[ट्रिगर चेतावनी: आर्टिकल में शामिल कंटेंट हिंसक हैं. रिडर्स अपने विवेक के इस्तेमाल से इन्हें देखने या न देखने का फैसला करें.]
पिछले कुछ महीनों से सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर बच्चा चोरी या अपहरण की कोशिश और भीड़ के हमले के कथित वीडियोज़ खूब शेयर किए जा रहे हैं. इन वीडियोज़ के आधार पर, बच्चा चोरी की अफ़वाहें देश के कई हिस्सों में फैल रही हैं. आमतौर पर, इन वीडियोज़ में मन को विचलित करने वाले विज़ुअल्स और एक चेतावनी होती है कि कुछ लोग बच्चों को अगवा करने के लिए किसी खास एरिया में घूम रहे हैं.
2018 में इंडियास्पेंड ने पूरे भारत से न्यूज़ रिपोर्ट्स का विश्लेषण किया. इसमें बताया गया कि 2018 की शुरुआत से सोशल मीडिया पर वायरल हो रही अफवाहों या मेसेज की वजह से मॉब लिंचिंग की संख्या “…61 हो गई. इस साल मॉब लिंचिंग से 24 लोगों की मौत हो चुकी थी. 2017 में हुए 8 अलग-अलग हमलों में 11 लोग मारे गए थे. उनसे ये संख्या 4.5 गुना से ज़्यादा है और इस तरह की मौतों में दो गुना वृद्धि हुई है.” रिपोर्ट में ये फैक्ट्स भी बताया गया था कि इन हमलों की वजह से कानून प्रवर्तन प्रणाली में विश्वास की कमी हुई है. असम में 2018 की एक घटना ने वैश्विक मीडिया का ध्यान आकर्षित किया जिसमें बच्चा चोरी के शक में दो संगीतकारों की हत्या कर दी गई थी.
वीडियो के माध्यम से ग़लत सूचनाओं का स्वरूप बदला
पिछले कुछ सालों में बच्चा चोरी के संदर्भ में ग़लत सूचना की प्रकृति में कुछ बदलाव हुए हैं. शुरुआत में कुछ ऐसे वीडियो वायरल हुए जिन्हें जागरूकता बढ़ाने के लिए बनाए गए लंबे वीडियो से क्लिप किया गया था. जब इन वीडियोज़ से दहशत फ़ैलने लगी तो लोगों ने अनजान चेहरों को देखकर उनके बच्चा चोर होने के शक में उन्हें पीटना शुरू कर दिया. और उन हमलों के वीडियोज़ इस दावे के साथ शेयर किए जाने लगे कि ये असली बच्चा चोर थे जिन्हें सज़ा दी जा रही है. इसके बाद, अंगों की तस्करी के सबूत के रूप में कई कटे-फटे शवों की असंबंधित क्लिप शेयर की गयीं.
यूट्यूब कंटेंट क्रिएटर्स ने इन अफ़वाहों को और आगे बढ़ाते हुए स्क्रिप्टेड बच्चा चोरी के वीडियोज़ बनाने शुरू कर दिए. कभी-कभी इन वीडियोज़ को रीजनल भाषाओं में अपलोड किया जाता था. आखिरकार, बच्चा चोरी की सार्वजनिक प्रतिक्रिया एक टॉपिक बन गई. कंटेंट क्रिएटर्स ऐसे दर्शकों के माध्यम से इन अफ़वाहों से पैसे कमाने के लिए प्रेरित हुए. पिछले दिनों ऑल्ट न्यूज़ की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि कैसे नाटकीय वीडियोज़ पैसे कमाने जरिया बन गया है.
न्यूज़ रिपोर्ट्स में ज़िक्र किया गया है कि पुलिस ने बार-बार जनता से अफ़वाहों पर ध्यान न देने और कानून को हाथ में लेने से बचने की अपील की. इस रिपोर्ट में बच्चा चोरी और अंगों की तस्करी के 20 स्क्रिप्टेड वीडियोज़ शामिल हैं. इन वीडियोज़ में लोगों के डर को बढ़ाने की क्षमता है. और उन्हें यूट्यूब की मौजूदा कंटेंट मॉडरेशन पॉलिसी के संदर्भ में रखा गया है. इसका मकसद परेशान करने वाले स्क्रिप्टेड बच्चा चोरी वीडियो के संदर्भ में ऐसी पॉलिसी के दायरे, सीमाओं और संयम के तरीकों की ओर ध्यान आकर्षित करना है.
