ऑल्‍ट न्‍यूज को प्रमुख दक्षिणपंथी थिंक टैंक, इंडिया फ़ाउंडेशन की वेबसाइट पर साहित्‍यिक चोरी वाली सामग्री का भंडार मिल गया। इंडिया फ़ाउंडेशन एक स्‍वतंत्र शोध केंद्र है जो भारतीय राजनीति से संबंधित मुद्दों पर भारतीय राष्‍ट्रवादी दृष्टिकोण को स्पष्ट करने का प्रयास करता है। इसके निदेशकों की मशहूर व्यक्तियों की सूची में सुरेश प्रभु, निर्मला सीतारमण, एमजे अकबर, जयंत सिन्हा, स्‍वप्‍न दासगुप्‍ता, शौर्य डोभाल और राम माधव जैसे लोग शामिल हैं। इसका प्रकाशन भी इतना ही प्रभावशाली है जैसे ‘यूएस-चीन व्‍यापार युद्ध और भारत पर इसके प्रभाव’, ‘भारत और ब्रिक्‍स: ब्रिक्‍स सहयोग के दूसरे ”सुनहरे दशक” में प्रगति के लिए मिलजुलकर काम करना’, ‘भारतीय प्रशांत क्षेत्र के सुरक्षा नजरिये और आईओआर में भारत के जियो स्ट्रटेजिक हित’, ‘शी जिनपिंग: आजीवन राष्‍ट्रपति’, और ‘मुक्त और खुले भारत-प्रशांत क्षेत्र के लिए चतुर्पक्षीय भागीदारी’। यहाँ जिन पाँच लेखों का जिक्र किया गया है, उनके प्रभावशाली शीर्षक के अलावा उनमें एक बात और समान है – उन्हें अलग-अलग स्तर की साहित्यिक चोरी (प्लेजरिज़्म) करके संकलित किया गया है। साहित्यिक चोरी की इस सामग्री का स्रोत सिद्धार्थ सिंह नामक लेखक से आता हुआ प्रतीत होता है।

हमने बौद्धिक बेईमानी की शर्मनाक सीमा को प्रकट करने के लिए पांच लेखों का विश्‍लेषण किया जिनमें किसी अन्य व्‍यक्ति के शब्‍दों और विचारों को लेखक के शब्‍द और विचार के तौर पर प्रस्तुत किया गया है।

केस स्टडी 1: ‘यूएस-चीन व्यापार युद्ध और भारत पर इसके असर’

‘यूएस-चीन व्यापार युद्ध और भारत पर इसके प्रभाव’ शीर्षक वाला यह लेख पूरी तरह से कई स्रोतों से सीधे-सीधे कॉपी-पेस्ट करने का मामला है। इस लेख के प्रत्येक पैराग्राफ को किसी अन्य जगह से शब्दश: कॉपी किया गया है।

इस लेख के शुरू में कहा गया है ‘अमेरिका और चीन के बीच एक व्यापार युद्ध की आग सुलग रही है, इसमें कभी भी आग भड़कने का वैश्विक राजनीति और आर्थिक व्‍यवस्‍था पर बड़ा असर पड़ेगा।’ साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्‍ट के विचार लेख ”अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध से बीजिंग को नई विश्‍व व्यवस्‍था बनाने का ऐतिहासिक अवसर मिला है” से यह वाक्‍य शब्दश: चोरी किया गया है, इसे तियान फेइलोंग ने लिखा है। जब आप आगे पढ़ते हैं तो आपको अहसास होता है कि केवल पहला वाक्‍य ही नहीं बल्कि इस लेख का पहला पैराग्राफ ही साहित्यिक चोरी का उदाहरण है।

दूसरा पैराग्राफ भी सदर्न कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के यूएस-चीन संस्‍थान के प्रकाशन से चुराया गया है।

इसके बाद लेखक चीन-यूएस व्यापार समस्याओं पर कॉन्‍ग्रेशनल रिसर्च सर्विस के प्रकाशन की तरफ जाता है और वहाँ से दो पैराग्राफ को शब्दश: कॉपी करता है। शुरुआती पैराग्राफों के समान, मूल स्रोत के प्रति किसी भी तरह का आभार या कृतज्ञता नहीं दर्शायी गई है।

