जैसे ही डार यासीन, मुख्तार खान और चन्नी आनंद नाम के तीन कश्मीरी फ़ोटोग्राफ़र्स को कश्मीर की कवरेज के लिए पुलित्ज़र पुरस्कार 2020 से नवाज़ा गया, चीख पुकार करने वाली मशीनरी अपने काम पर लग गई. जैसा कि पहले पहले भी देखा गया है, उन्होंने अवॉर्ड को ही बदनाम करना शुरू कर दिया. दक्षिणपंथी प्रोपेगैंडा वेबसाइट ऑपइंडिया ने “जोसेफ पुलित्ज़र- पुलित्ज़र प्राइज़ शुरू करने वाले और ‘येलो जर्नलिज़्म’ के जनक की कहानी” शीर्षक से एक लेख प्रकाशित किया जिसमें यह बताया गया था कि “इस ‘पत्रकारिता के ऑस्कर’ का नाम जिसके नाम पर रखा गया है उस शख्स ने ऐसी चीज़ की नींव रखी थी जिसे आगे चलकर येलो जर्नलिज़्म कहा गया. ये एक सनसनीखेज पत्रकारिता है जिसमें आज की हल्की खबरें और फ़ेक न्यूज़ आ सकती हैं.”

ऑल्ट न्यूज़ ने पाया कि न केवल ऊपर दिया गया कोट, जिसकी शह पर ऑपइंडिया ने पूरा लेख लिखा है, बल्कि पूरा का पूरा लेख ही अलग-अलग सोर्सेज़ से चोरी किया गया है. और इस दौरान कॉपीराइट नियमों का भी उल्लंघन किया गया है. एक ट्विटर यूज़र @kundansonu ने सबसे पहले ये नोटिस किया था.

साहित्यिक चोरी

साहित्यिक चोरी या दूसरे के काम को अपना बताना पत्रकारिता का पहला सबसे बड़ा पाप है. नियम बिल्कुल सीधा है- दूसरे की लिखी पंक्तियों को कोटेशन मार्क में रखना है और जहां से लिया है वह सोर्स भी लिखना है.

ऑपइंडिया के लेख में कम से कम दो जगहों से पूरा पैराग्राफ़ कॉपी किया गया और सोर्स को उसका श्रेय नहीं दिया गया. ऑल्ट न्यूज़ ने ‘Copyscape’ टूल का इस्तेमाल करते हुए लेख की जांच की और कई जगह पाया कि पूरा पैराग्राफ़ हूबहू कॉपी किया गया है और उसे अपना बताया गया है.

1. विंटेज न्यूज़

ऑपइंडिया ने विंटेज न्यूज़ वेबसाइट से 135 शब्द (जो कि लेख का 13% हिस्सा है) हूबहू कॉपी किया है.

आश्चर्य की बात है कि यह कोट – “इस ‘पत्रकारिता के ऑस्कर’ का नाम जिसके नाम पर रखा गया है उस शख्स ने ऐसी चीज़ की नींव रखी थी जिसे आगे चलकर येलो जर्नलिज़्म कहा गया. ये एक सनसनीखेज पत्रकारिता है जिसमें आज की हल्की खबरें और फ़ेक न्यूज़ आ सकती हैं.”- इसे ऑपइंडिया ने लेख के उप शीर्षक और ट्वीट में भी प्रयोग किया है.

नीचे उस हिस्से का स्क्रीनशॉट है जिसे विंटेज न्यूज़ से पूरा का पूरा कॉपी किया गया है. बाईं तरफ ऑपइंडिया के लेख का हिस्सा है और दाईं तरफ विंटेज न्यूज़ का पैराग्राफ़ है.

2. US स्टेट डिपार्टमेंट

1050 शब्दों के लेख में 436 शब्द यानी लेख के 42 % हिस्से को इकलौते सोर्स, US डिपार्टमेंट से कॉपी किया गया है.