ऐसे वीडियोज़ का प्रभाव
स्क्रिप्टेड वीडियोज़ के गहरे सामाजिक प्रभाव पर कई रिपोर्ट्स आयी हैं. अक्सर, ये अफ़वाहें माता-पिता/वयस्कों को प्रभावित करती हैं क्योंकि उन्हें अपने बच्चों की सुरक्षा का डर होता है. इसलिए ऐसे कंटेंट से लोगों में भय, संदेह और घबराहट होती है और अक्सर इनका परिणाम ये होता है कि लोग संदिग्धों पर हमला कर देते हैं. इसके अलावा, इन वीडियोज़ में बच्चा अगवा करने वाले को लेकर कुछ स्टीरियोटीपिकल इंप्रेशन बनाया जाता है कि ये कौन हो सकता है. उन्हें इस आधार पर आंका जाता है कि वो सार्वजनिक रूप से कैसे कपड़े पहनते हैं और कैसे व्यवहार करते हैं. उदाहरण के लिए, स्क्रिप्टेड वीडियो में, व्यक्तियों को भिखारी/फ़कीर, स्क्रैप डीलर, फेरीवाले या यहां तक कि घुमक्कड़ के रूप में तैयार किया जाता है. भीड़ की हिंसा के ज़्यादातर मामले ग्रामीण क्षेत्रों से रिपोर्ट किए जाते हैं, नाटकीय वीडियोज़ में एक विशिष्ट सेटिंग होती है. जबकि कई मामलों में साधु और मानसिक रूप से विकलांग लोगों की मौत भीड़ के हमले से हुई है. ऐसे हमलों में सरकारी अधिकारियों और स्वास्थ्य कर्मियों को भी नहीं बख्शा गया.
ऑल्ट न्यूज़ ने पिछले कुछ सालों में बच्चे के अपहरण की ऐसी कई अफवाहों और वीडियोज़ की पड़ताल की है. (लिंक 1, लिंक 2, लिंक 3, लिंक 4, लिंक 5, लिंक 6, लिंक 7, लिंक 8) इसमें स्क्रिप्टेड या एडिटेड वीडियोज़ से असली जीवन में होनेवाले परिणामों का डिटेल में विश्लेषण किया गया है. साथ ही ये देखा गया है कि 30 अगस्त से 13 सितंबर, 2022 के बीच बच्चा चोरी की अफ़वाहों की वजह से संदिग्ध लोगों पर 27 हमले हुए. ऐसी कई रिपोर्ट्स भी आई हैं जिनमें बताया गया है कि कैसे असबंधित विज़ुअल्स और स्क्रिप्टेड वीडियोज़ असली घटनाओं के रूप में पेश किये गए.
मॉडरेशन पर यूट्यूब पॉलिसी
यूट्यूब कम्युनिटी गाइडलाइन्स में इन प्रोब्लमेटिक कंटेंट को एड्रेस करने के लिए कई श्रेणियों की रूपरेखा तैयार की गईं हैं. यहां हम हिंसक कंटेंट, मैनिपुलेटेड कंटेंट, चाइल्ड सेफ्टी और थंबनेल की पॉलिसी के बारे में बात करेंगे.
यूट्यूब की हिंसक या ग्राफ़िक कंटेंट के अंतर्गत इन्हें शामिल किया गया है:
- व्यक्तियों या लोगों के एक विशेष समूह के खिलाफ हिंसक कार्य करने के लिए दूसरों को उकसाना.
- नाबालिगों से जुड़े झगड़े.
- सड़क दुर्घटनाओं, प्राकृतिक आपदाओं, युद्ध के परिणाम, आतंकवादी हमले के बाद के विजुअल्स, सड़क पर लड़ाई, शारीरिक हमले, आत्मदाह, यातना, लाशें, विरोध या दंगे, डकैती, चिकित्सा प्रक्रिया या ऐसे अन्य विज़ुअल्स से संबंधित फ़ुटेज, ऑडियो या इमेजरी, सदमे के इरादे से दर्शकों को दुखी करना.
