इतिहास में कुछ ही राजनेताओं ने जवाहरलाल नेहरू जितनी प्रशंसा और घृणा प्राप्त की होगी। अपनी मृत्यु के पांच दशक बाद भी, भारत के पहले प्रधानमंत्री सर्वोच्च राजनीतिक व्यक्तित्व के साथ-साथ, विशेष रूप से सोशल मीडिया में, दुष्प्रचार का भी मुख्य निशाना बने हुए हैं। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेहरू के प्रति अपनी पार्टी के सम्मान के बारे में सार्वजनिक रूप से अपने विचार व्यक्त किए हैं, फिर भी, उनकी पार्टी के कई समर्थक जिनमें कुछ को प्रधानमंत्री स्वयं फॉलो करते हैं, उनके बारे में गलत जानकारी फैलाने में सबसे आगे रहते हैं। यहां प्रस्तुत है, जवाहरलाल नेहरू के बारे में गलत सूचनाओं और/या दुष्प्रचार के उदाहरणों का एक संकलन, जिसे ऑल्ट न्यूज़ ने जुटाया है।
1. आरएसएस शाखा में नेहरू के भाग लेने का झूठा दावा
क्या भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आरएसएस की शाखा में भाग लिया था? हां, अगर कोई सोशल मीडिया में प्रसारित तस्वीर और उसके साथ की संदेश पर विश्वास करे, तो। एक फेसबुक पेज आई सपोर्ट डोभाल (I Support Doval) ने इस तस्वीर को इस संदेश के साथ पोस्ट किया- “बहुत मुश्किल से फोटो मिला है ये नेहरू जी आरएसएस की शाखा में खड़े हैं! अब बता भी दो कि क्या नेहरू जी भी भगवा आतंकी थे…”।
तस्वीर में वास्तव में पंडित नेहरू हैं, लेकिन वह आरएसएस शाखा में भाग नहीं ले रहे हैं। यह तस्वीर वर्ष 1939 की है और इसे उत्तर प्रदेश के नैनी में क्लिक किया गया था। पंडित नेहरू को सफेद टोपी पहने देखा जा सकता है, जबकि 1925 में पेश की गई आरएसएस की वर्दी में काली टोपी है, सफेद टोपी नहीं।
2. बहन और भतीजी के साथ स्नेहपूर्ण तस्वीरों को शरारती इरादे से शेयर किया
नेहरू को एक चरित्रहीन व्यक्ति के रूप में पेश करने की कोशिश की गई थी। भाजपा आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय और कई अन्य लोगों द्वारा नेहरु के बहन और भतीजी के साथ उनकी तस्वीरें दूसरों के बीच शेयर की गई थीं।
पहली और तीसरी तस्वीर (बाएं से दाएं) में देखी गई महिला जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित हैं। आखिरी तस्वीर (नीचे दाएं) में देखी गई महिला, उनकी भतीजी और विजयलक्ष्मी पंडित की पुत्री नयनतारा सहगल हैं।
3. नकली उद्धरण: “मैं जन्म की दुर्घटना से हिंदू हूं”
पिछले कुछ सालों से भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नाम से एक बयान ऑनलाइन प्रसारित है। इसके मुताबिक, नेहरू ने कहा था, “मैं शिक्षा से अंग्रेज, संस्कृति से मुस्लिम और केवल दुर्घटनावश हिन्दू हूं”। जिन लोगों ने दावा किया कि नेहरू ने यह कहा था, उनमें बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय और भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा, जिन्होंने हाल ही में इस बारे में रिपब्लिक टीवी पर बहस की थी, शामिल हैं।
ऑल्ट न्यूज़ ने पाया कि यह बयान जवाहरलाल नेहरू द्वारा नहीं, बल्कि हिंदू महासभा के नेता एन बी खरे ने दिया था, जिन्होंने पहली बार 1959 में दावा किया था कि नेहरू ने इन शब्दों को अपनी आत्मकथा में कहा था। यह कथन नेहरू की आत्मकथा में कहीं भी नहीं है।
