9 मई को ऑप इंडिया ने एक आर्टिकल छापा और दावा किया कि बिहार के गोपालगंज ज़िले के एक गांव में ‘मस्जिद को शक्तिशाली बनाने के लिए’ एक हिन्दू बच्चे की बलि दी गई. साथ ही पुलिस की प्रताड़ना की वजह से उस लड़के के परिवार को गांव छोड़कर जाना पड़ा. बच्चे का नाम रोहित जायसवाल था और उसकी उम्र 15 साल थी. ऑप इंडिया ने इस आर्टिकल में मृत बच्चे रोहित के पिता राजेश जयसवाल का हवाला देते हुए लिखा – “गाँव में नया मस्जिद बना है मुस्लिमों के बीच ये चर्चा आम थी कि अगर किसी हिन्दू की ‘बलि’ दे दी जाए तो मस्जिद शक्तिशाली हो जाएगा और इसका प्रभाव बढ़ जाएगा. बच्चों के बहाने उनके नाबालिग बेटे को बुलाया गया. मस्जिद में उन बच्चों के गार्जियन पहले से इन्तजार कर रहे थे, जिन्होंने इस घटना को अंजाम दिया.”

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इस आर्टिकल में पीड़ित के पिता, बहन के वीडियो के अलावा पुलिस का भी वीडियो शामिल किया गया है. शुरूआती 2 वीडियो पुलिस थाने के हैं. इसमें पुलिस को पीड़ित परिवार के साथ बदसलूकी से पेश आते हुए देखा जा सकता है. बाकी के 2 वीडियोज़ में पीड़ित का परिवार लोगों से मामले का संज्ञान लेने के लिए गुहार लगा रहा है. यहां ये ध्यान देने वाली बात है कि वीडियो में परिवार ने मौत के लिए कुछ लोगों को ज़िम्मेदार ठहराया है. लेकिन कहीं भी मस्जिद का एक बार भी ज़िक्र नहीं किया है. उन्होंने कहीं भी ये नहीं कहा है कि ये हत्या मस्जिद में हुई या मस्जिद को शक्तिशाली बनाने के लिए बलि दी गयी.

ऑप इंडिया ने इस मामले पर अपडेट देते हुए 2 और आर्टिकल छापे, सभी के टाइटल में एक चीज़ कॉमन है – ‘गोपालगंज मस्जिद ‘बलि’ मामला’.

9 मई को छपे आर्टिकल का टाइटल : ‘मस्जिद को शक्तिशाली बनाने के लिए बच्चे की दी बलि, पुलिस प्रताड़ना के बाद हिन्दू परिवार को छोड़ना पड़ा गाँव’

11 मई को छपे आर्टिकल का टाइटल : ‘गोपालगंज मस्जिद ‘बलि’ मामला: 4 आरोपितों को पकड़ चुकी है पुलिस, परिवार के आरोपों पर साधी चुप्पी’

11 मई को ही छपे एक और आर्टिकल का टाइटल : ‘किसी से कोई दुश्मनी नहीं, बस बेटे के लिए न्याय चाहिए’ – गोपालगंज मस्जिद ‘बलि’ मामले में पिता ने लगाई गुहार’

इसके अलावा सिर्फ़ न्यूज़, ABP बिहार, विजय कर्नाटका नाम की कुछ वेबसाइट्स ने भी ऐसी ही ख़बर प्रकाशित की है. (ABP बिहार ABP न्यूज़ का हिस्सा नहीं है)

ऑप इंडिया ने 13 मई को इस मामले पर दो और आर्टिकल छापे. जिसके हेडिंग में मस्जिद या बलि का ज़िक्र नहीं है लेकिन आर्टिकल में ये अपनी बात पर कायम हैं. और पीड़ित के परिवार हवाला देकर यही दावा किया गया है कि रोहित को मस्जिद में बलि दी गई. इन सभी ख़बरों से कुछ सवाल सामने आते हैं, जैसे:

1. क्या इस्लाम में मानव बलि देने की कोई प्रथा है?

2. क्या मस्जिद को शक्तिशाली बनाने के लिए हिन्दू लड़के की बलि दी गई?

3. क्या सभी आरोपी मुस्लिम थे?

4. क्या गांव के हिन्दू मुसलमानों से डरे हुए हैं?

