आगामी लोकसभा चुनाव में मात्र तीन महीने का समय बचा है. इसीलिए सभी राजनीतिक पार्टियां अति सक्रिय हो गई हैं और चुनाव की तैयारी में जुटकर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं. 2023 के कर्नाटक विधान सभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने 135 सीटें जीतकर बहुमत की सरकार बनाई. भाजपा बार-बार कर्नाटक की कांग्रेस सरकार पर हिन्दू विरोधी और माइनोरिटी हितैषी होने का आरोप लगाती है और इसको लेकर धरना प्रदर्शन में कोई कसर नहीं छोड़ती. बीते महीने भाजपा ने कांग्रेस पार्टी के खिलाफ कर्नाटक में जमकर विरोध प्रदर्शन किया था जिसमें उन्होंने कांग्रेस पार्टी को हिन्दू विरोधी बताते हुए आरोप लगाया था कि सरकार के आदेश पर पुलिस ने मांड्या के केरागोडू गाँव में फ़्लैगपोस्ट से हनुमान ध्वज उतार दिया और वहाँ उसे फहराने पर रोक लगाया, जबकि असल में वो सरकारी ज़मीन थी जिसपर सिर्फ राष्ट्रीय ध्वज और कर्नाटक के झंडे को फहराने की अनुमति थी.

अब भाजपा ने एक नए विवाद को जन्म दिया है जिसमें कर्नाटक सरकार पर हिन्दू मंदिरों से लिए गए पैसों को अल्पसंख्यक समुदाय के वेल्फेयर में डायवर्ट करने का आरोप लगाया है. इसके साथ ही भाजपा नेताओं ने कर्नाटक की कांग्रेस सरकार पर Hindu Religious Institutions and Charitable Endowments Act, 1997 में संसोधन कर मंदिर ट्रस्ट में गैर हिंदुओं को नियुक्त करने और हिंदू मंदिरों को मिलने वाले दान का 10% टैक्स के रूप में लेने का भी आरोप लगाया है. इसके साथ ही दावा किया जा रहा है कि इस संसोधन के मुताबिक, मंदिरों को मिलने वाला दान और अन्य का इस्तेमाल गैर-हिन्दू धर्म के किसी भी चीज़ के लिए भी किया जा सकता है.

इन आरोपों में कुल 4 दावे हैं जिनकी सच्चाई हम इस आर्टिकल में बताएंगे:

  1. क्या सिद्धारमैया सरकार ने हिंदू मंदिरों पर टैक्स की शुरुआत की?
  2. क्या हिंदू मंदिरों को मिलने वाले दान का 10% टैक्स के रूप में लिया जाता है जिसका इस्तेमाल किसी भी धर्म के वेल्फेयर में इस्तेमाल किया जा सकता है?
  3. क्या कर्नाटक सरकार द्वारा हिन्दू मंदिरों से लिए गए पैसों को अल्पसंख्यक समुदाय के वेल्फेयर में डायवर्ट किया जाता है?
  4. क्या सिद्धारमैया सरकार ने कानून में संसोधन कर मंदिर ट्रस्ट में गैर हिंदुओं को नियुक्त करने का प्रावधान लाया है?

न्यूज़18 के एंकर राहुल शिवशंकर ने 16 फरवरी को ट्वीट किया कि कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने अपने बजट में 330 करोड़ रुपये वक्फ संपत्ति के विकास, मंगलुरु में हज भवन के निर्माण और ईसाई समुदाय के विकास के लिए रखे हैं. इसी ट्वीट में राहुल ने आगे कहा कि यह एक ऐसा राज्य है जहां कर्नाटक के मुज़राई विभाग द्वारा नियंत्रित 400 ‘A और B’ कैटेगरी के मंदिरों को हिंदू भक्तों द्वारा दिया जाने वाला औसतन सालाना दान 450 करोड़ रुपये सरकार के पास जाता है.

