भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने पत्रकार आरफ़ा ख़ानुम का एक वीडियो साझा करते हुए ट्वीट किया, “इस्लामवादी चाहते हैं कि CAA का विरोध केवल उस समय तक ‘समावेशी’ रहें जब तक कि आप, गैर मुस्लिम, उनकी धार्मिक पहचान, मान्यताओं और वर्चस्ववादी नारों को स्वीकार करना शुरू न करें।” (मूल सन्देश – “The Islamists want CAA protests to be ‘inclusive’ only till the time you, the non Muslims, start accepting their religious identity, beliefs and supremacist slogans as gospel”)

42 सेकंड की इस क्लिप में, खानम को यह कहते सुना जा सकता है- “यहाँ पर एक आम राय कम से कम जितने लोग बैठे हुए हैं, एक आम राय इसको लेके बने कि जब तक हम वो आइडियल सोसाइटी बन पाए जहां हमारी मज़हबी पहचानों, हमारी मज़हबी जो बिलीफ है, जो हमारे नारे हैं, उनको लेकर एक तरह का एक्सेप्टेन्स पैदा हो तब तक हम एक इंक्लूसिव प्रोटेस्ट करें और ये प्रोटेस्ट भी हमे उसी सोसाइटी की तरह ले जा रहे हैं जहां हम सबको शामिल करेंगे। तो हम हमारी जो आइडियोलॉजी है उससे कोम्प्रोमाईज़ नहीं कर रहे हैं, आई वांट टू रीइटरेट यहाँ हम हमारी आइडियोलॉजी से कोम्प्रोमाईज़ नहीं कर रहे है, हम अपनी स्ट्रेटेजी बदल रहे हैं।”

यह वीडियो भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने भी ट्वीट किया है। उन्होंने इसे एक पायदान ऊपर लेते हुए दावा किया कि ख़ानुम ने ‘इस्लामिक खलीफा’ विकसित करने की रणनीति का खुलासा किया है। पात्रा ने लिखा- “हिंदुओं की आवश्यकता केवल “तब तक” ही है जब तक इस्लामिक Society का निर्माण न हो जाए”

फिल्म निर्माता विवेक अग्निहोत्री ने भी यह वीडियो इसी तरह की पंक्तियों के साथ ट्वीट किया – “इस्लामिक खलीफा की मुख्य रणनीतिकार @khanumarfa बताती हैं कि भारत में एक आदर्श इस्लामिक सोसाइटी की स्थापना के लिए लोगों को ‘समावेशी’ जैसे शब्दों से कैसे बेवकूफ बनाया जाए।”

[मूल सन्देश – “Islamic Caliphate Chief strategist @khanumarfa explains how to fool people with words like ‘inclusive’ in order to establish an ideal Islamic Society in India.”]

इसे शेयर करने वाले अन्य लोगों में – भाजपा महिला मोर्चा की प्रीति गांधी, भाजपा राजनीतिज्ञ मेजर सुरेंद्र पूनिया, भाजपा प्रवक्ता सुरेश नखुआ, भाजपा समर्थक शुभ्रास्था, पाकिस्तानी-कनाडाई लेखक तारेक फतह, मानुषी की संस्थापक मधु किश्वर, वकील प्रशांत पटेल उमराव, स्वराज्य की कॉलमिस्ट शेफाली वैद्य, डॉ. मोहनदास पाई, शिवसेना के पूर्व सदस्य रमेश सोलंकी और MyNation के पूर्व संपादक अभिजीत मजूमदार शामिल हैं। उनमें से कई ने @EthnicLinkGuru द्वारा पहली बार ट्वीट किए गए वीडियो को फिर से पोस्ट किया।

संदर्भ से बाहर, क्लिप्ड वीडियो

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) में पत्रकार आरफ़ा ख़ानुम द्वारा दिया गया पूरा भाषण, द वायर द्वारा 24 जनवरी, 2020 को अपलोड किया गया था। इसका शीर्षक है, “CAA आंदोलन का चेहरा धार्मिक नहीं सेकुलर होन चाहिये।” (अनुवाद) खानम, द वायर में एक वरिष्ठ संपादक हैं।

अपने भाषण के लगभग मध्य में, पत्रकार ने AMU की महिलाओं को बधाई दी, जिन्होंने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ विरोध-प्रदर्शनों को नया आकार दिया है। वीडियो के 14:42वें मिनट पर, खानम कहती हैं, “हालांकि, यह समझना महत्वपूर्ण है कि हम कैसे विरोध करना चाहते हैं।” वह उन लोगों के साथ एकजुटता व्यक्त करती हैं जो महसूस करते हैं कि उनके मुस्लिम होने पर हमला किया जा रहा है। साथ ही, दर्शकों से आग्रह करती हैं कि विरोध को ‘समावेशी’ आकार देने की आवश्यकता है और इसे ‘केवल-मुस्लिम’ वाला आंदोलन नहीं हो जाना चाहिए।