फ़ैक्ट-चेक

इन सारे सवालों पर हम बारी-बारी से ध्यान देंगे. लेकिन सबसे पहले देखते हैं कि इस घटना की शुरूआत की रिपोर्टिंग क्या कहती है. ऑप इंडिया के ही अनुसार ये घटना 28 मार्च की है. हमने कीवर्ड सर्च से पाया कि दैनिक भास्कर ने इस मामले पर 30 मार्च को एक ख़बर प्रकाशित की थी. रिपोर्ट में लिखा है – “रोहित अपने चार साथियों के साथ गोइता टोला खनुआ नदी घाट पर नहाने गया था. देर शाम तक वह घर नहीं लौटा तो परिजन खोजने के लिए निकले. इस दौरान विजय मल भगत का पुत्र ने बताया की रोहित पानी में डूब गया है. जिसके बाद उसके साथियों ने कहां की इस बारे में किसी को बताया तो तुमको हमलोग मार देंगे. इसलिए वह कुछ नहीं बता रहा था. पुलिस ने उसका बयान दर्ज कर लिया है.” साथ ही कटेया थानाध्यक्ष अश्विनी तिवारी ने दैनिक भास्कर को बताया कि किसी कारणवश बच्चों ने इसकी जानकारी लोगों को नहीं दी. इस मामले में वो कुछ बता नहीं रहे है. मृतक के गांव के कुछ लोगों को हिरासत में लिया गया है.

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तो इस तरह ये पुष्टि की जा सकती है कि इस मामले की शुरूआती रिपोर्ट में कहीं भी मस्जिद, बलि या सांप्रदायिक ऐंगल नहीं दिखता है. अब उन 4 सवालों के जवाब की तरफ़ चलते हैं जो हमने पहले स्थापित किये थे.

1. क्या इस्लाम में मानव बलि देने की कोई प्रथा है?

इस बात की जानकारी के लिए हमने इस्लाम के जानकार एक मुफ़्ती मोहसिन इदरीस क़ासिमी से बात की. उन्होंने हमें बताया, “अल्लाह के अलावा किसी और के लिए हलाल जानवर की कुर्बानी जायज़ नहीं है और इंसानों की तो बिलकुल भी नहीं. हलाल जानवरों की क़ुर्बानी सिर्फ़ अल्लाह के लिए जायज़ है. क़ुरान-ए-पाक़ की आयत है (अल माइदा में) कि अल्लाह के अलावा किसी और के लिए किसी जानवर को ज़िबह करना हलाल नहीं है.”

2. क्या मस्जिद को शक्तिशाली बनाने के लिए हिन्दू लड़के की बलि दी गई?

क्यूंकि ऑप इंडिया का पूरा आर्टिकल पीड़ित के पिता के बयान पर छपा है इसीलिए इस मामले पर सबसे अहम बयान मृत लड़के के पिता राजेश जायसवाल का ही है. हमने राजेश जायसवाल से बात की. बात करते हुए उन्होंने बताया कि उन्हें दो बातों पर शक है – पहला, उनके गांव में एक मस्जिद बन रही है उनके बेटे रोहित ने कुछ दिन पहले अपनी मां को बताया था कि जब वो वहां जाता है तो एक मौलवी उसके शरीर पर पानी की छीटें डाल रहा था. तो हो सकता है कि इन लोगों ने मारा हो. और दूसरा, कि वो और उनका बेटा मिलकर पकौड़ी की दुकान चलाते थे. जिसके सामने की दुकान साबिर अंसारी चलाते थे, जो ज़्यादा चलती नहीं थी. तो हो सकता है इसलिए उन लोगों ने मिलकर मेरे बेटे को मार दिया.” यहां ये ध्यान देने वाली बात है कि पूरे प्रकरण में साबिर अंसारी का नाम न FIR में है न कहीं भी और. हमने पूछा कि क्या पुलिस ने साबिर पर कोई कारवाई की. इसपर उन्होंने कहा कि उसका कोई लेना-देना नहीं है इस केस से. पूछने पर कि आपकी कोई बातचीत या कलह हुई थी उनसे तो उन्होंने कहा कि ऐसा कुछ नहीं हुआ था. उनसे बात करते वक़्त ये महसूस हो रहा था कि उन्हें इस पूरे मामले के दौरान कहीं से भी मदद नहीं मिली है और वो अभी भी अपने बच्चे की मौत का कारण ढूंढ रहे हैं. पुलिस और प्रशासन से भी वो काफी निराश मालूम पड़ रहे थे.