4. झूठा दावा : नेहरू ने सुभाष चंद्र बोस को ‘युद्ध अपराधी’ कहा
नेहरू के विरोधियों द्वारा सोशल मीडिया में एक पत्र खूब शेयर किया गया है। नेहरू द्वारा तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली को लिखे इस पत्र के अनुसार, सुभाष चंद्र बोस को “युद्ध अपराधी” कहा गया है, जिन्होंने पत्र के अनुसार रूसी क्षेत्र में प्रवेश किया। इस पत्र में 27 दिसंबर, 1945 की तारीख है, जबकि घटनाओं की आधिकारिक जानकारी के अनुसार अगस्त 1945 में ताइवान में हुए एक एयरक्रैश में बोस की मृत्यु हो गई थी।
ऑल्ट न्यूज़ ने इस दावे की तथ्य जांच की और पाया कि यह पत्र नेहरू द्वारा लिखा नहीं गया था। माना जाता है कि यह, नेहरू के स्टेनोग्राफर श्यामलाल जैन की गवाही का हिस्सा था। बोस के रहस्यमय ढंग से गायब होने की जांच के लिए 1970 में स्थापित खोसला आयोग के समक्ष जैन ने यह दावा किया था। इसलिए यह पत्र दिसंबर 1945 में नेहरू ने लिखवाया था, यह दावा गलत है। ऑल्ट न्यूज़ ने पाया कि नेहरू और आसफ अली, जिनके दिल्ली आवास में इस पत्र के लिखे जाने का दावा किया गया था, उन तारीखों में दिल्ली में नहीं थे।
5. बोस की तस्वीर वाले नोटों को खत्म करने का झूठा दावा
सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर वाली एक करेंसी नोट की तस्वीर को ऑनलाइन शेयर कर दावा किया गया था कि ये नोट जवाहरलाल नेहरू सरकार द्वारा ‘बन्द करवा दिए गए’ थे। इस तस्वीर के साथ दिए गए पाठ में कहा गया था- “नेताजी सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर वाला 5 का नोट जिसे नेहरूजी ने बंद करवा दिया था , ताकि भारतीय इस सच्चे स्वतंत्रता सेनानी को भूल जाये लेकिन इसे इतना शेयर करो की सरकार इसे वापस शुरू कर दे”
ऑल्ट न्यूज़ की तथ्य-जांच में पाया गया कि ये नोट स्वतंत्रता पूर्व के भारत में आजाद हिंद बैंक द्वारा जारी किए गए थे, जिसे अंग्रेजों के खिलाफ आजाद हिंद फौज के युद्ध प्रयासों को वित्त पोषण के लिए, 1944 में म्यांमार के यांगून में स्थापित किया गया था। ये करेंसी नोट, कभी कानूनी मुद्रा नहीं रहे। इस प्रकार, नेहरू सरकार द्वारा इन नोटों को बंद करने का कोई सवाल ही नहीं था।
6. शिक्षा नीति पर ब्रिटिश मंत्री द्वारा नेहरू की आलोचना का झूठा दावा
“निम्नलिखित क्लिप के व्यक्ति ब्रिटिश कैबिनेट के पहले मुस्लिम मंत्री हैं। वह स्पष्ट कह रहे हैं कि नेहरू ने भारत में हिंदू धर्म को व्यवस्थित रूप से नष्ट किया है। इस वीडियो को देखने के लिए कृपया 2 मिनट निकालें।” – इस संदेश के साथ के वीडियो में एक बुजुर्ग सज्जन पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की शिक्षा नीति की आलोचना करते हुए दिखलाई पड़ते हैं। दावा है कि यह व्यक्ति ब्रिटिश कैबिनेट के पहले मुस्लिम मंत्री हैं। संदेश के साथ यह वीडियो व्हाट्सएप पर भी खूब शेयर किया गया था।