- दर्शकों को झटका देने या घृणा करने के इरादे से खून या उल्टी जैसे शारीरिक तरल पदार्थ दिखाने वाले फ़ुटेज या इमेजरी.
- बड़े पैमाने पर चोटों वाले शवों का फ़ुटेज जैसे कि कटे हुए अंग.
हमने जिन वीडियो का सैंपल लिया है उनमें संभवतः दर्शकों की संख्या बढ़ाने के लिए घृणित, खूनी थंबनेल के साथ-साथ शारीरिक हमलों, यातना, लाशों आदि के विज़ुअल्स हैं. ये सारी चीजें हिंसक या ग्राफ़िक पॉलिसी पर इन गाइडलाइन्स का सीधा उल्लंघन है. ज़्यादातर मामलों में ये ज़रूरी नहीं कि थंबनेल में वीडियो का असली कंटेंट दिखाया गया हो. इस तरह ये एक योजना के तहत किया जाता है ताकि दर्शक उस पर क्लिक करें.
ये वीडियो भी मैनीपुलेटेड कंटेंट की श्रेणी में आते हैं. इसे यूट्यूब ने ‘ऐसा कंटेंट बताया है जिसे तकनीकी रूप से हेरफेर किया गया है या इस तरह से छेड़छाड़ की गई है जिससे यूज़र्स को गुमराह किया जा सकें (कॉन्टेक्स्ट से अलग, वीडियो क्लिप से अलग). और ये गंभीर नुकसान का गंभीर जोखिम पैदा कर सकती है.’
चाइल्ड सेफ्टी पॉलिसी उन स्थितियों की रूपरेखा तैयार करती है जिन्हें माइनर्स के लिए खतरनाक माना जाता है. इसमें कहा गया है, “नाबालिगों को कभी भी ऐसी हानिकारक परिस्थिति में न डालें जिससे उन्हें चोट पहुंच सकती है, इसमें खतरनाक स्टंट, डेयर या मज़ाक शामिल हैं.” वीडियो में बच्चों को उठाकर, लापरवाही से ले जाने और कभी-कभी उनके करीब हथियार रखने की भी तस्वीरें हैं. ये ‘खतरनाक स्टंट’ साफ़ तौर पर चाइल्ड सेफ्टी पॉलिसी का उल्लंघन करते हैं.
थंबनेल पॉलिसी अलग-अलग प्रकार की तस्वीरों को सूचीबद्ध करती है जिन्हें थंबनेल के रूप में पोस्ट नहीं किया जा सकता है जिसके मुताबिक:
- हिंसक इमेजरी जिनसे सदमा या घृणा पैदा हो सकती है
- खून या जमा हुआ खून के साथ ग्राफ़िक या परेशान करने वाली इमेजरी
- थंबनेल जो दर्शकों को गुमराह करता है कि वे कुछ ऐसा देखने वाले हैं जो वीडियो में नहीं है
यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि यूट्यूब मोनेटाईज़ेशन पॉलिसी में ज़िक्र किया गया है कि कंटेंट का मोनेटाईज़ेशन करने के लायक होने के लिए कंटेंट क्रिएटर को कम्युनिटी गाइडलाइन्स का पालन करना होगा. पॉलिसी कहती है, “हमारी यूट्यूब चैनल मोनेटाईज़ेशन पॉलिसी के उल्लंघन के परिणामस्वरूप मोनेटाईज़ेशन को सस्पेंड किया जा सकता है या आपके सभी या किसी अकाउंट पर स्थायी रूप से डिसेबल किया जा सकता है.” लिस्ट में दिए गए वीडियोज़ इन गाइडलाइन्स का उल्लंघन कैसे करते हैं, इसके बारे में ऊपर बताया गया है. यहां कुछ वीडियो के स्क्रीनशॉट हैं जिन्हें हमने सैंपल के रूप में दिखाया है इनमें विज्ञापन हैं.
