व्हाट्सऐप पर एक मेसेज फ़ॉरवर्ड किया जा रहा है जिसमें इटली में कोरोना वायरस को लेकर कई दावे किये जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि इटली कोरोना मुक्त होने वाला पहला देश है. इस लम्बे मेसेज में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और कोरोना मरीज़ों के इलाज के बारे में दावे किये गए हैं. यही नहीं, मेसेज में कोरोना से हो रही मौत में बढ़ोतरी का कारण 5G नेटवर्क बताया गया है. मेसेज के आखिर में लिखा है कि इसका स्रोत इटली का स्वास्थ्य मंत्रालय है.

ऐसा ही मेसेज पिछले साल भी वायरल था और एक वीडियो में अंग्रेज़ी में कहा जा रहा था,

“WHO ने दुनिया को ‘वर्ल्ड हेल्थ लॉ’ के तहत आदेश दिया था कि कोविड-19 मरीज़ों के शव का पोस्टमार्टम न करें और जितनी जल्दी हो सके शव को दफ़न कर दें या जला दें. इटली के डॉक्टर्स ने WHO की ये बात न मानते हुए शव का पोस्टमार्टम किया और पाया कि ये महामारी किसी वायरस की वजह से नहीं बल्कि एक बैक्टीरिया के वजह से हो रही है और 5G तकनीक इसे बढ़ा रही है. ये बैक्टीरिया खून के थक्के जमा देता है जिससे मौत हो जाती है. इसका इलाज ऐंटी-बायोटिक, ऐंटी-इऩ्फ्लेमेट्री और ऐंटी-कॉग्युलेंट से संभव है. इसके लिए कभी इंटेंसिव केयर और वेंटिलेटर की ज़रूरत नहीं थी. इसके बाद ही इटली सरकार ने नियमों में बदलाव किये और मरीज़ जल्दी ठीक होने लगे और इटली ने कोविड-19 को मात दे दी. WHO पहले से ही ये जनता था लेकिन चीन को ये बात नहीं बताई ताकि व्यापार कर सके. ये महामारी इसलिए हुई क्योंकि वो पूरी दुनिया को वैक्सीन लगाकर नियंत्रित और फिर, मारना चाहते थे ताकि जनसंख्या कम हो सके.”

ये वीडियो और इसी की तरह एक फ़ेसबुक पोस्ट में दावा किया गया कि इटली विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के ‘कानून’ की अवमानना करने वाला पहला देश है. वही कानून जिसके मुताबिक WHO ने कोविड-19 मरीज़ों के शव का पोस्टमार्टम करने से मना किया है. वायरल पोस्ट में 5G तकनीक को भी कोविड-19 से मृत्यु की वजह बताई गयी है.

दावा

1. कोविड-19 वायरस नहीं बैक्टीरिया है.

2. एक कानून है, ‘वर्ल्ड हेल्थ लॉ’, और इसके मुताबिक कोविड-19से मरने वाले मरीज़ों के शव का पोस्टमार्टम करने पर रोक लगायी गयी है.

3. WHO ने कोविड-19 मरीज़ों की मृत्यु के तुरंत बाद शव को दफ़नाने या जलाने का आदेश दिया है.

4. WHO ने कोविड-19 के मरीज़ों के शव को अत्यधिक संक्रामक बताया.

5. इटली पहला देश है जहां कोविड-19 मरीज़ की मौत के बाद शव का पोस्टमार्टम किया गया.

6. पोस्टमार्टम के फ़ौरन बाद इटली के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोविड-19 के इलाज से जुड़े नियमों में बदलाव किये.

7. कोविड-19 मरीज़ों को ICU और वेंटिलेटर की ज़रूरत कभी थी ही नहीं.

8. इटली में कोविड-19 पूरी तरह ख़त्म हो चुका है.

9. 5G तकनीक की वजह से कोविड-19 मामलों में बढ़ोतरी हुई.

ये सभी दावे ग़लत हैं

फ़ैक्ट चेक

1. कोविड-19 SARS-CoV-2 नाम के नोवेल कोरोना वायरस से होता है, न कि बैक्टीरिया से

मरीज़ों के टिश्यू (tissue) से लिए गए सैंपल, महामारी शोध के आंकड़े, क्लिनिकल परिणाम और जीनोम के आंकड़े बताते हैं कि कोविड-19 नोवेल कोरोना वायरस से हुआ है न कि किसी बैक्टीरिया से. ऑल्ट न्यूज़ साइंस ने पहले भी इस दावे का फ़ैक्ट-चेक पब्लिश किया था.

