नवम्बर, 2014 में मोदी सरकार ने ‘आयुष’ नामक एक नए मंत्रालय कि शुरुआत की, जो आयुर्वेद विभाग, योग, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी के लिए है। श्रीपद येसो नाइक को आयुष राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के रूप में नियुक्त किया गया। यूपीए सरकार में आयुष स्वास्थ्य मंत्रालय के अन्दर ही निहित था जिसे चिकित्सा और होम्योपैथी (ISM&H) विभाग कहा जाता है। मंत्रालय की स्थिति में यह अपग्रेड भी वैकल्पिक दवाइयों में शोध पर एक बढ़ोतरी का संकेत देता है।
आयुष मंत्रालय ने CSIR और CCRAS के सहयोग से, दो आयुर्वेदिक मधुमेह-रोधी (एंटी-डायबिटीक) दवाओं जैसे BGR34 और आयुष82 (IME9 के रूप में बेची गई) विकसित करने में मदद की है। ऑल्ट न्यूज ने पाया कि, इन दोनों दवाओं को अपर्याप्त रोग-विषयक परीक्षण के साथ जारी किया गया है और इसके अधिकांश दावों के लिए पूर्व-क्लिनिकल-पशु परीक्षण पर भरोसा किया गया है। इसके अलावा, लोकप्रिय धारणा के विपरीत, कुछ रोगियों में, इन आयुर्वेदिक दवाओं से इलाज ने कई दुष्प्रभावों का खुलासा किया है; और इसके दावों के विपरीत, यह रक्त में ग्लूकोस का स्तर काफी हद तक बढ़ा देता है।
ऑल्ट न्यूज़ का शोध:
ऑल्ट न्यूज़ ने Google स्कॉलर और PUBMED पर उपलब्ध वैज्ञानिक प्रमाणों का उपयोग करते हुए BGR34 और आयुष82 द्वारा किए गए दावों की जांच की। दवा के सूत्रीकरण के संबंध में स्वास्थ्य चिकित्सक, क्लिनिकल और शैक्षिक अनुसंधान को सत्यापित करने के लिए और नयी जानकारी प्राप्त करने के लिए Google स्कॉलर और PUBMED का उपयोग करते हैं। उप-परिणाम के रूप में Google स्कॉलर और PUBMED में विभिन्न दवाओं के बारे में वैज्ञानिक अनुसंधान की जानकारी का अभाव उन दवाओं के लिए क्लिनिकल शोध की कमी का संकेत करता है।
Google स्कॉलर और PUBMED के अलावा, ऑल्ट न्यूज़ ने आयुष और CCRAS के साथ ही साथ इन दवाओं के लिए पेटेंट्स डाटाबेस (लागू किया गया, साथ ही अस्वीकार कर दिया गया) पर उपलब्ध अनुसंधान डाटाबेस को देखा।
इसके अलावा, BGR34 और आयुष82 के संबंध में, Alt न्यूज़ ने बात की:
1. डॉ. ओम लखानी, MD (मेडिसिन), DNB (एंडोक्रिनोलॉजी), SCE- एन्डोक्रीनोलॉजी (आरसीपी, यूके) और जायडस अस्पताल में सलाहकार एंडोक्रिनोलॉजिस्ट, अहमदाबाद
2. डॉ. ए.के. मंगल, एक वनस्पतिवादी और CCRAS के सहायक निदेशक (फार्माकोगोसी), आयुष के स्वायत्त निकाय जिसने इन दवाओं को विकसित किया
इस लेख के दौरान, ऑल्ट न्यूज़ ने अनुसंधान और लेखन का उल्लेख किया है:
1. पद्मश्री और राष्ट्रपति पुरस्कार विजेता प्रोफेसर (डा.) अनूप मिश्रा, डायबिटीज और मेटाबोलिक विभाग के निदेशक, फोर्टिस अस्पताल, नई दिल्ली
2. भूषण पटवर्धन, आयुर्वेदिक प्रैक्टिशनर, अंतःविषय विद्यालय स्वास्थ्य विज्ञान, सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय, पुणे
बीजीआर34- दावा और प्रभाव