डिस्क्लेमर के साथ समस्या
ऑल्ट न्यूज़ ने पहले भी स्क्रिप्टेड CCTV वीडियो के संदर्भ में दिए जाने वाले डिस्क्लेमर के मामलों का डॉक्यूमेंटेशन किया है. बच्चा चोरी के वीडियो में डिस्क्लेमर अलग-अलग तरह से होते हैं. कुछ वीडियो में स्क्रीन पर कुछ सेकंड के लिए अंग्रेजी में डिस्क्लेमर होता है. और कुछ में ये डिस्क्लेमर हिंदी में होता है. वीडियो के अंत में बहुत सारे डिस्क्लेमर आते हैं जहां कलाकार बताते हैं कि उन्होंने वीडियो क्यों बनाया. उनका दावा है कि कंटेंट मनोरंजन के मकसद से और कभी-कभी बाल तस्करों के खतरों के बारे में वयस्कों को शिक्षित करने के लिए होते हैं. हालांकि, इन सभी मामलों में भयानक क्लिकबेट तस्वीरें और परेशान करने वाले विज़ुअल्स जैसे अंगों को बाहर निकालना, शरीर को काटना आदि दर्शकों को आकर्षित करने के लिए एक वॉइयरिस्टिक प्रलोभन के रूप में काम करते हैं. ये इसे गंभीर कंटेंट मॉडरेशन का मामला बनाता है.
ढेर सारे सवाल
पॉलिसी इश्यूज की प्रभावशीलता दर्शकों की संख्या की गतिशीलता से जुड़ी हुई है. यहां कई सवाल हैं जो महत्वपूर्ण हैं – स्टेकहोल्डर्स कौन हैं? इन हिंसक वीडियोज़ से कौन प्रभावित हो रहा है? क्या ये सिर्फ कानून प्रवर्तन का मुद्दा है? बच्चों द्वारा पेश किए गए कंटेंट बनाने के लिए सहमति प्रणाली क्या है? यूट्यूब ये कैसे मॉनिटर करता है कि ऐसे कौन से चैनल ‘आधिकारिक आवाज़’ हैं?
हर पॉलिसी का एक टार्गेटेड दर्शक वर्ग होता है. वीडियो की प्रकृति और बच्चा चोरी के शक पर सार्वजनिक प्रतिक्रिया की ज़मीनी रिपोर्ट निश्चित रूप से दिखाती है कि यहां टार्गेटेड दर्शक माता-पिता, अभिभावक और प्रभावशाली किशोर हैं जो सबसे ज़्यादा ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं जहां बच्चों के माता-पिता की निगरानी कम होने की संभावना है.
बातचीत में संतुलन के लिए इसे बच्चों के अधिकारों के दृष्टिकोण से देखना उपयोगी है. बच्चों पर यूट्यूब पॉलिसी गाइडलाइन्स अपमानजनक कंटेंट या यौन प्रकृति वाले कंटेंट तक सीमित है. बच्चों के संबंध में किस तरह के व्यवहार को हिंसक या अश्लील माना जा सकता है, इस बारे में गाइडलाइन्स संपूर्ण नहीं हैं. बच्चों के अधिकारों के सवाल को लाकर ऐसे वीडियोज़ के लिए अतिरिक्त चेक गेट बनाने की गुंजाइश है.
ऑल्ट न्यूज़ द्वारा ऊपर दिए गए कुछ सवालों के जवाब में एक यूट्यूब कम्युनिकेशन्स रिप्रेसेंटिव ने कहा कि प्लेटफ़ॉर्म की ज़िम्मेदारी के प्रयास चार स्तंभों पर केंद्रित थे: पॉलिसी का उल्लंघन करने वाले हिंसक कंटेंट को हटाना, ऑफ़िशियल कंटेंट को ऊपर उठाना, बॉर्डरलाइन कंटेंट के प्रसार को कम करना और विश्वसनीय क्रिएटर्स को पुरस्कृत करना. उन्होंने कहा कि दुनिया भर में 20 हज़ार से ज़्यादा लोग जिनमें भारतीय भाषा जानकार भी शामिल हैं, हमारी पॉलिसीज़ का उल्लंघन करने वाले कंटेंट की समीक्षा करने और उसे हटाने का काम करते हैं.
उन्होंने ये भी कहा कि आधिकारिक जानकारी जुटाना प्लेटफ़ॉर्म के लिए उतना ही ज़रूरी है जितना कि उल्लंघन करने वाले कंटेंट को हटाना और हानिकारक ग़लत सूचनाओं के प्रसार को रोकने के लिए प्लेटफ़ॉर्म में सुधार करना एक सतत प्रक्रिया थी.
