पिछले महीने ABP न्यूज़ एंकर रुबिका लियाकत ने अपने शो ‘सीधा सवाल’ में एक वीडियो दिखाया जिसमें कुछ लोगों के समूह पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज किया जा रहा था. उन्होंने दावा किया कि बरेली, उत्तर प्रदेश के करमपुर स्थित इज़्ज़तनगर में शरारती तत्वों ने तबलीगी जमात के लोगों को खोज रही पुलिस पर हमला किया, जिसके कारण ये कार्रवाई करनी पड़ी. लियाकत ने कहा, “पुलिस इज़्ज़तनगर की इज़्ज़त रखने के लिए गई थी.” उन्होंने आगे कहा, “पुलिस वहां क्वारंटाइन का पालन कराने गई थी, लोगों को कोरोना वायरस से बचाने और जमातियों की खोज में गई थी. लेकिन उनके ऊपर पत्थर फेंके गए.

टीवी 9 भारतवर्ष दूसरा मुख्यधारा का चैनल था जिसने इसी तरह की खबर को कवर किया. चिंतित एंकर ने कहा, “कौन हैं जो हदें पार कर रहे हैं. क्या इनका कोई इलाज भी है? कैसे इस जाहिल जमात को नियंत्रित किया जा सकता है क्योंकि यही वो कौम है जिसने देश के मुसलमानों को बदनाम किया है”. इसके बाद चैनल पर एक वीडियो चलाया आया जिसमें पुलिसकर्मी लोगों को बाहर निकलने के लिए और सामने आने के लिए धमका रहे हैं. लाउड स्पीकर पर एक पुलिसकर्मी को दो पुलिसवालों पर हमले का ज़िक्र करते सुना जा सकता है.

वीडियो के साथ चैनल पर टिकर चल रहा होता है, जिसमें लिखकर आता है, “लॉकडाउन खत्म कराना है, जाहिल जमात पर काबू पाना है.” टीवी9 ने ये दिखाने की कोशिश की कि मुस्लिम संस्था से जुड़े लोग बरेली की घटना के पीछे थे.

दैनिक जागरण ने टीवी 9 और ABP न्यूज़ पर चलाये गए दोनों वीडियोज़ दिखाए. चैनल ने दावा किया कि पुलिसकर्मी बरेली के करमपुर चौधरी इलाके में तबलीगी जमात के लोगों की तलाश में गए थे. वहां स्थानीय लोगों ने पुलिस से झगड़ा किया और कोई भी जानकारी देने से इंकार कर दिया. चैनल ने दावा किया कि इसके बाद लोगों ने पुलिसकर्मियों पर हमला किया और नजदीकी थाना तबाह करने की कोशिश की.

यहां मीडिया के द्वारा 2 तरह के दावे किए गए.

1. ABP न्यूज़, दैनिक जागरण, वन इंडिया, रिपब्लिक भारत और एशियानेट न्यूज़ ने बताया कि बरेली पुलिस करमपुर चौधरी इलाके में तबलीगी जमात के लोगों की तलाश में पहुंची थी.

2. टीवी9 भारतवर्ष ने दिखाया कि पुलिसकर्मियों पर जमात के लोगों ने हमला किया.

फ़ैक्ट-चेक

दैनिक भास्कर की खबर में बरेली शहर के SP रविंदर कुमार का बयान है जिसमें वो कहते हैं, “करमपुर के लगभग 200-250 लोगों ने थाने पहुंचकर पुलिस के साथ बदसुलूकी की.” इसके बाद उन्होंने विवाद का कारण बताया जो मीडिया की बताई गई वजह से अलग है.

रविंदर कुमार ने आगे बताया, “मामले ने तूल तब पकड़ा जब हमारी चीता मोबाइल पुलिस ग्राउंड पर लॉकडाउन लगवाने गांव में (करमपुर चौधरी) पहुंची. पुलिस लोगों को बता रही थी कि लोग अपने घरों के अंदर रहें और कर्फ्यू न तोड़ें. केवल दो पुलिसकर्मियों को देखकर गांव वालों ने उन पर हमला कर दिया, तब वे थाने की तरफ भाग आए. गांव वालों ने थाने को घेर लिया और हिंसा शुरू कर दी.” कुमार ने बताया कि इसके बाद पुलिस वापस गांव गई और कुछ लोगों को गिरफ्तार किया. आखिर में उन्होंने बताया कि गांव वालों ने थाना जलाने की भी कोशिश की. उन्होंने कहा, “हम इस पर भी जांच कर रहे हैं कि क्या घटना में बाहरी लोग भी शामिल थे और उनमें से कोई कोरोना वायरस पॉजिटिव भी था.” खबर में एक मिनट पर बयान को सुना जा सकता है.