BGR34, डायबिटीज (मधुमेह) के इलाज के लिए एक टाइप 2 आयुर्वेदिक दवा जो आयुर्वेद के उपचार के सिद्धांतों के अनुसार दावा करती है कि इसमें 34 महत्वपूर्ण पौधों से निकाले गए अर्क और योगिक है जो कि प्रो-इन्सुलिन को इंसुलिन में बदलता है। यह दवा एलोपैथिक दवा की तुलना में कोई दुस्प्रभाव नहीं होने का भी दावा करती है।
उन्नत्ति
BGR34 का निर्माण AIMIL फार्मास्यूटिकल्स नामक एक निजी उद्यम द्वारा किया जा रहा है जिसे केंद्रीय कृषि मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने वर्ष 2016 के आयुष ब्रांड के रूप में पुरस्कार प्रदान किया था।
न्यूज़ 24 और एबीपी न्यूज ने श्री मोदी जी के भाषण के साथ इसके लाभों और लागत-प्रभाव को बढ़ावा देने के लिए रिपोर्टों को प्रसारित किया जैसे यह एक चमत्कारी औषधि है।
https://www.youtube.com/watch?v=N_ZeiG5A2XU&feature=youtu.be
BGR34- चिकित्सा अनुसंधान
इस दवा को दो CSIR प्रयोगशालाओं, राष्ट्रिय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (NBRI) केंद्रीय औषधीय और सगंध पौधा संस्थान (CIMAP) के द्वारा सामूहिक रूप से विकसित किया गया है। NBRI के वरिष्ठ प्राचार्य वैज्ञानिक डॉ. एकेएस रावत ने कहा कि ‘BGR34 की जांच पशुओं पर की गई है और एक वैज्ञानिक अध्ययन ने इसे सुरक्षित और प्रभावी ढंग से पहचान लिया है, साथ ही क्लिनिकल अध्ययन में केवल 67% सफलता का प्रदर्शन किया है’। फार्मास्यूटिकल्स का भी दावा है कि BGR34 औषधि एक वैज्ञानिक रूप से सिद्ध अनुकूलित सूत्र के अनुसार निर्मित होती है।
इन दावों के बावजूद, ऑल्ट न्यूज़ को PUBMED और Google स्कॉलर से सहकर्मी समीक्षा की गई पत्रिकाओं में BGR34 के बारे में मानव क्लिनिकल परीक्षणों के लिए कोई भी वैज्ञानिक डेटा नहीं मिला। (25/07/17 तक)
इसी तरह, पूर्व-क्लिनिकल अध्ययन (जैसे डायबिटीज के पशु मॉडल में परीक्षण) इस दवा के लिए PUBMED या Google स्कॉलर डेटाबेस में नहीं मिला। इसके अलावा, राष्ट्रिय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (NBRI) में पेटेंट आवेदन की खोज में इस दवा के लिए कोई परिणाम नहीं मिला।
नवंबर 2016 में नई दिल्ली में अग्रवाल धर्मथ हॉस्पिटल सोसाइटी के डॉ. बीपी गुप्ता ने BGR34 के लिए CTRI (क्लीनिकल ट्रायल्स रजिस्ट्री- इंडिया) में एक क्लिनिकल परीक्षण दर्ज किया गया था, जिसमें कोई भी फार्माको-काइनेटिक डेटा नहीं दिखाया गया था। यह परीक्षण सारांश में ‘आशाजनक परिणाम दिखाता है’। इसका मतलब यह है कि पंजीकृत परीक्षण में किसी भी तरह का परिणाम नहीं दिखाया गया, जो किसी भी अध्ययन के लिए प्रमाणित होते हैं जो निर्धारित वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग कर देखे जा सकते हैं।
वैज्ञानिक आंकड़ों की कमी और कोई डेटा नहीं होने के साथ पंजीकृत एक घरेलू क्लिनिकल परीक्षण यह BGR34 के साथ किए गए दावों को मानना असंभव बनाता है और इस प्रकार, इन दावों की सत्यता के संबंध में प्रश्न उठाए गए हैं।
BGR34 – दुस्प्रभाव