जब हमने राजेश जायसवाल से बात की तो ये साफ़ मालूम चल रहा था कि वो काफी दुखी हैं जो कि बेहद स्भावाविक भी है. उनकी बातों से साफ़ मालूम पड़ रहा था कि अपने बेटे की मौत की असल वजह नहीं मालूम चलने के कारण वो हताश थे. उनके मन में रोहित की मौत से संबंधित कई सवाल थे जिसका जवाब वो जानना चाहते हैं. इस पूरे मामले में उनके हिसाब से प्रशासन ने भी उनका साथ नहीं दिया जो उन्हें और भी ज़्यादा निराशा से भर चुका है. ऐसी स्थिति में, ऐसी व्यथित मनोदशा में उनके विचारों को लेकर ऑप इंडिया ने ये सांप्रदायिक ऐंगल वाली ख़बर प्रकाशित की और राजेश जायसवाल की उन बातों को कतई दरकिनार कर दिया जिसमें वो हिन्दू-मुस्लिम ऐंगल नहीं होने की बात करते हैं.

इस मामले पर डीआईजी विजय कुमार वर्मा ने भी एक बयान जारी करते हुए बताया कि इस संबंध में वो जांच कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि केस CID के पास चला गया है और पुलिस ने 5 लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई भी की है. इसके अलावा उन्होंने ये भी बताया कि ऑप इंडिया ने अपनी ख़बर में इस मौत का मस्जिद के निर्माण से कनेक्शन दिखाया है जो कि ग़लत है और इसका सत्यापन उन्होंने ख़ुद किया है. डीआईजी विजय कुमार वर्मा ने बताया कि खबर तक और ऑप इंडिया के ख़िलाफ़ FIR भी दर्ज की जा चुकी है. विजय कुमार वर्मा का पूरा स्टेटमेंट इस वीडियो में देखें :

अब बात उस FIR की जो कि मौत के अगले दिन दर्ज करवाई गयी थी. इसे रोहित के पिता राजेश जायसवाल ने दर्ज करवाया था. इस FIR में आपको कहीं भी मस्जिद का ज़िक्र देखने को नहीं मिलेगा. 2 पन्नों की FIR में पीड़ित पिता ने जो लिखा उसके अनुसार मामला कुछ यूं था – कुछ बच्चे रोहित को खेलने के लिए घर से बुलाकर ले गए. इन लड़कों में 3 मुस्लिम थे और 1 हिन्दू. शाम को रोहित वापस घर नहीं आया और अगली सुबह रोहित के परिवार को मालूम पड़ा कि एक लड़के का शव नदी में मिला है. रोहित के परिवार को एक लड़के पर शक़ हुआ. जब उससे पूछताछ की तो उसने कहा कि 6 लोगों ने मिलकर रोहित की ह्त्या की है और जिसके बाद लाश को नदी में फेंक दिया गया. सभी ने मिलकर रोहित की हत्या की और उसके कपड़े नदी के किनारे झाड़ी में छुपा दिए. रोहित के पिता ने FIR में अपने बेटे की हत्या के लिए 6 लोगों पर आरोप लगाया. इनमें एक हिन्दू है और बाकी के मुसलमान हैं. इन सभी में चार नाबालिग हैं, इसीलिए हम उनका नाम उजागर नहीं कर सकते. FIR की कॉपी में भी उनके नाम को ब्लर कर दिया है.

जैसा कि हमने देखा इस पूरी FIR में कहीं भी मस्जिद या बलि शब्द का ज़िक्र नहीं किया गया है.

इसके बाद बात उस पोस्टमार्टम रिपोर्ट की जिसमें मौत की वजह बतायी गई है. इस रिपोर्ट में कहीं भी शरीर पर भारी चोट के निशान का ज़िक्र नहीं है. बताया गया है कि लड़के की मौत का कारण था – ‘asphyxia due to drowning’ यानी पानी में डूबने के कारण शरीर में हुई ऑक्सीजन की कमी. ये पोस्टमार्टम रिपोर्ट 29 मार्च की है.

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पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर फ़ोरेंसिक साइंटिस्ट का क्या कहना है?

