“पेट्रोल-डीजल की कीमतें थोडा बढ़ा हैं और सभी विपक्षी पार्टियां विरोध कर रही हैं। रोहिंग्या बढ़कर 11 करोड़ हो गए हैं लेकिन हर कोई शांत है,” यह कथन फेसबुक पेज आई सपोर्ट नरेंद्र मोदी (I Support Narendra Modi) द्वारा पोस्ट किया गया है। इसे 28,000 बार लाइक और 21,000 बार शेयर किया गया है।

Social Tamasha

Posted by I Support Narendra Modi on Monday, 10 September 2018

आई सपोर्ट नरेंद्र मोदी के 1.5 करोड़ से अधिक फॉलोअर्स हैं और इसे विकास पांडे द्वारा चलाया जाता है, जिनकी सोशल मीडिया उपस्थिति पीएम मोदी सहित कई बीजेपी नेताओं के साथ उनकी निकटता का सबूत है।

यह वायरल दावा शुरू में सोशल तमाशा नाम से चल रहे एक फेसबुक पेज द्वारा प्रसारित किया गया था। इस लेख को लिखने के समय, इसकी शेयर गणना 3,000 थी।

रोहिंग्या पर सब चुप है, आखिर क्यों ?

Posted by Social Tamasha on Saturday, 8 September 2018

डोवाल फैन क्लब (Doval Fan Club) नामक एक फेसबुक पेज से उपर्युक्त दावे को थोड़ा-सा बदलकर इस कथा के साथ भी प्रसारित किया गया है- “डीजल पेट्रोल की कीमत 5 रुपये बढ़ी और आपने भारत बंद की घोषणा कर दी। लेकिन क्या वे 8 करोड़ बांग्लादेशी और रोहिंग्या आपके परिवार के सदस्य हैं जिनका आप समर्थन करते हैं? पाखंडी कांग्रेस।” इस पोस्ट के 3,700 से अधिक शेयर हैं।

रोहिंग्या पर सब चुप है, आखिर क्यों ?

Posted by Social Tamasha on Saturday, 8 September 2018

बीजेपी के विधायक टी. राजा सिंह ने भी इसी तरह के दावों को प्रसारित किया। उनके फेसबुक पोस्ट में 2,000 लाइक और 200 से ज्यादा शेयर हैं।

पेट्रोल डीजल 5रु महंगा हो गया तो भारत बंद।
लेकिन 8 करोड़ बांग्लादेशी रोहिग्या क्या तुम्हारे जीजा लगते है जो उनका समर्थन करते हो…???

Posted by Raja Singh on Tuesday, 11 September 2018

फेसबुक पेज और समूह – आई सपोर्ट ज़ी न्यूज (I Support Zee News), रोहित सरदाराना एंड सुधीर चौधरी फैन क्लब (Rohit Sardana and Sudhir Chaudhary Fan Club), भा.ज.पा.: मिशन 2019 (भा.ज.पा : Mission 2019), बीजेपी सोशल मीडिया (BJP Social Media), नमो अगेन इन 2019 में अपने 100 मित्रों को जोड़ें (NAMO Again In 2019 में अपने 100 मित्रों को जोड़ें), वोट 4 बीजेपी (Vote 4 BJP) और कई अन्य ने भी ऐसा दावा किया लेकिन “रोहिंग्या” शब्द का जिक्र नहीं किया। उन्होंने लक्षित किया कि वर्तमान में आठ करोड़ “बांग्लादेशी” भारत में रह रहे हैं। उनकी पोस्ट में कुल मिलाकर 11,000 बार शेयर हुए हैं।

कई व्यक्तिगत उपयोगकर्ताओं ने “बांग्लादेशियों” की संख्या 1.4 करोड़ से 11 करोड़ होने का दावा फेसबुक और ट्विटर दोनों पर प्रसारित की है।

झूठा दावा

यहां दो दावे हैं जिन्हें प्रमाणित करने की आवश्यकता है- पहला, भारत में रहने वाले रोहिंग्या की संख्या 11 करोड़ है और दूसरा, आठ करोड़ रोहिंग्या और बांग्लादेशी वर्तमान में देश में शरणार्थी हैं।

रोहिंग्या

रोहिंग्या एक भारतीय-आर्य आबादी है, जो मुख्य रूप से म्यांमार के राखीन राज्य में रहते हैं। बौद्ध बहुमत वाले देश में रोहिंग्या बड़ी संख्या में मुसलमान हैं और अपने ही देश में उत्पीड़न का सामना करते हैं। उनकी राज्यविहीनता ने उन्हें पड़ोसी देशों बांग्लादेश और भारत में भागने के लिए मजबूर कर दिया है।

जनवरी 2017 में इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, जिसे शरणार्थियों के संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर) द्वारा पुन: प्रकाशित किया गया था। जिसके अनुसार लगभग 14,000 रोहिंग्या शरणार्थी भारत में छः स्थानों में फैले हुए हैं- जम्मू, हरियाणा के मेवात जिले के नूह, दिल्ली, हैदराबाद, जयपुर और चेन्नई – और उनमें से 11,000 को भारतीय सरकार द्वारा शरणार्थी प्रमाणपत्र दिए गए हैं।