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ऑल्ट न्यूज़ ने पाया कि उपरोक्त वीडियो को यूट्यूब पर ‘हिंदू अकादमी’ (Hindu Academy) नामक एक चैनल द्वारा पोस्ट किया गया था। हिंदू अकादमी ब्रिटेन स्थित एक संगठन है जो ब्रिटेन के स्कूलों में हिंदू धर्म को बढ़ावा देने और पढ़ाने में शामिल है। वीडियो में दिखते व्यक्ति कोई ब्रिटिश कैबिनेट मंत्री नहीं, बल्कि जय लखानी हैं, जो अपने ट्विटर प्रोफाइल पर खुद को सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी और हिंदू धर्म के शिक्षक बताते हैं। लखानी के वीडियो हिंदुत्व समर्थक समूहों द्वारा अक्सर शेयर किए जाते हैं।
7. भीड़ द्वारा नेहरू की पिटाई का झूठा दावा
कई सोशल मीडिया यूजर्स ने जवाहरलाल नेहरू की एक तस्वीर इस दावे के साथ शेयर की थी कि चीन के साथ 1962 के युद्ध में भारत की हार के बाद उन्हें भीड़ ने मारा था। ऑल्ट न्यूज़ ने पाया कि 2013 से शुरुआती उदाहरण के साथ, सालों से यह दावा प्रसारित था।
ऑल्ट न्यूज़ ने पाया कि वह तस्वीर वास्तव में 1962 की थी, मगर इसे भारत-चीन युद्ध से पहले लिया गया था। उस युद्ध अथवा किए गए दावे से इसका कोई संबंध नहीं था। वह फोटो जनवरी 1962 में पटना में आयोजित कांग्रेस पार्टी के पूर्ण सत्र के दौरान ली गई थी। सभा में भगदड़ हो गई थी और नेहरू ने व्यवस्था बहाल करने के प्रयास में भीड़ में जाने की कोशिश की, लेकिन सुरक्षा कर्मियों द्वारा रोक लिए गए थे।
8. 1948 ओलंपिक में फुटबॉल टीम को वित्तीय सहायता की कमी का झूठा दावा
सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर दो तस्वीरों को जोड़कर बनाई गई एक तस्वीर शेयर की गई थी। बाईं ओर की तस्वीर दो खिलाड़ियों को एक-दूसरे के साथ हाथ मिलाते हुए दिखाती है, जबकि साथ वाली तस्वीर में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अपने पालतू कुत्ते के साथ हवाई जहाज से उतरते दिख रहे हैं। इस पोस्ट का संदेश है कि भारतीय फुटबॉल टीम के पास उस समय फुटबॉल खेलने के लिए जूते नहीं थे, जब नेहरू का कुत्ता हवाई जहाज में घुमा करता था।
तथ्य-जांच में ऑल्ट न्यूज़ ने पाया कि भारतीय फुटबॉल टीम को वित्तीय सहायता की कमी के कारण जूतों के बिना खेलने के लिए मजबूर नहीं किया गया था, बल्कि खिलाड़ियों ने नंगे पैर खेलना पसंद किया था, क्योंकि वे उसके आदि थे। भारतीय खिलाड़ियों ने बाद में भी तबतक नंगे पैर खेलना जारी रखा, जब तक अंतरराष्ट्रीय नियमों में बूट पहनना अनिवार्य नहीं किया गया।
जवाहरलाल नेहरू हमेशा से दक्षिणपंथी सोशल मीडिया तंत्र के निशाने पर रहे हैं, जिसने उन्हें बदनाम करने के लिए कहानियां गढ़ने और तस्वीरों से छेड़छाड़ करने के विभिन्न साधन अपनाए हैं। उनकी वंश से लेकर वह एड्स से मरे जैसे झूठे दावों तक, नेहरू के आसपास व्यापक अफवाहें रही हैं। स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे बड़े नेताओं में एक, और सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे, नेहरू ने अपने पीछे एक शक्तिशाली विरासत छोड़ी है, जिसे मिटाने के लिए व्यवस्थित, संगठित और दुर्भावनापूर्ण प्रयास होते रहते हैं।
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