लोकप्रिय मान्यता और आयुर्वेद के दावों के उलट रोगियों ने BGR34 की वजह से गैस की समस्या और गंभीर एलर्जी की सूचना दी, जबकि वही कुछ और लोगों ने दावा किया कि यह बिलकुल बेअसर है। रोगियों ने यह औषधि लेने के दौरान एलर्जी, पेट जलन और शुगर लेवल के स्तर में कोई बदलाव नहीं जैसे कुछ दुष्प्रभावों की सूचना दी।
हालांकि, कोई भी निश्चित रूप से यह नहीं कह सकता कि BGR34 के कारण ही ये दुस्प्रभाव हुए हैं, हो सकता है कि उचित क्लिनिकल परिक्षण ना होने की वजह से ये हुआ हो।
हालांकि औषधि विकास प्रक्रिया का एक आवश्यक हिस्सा, कठोर नियमों वाला दोहरा गोपनीय प्लेसिबो (rigorous double blind placebo) RCT (randomised control trial) से यह जानकारी और दवा की सुरक्षा और विषाक्तता से संबंधित कुछ और जानकारियां मिलेंगी। औषधि विकास उद्योग में इन RCTs के बारे में अधिक जानकारी यहां देखी जा सकती है।
यहां हम BGR34 के फेसबुक पेज पर दी गई कुछ समीक्षाएं प्रस्तुत कर रहे हैं।
BGR34 – कीमत
आल्ट न्यूज ने पाया कि यह दावा कि ऐलोपैथिक दवाओं की तुलना में BGR34 सस्ती है, गुमराह करने वाला दावा है। भोजन के साथ दिन में दो बार दो गोलियों की सुझाई गई खुराक के साथ 5 रुपये/प्रति गोली की कीमत पर BGR34 को एक सस्ती दवा के रूप में प्रचारित किया गया। जिससे एक दिन की 4 गोलियां और एक दिन का खर्च 20 रुपये जिससे एक महीने का खर्च 600 रुपये होता है। जबकि 50 वर्ष पुरानी व्यापक रूप से सुझाई जाने वाली दवा प्रति दिन 500-2500mg के बीच की सुझाई गई खुराक के साथ जेनेटिका (ARISTO) की ओर से 0.75 रुपये प्रति 500mg गोली की Metformin इस शुरुआती कीमत पर मिलती है जिसका खर्च एक महीने में 22.50 रुपये से लेकर 112.50 रुपये तक आता है।
IME9 (आयुष82)
हाल ही में, आयुर्वेदिक विज्ञान शोध परिषद (CCRAS) जो कि आयुष मंत्रालय का एक स्वायत्त निकाय है, ने डायबिटीज के लिए आयुष-82 नामक दूसरी दवा का प्रचार किया। आयुष-82 को IME9 ब्रांड के नाम से बेचा जाता है।
हिन्दू समाचार की एक रिपोर्ट में, 20 लाख रुपये मूल्य का IME9 का स्टॉक राज्य औषधि नियंत्रक द्वारा दवा व चमत्कारी उपचार आपत्तिजनक विज्ञापन अधिनियम-1954 के अंतर्गत जब्त किया गया जिसके द्वारा डायबिटीज जैसी गंभीर बीमारियों के उपचार विज्ञापन देने पर रोक लगाई जाती है।
आयुष82 या IME9
CCRAS के सहायक निदेशक (फार्माकोग्नोसी) डॉ. ए.के. मंगल के साथ हुई बातचीत में हमें बताया गया कि CCRAS ने यह दवा आयुष82 के नाम से विकसित की थी और बाद में इसके वितरण व उत्पादन अधिकार कुडोज़ लेबोरेट्रीज को बेच दिये जिसने इसे IME9 के रूप में रीपैकेज किया।
असल में, डॉ. मंगल और CCRAS वेबसाइट पर इस रिपोर्ट के अनुसार, यह फार्मूला कई अन्य कंपनियों को भी बेचा गया है जिनमें से सभी या कुछ कंपनियां बाद में IME9 जैसे अलग-अलग नामों से इस फार्मूले के आधार पर दवा निर्मित करेंगी और वितरित करेंगी।
हमने पाया कि तीन वेबसाइटों पर सक्रिय तरीके से इस दवा को प्रचारित किया जा रहा है और बेचा जा रहा हैः