इस ट्वीट को कोट करते हुए बेंगलोर साउथ से भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या ने कहा कि सिद्धारमैया सरकार द्वारा हिंदू मंदिरों से पैसा लेकर इसका इस्तेमाल गैर हिंदू धर्मों के धार्मिक संस्थानों को फंड करने के लिए किया जाता है. और इसे हिंदुओं के पैसे से दूसरों को आर्थिक रूप से समृद्ध करने का एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

इसी प्रकार कई भाजपा नेताओं ने इसी दावे को आगे बढ़ाते हुए कर्नाटक की कांग्रेस सरकार पर निशाना साधा और अल्पसंख्यक समुदाय के तुष्टिकरण का आरोप लगाया.

भाजपा आईटी सेट के हेड अमित मालवीय ने ट्वीट किया कि कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने Hindu Religious Institutions and Charitable Endowment विधेयक में संशोधन किया है जिसमें मंदिर ट्रस्ट में गैर हिंदुओं को नियुक्त करने का प्रावधान लाया गया है.  और इसमें ये भी कहा गया है कि हिंदू मंदिरों को दान में मिली राशि का 10% तक का टैक्स देना होगा. इसके साथ ही अमित मालवीय ने कहा कि इस संशोधन से यह निष्कर्ष निकलता है कि मंदिर की आय का उपयोग किसी भी चीज़ के लिए किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, मंदिर निधि का उपयोग संभवतः कब्रिस्तान की दीवारों के निर्माण के लिए किया जा सकता है.

कर्नाटक विधान सभा के उपनेता अरविन्द वेलद ने ट्वीट करते हुए कहा कि कर्नाटक का नया हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती संशोधन विधेयक सिद्धारमैया सरकार द्वारा हिंदू मंदिरों के धन को हड़पने का एक ज़बरदस्त प्रयास है. इसमें unspecified ‘गरीब और ज़रूरतमंद संगठनों’ के लिए एक ‘कॉमन पूल’ में पैसे के डायवर्जन को अनिवार्य करना धार्मिक भेदभाव और फंड कुप्रबंधन की गंध देता है. यह कदम हिंदू संस्थानों को कमजोर करता है और भक्तों के विश्वास को धोखा देता है.

आईटी मिनिस्टर राजीव चंद्रशेखर ने इस मुद्दे पर बयान देते हुए कहा कि राहुल गांधी देश में भारत जोड़ो यात्रा निकाल रहे हैं. कर्नाटक में उनकी कांग्रेस पार्टी सरकार डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया के एटीएम को फंड करने के लिए विधानसभा में कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती (संशोधन) विधेयक, 2024 लेकर आई है. उन्होंने इसे तुष्टिकरण की राजनीति का निचला स्तर बताया और कहा कि हम इस बिल का विरोध करेंगे.

पूर्व सीएम बीएस यदुरप्पा के बेटे विजेंदर यदुरप्पा ने भी कांग्रेस को हिन्दू विरोधी बताते हुए इस दावे को आगे बढ़ाया. इसी तरह भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा, शहज़ाद पूनावाला, राइट विंग हैन्डल ऋषि बागरी, मेघ अपडेट्स इत्यादि ने इस दावे को आगे बढ़ाने का काम किया.

फैक्ट-चेक

क्या सिद्धारमैया सरकार ने हिंदू मंदिरों पर टैक्स की शुरुआत की?

इसका जवाब है नहीं, सिद्धारमैया सरकार ने हिंदू मंदिरों पर टैक्स की शुरुआत नहीं की. कॉमन पूल फंड की शुरुआत 2003 में हुई थी जब Hindu Religious Institutions and Charitable Endowments Act, 1997 लागू हुआ था. 2011 में इस कानून की धारा 17 में संशोधन किया गया था और ज़्यादा आय वाले मंदिरों के आय का एक छोटा हिस्सा एकत्र करने का प्रावधान लाया गया ताकि कम आय वाले मंदिरों को कॉमन पूल फंड के तहत सहायता प्रदान की जा सके. तब बीएस येदियुरप्पा भारतीय जनता पार्टी से कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे.