हमने मेलबर्न के विक्टोरियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ फ़ोरेंसिक मेंटल हेल्थ में बतौर फ़ोरेंसिक साइंटिस्ट काम कर रहे जयदीप सरकार से इस पोस्ट मार्टम रिपोर्ट के बारे में बात की. जयदीप ने हमें बताया, “पोस्टमार्टम रिपोर्ट को और विस्तृत रूप में लिखा जा सकता था. फ़िलहाल जो भी जानकारी उपलब्ध है, उससे ये कहा जा सकता है कि मौत का कारण पानी में डूबना है. अब ये एक एक्सिडेंट था या ये हत्या है, ये पुलिस की इन्वेस्टिगेशन से ही तय हो सकेगा. और जहां तक पानी में डूबने वाली बॉडी के फूलने का सवाल है, हर बार ऐसा हो, ये ज़रूरी नहीं होता है. 19-20 घंटों तक बॉडी अगर पानी में रहे तब भी वो नहीं फूलती क्यूंकि बाहरी वातावरण की बनिस्बत पानी ज़्यादा ठंडा होता है और इस वजह से बॉडी के गलने की प्रक्रिया देर से शुरू होती है. और इस केस में तो हमें मालूम भी है कि बॉडी शाम से लेकर रात भर पानी में रही और उस वक़्त पानी कुछ ठंडा रहता है.”

और जहां तक बलि दिए जाने की बात है, हमें बच्चे के पिता राजेश जायसवाल ने कुछ वीडियोज़ भेजे जो नदी से शव को निकालते समय बनाए गए थे. इन वीडियोज़ में जो दिखाई दे रहा है वो आपको विचलित कर सकता है इसलिए यहां सिर्फ़ स्क्रीनशॉट दिखाया जा रहा है. इसमें गले पर हल्का सा भी चोट का निशान नहीं दिख रहा है. अगर बलि दी गई होती तो गले पर कुछ निशान ज़रूर होता. ये किसी भी तरह से इस्लामिक या हिन्दू मान्यताओं के अनुसार बलि दिये जाने की घटना नहीं है.

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इस तरह मस्जिद में बलि का दावा भी बेबुनियाद साबित होता है. पीड़ित के पिता के बयान या FIR में कहीं भी इस बात का ज़िक्र नहीं है. ऑप इंडिया ने ये कहानी कहां से और कैसे रची, इसका जवाब वो खुद ही दे सकेंगे.

मृतक रोहित जायसवाल का शव मिलने की तारीख 29 मार्च है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी इसी तारीख की है और मृतक के पिता राजेश जायसवाल ने जो FIR लिखवाई वो भी 29 मार्च की ही है. इस तारीख से लेकर 8 मई तक इस केस से जुड़ी किसी भी न्यूज़ रिपोर्ट में हमें मस्जिद या मस्जिद में बलि दिए जाने का सन्दर्भ नहीं मिला. मस्जिद या मस्जिद में बलि दिए जाने का पहला कनेक्शन ऑप इंडिया के 9 मई को छापे गए आर्टिकल में ही मिलता है. यहीं से ये ख़बर सोशल मीडिया पर फैली और एक के बाद एक ऑप इंडिया के आर्टिकल्स ने इस पूरे मामले को साम्प्रादायिक वजहों से की गयी हत्या क़रार दे दिया. सोशल मीडिया पर इसका असर साफ़ देखा जा सकता है.

3. क्या सभी आरोपी मुस्लिम थे?

ऑप इंडिया ने पीड़ित के पिता का हवाला देते हुए अपनी रिपोर्ट में बताया था कि सभी आरोपी मुस्लिम हैं. रिपोर्ट में लिखा है, “मार्च 28, 2020 को कुछ लड़के आए और उनके नाबालिग बच्चे को क्रिकेट खेलने के बहाने बुला कर ले गए. पीड़ित राजेश ने ऑपइंडिया से बात करते हुए बताया कि ये सभी बच्चे मुसलमान थे.”

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मृत्यु के बाद लिखी गयी FIR में ही चारों अभियुक्तों के नाम दिए गए थे, जिनमें एक का नाम हिन्दू है. यहां तक कि ऑप इंडिया के ही आर्टिकल में शामिल वीडियो में पीड़ित के पिता के बयान में ही एक हिन्दू लड़के का नाम लेकर कहा जाता है कि वो लड़का आया और बोला, चलो क्रिकेट खेलने चलते हैं. बाकि के तीन और मुसलमान लड़के भी इसमें शामिल थे.’

तो ऑप इंडिया का ये दावा भी कि सभी लड़के मुसलमान थे, ग़लत साबित होता है.