जैसे कि IME9 प्रमुखता से यह बताने में विफल रही कि यह असल में BGR34 का ब्रांडेड संस्करण है, स्वास्थ्य कर्मचारियों और रोगियों को IME9 से जुड़े शोध ढूँढने में काफी दिक्कत हो रही है क्योंकि सभी प्रमुख शोध आयुष82 के लिए किए गए हैं न कि IME9 के लिए।
IME9 (आयुष82) – वैज्ञानिक शोध
IME9 (आयुष82) के बारे में दावा किया गया है कि इसे 800 से अधिक रोगियों पर दोहरे गोपनीय रोग-विषयक मानव परीक्षण अध्ययनों के बाद विकसित किया गया है। दोहरा गोपनीय एक तरीका है जिससे अध्ययन करने वाला व्यक्ति और रोगी दोनों जांच की जा रही दवा से अनजान होते हैं ताकि प्रयोगात्मक पूर्वाग्रह से बचा जा सके। इस दावे के बावजूद, ऑल्ट न्यूज को पबमेड या गूगल स्कॉलर का उपयोग करने पर (25/07/17 को देखा गया) 800 रोगियों वाला ऐसा कोई अध्ययन नहीं मिला।
साथ ही CCRAS वेबसाइट पर रोगियों के लिए इस दवा के लिए कोई परिणाम नहीं मिला।
डॉ. बी. नेगी द्वारा लिखा गया एक समीक्षात्मक लेख, रिसर्चगेट (वैज्ञानिकों का सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म) में मिला जिसमें बिना किसी शोध डेटा के IME9 का जिक्र किया गया था और इसमें कोई विवरण नहीं है कि यह लेख कहाँ और कब प्रकाशित हुआ था।
IME9 (आयुष82) औषधीय संयोजन अध्ययन भी नहीं मिला
साथ ही, कुडोज़ लेबोरेट्रीज़ ने दावा किया कि IME9 में पांच मुख्य सामग्री हैं जैसे करेला, जामुन, आमरा, गुड़मार और शिलाजीत जिनमें डायबिटीज रोधी खूबियाँ होती हैं लेकिन आयुष या किसी अन्य के द्वारा खास तौर पर आयुष82 के लिए इन सामग्रियों के संयोजन की जांच नहीं की गई। साथ ही, इन सामग्रियों की सटीक मात्रा का प्रतिशत भी उपलब्ध नहीं है – जो खुराक सूचना के संबंध में एक महत्वपूर्ण विवरण होता है।
ऐसे कई अध्ययन हैं जिनमें इनमें से प्रत्येक सामग्री या एक या अधिक सामग्री के संयोजन की जांच डायबिटीज चूहे मॉडल पर कई भारतीय व गैर-भारतीय औषधि निर्माताओं द्वारा की गई है। हालांकि इन सामग्रियों को एकसाथ मिलाने पर प्रतिकूल संकेत या मानव रोग-विषयक परीक्षणों में प्रभावित अध्ययन अभी तक प्राप्त नहीं हुए हैं (खोज 26/07/17 को की गई)।
IME9 – दुष्प्रभाव
BGR34 और इसके अनुपलब्ध रोग-विषयक परीक्षणों की तरह, IME9 के साथ भी कई उपभोक्ता शिकायतें जुड़ी हुई हैं। औषधीय दवाइयां कोई दुष्प्रभाव नहीं छोड़ती हैं, इस लोकप्रिय धारणा के उलट IME9 से होने वाली कुछ प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं में कब्ज, मल में खून आना शामिल थे और हाइपोग्लेसीमिया के बारे में किए गए दावों के उलट, ब्लड शूगर बढ़ गया (जैसा कि नीचे चित्रों और वीडियो में दिखाया गया है) – यह ऐसा असर है जो डायबिटीक रोगियों के लिए बेहद खतरनाक हो सकता है।
IME9 से केवल 15 दिन के उपचार के बाद अन्य रोगी ने भी ब्लड शूगर बढ़ने की शिकायत की जबकि उसका खाली पेट ब्लड ग्लूकोज 324 mg/dl से बढ़कर 460 mg/dl हो गया (सामान्य सीमा 70-110 है)।
विशेषज्ञों की रायः आयुर्वेद के विशेषज्ञों से लेकर एंडोक्राइनोलॉजिस्ट तक
1. आयुर्वेदिक वैद्य बी पटवर्धन
