कई सोशल मीडिया यूज़र्स एक वेबसाइट, लेटेस्ट लॉज़ का 29 अक्टूबर का एक आर्टिकल शेयर कर रहे हैं (आर्टिकल का आर्काइव लिंक). इस आर्टिकल के मुताबिक, जम्मू एवं कश्मीर को संयुक्त राष्ट्र (UN) की ‘अनसुलझे विवादों (unresolved disputes)’ की सूची से हटा दिया गया है. इसमें आगे UN में पाकिस्तान के राजदूत, अमजद हुसैन बी सियाल का बयान कोट किया गया है. इस आर्टिकल को ट्विटर पर काफ़ी शेयर किया जा रहा है. कई ट्वीट्स में लोग केवल दावे को शेयर कर रहे हैं.

भाजपा समर्थक गौरव प्रधान और अभिनेता परेश रावल (डिलीट किये हुए ट्वीट का आर्काइव यहां देखें) ने भी ये दावा शेयर किया. परेश रावल ने लिखा, “@narendramodi के कारण…जम्मू एवं कश्मीर को यूएन की अनसुलझी विवादों वाली लिस्ट से हटा दिया गया, ये पाकिस्तान के लिए झटका है जो इस मामले में UN के हस्तक्षेप की मांग कर रहा था.” ऑल्ट न्यूज़ ने गौरव प्रधान और परेश रावल द्वारा शेयर की गयी ग़लत सूचनाओं का पहले भी फै़क्ट-चेक किया है.

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लेखक संजय दीक्षित (आर्काइव लिंक) ने इकॉनमिक टाइम्स के पिछले साल का आर्टिकल भी शेयर किया जिसमें यही दावा किया गया है.

10 साल पुरानी ‘ख़बर’ की जा रही है शेयर

ऑल्ट न्यूज़ को यूनाइटेड नेशन्स की ऑफ़िशियल वेबसाइट पर ऐसी कोई ‘अनसुलझे विवादों की सूची’ नहीं मिली. इसके बावजूद कई मीडिया ऑर्गनाइज़ेशंस ने इसके बारे में रिपोर्ट किया था जिसमें द हिन्दू, NDTV और इकॉनमिक टाइम्स शामिल हैं. UN के सूत्र, जो यहां की अच्छी-ख़ासी जानकारी रखते हैं, ने बताया कि ये सूचना ग़लत है. उन्होंने इस मुद्दे के बारे में विस्तार से बताया. हम अपने फै़क्ट-चेक में नीचे लिखी बातों को सत्यापित करेंगे.

1. वायरल आर्टिकल एक दशक पुराना है.

2. मीडिया ने 2010 जनरल असेंबली सेशन के बारे में गलत जानकारी दी थी

वायरल आर्टिकल एक दशक पुराना है

कीवर्ड सर्च करनेपर हमें द हिन्दू (आर्काइव लिंक), NDTV (आर्काइव लिंक) और द इकॉनमिक टाइम्स (आर्काइव लिंक) के आर्टिकल्स मिले जिनकी हेडिंग है, ‘ जम्मू एवं कश्मीर को संयुक्त राष्ट्र के अनसुलझे विवादों की सूची से हटा दिया गया.’ ये रिपोर्ट्स प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया की जनरल असेंबली सेशन 2010 पर रिपोर्ट की कॉपी थीं.

हमने लेटेस्ट लॉज़ के आर्टिकल की द हिन्दू से तुलना की और पाया कि दोनों 94 फ़ीसदी तक मेल खाते हैं.

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मीडिया ने 2010 के जनरल असेंबली सेशन के बारे में ग़लत रिपोर्ट किया

अगर लेआउट स्टाइल को छोड़ दें तो द हिन्दू और इकॉनमिक टाइम्स के आर्टिकल एक जैसे हैं. वहीं NDTV की रिपोर्ट लम्बी है और इसमें UN में यूके के राजदूत, मार्क लायल ग्रांट को भी कोट किया गया है.

ग्रांट ने 2010 की जनरल असेंबली में कहा, “मध्यपूर्व, सायप्रस और पश्चिमी सहारा समेत कुछ दीर्घकालिक स्थितियां अभी तक नहीं सुलझ पायी हैं. इनमें नेपाल और गिनी बिसाऊ भी शामिल हैं, जिसमें परिषद ने हाल के वर्षों में हस्तक्षेप करना शुरू किया है.”

मार्क ग्रांट के संबोधन के बाद UN में पाकिस्तान के दूत, अमजद हुसैन बी सियाल ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “जम्मू एवं कश्मीर का नाम अनसुलझे दीर्घकालिक परिस्थितियों के सन्दर्भ में नहीं लिया गया था.” ये बयान एक कारण हो सकता है कि हेडलाइंस में कहा गया, ‘जम्मू एवं कश्मीर को यूएन की अनसुलझी विवादों वाली लिस्ट से हटा दिया गया.’ 2010 जनरल असेंबली सेशन के बारे में सबसे विस्तार से द इंडियन एक्सप्रेस (आर्टिकल का आर्काइव लिंक) में जानकारी दी गयी है जिसमें यही हेडलाइन है.