  • क्या है कॉमन पूल फंड?

Hindu Religious Institutions and Charitable Endowments Act, 1997 के चैप्टर 4 में कॉमन पूल फंड को विस्तार से बताया गया है. राज्य धर्मिका परिषद के पास एक कॉमन पूल फंड बनाने का अधिकार है जिसमें बड़े मंदिरों के आय का एक छोटा हिस्सा और राज्य सरकार से प्राप्त अनुदान को मुजराई डिपार्टमेंट के अंदर आने वाले छोटे और कम आय वाले हिन्दू मंदिर के रखरखाव, हिंदुओं की धार्मिक संस्थान को अनुदान, हिंदुओं के लिए अनाथालय, मंदिर के कर्मचारियों, गौशाला निर्माण, हिन्दू धर्म की पढ़ाई, इत्यादि जैसी चीजों के लिए किया जाता है.

2011 में हुए संशोधन के मुताबिक, मंदिरों पर टैक्स का दर इस प्रकार था:

1. उन मंदिरों के आय का 0% जिनकी वार्षिक आय पांच लाख रुपये से कम है.

2. उन मंदिरों के शुद्ध आय का 5% जिनकी वार्षिक आय पांच लाख रुपये से अधिक है लेकिन दस लाख रुपये से अधिक नहीं है.

3. उन मंदिरों के शुद्ध आय का 10% जिनकी वार्षिक आय दस लाख रुपये से अधिक है.

नए संशोधन के मुताबिक:

1. जिन मंदिरों की वार्षिक आय 10 लाख है, उनके लिए कोई कॉमन पूल फंड नहीं है.
2. 10 लाख से 1 करोड़ वार्षिक आय वाले मंदिरों के लिए उनके वार्षिक आय का कुल 5% कॉमन पूल फंड में जाएगा.
3. 1 करोड़ और उससे अधिक आय वाले मंदिरों के लिए उनके वार्षिक आय का कुल 10% कॉमन पूल फंड में जाएगा.

कर्नाटक सरकार में कार्यरत विश्वसनीय सूत्र ने हमें एक फ़ाइल शेयर किया जिसमें Karnataka Hindu Religious Institutions and Charitable Endowments Act 1997 के संशोधन बिल में पहले हुए बदलाव और अब के बदलाव को डॉक्यूमेंट किया गया है. (पूरी फ़ाइल) इस कानून के धार 17 में हुए बलाव में साफ तौर पर देखा जा सकता है कि कॉमन पूल फंड 2003 से ही लागू है, जिसमें 2011 में बदलाव किया गया था जब बीएस येदियुरप्पा भारतीय जनता पार्टी से कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे. पहले भी ज्यादा आय वाले मंदिरों के कुल वार्षिक आय का 5 और 10 प्रतिशत कॉमन पूल फंड में जाता था. नए बदलाव में सिर्फ इनकम ग्रुप में बदलाव किया गया है.

हमें द टाइम्स ऑफ इंडिया की वेबसाइट पर 9 मई 2011 को पब्लिश्ड एक आर्टिकल मिला जिसमें हिन्दू जन जागृती समिति ने भाजपा सरकार का विरोध किया था और गवर्नर से कानून के सोशोधन को स्वीकृति देने से इनकार करने की अपील की थी.

क्या मंदिरों को मिलने वाले दान का 10% टैक्स के रूप में लिया जाता है जिसका इस्तेमाल किसी भी धर्म के वेल्फेयर में इस्तेमाल किया जा सकता है?

जिस 10% कथित टैक्स की बात वायरल दावों में की गई है, दरअसल ये सरकार द्वारा वसूला जाने वाला कोई आम टैक्स नहीं बल्कि वो राशि कॉमन पूल फंड में ही जाता है.

  • क्या कॉमन पूल फंड का पैसा दूसरे धर्मों के काम में इस्तेमाल में लाया जा सकता है?

