान्य वृद्धि हुई है।

कई अध्ययनों में यह निष्कर्ष सामने आया है कि भारत में आय व सम्पति की असमानता में 1990 के दशक से तेज वृद्धि हुई है। अधिक विषमता का कारण आम तौर पर 1991 की सरकार द्वारा लागू की गई उदारीकरण की नीति को माना जाता है। आय में असमानता को लेकर होने वाली बहस नीति निर्माताओं के बीच विवाद का कारण बनती रही है। जबकि कुछ लोगों का यह मानना है कि यह प्रवृत्ति उदारीकरण का अशुभ संकेत है और उसकी विफलता को दर्शाती है वहीं अन्य लोगों ने पिछले दो दशकों में भारत की बढ़ती जीडीपी और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि द्वारा यह बताने का प्रयास किया है कि सम्पति निर्मित होने से समाज के एक से अधिक तबकों का लाभ हुआ है। किसी भी स्थिति में, यदि हम 1990-2017 की अवधि पर ध्यान दें तो आर्थिक असमानता कोई नई अवधारणा नहीं है।

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