4. ग्रामीण के हवाले से ऑप इंडिया का दावा कि गांव के प्रभावशाली हिन्दू भी मुसलमानों से पंगा नहीं लेते

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इस मामले की सच्चाई जानने के लिए हमने एक स्थानीय पत्रकार से संपर्क किया. वो अपना नाम उजागर नहीं होने देना चाहते थे लेकिन वो इस मसले पर हमसे बात करने को राज़ी हो गए. उन्होंने गांव के कई लोगों से बात की. मृतक रोहित जायसवाल की मां से भी 13 मई को उनकी बात हो पायी. चूंकि CID की टीम जांच करने के लिए आई हुई थी इसलिए रोहित की मां उस दिन गांव में ही मौजूद थीं.

रोहित की मां का भी वही कहना है जो उसके पिता ने हमसे कहा. पूरा घटनाक्रम बताकर उन्होंने ये भी कहा कि उनकी किसी भी मुस्लिम परिवार से कोई आपसी रंजिश नहीं थी. उनके परिवार ने प्रशासन से नाराज होकर घर छोड़ा. इस मामले में मुसलमानों से किसी तरह के डर और भय से उन्होंने इंनकार किया. साथ ही मस्जिद में बलि देने की बात पूछे जाने पर उन्होंने बताया, “हम झूठ नहीं बोलेंगे, हमने अपनी आंखों से नहीं देखा. आप पूरे गांव में किसी से भी पूछ लीजिये. लड़का को बुला के लेकर गया और मारकर वहां फेंक दिया. वो बच्चा लोग खुद कुबूल किया है कि हमलोग यहां मारकर नदी में फेंके हैं.” हालांकि पूरे वीडियो में पीड़ित की मां पुलिस पर काफी गंभीर आरोप भी लगाती हैं. उनका कहना है कि पुलिस ने इस मामले में ठीक से छानबीन नहीं की.

कई गांव वालों से भी बातचीत की गयी. सबका यही कहना है कि मस्जिद में बलि का मामला पूरी तरह से झूठा है. और जो लोग ये अफ़वाह उड़ा रहे हैं वो गांव में रहते भी नहीं हैं. फ़ेसबुक पर झूठा दावा कर रहे हैं. हिन्दू-मुस्लिम वाली कोई बात नहीं है. हत्या है और हत्या किया गया है कुबूल किया है उन्होंने. साथ ही गांव वालों का ये भी कहना है कि सुनने में आया कि पीड़ित परिवार के पास खाना नहीं है, गलत है. पूरा गांव मिल के पीड़ित परिवार को खाने-पीने के लिए दिया है और हिन्दू-मुस्लिम वाली कोई बात नहीं है.

गांव के ही एक प्रद्युम्न राय से जब पूछा गया कि इस गांव में हिन्दू और मुसलमानों की संख्या लगभग कितनी है तो उन्होंने कहा कि करीब 150-175 तक मुस्लिम हैं और 600-700 हिन्दू हैं. उन्होंने कहा कि ऐसी कोई बात नहीं है कि मुस्लिमों के डर से पीड़ित घरवालों का पलायन हुआ है. ये गलत है. उन्होंने ये भी बताया कि ऑप इंडिया नाम की न्यूज़ उन्होंने मोबाइल पर देखी थी जो कि ग़लत है. प्रद्युम्न ने कहा कि वो गांव के ही हैं और ऐसा कुछ भी होता तो उन्हें ज़रूर मालूम चलता. उन्होंने बलि और मुसलमानों के डर से पलायन की बात को झूठा बताया.

गांव से जुड़े जितने भी लोगों से हमारी बात हुई, लगभग सभी का कहना है कि हिन्दू-मुस्लिम जैसी कोई बात नहीं है और मस्जिद के लिए बलि दिए जाने की बात सिर्फ़ एक अफ़वाह है. बच्चे को जैसे भी मारा गया है, इसकी जांच पुलिस करेगी.

आरोपियों के घरवालों का क्या कहना है?

हमने FIR में नामजद लोगों के घरवालों से भी बात की. सबसे पहले व्यक्ति जो इस वीडियो में दिख रहे हैं, उनका नाम इदरीस अंसारी है. ये आरोपियों के दादा/नाना हैं. इनका कहना है ये पांच बच्चे गए थे नदी में नहाने उसमें से एक डूब गया. बाकी डर से भाग गए और किसी से कुछ नहीं कहा. 5 मिनट 20 सेकंड पर दिखने वाले शख्स के पिता और बेटे दोनों का नाम अभियुक्तों में शामिल है. इनका कहना है कि इस मामले की विधिवत जांच होनी चाहिए. 9 मिनट 10 सेकंड पर FIR में नामजद एक आरोपी मुस्तफ़ा के घर वालों का भी लगभग वही कहना है. सबने ये बताया कि गांव में हिन्दू-मुस्लिम में बहुत भाईचारा है. वो एक-दूसरे के त्योहार या शादी-ब्याह में ज़रूर शामिल होते हैं.