नहीं, Hindu Religious Institutions and Charitable Endowments Act, 1997 की धारा 19(2)(ii) के अनुसार, कॉमन पूल फंड का प्रबंधन इस प्रकार किया जाएगा कि किसी धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग की संस्था या संस्थान को किया गया योगदान और दान केवल उस विशेष वर्ग या संप्रदाय या अनुभाग के लाभ के लिए उपयोग किया जाएगा. यानी, हिन्दू मंदिरों का कॉमन पूल फंड वाला पैसा सिर्फ हिन्दू धर्म से जुड़े कामों में इस्तेमाल में लाया जा सकता है.

क्या कर्नाटक सरकार द्वारा हिन्दू मंदिरों से लिए गए पैसों को अल्पसंख्यक समुदाय के वेल्फेयर में डायवर्ट किया जाता है?

कर्नाटक सरकार के मुज़राई मंत्री रामालिंगा रेड्डी ने भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या के आरोपों का जवाब देते हुए ट्वीट किया कि मुज़राई डिपार्टमेंट का पैसा केवल मंदिरों पर ही इस्तेमाल किया जा सकता है और माइनॉरिटी वेलफेयर डिपार्टमेंट का पैसा केवल अल्पसंख्यक भवनों और धार्मिक स्थलों पर ही इस्तेमाल किया जा सकेगा. मंदिरों का कोई पैसा माइनॉरिटी वेलफेयर डिपार्टमेंट को नहीं दिया गया है. इसके साथ ही मुज़राई मंत्री ने वायरल दावे को झूठा बताया और कहा कि भाजपा और उसके सदस्य जनता को गुमराह करने में माहिर हैं.

न्यूज आउटलेट साउथ फर्स्ट से बात करते हुए मुजराई मंत्री रामलिंगा रेड्डी ने कहा कि सरकार का मंदिरों पर कोई नियंत्रण नहीं है. 2011 से मुजराई डिपार्टमेंट के लिए आवंटित की गई बजट की राशि का उपयोग पूरी तरह से मुजराई डिपार्टमेंट के अंतर्गत आने वाली सभी श्रेणियों के मंदिरों के विकास के लिए किया जाता है. इसी तरह, माइनोरिटी वेल्फेयर डिपार्टमेंट के लिए बजट में आवंटित राशि का उपयोग पूरी तरह से केवल अल्पसंख्यकों के धार्मिक और सांस्कृतिक कल्याण गतिविधियों के लिए किया जाता है.

इस मुद्दे को लेकर हमने कर्नाटक सरकार के राजस्व विभाग के प्रमुख शासन सचिव राजेन्द्र कटारिया से बात की, उन्होंने हमें बताया कि “मुजराई विभाग के अंतर्गत लगभग 35000 मंदिर हैं. आय और संपत्ति के आधार पर इन मंदिरों को A, B और C श्रेणियों में बांटा गया है. 25 लाख से ज़्यादा आय वाली मंदिरों को श्रेणी A में रखा गया है और इमें कुल 205 मंदिरें हैं. 5 से 25 लाख तक आय वाली मंदिरों को B श्रेणी में रखा गया है जिसमें कुल 193 मंदिर हैं. 5 लाख से कम आय वाली मंदिरों को C श्रेणी में रखा गया है जिसमें कुल 34165 मंदिरें हैं. सरकार इन मंदिरों से पैसा नहीं लेती है, यह पैसा स्थानीय समिति द्वारा दान पेटी (हुंडी) से निकालकर संबंधित मंदिरों के खाते में जमा किया जाता है, जिसका उपयोग मंदिर अपने प्रबंधन, कार्यक्रमों के आयोजन, मंदिर के विकास, आदि के लिए करते हैं. बड़े मंदिरों में एक स्थानीय अधिकारी होता है जिसकी उपस्थिति में समिति द्वारा दान पेटी खोली जाती है और यह पैसा उसके खाते में ही जमा किया जाता है. यह पैसा सरकार के पास नहीं जाता है. सरकार के मुजराई विभाग का काम इन मंदिरों को उनके विकास के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना है और सरकार कई प्रमुख धार्मिक स्थानों पर भक्तों की सुविधा के लिए व्यवस्था भी करती है, जैसे कि कर्नाटक के लोगों को तीर्थयात्रा में मदद करने के लिए गेस्ट हाउस का निर्माण करना, और तिरूपति, वाराणसी, श्रीशैलम, मंत्रालयम, तुलजापुर जैसी जगहों पर तीर्थ यात्रियों को होस्ट करना. सोशल मीडिया पर गलत जानकारी फैलाई जा रही है कि कर्नाटक सरकार हिंदू मंदिरों से पैसे लेती है और इसका इस्तेमाल गैर-हिंदू धर्मों के धार्मिक संस्थानों को वित्त पोषित करने के लिए करती है. इस मुद्दे को लेकर मुजराई विभाग की बैठक हुई है और इस तरह की अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी.”