2. WHO ने कोविड-19 मरीज़ों के शव का पोस्टमार्टम न करने का कोई आदेश नहीं दिया

पहली बात तो WHO के अधीन ‘वर्ल्ड हेल्थ लॉ’ जैसा कुछ है ही नहीं. WHO पूरी दुनिया के राष्ट्रों को आदेश देने वाला कार्यकारी संगठन नहीं है.

WHO ने पहली बार 24 मार्च 2020 को ‘कोविड-19 के मरीजों के शव के संक्रमण से बचाव और सुरक्षित प्रबंधन’ पर अंतरिम दिशा-निर्देश जारी किया था. इस दिशा-निर्देश में मृतक के शव का पोस्टमार्टम करने के लिए कहीं भी मना नहीं किया गया है. इसके उलट, इसमें बताया गया है कि शव का पोस्टमार्टम करते समय किन बातों का ध्यान रखना है. इसके बाद 4 सितम्बर, 2020 को भी अपडेट किया हुआ दिशा-निर्देश जारी किया गया, इसमें भी पोस्टमार्टम से जुड़ी बात में कोई बदलाव नहीं था.

इसलिए ये दावा ग़लत है कि WHO ने कोविड-19 के मरीज़ों के शव का पोस्टमार्टम करने से मना किया है.

3. WHO ने कोविड-19 मरीज़ों के शव को फ़ौरन दफ़नाने और जलाने वाला कोई आदेश नहीं दिया

WHO के अंतरिम दिशा-निर्देश में कहा गया है, “कोविड-19 के मरीज़ों के शव को जल्दबाज़ी में दफ़नाने/जलाने से बचना चाहिए. अधिकारियों को हर मामले को उसकी गंभीरता के आधार पर देखना होगा. इस दौरान उन्हें परिवार के अधिकारों, मौत की वजह की जांच और संक्रमित होने के ख़तरे के बीच बैलेंस बनाकर चलना पड़ेगा.”

WHO के ताज़ा दिशा निर्देश कहते हैं कि ‘कोविड-19 से मरने वाले लोगों को जल्दबाजी में दफ़न करने से तो बचना ही चाहिए, साथ ही मृतक की गरिमा भी बनाई रखी जाये.’

यानी, WHO ने शुरू से ही कोविड-19 मरीज़ों के शव का जल्बाज़ी में अंतिम संस्कार करने के पक्ष में नहीं रहा है.

4.WHO ने कोविड-19 मरीज़ों के शव को अत्यधिक प्रदूषित या संक्रामक नहीं बताया

WHO के पहले अंतिरम दिशा-निर्देश में बताया गया है, “रक्तस्रावी बुखार (इबोला, मर्बर्ग) और कॉलरा के अलावा अन्य मामलों में आमतौर पर शव से संक्रमण नहीं फैलता है. अगर पोस्टमार्टम के समय फेफड़ों के साथ सावधानी नहीं बरती गयी तो पैन्डेमिक इऩ्फ्लुएंजा के मरीज़ के शव से ही संक्रमण फैल सकता है. इसके अलावा शव संक्रमण नहीं फैलाते हैं. अभी तक कोविड-19 के मरीज़ों के शव से संक्रमित होने के कोई ठोस सबूत सामने नहीं आये हैं.”

WHO के नए दिशा-निर्देश में ये भी लिखा है कि कोविड-19 के लक्षण और इसका संक्रमण फैलने के मुख्य कारकों (ड्रॉपलेट या सीधा संपर्क) से जुड़ी मौजूदा जानकारी बताती है कि शव से संक्रमण फैलने की संभावनाएं काफ़ी कम होती हैं.

मतलब, WHO ने ये नहीं कहा कि कोविड-19 मरीज़ों के शव ‘अत्यधिक प्रदूषित’ हैं, बल्कि ये कहा है कि इनसे संक्रमण फैलने की संभावनाएं काफ़ी कम हैं.

