हिंदी मीडिया आउटलेट दैनिक जागरण ने हाल ही में एक आर्टिकल पब्लिश किया जिसका टाइटल था “दीप प्रज्वलन से बढ़ती है घर में ऑक्सीजन की मात्रा, जानिए और क्या हैं फायदे”. इस आर्टिकल में दावा किया गया कि दीया जलाने (मिट्टी के दीये) से वायुमंडल में ऑक्सीजन बढ़ता है. रिपोर्ट में दीया जलाने से होने वाले कई दूसरे फायदे भी बताए गए हैं. इस आर्टिकल का आर्काइव वर्ज़न आप यहां देख सकते हैं.
दैनिक जागरण ने ये आर्टिकल इस कैप्शन के साथ ट्वीट भी किया था, “दीप प्रज्वलन से बढ़ती है घर में ऑक्सीजन की मात्रा, जानिए और क्या है फायदे.” फिलहाल ये ट्वीट अब डिलीट कर दिया गया है.
आर्टिकल के मुताबिक, “घर के दरवाजे पर दीये जलाने से घर में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ता है.” इसमें ये बताया गया है कि गर्म हवा हल्की होने के कारण ऊपर जाती है और ठंडी हवा नीचे आती है. हवा में मौजूद ऑक्सीजन दीपक की लौ की ओर दौड़ता है. इससे दीपक के चारों ओर ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है. आगे ये भी कहा गया है कि दीवाली पर घर के दरवाज़े पर दीये जलाए जाने चाहिए. लिखा है, “बहुत से लोग घर में बहुत सारे दीये जलाते हैं. ये ठीक नहीं है. बंद जगह में बहुत सारे दीये जलाने से ऑक्सीजन का खर्च भी बढ़ जाएगा”.
आर्टिकल में धरती के पांच तत्वों और दीयों के जलने को इस तरह दर्शाया गया है, “दीया मिट्टी से बना होता है, जो पृथ्वी का प्रतीक है. उसमें जलने वाला तेल और बाती भी जमीन से ही मिलती है. वहीं पृथ्वी के चारों ओर अंतरिक्ष है. ऐसे में दीये के चारों ओर अंतरिक्ष की कल्पना की गई है. दीये में अग्नि भी है, उसे जलने के लिए वायु चाहिए और तेल के जलने की प्रक्रिया में पानी के मॉलीक्यूल भी बनते हैं. ऐसे में एक दीया उन पंचतत्वों का प्रतीक माना गया है जिनसे दुनिया बनी है.”
आर्टिकल के लेखक का ये भी दावा है कि दीयों के कई वैज्ञानिक फायदे हैं: “मानसून के दौरान, हवा नम होती है और बैक्टीरिया से भर जाती है. दीये से होने वाली गर्मी हवा में मौजूद बैक्टीरिया, वायरस आदि को नष्ट कर देती है. दीया जलाने से कोई ऐसा तत्व या केमिकल नहीं निकलता जिससे वातावरण को नुकसान पहुंचे. दीया जलाने में किसी तरह के जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. तेल में मौजूद मैग्नीशियम हवा में मौजूद सल्फर और कार्बन ऑक्साइड के साथ प्रतिक्रिया करके सल्फेट और कार्बोनेट बनाता है. भारी तत्व जमीन पर गिरते हैं, जिससे हवा हल्की हो जाती है और सांस लेना आसान हो जाता है.”
दीये जलाने से ऑक्सीजन बढ़ता है?
आर्टिकल में किए गए दावों की सच्चाई जानने के लिए, आग उत्पन्न करने वाली प्रतिक्रिया के प्रकार या दहन प्रतिक्रिया को समझना ज़रूरी है. एक दहन प्रतिक्रिया एक ईंधन और एक ऑक्सीडेंट, आमतौर पर वायुमंडलीय ऑक्सीजन के बीच एक उच्च तापमान एक्सोथर्मिक (गर्मी-विमोचन) रेडॉक्स (ऑक्सीजन-जोड़ने) रासायनिक प्रतिक्रिया है जो धुएं के रूप में मिश्रण में ऑक्सीकृत, अक्सर गैसीय उत्पादों का उत्पादन करती है.
एक हाइड्रोकार्बन (जैसे घी और दीयों में प्रयुक्त तेल) के साथ कई दहन प्रतिक्रियाएं होती हैं. एक यौगिक जिसमें कार्बन और हाइड्रोजन होता है. हाइड्रोकार्बन के दहन के उत्पाद कार्बन डाइऑक्साइड और पानी हैं. इस प्रकार प्रतिक्रिया में ऑक्सीजन का उत्पादन नहीं होता है लेकिन इसका इस्तेमाल किया जाता है. दहन के दौरान, ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है और कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ जाता है.