हाल ही में यूट्यूब ने बच्चों से जुड़े कुछ खून वाले वीडियोज को कुछ यूज़र्स के लिए अनुपयुक्त बताकर फ़्लैग किया है. वे या तो मौजूद नहीं हैं या चेतावनी देते हैं कि ये कुछ यूज़र्स के लिए अनुपयुक्त है. इनमें से कुछ वीडियो के लिंक यहां दिए गए हैं: लिंक 1, लिंक 2, लिंक 3, लिंक 4, लिंक 5.
सैंपल वीडियोज़
बच्चा चोरी की अफवाहों के ज़्यादातर मामलों में सार्वजनिक धारणा के संदर्भ में एक प्रवृत्ति या पैटर्न होता है. उदाहरण के लिए किस तरह के लोगों की प्रोफ़ाइल बनाई जा रही है. सार्वजनिक व्यवहार की प्रकृति जो संदिग्ध गतिविधि के बराबर होगी, आदि. नीचे दिए गए वीडियो में बताया गया है कि बाल तस्करी करने वाला शख्स कैसा दिखता है. इसमें फटे-पुराने कपड़ों या रद्दी पहने व्यक्ति की छवि बनाते हुए बताया गया है कि अगवा करने वाला व्यक्ति ऐसा दिख सकता है. डिस्क्लेमर वीडियो की शुरुआत में पोस्ट किया गया है और टेक्स्ट अंग्रेज़ी में है. गौर करें कि ये जरूरी नहीं है कि सभी व्यूर्स इस भाषा के जानकार हों. वीडियो को 2019 में अपलोड किया गया था और आर्टिकल लिखे जाने तक इसे 12 मिलियन से ज़्यादा बार देखा जा चुका है.
नीचे दिए दूसरे वीडियो में अपहरणकर्ताओं को पकड़ने के लिए युवक हथियारों के साथ जाता है. डिस्क्लेमर में ज़िक्र किया गया है कि वीडियो का मकसद मनोरंजन करना है. फ़ीचर इमेज में दो डरावने दिखने वाले पुरुष एक बच्चे को छुरा घोंपते हुए दिख रहे हैं.क्या ऐसी तस्वीर मनोरंजन के दायरे में कैसे आ सकती है? वीडियो में हथियारबंद युवकों को कानून अपने हाथ में लेते हुए दिखाया गया है. चैनल ‘द थ्री ब्रो’ के 3,34,000 से ज़्यादा सब्सक्राइबर्स हैं और एक साल में इस वीडियो को 2 करोड़ 90 लाख से ज़्यादा बार देखा जा चुका है.
नीचे वीडियो में दिख रहे दृश्य परेशान करने वाले हैं. इसमें बच्चों को चीरने के लिए हथियार लहराए जा रहे हैं. वीडियो के अंत में एक मेसेज है जिसमें लोगों से घर में आए मेहमानों से सावधान रहने के लिए कहा गया है. इस तरह की टिप्पणी ग्रामीण क्षेत्रों में समस्याग्रस्त है जहां लोग अक्सर स्थानीय मेहमान पर भरोसा करते हैं. 2,52,000 से ज़्यादा सब्सक्राइबर्स वाले इस चैनल ‘बिहारी बाबू एंटरटेनमेंट’ ने लगभग एक साल में 27 लाख दर्शकों को इंगेज किया है.
ऐसे कई चैनल्स हैं जिन्होंने बच्चा चोरी पर कई वीडियोज़ पोस्ट किये हैं और ये चैनल्स लोगों को जागरूक करने का दावा करते हैं. अधिक से अधिक पहुंच के साथ कंटेंट को मोनेटाइज़ करने के अलावा इन वीडियोज़ के पीछे कोई औचित्य मालूम नहीं पड़ता.
‘अरविंद सिंह गोपालगंज’ नामक चैनल पर किडनी रैकेट और बाल तस्करी पर कुछ वीडियोज़ हैं. नीचे दिए गए वीडियो के बारे में ये दावा किया गया है कि ये जागरूकता फैलाने के लिए बनाया गया है. सवाल ये है कि क्या चैनल को एक ही विषय पर जागरूकता बढ़ाने के लिए ऐसे परेशान करने वाले वीडियोज़ की ज़रूरत है? एक साल में इस वीडियो को 3 लाख 57 हज़ार से ज्यादा बार देखा गया है. मेसेजेज़ की एक कॉमन थीम ये है कि ये वीडियो किडनी रैकेट और बाल तस्करी की रिपोर्ट्स पर आधारित बताए गए हैं और कहा गया है कि जनता को कुछ भी करने से पहले भिखारियों या इसी तरह के आवारा लोगों की जांच करनी चाहिए.
