पाठ्यपुस्तक के पन्ने जैसी दिखने वाली एक तस्वीर जिसमें “दहेज के फायदे” के बारे में बताया गया है, सोशल मीडिया पर इस दावे के साथ वायरल है कि गुजरात बोर्ड ऑफ एजुकेशन इसे पाठ्यक्रम के हिस्से के तौर पर बच्चों को पढ़ा रहा है। ऑल इंडिया महिला कांग्रेस के ऑफिसियल अकाउंट ने इसे एक संदेश के साथ साझा किया है –“गुजरात मॉडल का भद्दा चेहरा…बच्चों को “दहेज़ के फायदे” सिखाना भाजपा महिला सशक्तिकरण का ही एक हिस्सा है। हम दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के बारे में @CMOGuj और IPC 498a द्वारा याद दिलाना चाहते हैं, यह अपराध हस्तक्षेप-योग्य, गैर-यौगिक और गैर-जमानती है”-(अनुवाद) । इस ट्वीट को फ़िलहाल डिलीट कर दिया गया है, लेकिन इसका आर्काइव आप यहां पर देख सकते हैं।

तस्वीर में दी गई सूची में बदसूरत लड़कियों की शादी, सुंदर और अनिच्छुक लड़कों को आकर्षित करना, दूसरों के बीच में पत्नी को प्यार और स्नेह पति कैसे बांटता है, इस बारे में लिखा गया है।

अन्य ट्विटर हैंडल @Deep4IND और @amanpreet9954 ने भी इसे ट्वीट किया हैं।

 

यह दावा फेसबुक पर भी चल रहा है।

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विभिन्न अन्य दावों के अनुसार, दहेज़ के फायदों के बारे में महाराष्ट्र के पाठ्यपुस्तक में भी पढ़ाया जा रहा है।

तथ्य जांच

यह पेज गुजरात बोर्ड के पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं है, 2017 में इस बारे में खबर आई थी जब इस चर्चित पेज को बैंगलोर के सेंट जोसेफ कॉलेज के समाजशास्त्र की एक किताब में पाया गया था। 21 अक्टूबर, 2017 को द टाइम्स ऑफ़ इंडिया के प्रकशित लेख के मुताबिक, कॉलेज दहेज़ के फायदे वाली पाठ्यसामग्री के चलते विवादों में घिर गया था।

एक रिपोर्ट में, द न्यूज मिनट ने लिखा है कि यह मुद्दा एक युवती द्वारा प्रकाश में आया था, जिसने दावा किया था,“बेंगलुरु के सेंट जोसेफ कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड साइंस में बैचलर ऑफ आर्ट्स के छात्रों को पाठ्य सामग्री दी गई है, जिसमें दहेज प्रथा का समर्थन किया गया है”-(अनुवाद)। कॉलेज ने शुरू में इस बात को नकारा था कि यह पेज सिलेबस का एक हिस्सा है और बाद में उन्होंने कहा कि इस समस्या की जड़ का पता लगाने के लिए जांच की जा रही है क्योंकि कॉलेज इस दमनकारी विचारों का समर्थन नहीं करता है। सेंट जोसेफ के छात्रों ने कहा कि यह चर्चित पाठ्यपुस्तक का पेज कॉलेज को सौंप दिया गया था जबकि कॉलेज ने इस पेज को वितरित नहीं करने का दावा किया था।

21 अक्टूबर, 2017 को सेंट जोसेफ के प्रोफेसर शांति नागर ने एक बयान जारी किया था, जिसमें कॉलेज के समाजशास्त्र विभाग ने एकजुट होकर “गैरजिम्मेदार” नागरिक पत्रकार की आलोचना की थी। अंग्रेजी के विभाग के प्रमुख प्रोफेसर चेरियन अलेक्जेंडर ने कहा कि “वेल्लोर के एक नागरिक-पत्रकार और इंजीनियरिंग छात्रा” ने 60 पेज के पाठ्यक्रम में से एक पृष्ठ को लेकर सोशल मीडिया में साझा कर दिया। प्रोफेसर अलेक्जेंडर ने कहा,“उसने पेज के कुछ वाक्यों के अंश को अंडर लाइन कर दिया,जो किसी भी शिक्षित भारतीय के लिए राजनीतिक रुप से अनुचित है, क्योंकि वह इससे दहेज़ प्रथा का समर्थन दिखाना चाहती थी, इसमें कोई शक नहीं कि यह अप्रिय विचार है। उसने उसी पेज के अंडर लाइन किये हुए वाक्यों के शुरुआत और अंत के अंश को अंडर लाइन नहीं किया है, पहले कहा गया है कि यह समाज के एक निश्चित वर्ग का विचार है, दूसरा लेखक की यह चेतावनी की इन तर्कों को निर्विवाद ही छोड़ देना चाहिए”-(अनुवाद)। इसमें दावा किया गया कि यह पेज दहेज़ पर एक परिप्रेक्ष्य प्रदान करने के लिए दिया गया है। उन्होंने कहा कि शिक्षकों के लिए छात्रों की तुलना, विश्लेषण और आलोचना करने के लिए विभिन्न रेंज से विचारधाराओं को सूचीबद्ध करना एक आम बात है।

The Department of English stands in solidarity with the Department of Sociology in the wake of the irresponsible attack…

Posted by SJC: The Department of English on Saturday, 21 October 2017

कॉलेज के इस स्टेटमेंट को द टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने भी रिपोर्ट किया था।

सेंट जोसेफ, बैंगलोर के छात्रों को जारी किया गया एक पाठ्य सामग्री का हिस्सा, जिसे कॉलेज के दावे के मुताबिक संदर्भ से विपरीत बता कर, सोशल मीडिया पर गुजरात राज्य बोर्ड द्वारा छात्रों को “दहेज के फायदे” के बारे में पढ़ाए जाने के दावे से साझा किया गया।

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About the Author

Pooja Chaudhuri is a senior editor at Alt News.