भूषण पटवर्धन, इंटरडिस्प्लिनरी स्कूल ऑफ हेल्थ साइंसेज, सावित्रीबाई फूले पुणे यूनिवर्सिटी, पुणे ने इन दावाओं के दावे को खारिज किया और जर्नल ऑफ आयुर्वेद एंड इंटीग्रेटिव मेडिसन की समीक्षा जो निम्न प्रकार से हैः
यह सुनिश्चित करने के लिए सरकारी विनियमों, निगरानी और पर्यवेक्षण की जरूरत है, इससे भोले-भाले रोगियों का शोषण न हो। औषधीय दवा विकास के नाम जो कुछ भी किया जा रहा है, वह निश्चित रूप से भारतीय परंपराओं के बुनियादी सिद्धांतों, प्रकृति और आचरण के अनुकूल नहीं है। आयुष समुदाय की जिम्मेदारी है कि वह इस विरासत को सुरक्षित रखें और सुनिश्चित करे कि सस्ती लोकप्रियता या अल्पकालिक आर्थिक लाभ के लिए इसकी विश्वसनीयता पर आंच न आए। दीर्घकाल में ऐसे अकुशल प्रयासों से विश्वसनीयता खत्म हो सकती है और भारतीय परंपराओं और ज्ञान की विरासत की प्रतिष्ठा धूमिल होने की संभावना है। (अनुवाद)
2. पुरस्कार विजेता भारतीय एंडोक्राइनोलॉजिस्ट प्रो. (डॉ.) अनूप मिश्रा
एक लैंसेट पेपर में, प्रो. अनूप मिश्रा व सहयोगियों ने भारत में विकसित किए जा रहे डायबिटीज के वैकल्पिक उपचारों के बड़े-बड़े दावों को चुनौती दी। उनकी टीम को इन उपचारों से संबंधित प्रकाशित सामग्री भी मिली लेकिन उनका कहना था कि इन परीक्षणों में पद्धति संबंधी कई समस्याएं थीं।
भारत सरकार के स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय के केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन की नीति और दिशानिर्देशों का उल्लेख करते हुए प्रो. मिश्रा ने लिखा, ‘अध्ययन में दोषपूर्ण परीक्षणों के साथ-साथ विषाक्तता और संभावित जैवसक्रिय सामग्रियों के बीच परस्पर प्रतिक्रिया से जुड़े गंभीर खतरे हो सकते हैं। प्रो. मिश्रा ने यह भी कहा, ‘‘आयुर्वेदिक उत्पादों के लिए कठोर नियमों वाले औषधि विज्ञान व विषाक्तता विज्ञान के नियमों से छूट प्रदान की गई या उनमें ढील दी गई है बशर्ते ये दवाइयां ‘‘ठीक उसी तरह से तैयार की जाएं जिस तरह प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में बताई गई हैं‘‘ जैसे कि चरक संहिता या समान टैक्स्ट जिन्हें छठीं सदी ईसा पूर्व और पहली शताब्दी ईसवी के बीच लिखा और पुनः लिखा गया है‘‘ संभावित रूप यही वह कारण है कि आयुष और इसके संबंधित शोध केंद्रों द्वारा संचालित निम्नस्तरीय दवा परीक्षणों को स्वीकार किया गया।
3. एक अन्य एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. ओम लखानी
जाइडस अस्पताल में परामर्शदाता एंडोक्राइनोलॉजिस्ट और एमडी इंटर्नल मेडिसिन (गोल्ड मैडलिस्ट), डीएनबी (एंडोक्राइनोलॉजी), डॉ. ओम लखानी, एमडी ने फोन पर हुई बातचीत में इन दोनों एंटी-डायबिटीज दवाओं के ‘चमत्कारी‘ दावों को निराधार बताया। उन्होंने बताया कि किस तरह इन दवाओं का वैज्ञानिक आधार कमजोर है और उल्लेख किया कि भारत में ‘दवा और चमत्कारी उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954’ के अनुसार टीवी, रेडियो या समाचारपत्रों में दवाओं और ‘चमत्कारी इलाजों‘ को प्रचारित करना कानून के खिलाफ हो सकता है। उन्होंने भी इन दवाओं के बारे में विस्तृत समीक्षा यहां लिखा है।
