कई सोशल मीडिया यूज़र्स एक तस्वीर शेयर कर रहे हैं. तस्वीर में 2 कॉलम दिख रहे हैं- ‘सेपा/वेरिएंट’ (स्ट्रेन/वेरिएंट का स्पेनिश शब्द) और ‘लैंजामिएंटो’ (लॉन्चिंग का स्पेनिश शब्द). पहले कॉलम में 22 ग्रीक अक्षर हैं जिसकी शुरुआत चौथे अक्षर ‘डेल्टा’ से होती हैं. जबकि दूसरे कॉलम में जून 2021 के बाद के महीने/साल की एक लिस्ट है. दाईं ओर जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय, विश्व आर्थिक मंच और विश्व स्वास्थ्य संगठन का लोगो है. इस तस्वीर के मुताबिक, SARS-CoV-2 का ओमिक्रॉन वेरिएंट मई 2022 में आने वाला था. दुनिया भर से लोगों ने ये तस्वीर शेयर करते हुए कहा कि ये महामारी पहले से तय एक साजिश है. (फ़ेसबुक पर वायरल पोस्ट्स का लिंक और ट्विटर पर वायरल पोस्ट का लिंक)
कंज़र्वेटिव क्रिश्चियन मेलिसा टेट ने जुलाई में ये तस्वीर शेयर की थी. इसे आर्टिकल लिखे जाने तक 1,500 से ज़्यादा बार रीट्वीट किया जा चुका है.
Looks like all they have all the variants planned out for the next 2 yrs SMH pic.twitter.com/YYxzCNi42f
— Melissa Tate (@TheRightMelissa) July 29, 2021
हाल ही में फ़िल्म ‘फेज IV’ और ‘ओमिक्रॉन’ के असल पोस्टर्स को एडिट कर ‘द ओमिक्रॉन वेरिएंट’ टाइटल देकर एक काल्पनिक फ़िल्म का पोस्टर बनाया गया था. एडिट किए गए पोस्टर्स को लोग सच मान कर शेयर करने लगे थे. कुछ ट्विटर यूज़र्स ने वायरल हो रही इस तस्वीर को सच बताते हुए शेयर किया.
Wierd I seen this well over a year ago. Nu and omicron on the list…. when sigma,phi,omega,epsilon,lambda,chi ? Maybe fake but it came true….ahead of schedule too lol pic.twitter.com/9ZOkflPgeE
— 👑Lord Brass👑 (@brass_27) December 3, 2021
ऑल्ट न्यूज़ के व्हाट्सऐप हेल्पलाइन नंबर (+91 76000 11160) पर इस दावे की सच्चाई जानने के लिए कई रिक्वेस्ट आयी हैं. तस्वीर को व्हाट्सऐप पर इस मेसेज़ के साथ शेयर जा रहा है, “सब कुछ पहले से नियोजित है. सिर्फ एक ग़लती ये हुई कि ये वेरिएंट 6 महीने पहले आ गया. असल में इसकी योजना मई 2022 की थी.”
फ़ैक्ट-चेक
मई में WHO ने प्रमुख वेरिएंट के लिए ग्रीक अक्षर SARS-CoV-2 असाइन किया. ताकि बातचीत में आसानी हो सके.
कुछ हफ़्ते बाद, इस तस्वीर को ऑनलाइन काफ़ी शेयर किया जाने लगा. तस्वीर में दिख रही लिस्ट में वेरिएंट कॉलम के अंदर ‘डेल्टा’ से ‘ओमेगा’ तक सारे ग्रीक अक्षर हैं. जून 2021 से फ़रवरी 2023 तक सारे ‘वेरिएंट’ के शुरू होने का महीना लिखा है.
तस्वीर के अनुसार, डेल्टा वेरिएंट जून 2021 में आने वाला था. लेकिन भारत में डेल्टा वेरिएंट का पहला केस अक्टूबर 2020 में देखा गया था. WHO के अनुसार, अप्रैल 2021 में डेल्टा वेरिएंट को चिंता का विषय बताया गया था और अभी तक इसके पांच वेरिएंट हैं – अल्फ़ा, बीटा, गामा, डेल्टा और ओमिक्रॉन.