चैनल ‘साइ फ़िल्म प्रोडक्शन’ के 1 लाख 48 हज़ार सब्सक्राइबर्स हैं. इसमें बच्चा चोरी मामले पर ऐसे कई हिंसक वीडियोज़ हैं. लेकिन इसके कंटेंट को कॉमेडी के रूप में प्रसारित किया जाता है. नीचे वीडियो में न तो कोई डिस्क्लेमर है और न ही कोई मेसेज. इसमें खून खराबा, डर और हानिकारक चीजें दिखाई गई है. नीचे, इस चैनल के वीडियोज़ से मन को विचलित करने वाली फ़ीचर तस्वीरों का एक स्लाइड शो भी शामिल किया गया है.
ये यूट्यूब शॉर्ट्स, घटना को लाइव की तरह दिखाने के लिए रिकार्ड किये गए हैं. इनमें न तो कोई डिस्क्लेमर है और न ही कोई मेसेज. कमेंट सेक्शन में लोग पुलिस कार्रवाई की मांग करते हैं. हालांकि, वीडियो साफ़ तौर पर स्क्रिप्टेड है. गाइडलाइन्स के मुताबिक, इस तरह के वीडियो के लिए ज़रूरी संदर्भ की शर्त का उल्लंघन किया गया है. अचानक से इसमें लोगों का ग्रुप आता है.
भिखारियों की स्टॉक इमेजेज़ हैं जो व्यक्तियों को धार्मिक समुदाय, कभी मुस्लिम तो कभी हिंदू की तरह दिखाती हैं.
3 लाख 17 हज़ार सबस्क्राइबर्स वाले चैनल PBC एंटरटेनमेंट के पास बच्चा चोरी के कंटेंट में कई खून-खराबे वाली कल्पनाएं हैं. कुछ वीडियोज़ के लाखों व्यूज़ हैं. नीचे इस चैनल के कुछ वीडियोज़ के स्क्रीनशॉट हैं. यहां डिस्क्लेमर भी दिए गए हैं.
इसी तरह ऐसे वीडियोज़ भी हैं जिनमें साइकिल पर सवार एक फ़ेरीवाले को पीटा जाता है. चैनल ‘झमरू महतो कॉमेडी’ पर किडनी चोर और बच्चा चोरी पर दो वीडियोज़ हैं. FI देखने में परेशान करने वाले हैं और इन्हें तुरंत हटा लेना चाहिए. नीचे एक स्क्रीनशॉट है. इन वीडियोज़ को देखनेवालों की संख्या अक्सर लाखों में होती हैं.
यहां कुछ ऐसे वीडियोज़ हैं जिनमें बेहद परेशान करने वाले विज़ुअल्स हैं.
उपर दिए गए दोनों चैनलों, ‘भदोही का लवांडा‘ और ‘SD वाइन्स‘ में परेशान करने वाली फ़ीचर तस्वीरों के साथ कुछ वीडियोज़ हैं. नीचे उनके स्क्रीनशॉट्स दिए गए हैं:
‘कॉमेडियन गुरु‘ नामक चैनल के पास भी कई खून-खराबे वाले वीडियोज़ हैं. उनमें से एक वीडियो में एक व्यक्ति की मन को विचलित करने वाली तस्वीर है जो साफ़ तौर पर एक बच्चे का अंग निकाल रहा है. यूपी स्टार चैनल नामक चैनल और ‘देसी लवर‘ भी किडनी की लूटपाट और बच्चे के अपहरण पर कई वीडियोज़ में घृणास्पद इमेजरी का इस्तेमाल किया गया हैं.
चैनल ‘झमरू महतो कॉमेडी’ में कई परेशान करने वाले कंटेंट हैं. उनमें से एक वीडियो हमने यहां नीचे रखा है.
