सोशल मीडिया पर कुछ तस्वीरें शेयर हो रही हैं जिसमें एक साधु चोटिल हालत में दिखाई दे रहा है. तस्वीरें एक से ज़्यादा हैं और साधु इन सभी में चोटिल हालत में, खून से सना हुआ दिखाई दे रहा है. पोस्ट्स और ट्वीट्स में दावा ये है कि हमला करने वाले लोग बंगलादेशी थे और ये साम्प्रदायिक मामला है. इन पोस्ट्स में हिंदू-मुस्लिम ऐंगल दिखाने की कोशिश की गयी है. ख़ुद को आरटीआई ऐक्टिविस्ट बताने वाले डॉक्टर विकास गौड़ नाम की ट्विटर प्रोफ़ाइल से कहा गया कि ‘वृन्दावन के वैष्णव हिन्दू पुजारी को मुसलमानों ने बेरहमी से मारा.’

लगातार गलत जानकारियां परोसने वाली वेबसाइट ऑपइंडिया हिंदी के एडिटर अजीत भारती ने ऑपइंडिया के ही आर्टिकल को ट्वीट किया और सवाल पूछा कि किस तरह के लोग साधु संतों को निशाना बनाते हैं. इसके साथ ही उन्होंने ये भी कह दिया कि उन्हें सुनने में आया है कि साधु पर हुए हमले में बांग्लादेशी भी शामिल थे. ऑपइंडिया वेबसाइट खुद को फ़ैक्ट चेक करने वाली वेबसाइट भी बताती है और ऐसा करने वाली वेबसाइट का एडिटर लोगों की कही-सुनी बात को बिना जांचे ट्वीट किये दे रहा है.

खतरनाक राष्ट्रवादी‘ नाम की एक फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल (नाम यही है. कोई मज़ाक नहीं किया जा रहा है) ने इन तस्वीरों को शेयर करते हुए काफ़ी कुछ लिखा. इस प्रोफ़ाइल ने मुंबई में साधुओं की हत्या और बिहार के गोपालगंज में हिन्दू लड़के की मस्जिद में हुई हत्या, 5 ब्राह्मण परिवारों की हत्या आदि आदि का संदर्भ देते हुए साधु को पीटने के मामले में शामिल लोगों के ख़िलाफ़ हिंसा का इस्तेमाल करने के लिए लोगों को उकसाने की कोशिश की. (जिन मामलों का इस पोस्ट में सन्दर्भ दिया गया है, उनमें सभी सांप्रदायिक मामले हैं, ऐसे दावे का ऑल्ट न्यूज़ समर्थन नहीं करता है. पालघर में हुई साधुओं की हत्या में कोई सांप्रदायिक ऐंगल नहीं था और ऑल्ट न्यूज़ इस दावे की पड़ताल पहले ही कर चुका है. इन्हें यहां पर इसलिए ही लिखा गया है क्यूंकि खतरनाक राष्ट्रवादी नाम की इस प्रोफ़ाइल ने इन मामलों का ज़िक्र किया है.)

ख़ुद को IIT रुड़की से पढ़ा हुआ बताने वाली आरती अग्रवाल ने भी इन तस्वीरों के साथ वृन्दावन में तमल कृष्ण दास को 2 बांग्लादेशियों समेत कुछ लोगों द्वारा पीटे जाने की बात कही. उन्होंने कहा कि सभी भागे हुए हैं और पुलिस मामले पर ध्यान नहीं दे रही है. आरती के ट्वीट को साढ़े 3 हज़ार से ज़्यादा प्रोफ़ाइल्स ने रीट्वीट किया.

फ़ैक्ट-चेक

इससे पहले कि मामला बहुत आगे बढ़ता, मथुरा पुलिस ने आरती अग्रवाल के ट्वीट पर जवाब दिया कि विक्टिम का थाना वृन्दावन में मेडिकल इग्ज़ामिनेशन करवा दिया गया है और पुलिस आगे अपना काम कर रही है. इस ट्वीट से ये भी साफ़ हो जाता है कि तस्वीरों में दिख रहे साधु की मौत नहीं हुई है. (डॉक्टर विकास गौड़ के नाम से चलने वाली ट्विटर प्रोफ़ाइल ने ये कहा था कि हमले से इनकी मौत हो गयी है. ये ट्वीट इस आर्टिकल में सबसे पहले दिखाया गया है.)

