नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कान्त को लेकर विवाद खड़ा हो गया जब हिंदुस्तान टाइम्स ने उन्हें कोट करते हुए लिखा, “भारत में कुछ ज़्यादा ही लोकतंत्र है जो यहां सुधारों के लिए रूकावट है (Too much of democracy hampering reforms in India).” उन्होंने ये बात स्वराज्य मैगज़ीन द्वारा आयोजित एक वर्चुअल कार्यक्रम में कही. अमिताभ कान्त ने ये बात कहने से इनकार करते हुए ट्विटर पर लिखा, “मैंने जो कहा है वो ये बिल्कुल नहीं है. मैं MEIS योजना और संसाधनों के बहुत ज़्यादा जगहों पर प्रयोग और विनिर्माण क्षेत्र को वैशिक स्तर पर चैम्पियन बनाने के बारे में कह रहा है.”
This is definitely not what I said. I was speaking about MEIS scheme & resources being spread thin & need for creating global champions in manufacturing sector. https://t.co/6eugmtoinB
— Amitabh Kant (@amitabhk87) December 8, 2020
हिन्दुतान टाइम्स के आर्टिकल और ट्वीट पीटीआई की रिपोर्ट पर आधारित थे. अमिताभ कान्त की प्रतिक्रिया के बाद आउटलेट ने ट्वीट और आर्टिकल दोनों हटा लिया. अब उस लिंक पर जो पेज खुलता है उसपर लिखा है, “न्यूज़ एजेंसी पीटीआई के हवाले से लिखी गयी इस स्टोरी को वापस ले लिया गया है.” हालांकि, पीटीआई की ये स्टोरी फ़ाइनेंशियल एक्सप्रेस और इंडिया टुडे पर देखी जा सकती है. वहीं द इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी ओरिजिनल हेडलाइन, “भारत में कुछ ज़्यादा ही लोकतंत्र है जो रिफ़ॉर्म्स के आड़े आ रहा है” को बदल कर “भारत को और सुधारों की ज़रूरत, राज्यों को मोर्चा संभालना होगा: नीति आयोग सीईओ अमिताभ कान्त.” कर दिया.
यही नहीं, स्वराज्य ने ट्वीट किया कि “कुछ शरारती तत्वों ने अमिताभ कान्त के स्टेटमेंट को घुमा फिरा कर सन्दर्भ से इतर” पेश करने की कोशिश की.
Swarajya’s interaction with @amitabhk87 was on PLI & manufacturing and not on political systems. His response was in the context of spreading resources too thin & not creating global champions. Some mischievous elements have attempted to distort & quote it totally out of context.
— Swarajya (@SwarajyaMag) December 8, 2020
IBTimes ने इसी बीच एक फै़क्ट चेक रिपोर्ट में बताया कि अमिताभ कान्त ने ये बात कही या नहीं और निष्कर्ष निकाला कि उनकी बात सन्दर्भ से इतर समझी गयी.
अमिताभ कान्त ने वाकई में ऐसा कहा था?
ये जानने के लिए कि अमिताभ कान्त ने वाकई में क्या कहा था, हमने इस कार्यक्रम की पूरी रिकॉर्डिंग सुनी और पाया कि उन्होंने सच में कहा था, “टू मच ऑफ़ ए डेमोक्रेसी,” एक बार नहीं बल्कि दो बार.
अमिताभ कान्त को 25 मिनट 43 सेकंड पर कहते हुए सुना जा सकता है, “भारत में कुछ ज़्यादा ही लोकतंत्र है इसलिए हम हर किसी को सपोर्ट करते रहते हैं.” इसे आगे समझाते हुए वो कहते हैं, “भारत में पहली बार किसी सरकार ने बड़े पैमाने पर सोचा है और कहा है कि हम ग्लोबल चैंपियंस उत्पन्न करना चाहते हैं. पहले किसी में ये राजनीतिक मंशा और साहस नहीं रहा कि वो कहते हम ग्लोबल चैंपियन बनने की इच्छा रखने वाले 5 कंपनियों को भी सपोर्ट करेंगे. हर कोई कहता था कि हम भारत में सबकी मदद करना चाहते हैं, मुझे हर किसी का वोट चाहिए.”
उसके बाद 33 मिनट 3 सेकंड पर उन्हें कहते हुए सुना जा सकता है, “कड़े रिफ़ॉर्म्स भारत के सन्दर्भ में बहुत मुश्किल हैं. हम कुछ ज़्यादा ही लोकतांत्रिक हैं.” उसके आगे वो कहते हैं पहली बार भारत सरकार में सभी क्षेत्रों के लिए बड़े सुधार करने की हिम्मत और संकल्प पहली बार आई है.
दोनों ही मौकों पर ये साफ़ है कि नीति आयोग के सीईओ भारत में ‘कुछ ज़्यादा ही लोकतंत्र’ होने की बात कर रहे हैं जो ग्लोबल चैम्पियन बनने और सुधार के लिए रूकावट है. वो इस बात का बचाव करते हुए कहते हैं कि किस तरह इस सरकार ने कड़े कदम उठायें है जिसने सभी को संसाधन देने और सभी को खुश करने वाले इस ‘कुछ ज़्यादा ही लोकतंत्र’ को रास्ते में नहीं आने दिया.
स्वराज्य मैगज़ीन के कार्यक्रम के ऑर्गनाइज़र ने सफ़ाई देते हुए कहा कि अमिताभ कान्त के साथ ये बातचीत PLI और विनिर्माण पर थी, न कि राजनीतिक तंत्र पर. दोनों लोगों ने इस बात पर जोर दिया कि अमिताभ कान्त का जवाब संसाधनों को बहुत ज़्यादा जगह लगाने और ग्लोबल चैंपियन बनने में बाधा आने के सन्दर्भ में था. अमिताभ कान्त भले ही लोकतंत्र को किसी राजनीतिक तंत्र में संदर्भित करने के बजाय सभी को साथ लेकर चलने के बारे में कह रहे हों. लेकिन, इस बात में कोई दो राय नहीं है कि उन्होंने “कुछ ज़्यादा ही लोकतंत्र” वाली बात एक नकारात्मक सन्दर्भ में कही.
अमिताभ कान्त की पूरी प्रतिक्रिया और सन्दर्भ वीडियो में सुनी जा सकती है. ये साफ़ नहीं है कि आउटलेट्स अपनी रिपोर्ट्स लेने या हेडिंग बदलने के लिए क्यों मजबूर हुए, जबकि पूरी बातचीत का वीडियो मौजूद है और जो उन्होंने जो कहा वही लिखा भी गया था.
सत्ता को आईना दिखाने वाली पत्रकारिता का कॉरपोरेट और राजनीति, दोनों के नियंत्रण से मुक्त होना बुनियादी ज़रूरत है. और ये तभी संभव है जब जनता ऐसी पत्रकारिता का हर मोड़ पर साथ दे. फ़ेक न्यूज़ और ग़लत जानकारियों के खिलाफ़ इस लड़ाई में हमारी मदद करें. नीचे दिए गए बटन पर क्लिक कर ऑल्ट न्यूज़ को डोनेट करें.
बैंक ट्रांसफ़र / चेक / DD के माध्यम से डोनेट करने सम्बंधित जानकारी के लिए यहां क्लिक करें.