स्पेनिश थिंक टैंक, एलकानो रॉयाल इंस्टीट्यूट के लेख को डबल्‍यूटीओ हिस्से के लिए कॉपी किया गया है।

जब भारत पर व्‍यापार युद्ध के असर के बारे में लिखने की बात आती है तो लेखक अपने देश से जुड़े स्रोत को चुनता है। भारत पर असर का पूरा खंड अनिल ससी द्वारा लिखे गए इंडियन एक्‍सप्रेस के लेख से कॉपी किया गया है।

जब ट्विटर यूज़र रूपा सुब्रमण्‍या ने इस साहित्यिक चोरी के बारे में इशारा किया तो इंडिया फ़ाउंडेशन ने यह आर्टिकल हटा लिया था। लेखक ने रूपा सुब्रमण्‍या को जवाब देते हुए यह दावा किया कि यह सिर्फ छूटे हुए फुटनोट का मामला था।

हालांकि यह मामला केवल किसी संदर्भ का उल्‍लेख करने से आगे का मामला था क्‍योंकि पाठ को उद्धरण चिह्नों के बीच रखे बगैर और स्रोत का आभार व्‍यक्‍त किए बगैर, पूरा खंड ही अक्षरश: कॉपी किया गया था। वास्‍तव में, हमें इंडिया फ़ाउंउेशन की वेबसाइट पर इन लेखक के दूसरे लेख भी मिले जिनमें इसी तरह का पैटर्न दिखाई देता है।

केस स्टडी 2: ‘भारत और ब्रिक्‍स: ब्रिक्‍स सहयोग के दूसरे ”सुनहरे दशक” में प्रगति के लिए मिलजुलकर काम करना’

इस लेख को भी को कई स्रोतों से कॉपी किया गया है। 15 सितंबर, 2017 को इस लेख को इंडिया फ़ांडेशन ने ट्वीट किया गया था। यह साहित्यिक चोरी का एक शर्मनाक स्तर दिखाता है, जिसमें न केवल एक संपादकीय बल्कि ब्रिक्‍स शिखर सम्‍मेलन में दिए गए भाषणों से भी शब्‍द लिये गए हैं जबकि इसके लिए कोई स्रोत के प्रति कोई आभार व्‍यक्‍त नहीं किया गया है।

एक खंड को टाइम्‍स ऑफ इंडिया के संपादकीय से कॉपी किया गया है जिसका शीर्षक है ‘ज़ियामेन में अभूतपूर्व सफलता: ब्रिक्‍स घोषणा में पहली बार पाकिस्‍तान स्थित आंतंकवादी समूहों की भर्त्‍सना की गई’।

ब्रिक्‍स शिखर सम्‍मेलन 2017 में प्रधानमंत्री मोदी के भाषण के शब्‍दों को इस लेख में बतौर लेखक के शब्‍दों के प्रस्‍तुत किया गया है।

इस लेख का निष्‍कर्ष अधिकांशत: ब्रिक्‍स ज़ियामेन शिखर सम्‍मेलन के पूर्ण अधिवेशन में दिए गए चीनी राष्‍ट्रपति ज़ी जिनपिंग के भाषण से लिया गया है।

केस स्टडी 3: ‘भारतीय प्रशांत क्षेत्र के सुरक्षा नजरिये और आईओआर में भारत के जियो स्ट्रटेजिक हित’

अन्‍य स्रोतों के अलावा, इस लेख को वर्ष 2014 के आस्‍ट्रेलियन नेवी के प्रकाशन से कॉपी किया गया है जिसका शीर्षक है ‘भारतीय प्रशांत क्षेत्र की समुद्रीय अर्थव्यवस्‍था में व्‍यापार करने की क्षमता को सुरक्षित रखना’ जिसमें हिंद महासागर नौसैनिक संगोष्ठी (Indian Ocean Naval Symposium-IONS) की कार्यवाही को शामिल किया गया है।