मगर अफ़सोस की बात ये है कि ख़बर लिखे जाने तक, मथुरा पुलिस के ट्वीट किये जाने के 10 घंटे बीतने के बाद इस ट्वीट को महज़ 10 बार रीट्वीट किया गया है जबकि आरती को 11 घंटे में 4 हज़ार के आस-पास रीट्वीट मिले हैं.

आरती को भेजे जवाब में मथुरा पुलिस ने बस मेडिकल और आगे की कार्रवाई की बात कही. लेकिन मामले की असलियत मालूम चली ट्विटर यूज़र अंकित त्रिवेदी के ट्वीट पर मथुरा पुलिस के जवाब से. अंकित त्रिवेदी ने अपनी प्रोफ़ाइल में बताया हुआ है कि वो पेशे से पत्रकार हैं और सुदर्शन न्यूज़ के साथ काम करते हैं. अंकित ने अपने ट्वीट में पालघर की घटना का ज़िक्र किया था (जहां 3 साधुओं की मॉब लिंचिंग हुई थी मगर उसमें कोई भी सांप्रदायिक ऐंगल नहीं था) और वृन्दावन में हुई इस घटना में बांग्लादेशी लोगों के हाथ होने की बात कही.

मथुरा पुलिस ने एक वीडियो के रूप में अपना जवाब सामने रखा. वीडियो ट्वीट करते हुए मथुरा पुलिस ने साफ़ शब्दों में लिखा है कि बांग्लादेशी हमलावर के शामिल होने की बात पूरी तरह से ग़लत है. इस वीडियो में क्षेत्राधिकारी सदर दिख रहे हैं (हालांकि उन्होंने अपने मुंह पर मास्क लगाया हुआ है) और उन्होंने बताया कि इस पूरी घटना में कोई साम्प्रदायिक ऐंगल नहीं है. उन्होंने कहा कि गौड़ीय मठ इमलीतला, वृन्दावन में मठ के पूर्व अध्यक्ष तमाल दास और मठ के वर्तमान अध्यक्ष बीपी साधु के अनुयायियों के बीच में किसी अनबन के चलते मारपीट हो गयी और तमाल दास को चोटें आयीं. सच्चिदानंद नाम के शख्स को पुलिस ने मुख्य अभियुक्त बताया जिसे पुलिस ने पकड़ लिया है. इसके अलावा जो दो लोग फ़रार हैं उनके नाम हैं गोविंदा और जगन्नाथ. गोविन्द सिंह नाम के एक सिक्योरिटी गार्ड का भी नाम आया है. इसके आलावा उन्होंने ये भी बताया कि इस मामले में पुलिस के पास कोई भी लिखित शिकायत नहीं आई है जिसके बाद ही FIR लिखनी संभव होगी.

तो इस तरह से पुलिस के वीडियो से ये साबित होता है कि वृन्दावन में पिटाई में घायल हुए साधु के मामले में कोई भी साम्प्रादायिक ऐंगल नहीं है बल्कि ये आपसी अनबन का मामला है. इसमें शामिल सभी लोग एक ही समुदाय से हैं और मठ के पूर्व अध्यक्ष को वर्तमान अध्यक्ष के अनुयाइयों ने पीटा है. समस्या वाली बात ये है कि ज़हर से भरे ग़लत जानकारियों वाले पोस्ट्स ख़ूब शेयर हो रहे हैं और पुलिस के बयान, जिसमें मामले की सच्चाई बतायी जा रही है, उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. यहां तक कि एक फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल ने इस मामले में शामिल मुस्लिम लोगों (जो कि शामिल ही नहीं हैं) के ख़िलाफ़ हिंसा करने जैसी बातें भी कह दीं. आशा है कि पुलिस ऐसी ग़लत जानकारियों की सच्चाई आगे भी बताती रहेगी और सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर हिंसा भड़काने वालों के ख़िलाफ़ कुछ कदम भी उठाएगी.

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Ketan is Senior Editor at Alt News Hindi.