ध्यान दें कि आर्टिकल में ज़िक्र किया गया है, “फैटी एसिड का एक मॉलीक्यूल जलने से कार्बन के 56 और पानी के 52 मॉलीक्यूल निकलते हैं. एक फैटी एसिड मॉलीक्यूल को जलाने के लिए हवा में मौजूद ऑक्सीजन के 79 मॉलीक्यूल खर्च होते हैं.” फिर भी, लेखक ने बताया है कि दीयों की रोशनी से ऑक्सीजन कई गुना बढ़ जाता है.
ऑल्ट न्यूज़ ने IIT बॉम्बे में केमिकल इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफ़ेसर अभिजीत मजूमदार से बात की जिन्होंने आर्टिकल में किए गए दावों को ग़लत बताया. उन्होंने कहा, “जलना एक ऐसी प्रक्रिया है जो ऑक्सीजन का इस्तेमाल करती है. आर्टिकल में ही कहा गया है, “एक फैटी एसिड मॉलिक्यूल को जलाने के लिए हवा में मौजूद ऑक्सीजन के 79 मॉलिक्यूल खर्च होते हैं.” इसलिए किसी भी चीज को जलाने से आसपास के वातावरण में ऑक्सीजन नहीं बढ़ सकता.”
हमने नीलेश रंजन मैती से भी बात की जो जैव रसायन के शिक्षक हैं और पश्चिम बंगाल में शिशुराम दास कॉलेज के प्रिंसिपल हैं. उन्होंने बताया, “दीया जलाने से ऑक्सीजन बढ़ने का दावा झूठा है. ये सर्वविदित है कि पर्यावरण में ऑक्सीजन की मात्रा 21% है. दीया हो या मोमबत्ती, दहन के लिए ऑक्सीजन की ज़रूरत होती है. उत्पादित गैसें मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड के साथ-साथ अन्य गैसें हैं (जो जलाया जा रहा है उसके आधार पर) ये याद रखना चाहिए कि कार्बन डाइऑक्साइड और सल्फ़र डाइऑक्साइड, ग्रीनहाउस गैसें हैं. ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और ग्लोबल वार्मिंग के लिए ज़िम्मेदार है.”
दीये से निकलने वाली गर्म हवा में मौजूद बैक्टीरिया और वायरस को नष्ट कर देती है?
आर्टिकल में कहा गया है कि दीपक से निकलने वाली गर्म हवा, आस-पास मौजूद बैक्टीरिया और वायरस को नष्ट कर देती है. दीये जलाने के कई वैज्ञानिक फायदों के लिस्ट में इसे भी रखा गया था.
इस दावे के बारे में बताते हुए प्रोफ़ेसर अभिजीत मजूमदार ने कहा, “वायरस और बैक्टीरिया को मारने के मामले में, कोई आसानी से गणना कर सकता है कि तापमान में वृद्धि सिर्फ लौ के आसपास के एक छोटे से क्षेत्र के लिए होती है. इसलिए, दरवाज़े पर कुछ दीये किसी भी महत्वपूर्ण स्तर पर बैक्टीरिया या वायरस को नहीं मार सकते हैं.”
प्रोफ़ेसर मैती ने भी यही तर्क दिया. उन्होंने कहा, “जीवाणु सिर्फ ज्वाला के आसपास के वातावरण में ही नष्ट हो पाएंगे जो कि बहुत ही नगण्य संख्या है. दीया के क्षेत्र के बाहर बहुत सारे हानिकारक बैक्टीरिया होते हैं.”
कुल मिलाकर, आर्टिकल में किए गए ज़्यादातर ‘वैज्ञानिक’ दावे भ्रामक हैं. विज्ञान से संबंधित ग़लत सूचनाओं का प्रसार तेजी से बढ़ रहा है, खासकर कोरोना (COVID-19) महामारी के बाद से अक्सर ऐसा देखा गया है. सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर आम आदमी के दैनिक क्रिया पर हर तरह की ग़लत सूचनाएं आम बात है. जब प्रतिष्ठित मीडिया आउटलेट ग़लत सूचनाएं पब्लिश करते हैं, तो लोग उनपर आसानी से विश्वास कर लेते हैं. साथ ही इसका परिणाम काफी भयानक भी हो सकता है.
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