इंडिया फ़ाउंडेशन को कॉपीराइट नोटिस पर ध्‍यान देना चाहिए जो इस प्रकाशित सामग्री में शामिल है और आवश्‍यक कार्रवाई करनी चाहिए क्‍योंकि यह न केवल आर्टिकल के हिस्‍सों को पुनर्प्रस्‍तुत करता है बल्कि किसी भी स्रोत का स्‍तरीय उल्‍लेख नहीं करता है।

“© कॉपीराइट कॉमनवेल्‍थ ऑफ़ आस्‍ट्रेलिया 2014

यह कृति कॉपीराइट के अधीन है। कॉपीराइट अधिनियम 1968 में दी गई अनुमति के अनुसार, और स्रोत का स्‍तरीय उल्‍लेख करते हुए, अध्‍ययन, शोध, आलोचना या समीक्षा के उद्देश्‍य से किसी भी निष्‍पक्ष व्‍यवहार के अतिरिक्‍त, किसी भी भाग को लिखित अनुमति के बिना पुनर्प्रस्‍तुत नहीं किया जा सकता है। पूछताछ के लिए निदेशक, सी पावर सेंटर – आस्‍ट्रेलिया से संपर्क करें”

इसके निष्‍कर्ष में दिए गए शब्‍द कर्नल संजीवे सोकिंदा के एक लेख से कॉपी किए गए हैं जिसे सेंटर फॉर डिफेंस एंड स्‍ट्रेटेजिक स्‍टडीज (सीडीएसएस) द्वारा प्रकाशित किया गया था, यह आस्‍ट्रेलियन डिफेंस कॉलेज का शैक्षिक संस्‍थान है। हालांकि इंडिया फ़ाउंडेशन के आर्टिकल के अंत में संदर्भों का उल्‍लेख दिया गया है लेकिन इस आर्टिकल का कोई उल्‍लेख नहीं है।

केस स्‍टडी 4: ‘शी जिनपिंग: आजीवन राष्‍ट्रपति’

इंडिया फ़ाउंडेशन ने 27 फरवरी, 2018 को ट्वीट किया था शी जिनपिंग के बारे में ‘शी जिनपिंग – आजीवन राष्‍ट्रपति’  नामक इस लेख के हिस्‍से दि गार्जियन के ‘डिक्टेटर फॉर लाइफ’ से लिये गये हैं जोकि एक दिन पहले 26 फरवरी, 2018 को प्रकाशित हुआ था।

केस स्टडी 5: ‘मुक्त और खुले भारत-प्रशांत क्षेत्र के लिए चतुर्पक्षीय भागीदारी’

इस आर्टिकल को 6 फरवरी, 2018 को इंडिया फ़ांउडेशन ने ट्वीट किया था। इस आर्टिकल के कुछ हिस्‍से वर्ष 2017 के लिए विदेश नीति से संबंधित एक श्‍वेतपत्र से उठाए गए थे जिसे आस्‍ट्रेलिया सरकार ने प्रकाशित किया था।

कुछ अन्‍य अंश ऑब्‍ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन नामक शोधपत्र से लिये गये हैं जिन्‍हें 30 मई, 2017 को योगेश जोशी ने लिखा था।

ऑल्ट न्यूज़ के अंग्रेजी में लेख के बाद इंडिया फाउंडेशन के निदेशक राम माधव ने ट्वीट किया, ” साहित्यिक चोरी की बात ऑल्ट न्यूज़ द्वारा हमारे ध्यान में लाया गया है। तत्काल कार्रवाई की गई। उन्हें उनके लेखों के साथ हटा दिया गया है।”

यह निराशाजनक बात है कि एक उच्‍चस्‍तरीय थिंक टैंक जिसके निदेशकों में केंद्रीय मंत्री शामिल हैं और जो स्‍वतंत्रता, वस्‍तुगतता और शैक्षिक दृढ़ता के सिद्धांतों पर टिका होने का दावा करता है, उसने ऐसे खुले रूप से बेईमानी वाले काम को प्रकाशित और प्रसारित होने दिया।

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