सुदर्शन न्यूज़ ने 11 सितम्बर को केन्द्रीय लोक सेवा आयोग (UPSC) परीक्षा में मुस्लिम समुदाय से जुड़े लोगों की ‘घुसपैठ’ पर अपना विवादित शो ‘UPSC जिहाद’ चलाया. दिल्ली हाईकोर्ट ने इस पर स्टे लगा दिया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस ऑर्डर को पलटते हुए कार्यक्रम को चलाने की अनुमति दे दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने प्री-ब्रॉडकास्ट बैन से इनकार कर दिया था. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच फ़िलहाल इस भड़काऊ शो के खिलाफ़ दायर याचिका की सुनवाई कर रही है. कोर्ट ने 16 सितम्बर को इसके बाकी एपिसोड्स के ब्रॉडकास्ट पर रोक लगा दी थी. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट का किसी चीज़ पर स्टे लगाना न्यूक्लियर मिसाइल जैसा है. लेकिन कोई भी इस पर कार्रवाई नहीं कर रहा था इसलिए हमें दखल देना पड़ा.”
सुदर्शन न्यूज़ के एडिटर इन चीफ़ सुरेश चव्हाणके ने इस शो को ‘इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज़्म’ का तमगा दिया और ‘ऐंटी-नेशनल’ गतिविधियों के बारे में खुलासा करने का दावा किया. लेकिन 1 घंटे के इस शो में ग़लत सूचनाओं का सहारा लेकर कांस्पिरेसी थ्योरीज़ (साज़िश की मनगढ़ंत कहानियां) को वैधता देने की कोशिश की गयी.
चव्हाणके ने शो में बताया की किस तरह परीक्षा में सरकार मुस्लिम कैंडिडेट्स को फ़ायदा पहुंचाती है और इससे हिन्दू धर्म से जुड़े लोगों का क्या नुकसान होता है.
पहला ग़लत दावा : मुस्लिम कैंडिडेट्स में अचानक बढ़ोत्तरी
चव्हाणके का पूरा शो इस एक मुद्दे पर आधारित था कि UPSC परीक्षा में पहले की अपेक्षा में अब ज़्यादा मुस्लिम कैंडिडेट्स अप्लाई करने लगे हैं जिससे पता चलता है कि भारतीय नौकरशाही में प्लानिंग के तहत घुसपैठ की जा रही है. UPSC 2019 के परिणाम 4 अगस्त, 2020 को आये थे. परीक्षा पास करने वाले कुल 829 कैंडिडेट्स में 42 मुस्लिम थे. यानी, केवल 5%. टॉप 100 कैंडिडेट्स में मात्र 1 मुस्लिम नाम देखा गया.
UPSC वेबसाइट के पिछले 5 साल के आंकड़े बताते हैं कि मुस्लिम क्वालिफ़ायर्स में अचानक से कोई भारी बढ़त नहीं हुई है बल्कि ये 3% से 5% के बीच ही रही है. भर्ती की संख्या भी हर साल एक नहीं होती है. नीचे दिया गया ग्राफ़ 2015 से 2019 के बीच में परीक्षा पास करने वालों में मुस्लिम क्वालिफ़ायर्स की संख्या बता रहा है.
2015 में कुल 1078 क्वालिफ़ायर्स में 36 मुस्लिम थे. 2016 में ये संख्या 50 हो गयी वहीं भर्तियों की संख्या बढ़कर 1099 हो गयी. उसके बाद 2017 में कुल 990 क्वालिफ़ायर्स में 52 मुस्लिम थे और 2018 में ये संख्या 28 पर आ गयी. इस वर्ष भर्ती संख्या भी कम होकर 759 हो गयी थी.
यानी, सिर्फ़ 2017 में ही सिविल सर्विसेज़ परीक्षा में मुस्लिम क्वालिफ़ायर्स की संख्या में थोड़ा इज़ाफ़ा हुआ था. शो में 20:15 मिनट पर चैनल ने बड़ी ही चालाकी के साथ 2018 का आंकड़ा स्किप कर दिया जिसमें पिछले साल के मुकाबले संख्या में गिरावट देखी जा सकती थी.
