अक्टूबर माह ऑल्ट न्यूज़ के लिए व्यस्त भरा रहा। गलत सूचनाएं और झूठी ख़बरें सोशल मीडिया पे व्यापक रूप से फैलाई गई।
सबरीमाला मुद्दा सोशल मीडिया पर विरोध का केंद्र बना
केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की इजाजत देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के परिणामस्वरूप भगवान अयप्पा के भक्तों, जिन्हें ऐसा दावा किया जाता है कि हिंदुत्व ताकतों का समर्थन प्राप्त है और राज्य सरकार के बीच एक तनावपूर्ण स्थिति उत्पन्न देखने को मिली। संयोग से, सोशल मीडिया पे झूठी खबरों के माध्यम से जनता की राय और झुकाव को प्रायोजित तरीके से बदलने का प्रयास किया गया।
1. बीजेपी से के. सुरेंद्रन ने झूठा दावा किया कि एक महिला पुलिस क्रूरता के कारण घायल हो गयी
“केरल के मुख्यमंत्री श्री पिनाराई विजयन, याद रखें कि आप एक निर्वाचित मुख्यमंत्री हैं। आपकी जिम्मेदारी सभी को ध्यान में रखने और तदनुसार कार्य करने की है। सबरीमाला मुद्दे में, आप अपनी शक्ति @cpimspeak @CMOKerala का उपयोग करके हमारी माताओं पर क्रूरता पूर्वक हमला करवाके बहुमत की भावनाओं को अनदेखा कर रहे हैं।”(अनुवादित) यह संदेश केरल बीजेपी के महासचिव के सुरेंद्रन ने ट्वीट किया था, जिन्होंने केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन को निशाना बनाते हुए राज्य पुलिस पर सबरीमाला मुद्दे को लेकर विरोध प्रदर्शन को ठीक से न संभाल पाने का इल्जाम लगाया। अपने सन्देश के साथ, सुरेंद्रन ने जमीन पर घायल एक महिला की तस्वीर को भी ट्वीट किया।
Kerala CM Mr. @vijayanpinarayi, just remember you are an elected CM. You have the responsibility to take everyone into account and act accordingly. In Sabarimala issue, you are ignoring the majority feelings, brutally attacking our mothers using your power @cpimspeak @CMOKerala pic.twitter.com/Srho66krj2
— K Surendran (@surendranbjp) October 17, 2018
ऑल्ट न्यूज ने के सुरेंद्रन के दावे की जांच की और उसे झूठा पाया। तस्वीर में घायल महिला पर पुलिस कर्मियों द्वारा हमला नहीं किया गया था बल्कि वह पत्थर से चोट लगने के कारण घायल हो गई थी। घटना के वीडियो फुटेज की जांच और विश्लेषण करने के बाद यह स्पष्ट हो गया।
पुलिस क्रूरता का आरोप लगाने के लिए पुरानी, असंबंधित तस्वीरो का उपयोग किया गया
7 अक्टूबर को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने की इजाजत देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में 7 अक्टूबर को, हजारों लोगों ने रैली निकाली। सोशल मीडिया पर इस रैली का इस दावे के साथ राजनीतिकरण किया गया कि केरल पुलिस ने इन प्रदर्शनकारियों पर क्रूरतापूर्वक भारी बल प्रयोग किया था। ट्विटर पर कई यूजर्स द्वारा तस्वीरों का एक सेट शेयर किया गया था जिसमें दावा किया गया था कि केरल पुलिस ने “सुप्रीम कोर्ट के सबरीमाला फैसले के विरोध में स्वामीय अय्यपा का शांतिपूर्वक जप कर रहे हिंदुओं पर हमला किया” और महिलाओं व बच्चों को भी नहीं छोड़ा।
Shame on you who went to USA for cancer treatment @vijayanpinarayi how did you treat women and senior citizens protesting reg #SabrimalaVerdict? Are you a human being????? @narendramodi Throw him out.. Keralite women and men join hands and do the impossible! pic.twitter.com/4RegyId9Ye
— meena das narayan (@MeenaDasNarayan) October 9, 2018
सोशल मीडिया पर शेयर की गई तस्वीरों का हाल ही हुई सबरीमाला विरोध प्रदर्शन से कोई संबंध नहीं था। इन तस्वीरों को जुलाई 2018 में, लिया गया था जब केरल पुलिस ‘केएसयू सचिवालय मार्च’ के प्रदर्शनकारियों पर सख्ती से पेश आई थी। इस रैली का नेतृत्व कांग्रेस पार्टी की छात्र इकाई, भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ एनएसयूआई (NSUI) ने किया था। इन तस्वीरों को 4 जुलाई को एनएसयूआई के आधिकारिक अकाउंट से ट्वीट किया गया था। सोशल मीडिया पर इस्तेमाल की जाने वाली एक अन्य तस्वीर 2015 में ली गयी थी। उसका भी सबरीमाला विरोध प्रदर्शन से कोई संबंध नहीं था।
3. केरल पुलिसकर्मी को सबरीमाला में हिंसा उकसाते CPM कार्यकर्ता होने का दावा किया गया