6 अप्रैल को बरेली पुलिस के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से SSP शैलेश पांडे का बयान ट्वीट किया गया था जिसमें उन्होंने कहा, “हमारी पुलिस की टीमें जिले के विभिन्न हिस्सों में लॉकडाउन का पालन कराने के लिए तैनात की गई हैं. हमारी चीता टीम करमपुर चौधरी गांव गई थी. युवा लोगों का एक समूह एक जगह इकट्ठा हुआ था जिन्हें पुलिसकर्मियों ने घर में रहने की सलाह दी. उन्हें वहां से हटाकर पुलिस की टीम वापस थाने आ गई थी. किसी ने गांव वालों को भड़काया और 70-80 लोगों की भीड़ थाने को घेर कर खड़ी हो गई. एक लड़के को पुलिस के सामने लाया गया और लोगों ने कहा इसे पुलिस ने मारा है. SHO ने उस लड़के और उसके परिवार को तुरन्त हॉस्पिटल पहुंचाया. जब डॉक्टरों ने जांच की तो पाया कि लड़के के शरीर पर कोई चोट के निशान नहीं हैं. इसके बाद हमें पता चला कि भारी संख्या में लोगों ने थाने को घेर लिया है. पुलिस ने मौके पर पहुंचकर ज़रूरी बलप्रयोग करके भीड़ को तितर बितर किया क्योंकि लॉकडाउन में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराना हमारी पहली जिम्मेदारी है. हमने अभी तक 43 लोगों को गिरफ्तार किया है.”

दोनों बयानों में पूरी तरह समानता नहीं है लेकिन दोनों ने ही यह नहीं कहा कि पुलिस तबलीगी जमात के लोगों की तलाश में गश्त कर रही थी या जिन लोगों ने पुलिस पर हमला किया वो इस्लामिक संस्था से जुड़े हुए थे.

7 अप्रैल को दी लल्लनटॉप ने खबर का फैक्ट चेक किया था जिसमें स्थानीय पत्रकारों ने दावे को झूठ बताया था. एक महीना बीत चुका है, लाखों दर्शकों तक पहुंच रखने वाले इनमें से किसी भी मुख्यधारा के मीडिया संस्थान ने न ही वह खबर हटाई, न ही झूठी खबर पर कोई स्पष्टीकरण दिया. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऊपर दिया गया मामला इकलौता नहीं है. टीवी9 भारतवर्ष ने हाल ही में एक गेम का वीडियो दिखाकर दावा किया था कि निजामुद्दीन मरकज़ के नीचे सुरंग है. चैनल ने इस बात का कोई सबूत नहीं दिया. ABP न्यूज़ ने बांद्रा में अप्रवासी मजदूरों के जुटने को मस्जिद की उकसाई भीड़ बताकर साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश की. रिपब्लिक भारत ने झूठा दावा किया कि तबलीगी जमात के सदस्य ने नियम तोड़े और मरने से पहले अपने परिवार को कोरोना वायरस से संक्रमित किया. मेनस्ट्रीम मीडिया जिसे ऐसे चुनौतीपूर्ण समय में जनता तक सही सूचना पहुंचाने के लिए आगे आना चाहिए, उसने लोगों को गुमराह किया है. मीडिया ने महामारी के दौरान मुस्लिम समुदाय को जिस तरह खलनायक दिखाने की कोशिश की है, इसे ठीक होने में बहुत साल लगेंगे. कभी मुस्लिम दुकानदारों को गली में पीटने, मुस्लिम समुदाय का बॉयकॉट होने के रूप में हमने इन अफ़वाहों का असर ज़मीन पर होते देखा है.

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About the Author

Pooja Chaudhuri is a researcher and trainer at Bellingcat with a focus on human rights and conflict. She has a Master's in Data Journalism from Columbia University and previously worked at Alt News.