5. इटली पहला देश नहीं जहां कोविड-19 मरीज़ के शव का पोस्टमार्टम किया गया था

कोविड-19 से मरने वाले लोगों की शुरुआती पोस्टमार्टम रिपोर्ट में 16 फ़रवरी, 2020 को चीन द्वारा सार्वजानिक की गयी रिपोर्ट शामिल थी. इटली में कोविड-19 से मौत की पहली रिपोर्ट 21 फ़रवरी, 2020 को सामने आई थी.

6. इटली सरकार ने पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के बाद नियमों में बदलाव नहीं किया

इटली सरकार ने 22 मार्च, 2020 को जो अंतरिम दिशा-निर्देश जारी किया था, उसमें कोविड-19 संक्रमण से मारने वाले मरीज़ के शव के पोस्टमार्टम के बारे में बताया गया है. ये दिशा-निर्देश WHO से भी 2 दिन पहले जारी किये गये थे.

इटली के स्वास्थ्य मंत्रालय की वेबसाइट पर भी कोविड-19 से जुड़े नियमों में कोई बदलाव नहीं किये गए. वेबसाइट पर बताया गया है कि इस बीमारी की वजह नोवेल कोरोना वायरस (SARS-CoV-2) ही है. इसके अलावा, वेबसाइट के FAQ में भी खून के थक्के जमने की बात नहीं की गयी है. गंभीर कोविड-19 मामलों में थक्के के जमाव से निपटने के लिए इटली समेत पूरी दुनिया में ही ऐंटी-कॉग्युलेंट, जैसे हेपरिन (heparin) का इस्तेमाल किया जाता है (Miesbach, W et al 2020). इसका ये मतलब नहीं है कि वो इसे वायरल बीमारी नहीं मानते या कोविड-19 से सिर्फ़ थक्के जमने की ही समस्या होती है.

ऑल्ट न्यूज़ पहले भी इस ग़लत दावे का फ़ैक्ट-चेक किया था कि कोरोना बैक्टीरिया से होता है. चूंकि कोविड-19 के कारण थक्के जमने की जानकारी फ़रवरी 2020 (Tang N et al. 2020) से ही है, और जैसा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी साफ़ हुआ है (Fox, S. E. et al. 2020), इसमें कोई सच्चाई नहीं है कि WHO ने इस बात को छिपाया और अब इटली के डॉक्टर्स ने अचानक इसका ख़ुलासा कर दिया.

7. गंभीर कोरोना वायरस संक्रमण के मामले में वेंटिलेटर और ICU की ज़रूरत पड़ती है

कोविड-19 के करीब 5 फ़ीसदी से 15 फ़ीसदी मरीज़ों को ICU और वेंटिलेटर की ज़रूरत पड़ती है (Möhlenkamp, S et al. 2020). ऑल्ट न्यूज़ ने इस दावे पर रिपोर्ट पब्लिश की थी जिसमें इसपर विस्तार से चर्चा की गयी है.

8. इटली में कोविड-19 पूरी तरह ख़त्म नहीं हुआ है

पाठक ग़ौर करें कि इस आर्टिकल में जिन दावों की बात की जा रही है उनमें से कई मई 2020 से ही किये जा रहे हैं. 21 मार्च, 2020 तक के आंकड़ों के मुताबिक इटली में अभी भी कोविड-19 के 5 लाख से ज़्यादा ऐक्टिव मामले हैं. यानी, इटली अभी कोरोना मुक्त होने से काफ़ी दूर है.

9. कोरोना मामले बढ़ने में 5G तकनीक का कोई हाथ नहीं है

किसी भी देश में कोविड-19 से मौत और 5G तकनीक का कोई सम्बन्ध नहीं पाया गया है. उदाहरण के लिए, भारत में 5G का इस्तेमाल अभी तक शुरू नहीं हुआ है लेकिन 1.16 करोड़ से ज़्यादा कोरोना मामलों के साथ तीसरा सबसे ज़्यादा कोविड-19 मामलों वाला देश बना हुआ है. ये आर्टिकल लिखे जाने तक भारत में कोरोना से 1.6 लाख से ज़्यादा मरीज़ों की मौत हो चुकी है. ईरान में भी 5G नेटवर्क शुरू नहीं किया गया है लेकिन कुल 18 लाख से ज़्यादा कोरोना मामले सामने आ चुके हैं. वहीं दक्षिण कोरिया में 5G नेटवर्क का इस्तेमाल काफ़ी पहले शुरू हो चुका है और इसका बड़े स्तर पर विस्तार किया जा रहा है. इसके बावजूद वहां कोरोना से मौत के 1,700 से भी कम मामले सामने आये. इसी तरह 5G का इस्तेमाल करने वाले न्यूज़ीलैंड में भी कोविड-19 से 26 जानें ही गयी हैं.