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यूएन से सूत्र ने बताया, “इस आर्टिकल का संबंध वार्षिक बैठक से है जब जनरल असेंबली को सुरक्षा परिषद की रिपोर्ट सौंपी जाती है. उस समय यूके के राजदूत परिषद के अध्यक्ष थे. उन्होंने संबोधन की शुरुआत कुछ अनसुलझे मुद्दों की सूची से की थी. पाकिस्तान ने उनपर जम्मू एवं कश्मीर का नाम नहीं लेने के लिए कटाक्ष किया था.”

ऑल्ट न्यूज़ ने संयुक्त राष्ट्र के 65वीं जनरल असेंबली अधिवेशन की 48वीं और 49वीं बैठक पर 11 नवम्बर, 2010 का प्रेस रिलीज़ चेक किया. इसमें मार्क लायल ग्रांट का पूरा संबोधन है. भारत का प्रतिनिधित्व एमपी भुबनेश्वर कालिता ने किया था. यूएन के दस्तावेज़ में मार्क को सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष बताया गया है. जैसा कि एक्सपर्ट्स ने विस्तार से बताया है, इस पद पर हर महीने अध्यक्ष को बदला जाता है. ये बैठक दो दिन की होती है. अमजद हुसैन बी सियाल की प्रतिक्रिया 12 नवम्बर, 2010 की प्रेस रिलीज़ में मिलती है. किसी भी दस्तावेज़ में ‘यूएन के तहत विवादों की सूची’ नहीं लिखा गया है, जैसा कि भारतीय मीडिया ने रिपोर्ट किया था.

सूत्र ने आगे कहा, “हालांकि, पॉइंट ये है कि सुरक्षा परिषद के एजेंडा में जम्मू एवं कश्मीर कभी नहीं रहा. ये हमेशा ‘भारत-पाकिस्तान का सवाल’ रहा है. इसके अलावा, इस एजेंडा पर परिषद की अंतिम औपचारिक बैठक भी नवंबर 1965 में हुई, यहां तक ​​कि महासचिव ने परिषद को दी जाने वाली अपने विषयों की सूची पर नियमित रिपोर्ट में इसे अलग श्रेणी में रखा है. भारत/पाकिस्तान का प्रश्न अलग श्रेणी में रखा गया है जिसे पिछले 3 सालों में विचार में नहीं लाया गया है (लिंक देखें).” इस दस्तावेज़ के मुताबिक, भारत से जुड़ी आखिरी एंट्री 1971 की है – ‘भारत/पाकिस्तान उपमहाद्वीप की परिस्थिति.’ इस साल (1971 में) भारत-पाकिस्तान का युद्ध हुआ था और पूर्वी पाकिस्तान आज़ाद होकर बांग्लादेश बना.

सूत्र ने आगे बताया, “ये सूची एक व्यवस्था के रूप में समझी जाती है जहां परिषद उन विषयों को अलग करती है जो सक्रिय हैं और जो व्यावहारिक उद्देश्यों के हिसाब से लगभग ख़त्म चुके हैं. ये भी समझा जाना चाहिए कि इस सूची में इस मुद्दे के मौजूद रहने का एकमात्र कारण यह है कि पाकिस्तान हर साल जनवरी में ये मुद्दा लिस्ट में शामिल करने के लिए एक पत्र लिखता है. नियम कहते हैं कि केवल एक देश से भी ऐसा पत्र मुद्दे को परिषद में बनाये रखने के लिए काफ़ी है.”

2010 जनरल असेंबली के एक सेशन पर जारी प्रेस नोट को मीडिया ने भ्रामक हेडलाइन के साथ पब्लिश किया- ‘जम्मू एवं कश्मीर को संयुक्त राष्ट्र की अनसुलझे विवादों की सूची से हटा दिया गया.’ इस दावे को हाल ही में एक वेबसाइट, लेटेस्ट लॉज़ ने पब्लिश किया और सोशल मीडिया यूज़र्स ने इसे शेयर किया. इस बारे में जानकारी रखने वाले हमारे यूएन के सूत्र के मुताबिक इस अंतर्राष्ट्रीय संस्था में कोई भी ऐसी ‘विवादों की सूची’ नहीं है.

जम्मू एवं कश्मीर पर भारत का रवैया

कश्मीर पर भारतीय विदेश मंत्रालय के एक दस्तावेज़ के मुताबिक, जम्मू और कश्मीर का भारत में विलय 26 अक्टूबर, 1947 को पूरा हुआ था. अक्टूबर 2020 में, संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि, टीएस तिरुमूर्ति ने द प्रिंट को बताया कि भले ही पाकिस्तान चीन की शह पर आर्टिकल 370 हटाये जाने के बाद से ये मुद्दा लगातार उठाता आ रहा है, संयुक्त राष्ट्र कश्मीर पर चर्चा करने के लिए कोई फ़ोरम नहीं है.

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🙏 Blessed to have worked as a fact-checking journalist from November 2019 to February 2023.