हालांकि, 2017 में केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री किरण ने रिरिजू संसद में यह जानकारी दी कि रोहिंग्याओं की संख्या 40,000 अनुमानित की गई है और देश उन्हें वापस भेजने का प्रयास कर रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि इनमें लगभग 16,000 औपचारिक रूप से यूएनएचसीआर से शरणार्थी के रूप में पंजीकृत थे।

हालांकि देश में रोहिंग्या प्रवासियों की सटीक संख्या का पता लगाना मुश्किल है, फिर भी यह संख्या 11 करोड़ जितनी अधिक नहीं हो सकती, क्योंकि म्यांमार की कुल जनसंख्या ही लगभग 5.3 करोड़ है और इसकी आंतरिक रूप से विस्थापित रोहिंग्या आबादी करीब 10 लाख है।

इसके अलावा, सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के महानिदेशक के.के. शर्मा ने सितंबर में कहा था कि हाल के दिनों में म्यांमार के प्रवासियों का कोई बड़े पैमाने पर प्रवेश नहीं हुआ है।

बांग्लादेशी

1971 के बांग्लादेश की आजादी के युद्ध के बाद, लाखों बांग्लादेशियों ने पाकिस्तानी सेना के उत्पीड़न से भागने की कोशिश की। 1971 में द न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित एक लेख में कहा गया कि दस हजार बांग्लादेशी लोग, जिनमें से अधिकतर हिंदू थे, भारत चले गए। भारत सरकार ने अनुमान लगाया कि यह प्रवेश साठ से सत्तर लाख होगा।

2017 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन रिपोर्ट, में भारत में रहने वाले बांग्लादेशी प्रवासियों की संख्या 2000 के मुकाबले 8 लाख कम होकर 3.1 मिलियन (31 लाख) बताई गई है।

इस साल सितंबर में भारत और बांग्लादेश के बीच सीमा सुरक्षा वार्ता के हिस्से के रूप में, सीमा गार्ड बांग्लादेश (बीजीबी) के एक प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि देश ने हाल के दिनों में सीमा पार करने वाले नहीं पकड़े हैं। लाइवमिंट की रिपोर्ट के अनुसार, बीजीबी के प्रतिनिधि मेजर जनरल मो. शाफीनुल इस्लाम ने कहा, “बांग्लादेश से भारत में बड़े पैमाने पर घुसपैठ या प्रवासन नहीं है क्योंकि उस देश के निवासी अब बहुत अच्छी जिंदगी जी रहे हैं और कुछ जो सीमा पार करते हैं, पुराने सांस्कृतिक और पारिवारिक संबंधों के कारण ऐसा करते हैं।”

भारत में रहने वाले सभी देशों के शरणार्थियों की कुल संख्या – 52 लाख

संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में रहने वाले सभी देशों के शरणार्थियों की कुल संख्या 5.2 मिलियन (52 लाख) है। इसमें अपने देश के अलावा किसी अन्य देश में रहने वाले शरणार्थियों और आर्थिक प्रवासियों सहित सभी व्यक्ति शामिल हैं।

Source: United Nations

हाल ही में, भारत सरकार ने असम के नागरिकों की ड्राफ्ट सूची से 40 लाख को अलग कर दिया, जिनमें से अधिकतर मुसलमान थे। मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया कि इन लोगों को अपनी नागरिकता साबित करने का उचित मौका दिया जाएगा, लेकिन प्रचलित भावना ने उन्हें “अवैध” बांग्लादेशी प्रवासी माना। सरकार को अभी इन लोगों की पहचान का पता लगाना है, जो अभी तक “बिना कागज के” हैं और अवैध नहीं हैं।

यह कहने के लिए पर्याप्त तथ्य हैं कि भारत में 8-11 करोड़ रोहिंग्या और/या बांग्लादेशी शरणार्थियों के होने के सोशल मीडिया पर किए जा रहे दावे निराधार हैं। इसके अलावा, किसी के द्वारा यह पता लगा लेना कि लगभग 9% भारतीय आबादी अवैध प्रवासियों की है, अपने-आप में हास्यास्यपद बात है।

भारत में शरणार्थियों के बारे में गलत जानकारी सोशल मीडिया पर आम है। खौप फ़ैलाने के मकसद से लोगों में शरणार्थियों की संख्या अक्सर बढ़ा कर बताई जाती है। विभिन्न वेबसाइट में चलने वाले निराधार दावों के साथ, देश में शरण मांगने वाले प्रवासियों की संख्या से अवगत रहना उचित है। इंटरनेट के ज़माने में सच्चाई, अफवाहें और झूठी जानकारी में छिप जाती है और इस तरह लोग गलत ख़बरों के शिकार हो जाते हैं।

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About the Author

Pooja Chaudhuri is a senior editor at Alt News.