दूसरा ग़लत दावा : मुस्लिम कैंडिडेट्स को मिल रही उम्र में छूट
सुदर्शन न्यूज़ ने दावा किया कि हिन्दू कैंडिडेट्स की आयु सीमा 32 वर्ष है और OBC मुस्लिम के लिए ये 35 वर्ष हो जाती है.
केन्द्रीय लोक सेवा आयोग के 12 फ़रवरी, 2020 को जारी नोटिफ़िकेशन में सभी कैंडिडेट्स की निचली आयु सीमा 21 साल है. ऊपरी आयु सीमा 1 अगस्त, 2020 तक 32 साल है. इसमें सभी केटेगरी में अलग-अलग तरीके से छूट दी गयी है. अनुसूचित जाती (SC) या अनुसूचित जनजाति (ST) की ऊपरी आयु सीमा में अधिकतम 5 साल की और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए अधिकतम 3 साल की छूट है.
इसके अलावा, रक्षा सेवाओं, कमीशंड ऑफ़िसर और विकलांग कैंडिडेट्स के लिए भी उम्र में रियायतें दी गयीं हैं. इस नोटिफ़िकेशन में आगे लिखा है, “जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग अनुच्छेद नियम 6(ब) [जो कुछ केटेगरी को ऊपरी आयु सीमा में रियायतें देता है] के किसी भाग के अंदर भी आते हैं” उन्हें दोनों केटेगरी के तहत उम्र में रियायत दी जाएगी.
मुस्लिम कैंडिडेट्स में पिछड़े वर्ग के लोग OBC को दी गयी ऊपरी आयु सीमा की रियायतें लेने के लिए एलिजिबल होते हैं. हालांकि, OBC में केवल मुस्लिम अल्पसंख्यक ही नहीं आते, इसमें हिन्दू भी शामिल हैं. ये बताना कि OBC का लाभ अकेले मुस्लिम कैंडिडेट्स उठाते हैं, सरासर ग़लत है.
गौर करने वाली बात है कि ये समुदाय SC या ST में अप्लाई नहीं करता. संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 का तीसरा पैराग्राफ़ कहता है, “पैराग्राफ़ 2 में जो भी लिखा है उसके बावजूद, ज़रुरी नहीं कि हिन्दू धर्म के अलावा किसी और धर्म को मानने वाले (सिक्ख और बौद्ध धर्म) लोगों को अनुसूचित जाति में रखा जाएगा.”
जनवरी की शुरुआत में ही चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया (CJI) शरद अरविन्द बोबडे ने ‘ईसाइयों और मुस्लिम SC और ST समुदाय के सामाजिक बहिष्कार को बड़ा मुद्दा बताया था जिसमें कोर्ट के हस्तक्षेप की ज़रुरत थी.’ उन्होंने ये बात नेशनल काउंसिल ऑफ़ दलित क्रिश्चिययंस (NCDC) की एक याचिका के बाद कही. इस याचिका में कहा गया कि SC/ST स्टेटस धर्म के आधार पर नहीं देना चाहिए. ‘अछूत’ हिन्दुओं के वंशज दलित मुस्लिम और दलित क्रिश्चियन SC केटेगरी में लाये जाने की मांग कर रहे हैं जिसका दलित हिन्दू विरोध करते आये हैं.
इस पूरे शो के दौरान सुदर्शन न्यूज़ ने हिन्दुओं की तुलना जनरल केटेगरी से की और मुस्लिमों को OBC बताते हुए दर्शकों को भटकाया कि मुस्लिमों को परीक्षा में फ़ायदा पहुंचाया जाता है. इस रिपोर्ट में किये गये 6 दावों के फ़ैक्ट चेक में से 4 इसी बात पर आधारित हैं. वहीं सच्चाई ये है कि हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही जनरल और OBC केटेगरी में आते हैं. इसलिए जहां हर वर्ग के लोगों को एक ही तरह के लाभ दिए जा रहे हों वहां इस तरह की तुलना नहीं की जा सकती है.
तीसरा ग़लत दावा : मुस्लिमों को ज़्यादा बार परीक्षा देने का मौका
चैनल ने ये भी दावा किया कि मुस्लिमों को ज्यादा बार ये परिक्षा अटेम्पट करने का फ़ायदा मिलता है. सुदर्शन न्यूज़ के अनुसार हिन्दुओं को 6 जबकि मुस्लिमों को 9 अटेम्पट मिलते हैं.
