31 अक्टूबर को सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ की प्रतिमा का अनावरण किया गया। पर उससे पहले ही परियोजना पर विवाद शुरू हो गया था, आदिवासी संगठन अनावरण समारोह के खिलाफ विरोध कर रहे है और समारोह का बहिष्कार करने का ऐलान कर दिया था। आदिवासियों ने दावा किया कि परियोजना के लिए उनकी जमीनें अन्यायपूर्ण तरीके से हासिल की गई थी।
सोशल मीडिया पर, पत्रकार दिलीप मंडल ने एक तस्वीर शेयर की जिसमें एक गरीब परिवार को जमीन पर खाना बनाते और उसके बैकग्राउंड में पटेल की मूर्ति नज़र आ रही है। उन्होंने इन शब्दों के साथ इस तस्वीर को ट्वीट किया था, “अगर सरदार पटेल जिंदा होते तो क्या इस बात की इजाजत देते की आदिवासी किसानो की जमीन और खेत छीनकर उस जमीन पर उनकी मूर्ति बनाई जाये?” उनके ट्वीट को करीब 200 लोगो ने रीट्वीट किया। इसे शिल्पा बोधखे ने भी शेयर किया, जो खुद को महाराष्ट्र प्रदेश महिला कांग्रेस कमेटी की सचिव बताती हैं।
फोटो को ट्विटर पर आम आदमी पार्टी (आप) समर्थक द्वारा भी शेयर किया गया।
वेबसाइट, BoltaUP बोलता यूपी द्वारा भी इसी तस्वीर को एक लेख में प्रकाशित किया गया है। तस्वीर को हैशटैग #StatueofDisplacement के साथ कई सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं द्वारा शेयर किया गया है।
फ़ोटोशॉप तस्वीर
सोशल मीडिया पर ट्वीट की गई तस्वीर फ़ोटोशॉप है। ऑल्ट न्यूज़ ने पटेल की मूर्ती के आगे के हिस्से को क्रोप किया और गूगल रिवर्स इमेज सर्च टूल का उपयोग करके पाया कि जमीन पे बैठी मां और उसके बच्चों की तस्वीर एक अलग तस्वीर है जिसे इस फोटो में शामिल किया गया है।
मूल तस्वीर 2010 में खींची गई थी। यह रॉयटर्स की वेबसाइट पर उपलब्ध है। तस्वीर को अहमदाबाद, गुजरात में अमित दवे द्वारा लिया गया था। ऑल्ट न्यूज सरदार पटेल की मूर्ति की तस्वीर का स्रोत नहीं ढूंढ सका।
उद्घाटन की तारीख नजदीक आने के साथ सोशल मीडिया पर फर्जी तस्वीरों से प्रचार जारी था। हालांकि परियोजना पर आदिवासी संगठनों द्वारा किए गए विरोधों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, पर फोटोशॉप तस्वीर का उपयोग कर लोगो को भ्रमित करना अनुचित है, जो विस्थापित लोगों की गंभीर चिंताओं को महत्वहीन कर देता है।
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