म्यूटेशन को बेहतर ढंग से समझने के लिए ऑल्ट न्यूज़ ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के ज़ूलॉजी विभाग के साइटोजेनेटिक्स लैब के प्रोफ़ेसर ज्ञानेश्वर चौबे से बात की. उन्होंने बताया, “SARS-CoV-2 इंसान के शरीर में जाने के बाद रेप्लिकेट (प्रतिकृति बनाना) है. लेकिन म्यूटेशन एक अनियमित प्रक्रिया है. इसलिए सैद्धांतिक रूप से कई वेरिएंट्स हैं. केवल कुछ वेरिएंट्स को ही चिंता का विषय माना गया है. लेकिन समय के साथ अगले वेरिएंट के आने की भविष्यवाणी करना असंभव है.”
ऑल्ट न्यूज़ साइंस की संपादक सुमैया शेख ने बताया, “वेरिएंट म्यूटेशन से बनते हैं जो वायरस की रेप्लीकेशन की वज़ह से अनियमित होते हैं. जितनी बार एक शरीर में रेप्लीकेशन होता है. म्यूटेशन की संभावना उतनी ही ज़्यादा होती है. लेकिन ये अनियमित घटनाएं हैं. कभी-कभी वायरस खुद का एक बेहतर वेरिएंट बनाता है और फिर वो प्रमुख वेरिएंट बन जाता है. जैसे कि डेल्टा वेरिएंट. लेकिन कौन से वेरिएंट बनेंगें या कौन से म्यूटेशन होंगे? ये अनुमान लगाने का कोई तरीका नहीं है. ये चार्ट साइंटिफ़िक नहीं है क्योंकि इसमें बिना सोचे समझे होने वाली घटनाओं की भविष्यवाणी की गई है जो वायरस के लिए फायदेमंद म्यूटेशन बना सकता है. इसकी भविष्यवाणी कोई नहीं कर सकता. हमारी कोशिकाएं भी विभाजित होती हैं. और कभी-कभी उस रेप्लीकेशन के दौरान हम एक अनियमित म्यूटेशन बनाते हैं जैसे कि लिखते वक्त वर्तनी (स्पेलिंग) में गलती होना जो रेप्लीकेशन प्रक्रिया से बच जाता है. और इसकी संख्या बढ़ जाती है. इस तरह ट्यूमर बनते हैं. कभी-कभी ऐसे ट्यूमर अत्यधिक कार्सिनोजेनिक (कैंसर) हो सकते हैं और कहीं और रेप्लिकेट हो सकते हैं क्योंकि म्यूटेशन घातक और तेजी से रेप्लिकेट होता है. इनमें से कुछ पर्यावरण से प्रेरित भी हो सकते हैं.”
इस दावे को पहले रॉयटर्स ने खारिज किया था. WEF, WHO और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, सभी ने कंफ़र्म किया कि इन डाक्यूमेंट्स का उनके संगठन से कोई संबंध नहीं है. जॉन हॉपकिंस विश्वविद्यालय ने रॉयटर्स के बयान पर तुरंत कोई जवाब नहीं दिया. लेकिन विश्व आर्थिक मंच के अध्यक्ष कार्यालय में संचार प्रमुख पीटर वानहम ने रॉयटर्स को ईमेल करते हुए बताया, “ये एक नकली डॉक्यूमेंट है और इसका विश्व आर्थिक मंच से कोई लेना-देना नहीं है.”
कुल मिलाकर, वायरल तस्वीर में WHO, WEF और जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय पर गलत आरोप लगाया गया था. ये एक फ़र्ज़ी लिस्ट है जिसमें जून 2021 से फ़रवरी 2023 तक के महीनों के साथ-साथ लगभग सारे ग्रीक अक्षरों को रखा गया है. इस तस्वीर के साथ COVID-19 वेरिएंट के ‘रिलीज़ होने वाली तारीख’ पहले से तय होने का ग़लत आरोप लगाया गया.
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