‘भागीरथ आशिक‘ नामक चैनल बच्चा चोरी की हिंसक कल्पना के साथ एक कॉमेडी चैनल के रूप में जाना जाता है. इसमें पुलिस की जबरदस्ती को नार्मलाइज़ करने वाला एक वीडियो भी है.
33 लाख 6 हज़ार सब्सक्राइबर्स के साथ ‘कॉमेडी प्लस विद नीतूआर्या‘ चैनल ने लगातार ऐसा काम किया है. बच्चा चोरी के कई वीडियोज़ में चैनल ने बेहद परेशान करने वाली इमेजरी रखी है. इनमें से एक वीडियो हमने यहां नीचे रखा है.
एक वीडियो ऐसा भी है जिसमें लोग संदिग्ध लोगों से आधार कार्ड की मांग कर रहे हैं. इससे भीड़ के खिलाफ़ खुद को बचाने के लिए आइडेंटिफ़िकेशन डॉक्यूमेंट्स को सार्वजनिक करने पर गोपनीयता का मुद्दा भी उठता है.
चैनल ‘RS फ़नी‘ बच्चा चोरी की घटनाओं को दिखाने के लिए कई वीडियोज़ में कटे-फ़टे बच्चों की तस्वीरें दिखाई गई हैं.
समस्या का सारांश
कुल मिलाकर, ऊपर लिस्ट में दिए गए इतने सारे चैनल्स बार-बार हिंसक कंटेंट बनाते हैं जिनमें सार्वजनिक प्रतिक्रिया और कानून व्यवस्था की समस्याओं को बढ़ावा देने की क्षमता है. और ये यूट्यूब की मॉनिटरिंग पॉलिसी में कमी दर्शाता है. ये वीडियो जनता में गुस्से और अन्य भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को ट्रिगर करते हैं. ये भीड़ की हिंसा को सामान्य प्रतिक्रिया के रूप में पेश करते हैं. साथ ही पुलिस द्वारा अतिरिक्त न्यायिक कार्रवाई, हाथों में हथियार और एक दूसरे पर सार्वजनिक जांच या निगरानी को प्रोत्साहित करते हैं. ये फ़ैक्ट है कि इनमें से कुछ वीडियोज़ विज्ञापनों के साथ आते हैं. इससे पता चलता है कि प्लेटफ़ॉर्म और कंटेंट क्रिएटर्स दोनों को ही ऐसे कंटेंट से आर्थिक रूप से फ़ायदा हो रहा है जिसमें सिर्फ दर्शकों का ‘गंभीर नुकसान’ होना है.
यूट्यूब की ‘आधिकारिक जानकारी’ के रूप में परिभाषित करने की प्रक्रिया में कोई पारदर्शिता नहीं है कि भारतीय भाषा विशेषज्ञ समुदाय की गाइडलाइन्स का उल्लंघन करने वाले कंटेंट को कैसे नियंत्रित करते हैं, इस संदर्भ में विज्ञापन देने वाले अनुकूल कंटेंट के लिए वीडियो को वैध मानना ज़्यादा जरूरी है और इसके ‘कॉन्टेक्स्ट’ पर ध्यान देना ज़रूरी नहीं है. वीडियो पर दर्शकों के ज़्यादा कमेंट्स में खूनी कंटेंट को फ़्लैग करने की अनुशंसा या सुझाव नहीं दिया गया है. ये सनसनीखेज़ बाज़ार है और ये चैनल्स इसका फ़ायदा उठाते दिख रहे हैं. इनमें से कुछ वीडियोज़ को देखने वाले की संख्या चौंका देने वाली है जैसा कि नीचे दिए गए स्क्रॉल वीडियो में दिखता है.
सत्ता को आईना दिखाने वाली पत्रकारिता का कॉरपोरेट और राजनीति, दोनों के नियंत्रण से मुक्त होना बुनियादी ज़रूरत है. और ये तभी संभव है जब जनता ऐसी पत्रकारिता का हर मोड़ पर साथ दे. फ़ेक न्यूज़ और ग़लत जानकारियों के खिलाफ़ इस लड़ाई में हमारी मदद करें. नीचे दिए गए बटन पर क्लिक कर ऑल्ट न्यूज़ को डोनेट करें.
बैंक ट्रांसफ़र / चेक / DD के माध्यम से डोनेट करने सम्बंधित जानकारी के लिए यहां क्लिक करें.