ये हुई गांव वालों की बात. अब देखते हैं कि इस मामले में क्या अपडेट है. पुलिस ने ऑप इंडिया के ख़िलाफ़ गलत खबर चलाने के लिए FIR दर्ज की है. ये FIR कटेया थानाध्यक्ष अश्विनी कुमार ने दर्ज की है. इसमें इस मामले का विवरण देने के बाद लिखा है, “इस कांड में सोशल मीडिया पर कई तरह की तथ्यहीन बातें लिखी जा रही है. इसी क्रम में ऑप इंडिया न्यूज़ पोर्टल द्वारा 9 मई को बिना कुछ जाने समझे इस तरह का समाचार प्रकाशित किया गया कि इस कांड में हत्या बेलही डीह में बन रही मस्जिद को शक्तिशाली बनाने के क्रम मे हुई है. तथा बच्चे की बलि दी गयी है. इस तरह के खबर को खबर तक पोर्टल द्वारा भी चलाया गया. इन ख़बरों को पढ़ने के बाद स्पष्ट है कि इन्होने पूर्व अधीक्षक महोदय श्री राशिद जमा का बयान लगाया है जबकि उनका स्थानांतरण 6 माह पूर्व हो चुका है.” फ़िलहाल वहां के पुलिस अधीक्षक मनोज तिवारी हैं.

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हमने अश्विनी तिवारी से भी बात की. उन्होंने बताया कि ये बच्चे नदी में नहाने गए थे और एक बच्चा डूब गया. वो कैसे डूबा इसका कोई भी चश्मदीद गवाह नहीं मिला है. जो बच्चे साथ में गये थे उनमें से किसी को भी ये ठीक से नहीं मालूम है कि वो कैसे डूबा. 5 लोग गिरफ़्तार कर जेल भेजे जा चुके हैं और एक को गिरफ़्तार किया जाना बाक़ी है. गिरफ़्तार हुए सभी बच्चे नाबालिग हैं जिन्हें बाल सुधार गृह भेजा गया था. यहां से उन्हें कोरोना वायरस के चलते कुछ शर्तों पर पेरोल पर छोड़ा गया है. उन्हें छोड़े जाने से लोगों को ऐसा लगा कि पुलिस ने जेल भेजा ही नहीं. सोशल मीडिया के माध्यम से कुछ लोग इसको हिन्दू-मुस्लिम का ऐंगल देने की कोशिश करने में लग गए लेकिन सच्चाई उससे परे है. ‘ऑप इंडिया’ और ‘खबर तक’ पर FIR दर्ज की है.

हमने पाया कि ‘ऑप इंडिया’ ने अब अपना आर्टिकल बिना किसी स्पष्टीकरण के अपडेट करते हुए उसमें से राशिद जमाल का नाम हटा दिया है. ऑप इंडिया के पुराने आर्टिकल का स्क्रीनशॉट नीचे देखा जा सकता है.

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इस तरह ऑप इंडिया सहित कुछ अन्य वेबसाइट्स ने इस पूरे मामले को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की. पीड़ित के परिवार ने ही इस बात से इन्कार किया कि उनकी मुसलमानों से किसी तरह की रंजिश थी. न ही उन्होंने पुलिस को दी अपनी लिखित शिकायत में मस्जिद या बलि का ज़िक्र तक किया. मस्जिद और मस्जिद में बलि देने का ज़िक्र पहली बार मृतक का शव मिलने के 40 दिन बाद ऑप इंडिया के आर्टिकल में हुआ. और यहां से मामले ने साम्प्रादायिक मोड़ लेते हुए तूल पकड़ लिया और सोशल मीडिया पर छा गया. फ़िलहाल ये केस सीआईडी को सौंपा गया है और जांच चल रही है. ‘ऑप इंडिया’ और ‘ख़बर तक’ पर FIR दर्ज हो चुकी है. जिसे नीचे देखा जा सकता है.

ऑप इंडिया और खबर तक के खिलाफ दर्ज की गयी FIR की कॉपी
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