UPSC नोटिफ़िकेशन धर्म के अधार पर अटेम्पट की संख्या नहीं बताता. इसमें साफ़ लिखा है कि OBC, SC और ST के अलावा सभी कैंडिडेट 6 अटेम्पट दे सकते हैं और विकलांग कैंडिडेट्स को 9 मौके मिलते हैं. ये भी ध्यान दिय जाये कि जनरल केटेगरी में आने वाले मुस्लिम कैंडिडेट्स पर भी 6 अटेम्पट का नियम लागू होता है.
चौथा ग़लत दावा : मुस्लिमों के क्वालिफ़ाइंग मार्क्स बाकियों से कम
शो में करीब 45:30 मिनट पर सुरेश चव्हाणके ने दावा किया कि मुस्लिम कैंडिडेट्स के लिए कट-ऑफ़ मार्क्स कम होते हैं. उन्होंने मुस्लिमों और हिन्दुओं के 2009 के क्वालिफ़ाइंग मार्क्स की तुलना की (इसका कारण वो ही जानें) जैसे कि गैर-मुस्लिम SC/ST और OBC में आते ही न हों.
UPSC हर साल प्रीलिम्स और मेन्स दोनों के लिए कट-ऑफ़ मार्क्स जारी करता है. नीचे 2019 की सिविल सेवा परीक्षा की विभिन्न केटेगरी के लिए निर्धारित मिनिमम क्वालिफ़ाइंग मार्क्स हैं. एक बार फिर, कट-ऑफ़ मार्क्स धर्म नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक अंतर के तहत दिए जाते हैं, यानी SC/ST और OBC वर्ग-समूहों को.
पांचवां ग़लत दावा : सिर्फ़ मुस्लिम कैंडिडेट्स के लिए मुफ़्त कोचिंग सेंटर
चव्हाणके ने इसके बाद मुस्लिम कैंडिडेट्स को एक और फ़ायदा पहुंचने का दावा किया. शो के 47 मिनट पर वो कहते हैं कि पिछले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने UPSC परीक्षा के लिए 4 कोचिंग सेंटर्स खुलवाए थे और इनमें से 4 कोचिंग सेंटर मुस्लिम यूनिवर्सिटीज़ में खोले गये.
द प्रिंट के एक आर्टिकल के मुताबिक सरकार ने 2009 और 2010 के बीच 5 कोचिंग सेंटर खोले. सिविल सेवा और अन्य सरकारी परीक्षाओं की तैयारी करवाने के लिए वंचित समुदायों को मुफ़्त आवासीय कोचिंग की सुविधा देने के लिए ये कदम उठाया गया था. दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया में बना कोचिंग सेंटर इस ‘UPSC जिहाद’ विवाद का केंद्र बन गया है. चव्हाणके ने जामिया से परीक्षा पास करने वाले लोगों को ‘जामिया के जिहादी’ कहा. राजस्थान के बांसवाड़ा के पुलिस एसपी कवेंद्र सिंह सागर 2014 में जामिया के कोचिंग सेंटर के स्टूडेंट थे. उन्होंने द प्रिंट को दिए इंटरव्यू में कहा है, “यहां सिर्फ़ मुस्लिम नहीं बल्कि सभी वंचित समूह, अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और महिलाओं को ये सुविधा दी गयी है.”
इसके अलावा, सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय SC और OBC स्टूडेंट्स को बिना धर्म के आधार पर फ़्री कोचिंग सेवाएं देता है.
UPSC 2019 के परिणाम आने के बाद मिनिस्टर ऑफ़ स्टेट (इंडिपेंडेंट इंचार्ज) माइनॉरिटी अफ़ेयर्स मुख्तार अब्बास नकवी का कहना है कि 140 से ज़्यादा अल्पसंख्यकों ने परीक्षा पास की है. PTI की रिपोर्ट के मुताबिक़ उन्होंने कहा, “मोदी सरकार के समावेशी सशक्तिकरण ने सुनिश्चित किया है कि अल्पसंख्यक समुदाय के कई लोग शीर्ष पदों पर पहुंचे हैं.”
कई राज्य सरकारें भी गरीब और वंचित समुदाय के स्टूडेंट्स को फ़्री कोचिंग मुहैय्या करा रही हैं इसमें दिल्ली, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, केरल और तेलंगाना प्रमुख हैं.