कर्नाटक सरकार में कार्यरत विश्वसनीय सूत्र ने हमें Karnataka Hindu Religious Institutions and Charitable Endowments Act 1997 के संशोधन बिल का एक नोट भेजा. (पूरी फ़ाइल) इस नोट में कानों से जुड़े बदलाव और इसके उद्देश्य के बारे में बताया गया है. इस नोट के 6 पॉइंट में साफ तौर पर लिखा है कि आर्थिक रूप से पिछड़े C ग्रुप संस्थानों की मांगों को पूरा करने के लिए इन मंदिरों के अर्चकों एवं मंदिर कर्मचारियों को कॉमन पूल फंड के तहत अधिक धनराशि की आवश्यकता है. इसलिए इस दृष्टि से इसे संशोधन को जरूरी समझा गया, इस राशि का उपयोग केवल C ग्रुप के मंदिरों और अर्चकों और मंदिरों के कर्मचारियों के लाभ के लिए किया जाएगा. इसके साथ ही नोट में कॉमन पूल फंड के तहत मंदिर के कर्मचारियों और अर्चकों को मिलने वाली सुविधाओं का एक लिस्ट मौजूद है. उदाहरण के लिए, अर्चकों के बच्चों को छात्रवृति, मंदिर के कर्मचारियों को इंश्योरेन्स, आवास सुविधा, मंदिर के कर्मचारियों के परिवार को काशी, और दक्षिण भारत की मुफ़्त यात्रा, श्रद्धालुओं के लिए सेंट्रल इनफॉर्मेशन सेंटर, इत्यादि.

इस नोट में सबसे नीचे यह भी साफ तौर पर बताया गया है कि 2003 में अधिनियम लागू होने के बाद से कॉमन पूल फंड का उपयोग केवल हिंदू धार्मिक संस्थानों के धार्मिक उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है और भविष्य में भी इसका उपयोग इसी उद्देश्य के लिए किया जाएगा. इसका उपयोग किसी अन्य उद्देश्य या अन्य धर्म के लोगों के लिए नहीं किया गया है.

न्यूज़18 के एंकर राहुल शिवशंकर ने मुजराई मंत्री रामालिंगा रेड्डी को जवाब देते हुए कहा कि “मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आप हिंदू मंदिरों का धन डायवर्ट कर रहे हैं, असल में आप कानून के अनुसार ऐसा नहीं कर सकते. मैं जो कह रहा हूं वह यह है कि किसी भी राज्य सरकार (यहां तक कि भाजपा सरकार) को किसी भी संप्रदाय के पूजा स्थलों आदि के विकास, रखरखाव या उन्नयन के लिए राज्य के पैसे का उपयोग क्यों करना चाहिए? उन्हें मंदिरों पर नियंत्रण क्यों रखना चाहिए?”

क्या सिद्धारमैया सरकार ने कानून में संसोधन कर मंदिर ट्रस्ट में गैर हिंदुओं को नियुक्त करने का प्रावधान लाया है?