4. इसके अलावा, सेपर व अन्य (2008) ने 25 अलग-अलग वेबसाइटों पर मिलने वाली आयुर्वेदिक दवाओं के सांयोगिक चयन की जांच करके इंटरनेट पर बेची जाने वाली अमेरिकी और भारतीय निर्माताओं की 20 प्रतिशत दवाइयों में लेड, मर्करी और आर्सेनिक की अधिक मात्रा होने की जांच की व रिपोर्ट प्रस्तुत की है। इन शोध से पता चलता है कि स्थानीय रूप से निर्मित दवाओं में से अधिकाशं दवाइयों में मिलावट हो सकती है जिससे ज्यादा से ज्यादा कठोरतम जांच करने की जरूरत पर जोर देने की आवश्यकता महसूस होती है।
दवा प्रभाविता और सुरक्षा से जुड़ी जिम्मेदारियां
क्या आयुष मंत्रालय, CSIR लेबोरेट्रीज, राष्ट्रिय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (NBRI) और केंद्रीय औषधीय और सगंध पौधा संस्थान (CIMAP) को इन नियमों के उल्लंघन और इन दवाओं को पर्याप्त जांच के बिना अनुमति देने के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए? या क्या कुडोज़ लेबोरेट्रीज़ जैसी कंपनियों को जवाबदेह बनाया जाना चाहिए क्योंकि वह भोले-भाले रोगियों के लिए टेलिविजन पर इन दवाओं के प्रचार के लिए जिम्मेदार है?
यदि मानव मॉडल पर अपर्याप्त जांच के कारण आयुष व इसकी सहयोगी प्रयोगशालाओं द्वारा विकसित व प्रचारित वैकल्पिक आयुर्वेदिक दवाओं में इतने प्रतिकूल दुष्प्रभाव हैं तो क्या यह जोखिम उठाना उपयोगी है? खास तौर पर जबकि जीवन को संकट में डालने वाले दुष्प्रभाव हो सकते हैं और बाजार में उपलब्ध सबसे बेहतर उपचार की तुलना में अधिक कीमत के साथ गुमराह करने वाले दावे किये जाते हैं।
निष्कर्ष
वर्तमान वैज्ञानिक डेटा, इस क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों और उपभोक्ता शिकायतों के आधार पर, डायबिटीज के नियंत्रण के लिए BGR34 और आयुष82 के उपयोग से जुड़े वैज्ञानिक साक्ष्य बहुत कम हैं।
ये दवाएं टाइप 2 डायबिटीज के लिए उपयोगी हो भी सकती हैं और उपयोगी नहीं भी हो सकती है और एकदम अलग पैथोलॉजी के कारण टाइप 1 डायबिटीज के लिए इनका कोई भी उपयोग संभव नहीं है। असल में, इन दवाओं में विषाक्तता के बारे में ऐसे कोई साक्ष्य नहीं है जिनका होना आवश्यक है क्योंकि लेड, मर्करी और आर्सेनिक की मिलावट होने के साक्ष्य मौजूद हैं। यह जांच करने के लिए प्रतिकूल संकेत अध्ययन किए जाने भी जरूरी है कि क्या ये दवाइयां शरीर में अन्य दवाओं के साथ परस्पर प्रतिक्रिया करती हैं।
अंत में इस तरह के बढ़ा-चढ़ाकर किए गए दावों से पहले बाजार में इन्हें उतारने से पहले स्वस्थ और टाइप 2 डायबिटीज रोगियों (दोनों लिंग, आयु समूह, गर्भावस्था, अन्य गड़बड़ी वाले रोगियों आदि) में कठोरतम बिना पूर्वाग्रह वाले एकाधिक चरण वाले दोहरे गोपनीय (unbiased-multi-phase double blind clinical trial) रोग-विषयक परीक्षण करना आवश्यक है।
अनुवाद: Priyanka Jha
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