सुदर्शन न्यूज़ ने मुस्लिम कैंडिडेट्स को कोचिंग देने के लिए ज़कात फ़ाउंडेशन पर भी निशाना साधने की कोशिश की. लेकिन RSS के समर्थन से चल रहे संकल्प फ़ाउंडेशन का नाम नहीं लिया, जिसने द प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल की परीक्षाओं में 61 फ़ीसदी सफलता दिखाई है. ज़कात फ़ाउंडेशन ने सुदर्शन न्यूज़ के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए बताया कि ये NGO पिछले 11 सालों से न सिर्फ ज़रुरतमंद मुस्लिमों बल्कि हर धर्म के स्टूडेंट्स को कोचिंग की मदद दे रही है.
छठा ग़लत दावा : मुस्लिम कैंडिडेट्स को इंटरव्यू में तवज्जो देना
शो के 28:15 मिनट पर चव्हाणके कहते हैं, “मैं आपको मॅाक इंटरव्यू का क्लिप दिखता हूं. ये एक मॅाक इंटरव्यू है. मैं दावा नहीं कर रहा हूं कि ये कोई असली इंटरव्यू है. तैयारी के लिए तमाम इंटरव्यू लिए जाते हैं. ऐसा ही एक इंटरव्यू सोशल मीडिया से लिया गया है. ये मेरा नहीं है. अगर मैं लेता तो आप कहते ये मैनेज किया हुआ है.”
उन्होंने एक इंटरव्यू का क्लिप चलाया जिसमें इंटरव्यूवर को कहते हुए सुना जा सकता है, “आपका इंटरव्यू साधारण, औसत इंटरव्यू जैसा नहीं जाएगा. एक कारण तो आपकी उम्र बनती है दूसरा कारण आपका समुदाय बनता है.”
जैसे ही ये क्लिप बंद होती है चव्हाणके अपने दर्शकों से चिल्लाते हुए कहते हैं, “क्यूं कहा जाता है कि आपका इंटरव्यू विशेष होगा? क्यूंकि आप एक समुदाय से आते हैं. तो क्या समुदाय में इंटरव्यू पर मिलने वाले मार्कों से इसका सम्बन्ध है?”
इस चैनल पर चलाया गया ये क्लिप एक प्राइवेट IAS कोचिंग सेंटर, दृष्टि IAS का है. ये मॅाक इंटरव्यू कैंडिडेट अज़हरुद्दीन ज़हीरुद्दीन काज़ी का लिया जा रहा है जिनकी UPSC 2019 परीक्षा में ऑल इंडिया रैंक 315 थी. इंटरव्यूवर ने सुदर्शन न्यूज़ पर दिखाई गयी बात वाकई कही थी, लेकिन चैनल ने पूरा नहीं बल्कि वीडियो के कटे हुए हिस्से को दिखाया. ओरिजिनल वीडियो में 31 मिनट पर इंटरव्यूवर कह रहे हैं कि इंटरव्यू में बहुत कम मुस्लिम कैंडिडेट क्वालिफ़ाई कर पाते हैं. उन्होंने कैंडिडेट को अपना इंटरव्यू बाकियों से अलग एक्स्पेक्ट करने की सलाह देते हुए कहा, “हम लगभग सभी कैंडिडेट को ये बात बोलते हैं… इसके फ़ायदे भी हैं, नुकसान भी हैं.” इंटरव्यूवर ने अज़हरुद्दीन काज़ी को इंटरव्यू के दौरान उनके सामाजिक-आर्थिक परिवेश के कारण आने वाली चुनौतियों को गिनवाया ताकि वे बेहतर परफ़ॉर्म कर पायें.
चैनल ने अपने इस 1 घंटे के शो में इन सभी गलत सूचनाओं को इकठ्ठा कर भारत में सिविल सेवा परीक्षाओं को लेकर भ्रम और ग़लतफ़हमी फैलाने की कोशिश की. चव्हाणके ने ‘इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज़्म’ की आड़ में मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाते हुए भेदभाव और भड़काऊ सोच को प्रमोट किया. शो की IPS एसोसिएशन ने भी आलोचना करते हुए इसे ‘पत्रकारिता का साम्प्रदायिक और गैरज़िम्मेदाराना रूप’ बताया.
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