हमने देखा कि भाजपा आईटी सेल के हेड अमित मालवीय ने जिस लाइन को हाइलाइट कर ये दावा किया था कि मंदिर ट्रस्ट में गैर हिंदुओं को नियुक्त करने का प्रावधान लाया गया है, असल में वो सिद्धारमैया के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनने से पहले कानून में मौजूद है. और हाल में इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है.

  • क्या लिखा है उस लाइन में?

प्रबंधन समिति का गठन में उस इलाके में रहने वाले व्यक्तियों में से कम से कम एक व्यक्ति जहां संस्था स्थित है: बशर्ते कि समग्र संस्था (composite institution) के मामले में हिंदू और अन्य धर्म दोनों के सदस्यों को नियुक्त किया जा सकता है.

  • क्या होता है समग्र संस्था (composite institution)?

अधिनियम की परिभाषा के 10A पॉइंट में दी गई जानकारी के अनुसार, समग्र संस्था (composite institution) का अर्थ है हिंदुओं और अन्य धर्मों के लिए सामान्य और संयुक्त रूप से रीति-रिवाज, परंपरा के अनुसार पूजा किया जाने वाला स्थल.

  • क्या है इस मुद्दे पर मंत्री का बयान?

द इकोनॉमिक टाइम्स से बात करते हुए मुजराई मंत्री रामालिंगा रेड्डी ने कहा कि वायरल दावा भ्रामक है कि सरकार ने यह प्रावधान लाया है कि मंदिरों के ट्रस्ट में गैर-हिंदुओं को नियुक्त करने का प्रावधान लाया गया है. केवल चिकमगलूर ज़िले में बाबा बुदन गिरी दरगाह, शिवमोग्गा ज़िले में भूतराय चौदेश्वरी और सादात अली दरगाह की समिति में हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग रहेंगे क्योंकि इन खास जगहों से दोनों धर्मों के लोगों की आस्था जुड़ी है.

ये बिल कर्नाटक के विधानसभा में पास हो गया, लेकिन भाजपा और जेडीएस के विरोध की वजह से ये बिल विधान परिषद में पास नहीं हो सका.

पुजारी संघ ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कांग्रेस के इस बिल का समर्थन किया और कहा कि छोटे मंदिरों के पास फंड की कमी है. इसके साथ ही उन्होंने विपक्षी भाजपा से आय के आधार पर राज्य के 36 हजार C ग्रेड मंदिरों के उत्थान के लिए समृद्ध A ग्रेड मंदिरों से कर के पैसे को छोटे मंदिरों में डायवर्ट करने के कांग्रेस सरकार के कदम का समर्थन करने का आग्रह किया.

एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अखिल कर्नाटक हिंदू मंदिर अर्चक (पुजारी) एसोसिएशन ने कहा कि “वर्तमान में हमें वेतन के रूप में केवल 5,000 रुपये मिल रहे हैं, जिसमें पूजा सामग्री भी शामिल है. वर्तमान मुजराई मंत्री रामलिंगा रेड्डी की तरह किसी ने भी हमारे लिए मजबूत आवाज नहीं उठाई है. कॉमन पूल फंड के पैसे का उपयोग केवल ‘C’ ग्रेड मंदिरों और पुजारियों के लिए के उत्थान के लिए किया जाएगा. हम इस निर्णय से बहुत खुश हैं.” एसोसिएशन ने भाजपा और जेडी (एस) नेताओं को ज्ञापन सौंपने का भी फैसला किया, जिसमें उनसे वर्तमान सरकार के संशोधनों का विरोध न करने का आग्रह किया जाएगा.

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Abhishek is a senior fact-checking journalist and researcher at Alt News. He has a keen interest in information verification and technology. He is always eager to learn new skills, explore new OSINT tools and techniques. Prior to joining Alt News, he worked in the field of content development and analysis with a major focus on Search Engine Optimization (SEO).