उन्होंने कहा, “अगर सिर्फ मुस्लिम इस मुल्क में प्रोटेस्ट करें। क्या 20 करोड़ लोग अकेले प्रोटेस्ट करते रहे तो क्या बाकि के 100 या 110 करोड़ लोग अगर आप मज़हबी नारे लगाते हैं तो क्या वे आपका हिस्सा बनना [पसंद करेंगे। मैं यह कहना चाहती हूँ कि इस प्रोटेस्ट को हमें ज़्यादा से ज़्यादा इन्क्लूसिव बनाना होंगा। इसका बेस बढ़ाना होंगा। आप मुस्लिम हो…इस बात में कोई शक नहीं है। आपके ऊपर हमला हो रहा है इस बात में भी कोई शक नहीं है। लेकिन एक बात को ज़रूर समझिये कि यह ये प्रोटेस्ट इंडिया के धर्मनिरपेक्षता को माने उसके संविधान उसके बेसिक स्ट्रक्चर को बचाने की लड़ाई है।”

उनके भाषण का वह हिस्सा जिसे क्लिप करके सोशल मीडिया में प्रस्तुत किया गया है, वह 17:15वें मिनट से शुरू होता है। वास्तव में, इस हिस्से में, जब इसे स्वतंत्र रूप से सुना जाए तब भी, खानम द्वारा ‘इस्लामिक खलीफा/समाज’ की स्थापना को बढ़ावा नहीं दिया जाता है। वह कहती हैं, “यह विरोध हमें एक ऐसे समाज में भी ले जा रहा है जिसमें हर कोई शामिल होगा। इसलिए हम अपनी विचारधारा से समझौता नहीं कर रहे हैं, मैं इसे दोहराना चाहती हूं। हम विचारधारा से समझौता नहीं कर रहे हैं बल्कि अपनी रणनीति बदल रहे हैं।” यहाँ, शब्द ‘रणनीति’ का अर्थ, विरोध के एक ऐसे रूप से है, जिसमें धार्मिक नारेबाज़ी का त्याग और धर्मनिरपेक्ष आंदोलन को अपनाना है।

ऑल्ट न्यूज़ से बात करते हुए ख़ानुम ने कहा, “12 जनवरी को मुझे CAA पर एक कार्यक्रम में बोलने के लिए AMU में आमंत्रित किया गया था। एक्टिविस्ट मेधा पाटकर, इतिहासकार प्रो इरफान हबीब, और स्टूडेंट एक्टिविस्ट आयशा रेन मेरी सह-पैनेलिस्ट थीं। कई छात्र जोर दे रहे थे कि वे मुसलमानों के रूप में विरोध करना चाहते थे क्योंकि हमला उनकी मुस्लिम पहचान पर है। इसका विरोध करने के लिए, मैंने तर्क दिया कि हालांकि एक आदर्श समाज में, सभी को अपनी आस्थाओं और नारों के साथ, जिनमें धार्मिक भी शामिल हैं यदि वे उनसे प्रेरित महसूस करते हैं, विरोध में शामिल होने का स्वागत करना चाहिए, लेकिन, हम एक आदर्श समाज होने से बहुत दूर हैं और यह भारतीय संविधान और उसके धर्मनिरपेक्ष चरित्र को बचाने की एक बड़ी लड़ाई है। इसलिए, हमें विरोध प्रदर्शनों में केवल धर्मनिरपेक्ष नारे लगाने की अनुमति देनी चाहिए। चूंकि इन विरोधों को अंततः हमें एक ऐसे समाज की ओर ले जाना चाहिए जो वास्तव में समावेशी हो, इसलिए विरोध भी समावेशी होना चाहिए।”

इस पत्रकार ने अतीत में भी इसी तरह के विचार व्यक्त किए हैं। 30 दिसंबर की एक ट्वीट-श्रृंखला में, उन्होंने लिखा, “जबकि मुसलमानों के लिए अपनी धार्मिक मान्यताओं से ताकत प्रकट करना पूरी तरह से ठीक है, लेकिन यह बहुत सारे गैर-मुस्लिम सहयोगियों को अलग कर देगा… हम एक बेहद ध्रुवीकृत राजनीति में रहते हैं जो बड़े प्रचार प्रसार से चलती है । यहाँ दृश्य-प्रभाव महत्वपूर्ण है। धर्मनिरपेक्ष विरोधों में धार्मिक नारों के बुरे दृश्य-प्रभाव होते हैं। ” [मूल सन्देश – While it’s perfectly fine for Muslims to draw strength from their religious beliefs, it’ll end up alienating a lot of non-Muslim allies…we live in an extremely polarised polity that runs high on propaganda. Here optics matter. Religious slogans on secular protests are bad optics.]

ख़ानुम समावेशी और धर्मनिरपेक्ष विरोधों की वकालत कर रही थीं, इसे पत्रकार मरिया शकील ने भी समझाया था।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में आरफ़ा ख़ानुम द्वारा दिए गए एक भाषण को क्लिप करके गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया और भाजपा पदाधिकारियों और समर्थकों द्वारा सोशल मीडिया में प्रसारित किया गया। उन्होंने दावा किया कि यह वरिष्ठ पत्रकार इस्लामिक समाज की स्थापना को बढ़ावा दे रही थीं और जब तक ऐसा समाज नहीं बनता, तब तक प्रदर्शनकारियों से गैर मुस्लिमों के समर्थन का ढोंग बनाए रखने का आग्रह कर रही थीं। हालांकि, खानम पूरी तरह से इसके विपरीत बोल रही थीं। उन्होंने प्रदर्शनकारियों से आग्रह किया कि वे आंदोलन के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को बनाए रखने के लिए धार्मिक नारों का उपयोग ना करें।

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