दावे के उलट, इलेक्ट्रोमैगनेटिक स्पेक्ट्रम की हाई फ़्रीक्वेंसी से वायरस निष्क्रिय होते हैं, न कि बढ़ते हैं. अल्ट्रावॉयलेट किरणों में हवा में तैरने वाले बैक्टीरिया और वायरस को मारने की क्षमता होती है (Szeto, W. et al. 2020). यही वजह है कि अल्ट्रावॉयलेट और गामा किरणों का इस्तेमाल निस्संक्रामक या कीटाणुनाशक के रूप में किया जाता है.

5G से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में विस्तार से यहां पढ़ा जा सकता है.

निष्कर्ष

वायरल मेसेज में कोविड-19 महामारी के प्रभाव से जुड़े, WHO के आदेशों एवं कानूनों और इटली सरकार से जुड़े जो दावे किये गए हैं उनका कोई सिर-पैर नहीं है. ये बहुत बेतुका है कि जिस रोगाणु के कारण ये महामारी फैली, उसे दुनिया से छिपाया जा सकता है. इस तरह के मगढ़ंत दावों के फैलने का कारण विशेषज्ञों और आम जनता के बीच जानकारी और संपर्क की खाई है. इसका मुख्य कारण अथॉरिटीज़ पर विश्वास नहीं करना भी है. लोग अपने हिसाब से कारण बुनना शुरू कर देते हैं और इसी का नतीजा है ये काॉन्स्पिरेसी थ्योरी. लेकिन ये कॉन्स्पिरेसी थ्योरी हालात को बिगाड़ने का काम करते हैं और बीमारी के बारे में बड़े स्तर पर भ्रामकता फैलती है. ये ग़लत दावा करना कि कोविड-19 पास आपने पर संक्रमण से नहीं फैलता, लोगों को दूरी बनाये रखने, बार-बार हाथ होने और मास्क लगाने जैसे नियमों के पालन से दूर ले जाता है. इतना ही नहीं, लोग खुद का इलाज करने और बिना डॉक्टर की सलाह के ऐंटी-कॉग्युलेंट और ऐंटी-बायोटिक का सेवन करने के लिए प्रोत्साहित होने लगते हैं.

References:

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FAQ – Covid-19, questions and answers. (2020). Retrieved 10 Sep 2020, from http://www.salute.gov.it/portale/nuovocoronavirus/dettaglioFaqNuovoCoronavirus.jsp?lingua=english&id=230#2

Miesbach, W., & Makris, M. (2020). COVID-19: Coagulopathy, Risk of Thrombosis, and the Rationale for Anticoagulation. Clinical and Applied Thrombosis/Hemostasis, 26, 1076029620938149.

Tang, N., Li, D., Wang, X., & Sun, Z. (2020). Abnormal coagulation parameters are associated with poor prognosis in patients with novel coronavirus pneumonia. Journal of thrombosis and hemostasis, 18(4), 844-847.

Szeto, W., Yam, W. C., Huang, H., & Leung, D. Y. (2020). The efficacy of vacuum-ultraviolet light disinfection of some common environmental pathogens. BMC Infectious Diseases, 20(1), 1-9.

Möhlenkamp, S., & Thiele, H. (2020). Ventilation of COVID-19 patients in intensive care units. Herz, 1.

Fox, S. E., Akmatbekov, A., Harbert, J. L., Li, G., Brown, J. Q., & Vander Heide, R. S. (2020). Pulmonary and cardiac pathology in Covid-19: the first autopsy series from New Orleans. MedRxiv.


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About the Author

Dr Sharfaroz Satani is a science writer for Alt News Science and a drug safety physician. He advocates for evidence-based medicine, freethought, and social equality. He also writes satire, poetry and fiction.