डिपार्टमेंट ऑफ़ स्टेट का यही कॉन्टेंट हिस्टोरियन वेबसाइट पर भी उपलब्ध है. ऑपइंडिया ने पूरा का पूरा पैराग्राफ़ बिना कोटेशन मार्क्स के कॉपी कर लिया है.

दोनों के टेक्स्ट की आमने-सामने तुलना (बाईं तरफ ऑपइंडिया, दाईं तरफ US स्टेट डिपार्टमेंट) पूरी तरह से समानता दिखा रही है. (नोट- यहां केवल 436 समानताओं वाला हिस्सा दिखाया गया है)

ऑपइंडिया ने असली सोर्स यानी US स्टेट डिपार्टमेंट को, जहां से 42 % टेक्स्ट कॉपी किया है, उसे क्रेडिट देने की बजाय History. com को क्रेडिट दिया है जहां से केवल 149 शब्द या 14% कॉन्टेंट लिया है.

कॉपीराइट नियमों का उल्लंघन

विंटेज न्यूज़ की नियम व सेवा शर्तों में साफ लिखा है कि वेबसाइट पर मौजूद हर सामग्री कॉपीराइट के अन्तर्गत आती है.

US स्टेट डिपार्टमेंट का कॉपीराइट नियम कहता है, “कॉपीराइट की बात करें तो स्टेट डिपार्टमेंट की मुख्य वेबसाइट पर दी गई जानकारी सार्वजनिक है, इसे बिना अनुमति के कॉपी और वितरित किया जा सकता है. जानकारी के सोर्स के रूप में US स्टेट डिपार्टमेंट को क्रेडिट देना सराहनीय रहेगा.”

गौरतलब है कि सार्वजनिक जगह से कॉन्टेंट कॉपी करने पर कानूनी तौर पर क्रेडिट देने की ज़रूरत नहीं है लेकिन उस कॉन्टेंट को अपना बताकर शेयर करना साहित्यिक चोरी ही कहा जाएगा. जैसा कि स्टैनफोर्ड कॉपीराइट एन्ड फ़ेयर यूज़ का कहना है, “पब्लिक डोमेन से कॉन्टेंट कॉपी करते समय यह ध्यान रखा जाए की साहित्यिक चोरी न हो. साहित्यिक चोरी उसे कहा जाता है जब कोई उन शब्दों को अपना बताए जो उसने नहीं लिखे, आइडिया जो उसे नहीं आया या तथ्य जिसकी खोज उसने नहीं की.”

यह विडंबना ही है कि जिस लेख में पुलित्ज़र प्राइज़ की आलोचना की गई है और उसकी शुरुआत करने वाले को येलो जर्नलिज़्म का जनक कहा गया है, वह लेख ही बड़े पैमाने पर साहित्यिक चोरी है. लगभग आधे लेख में US स्टेट डिपार्टमेंट के पब्लिक डोमेन से कॉन्टेंट बिना क्रेडिट दिए कॉपी किया गया है. ऑप इंडिया के लेख का मुख्य मुद्दा, जिसे उप शीर्षक भी बनाया गया है, वह भी दूसरी वेबसाइट से उठाया गया है. इंटरनेट पर मौजूद सामग्री में कहीं भी कुछ भी जोड़कर जो बनाया गया है यह ‘कॉपी पेस्ट पत्रकारिता’ का सबसे घटिया उदाहरण है. इंटरनेट पर साहित्यिक चोरी पकड़ने के बहुत से टूल उपलब्ध हैं फिर भी कॉपी किया हुआ कॉन्टेंट लेख की शक्ल में धड़ल्ले से प्रकाशित किया जा रहा है. ऑल्ट न्यूज़ ने पहले भी दक्षिणपंथी थिंक टैंक इंडिया फाउंडेशन के लेखों में बड़े पैमाने पर साहित्यिक चोरी का भंडाफोड़ किया है.

ऑल्ट न्यूज़ के आर्टिकल के बाद ऑपइंडिया ने अपना आर्टिकल अपडेट करते हुए स्पष्ट किया किया उन्होंने कॉपी की थी, जिसे अब सुधारा जा चुका है.

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