“त्रिवेन्द्रम के इस सक्रिय सीपीएम कैडर वल्लभ दास से मिलें। यह केरल पुलिस में भर्ती भी नहीं किया गया है, फिर भी यह गुंडा पुलिस वर्दी में पिछले पांच दिनों के दौरान #शबारीमालाई विरोध कर रहे निर्दोष #अयप्पा भक्तों पर हमला करने की कोशिश कर रहा था ..@rsprasad.” (अनुवादित) पुलिस वर्दी में एक व्यक्ति की तस्वीर सोशल मीडिया में इस दावे के साथ प्रसारित की गई कि यह व्यक्ति सीपीआई (एम) पार्टी का सदस्य है और उसने पुलिस के भेष में सबरीमाला विरोध प्रदर्शन, जिसने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देने के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद से राज्य को हिलाकर रख दिया, के दौरान इकट्ठा हुए प्रभु अयप्पा के भक्तों पर हमला किया था।
तस्वीर में दिख रहे व्यक्ति, जिसके पुलिस की वर्दी पहने सीपीएम कार्यकर्ता होने का दावा किया गया, वास्तव में एक पुलिसकर्मी था, न कि राजनीतिक कार्यकर्ता। केरल पुलिस ने फेसबुक पोस्ट के माध्यम से यह पुष्टि की है कि यह व्यक्ति सबरीमाला स्थित केएपी पांचवीं बटालियन का पुलिसकर्मी है। केरल पुलिस ने सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं को नकली प्रचार से सावधान रहने की अपील की है।
सांप्रदायिक नफरत फैलाने वालों का कोई अंत नहीं
दुष्प्रचार को पक्षपात, भय और घृणा फैलाने के लिए बड़े प्रभावी ढंग से हथियार बनाया गया है। अक्टूबर में भी पिछले कई महीनों में देखी गई प्रवृत्ति की एक अगली कड़ी जैसे थी।
1. अमृतसर त्रासदी में ट्रेन के चालक के ‘इम्तियाज अली’ होने की अफवाह
60 से ज्यादा लोगों ने अमृतसर रेल हादसे में अपनी जान गंवा दी, दशहरे की शाम रेल-पटरियों पर जमा होकर रावण का पुतला दहन देख रहे लोग रेलगाड़ी के चपेट में आ गए, वहीं, हादसे के कुछ ही घंटे बाद सोशल मीडिया में ट्रेन ड्राइवर का नाम इम्तियाज अली होने का दावा वायरल होने लगा।
यह दावा फेसबुक और ट्विटर दोनों पर वायरल हो गया था। सोशल मीडिया पर घृणित लोगों द्वारा त्रासदी को सांप्रदायिक बनाने की कोशिश की गई थी। रेलवे प्रशासन के चालक के लिखित बयान के अनुसार, चालक का नाम अरविंद कुमार था, न कि इम्तियाज अली।
2. अज्ञात बदमाशों द्वारा सांड पर एसिड हमले को सांप्रदायिक रंग दिया
एक ट्विटर यूजर गिरीश भारद्वाज, जो खुद को विश्व हिंदू परिषद (विहिप) का सदस्य बताते हैं और जिन्हें रेल मंत्री पियुष गोयल के कार्यालय का ट्विटर अकाउंट फॉलो करता है, ने 28 अक्टूबर को ट्वीट किया- “शांति प्रेमियों द्वारा कर्नाटक के तुमाकुरु में सांड पर एसिड हमला। क्या सिकुलर इसकी निंदा करेंगे? इस पर पेटा अधिनियम?”,– (अनुवादित) सोशल मीडिया में मुस्लिम समुदाय के लिए हिंदुत्व हैंडल्स द्वारा “शांति प्रेमियों” (Peace Lovers) शब्दों का उपयोग अक्सर किया जाता है।
जैसा कि बाद में पता चला, सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीरों को फेसबुक यूजर हरीश कुमार द्वारा शेयर किया गया था। उनके पोस्ट (अब डिलीट कर दी गई है) में कहा गया था कि कुछ शरारती तत्वों ने अरालेपेट, तुम्कर में एसिड के साथ बैल पर हमला किया, वायरल हुए दावों के विपरीत, जिसमें यह बताया था की यह घटना “तुमाकुरु” में हुई थी। इस घटना को जानबूझकर एक सांप्रदायिक दिशा दी गयी थी।
3. बिहार में हिंदू लड़की पर मुस्लिम लड़के द्वारा हमले का झूठा दावा किया गया
“गोपालगंज जिल्ले में इंटर के छात्रा प्रियंका कुशवाहा पर मुस्लिम लड़के ने जान से मारने की नियत से उसके शरीर पर चाकू से ताबड़तोड़ हमला किया आतंकी मुस्लिम धर्म को शांति का धर्म बताने वाले कहा है ?? कहा है सेक्युलर जानवर ?? सेक्युलरो की वजसे ही ऐसी घटना घटती है” यह संदेश एक घायल महिला की तस्वीरों के साथ कई ट्विटर उपयोगकर्ताओं द्वारा शेयर किया गया जिन्हें पियुष गोयल के कार्यालय के ट्विटर अकाउंट फॉलो करता है।
11 अक्टूबर की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि संदीप गिरि नाम के एक आदमी ने मंदिर से घर लौटती एक महिला पर हमला किया था। जब उसका अनुरोध अस्वीकार कर दिया गया तो उसने एक चाकू से हमला किया। यह घटना बिहार में गोपालगंज के कटेया में हुई थी। इस मीडिया संस्थान के कथन की पुष्टि करने के लिए, ऑल्ट न्यूज़ ने गोपालगंज जिला मजिस्ट्रेट अनिमेष कुमार पराशर से संपर्क किया। उन्होंने बताया कि गिरफ्तार किया गया व्यक्ति मुस्लिम समुदाय का नहीं था और सोशल मीडिया में चल रहा ऐसा दावा इस मुद्दे को सांप्रदायिक बनाने का प्रयास है।
भड़काऊ मीडिया रिपोर्ट
सांप्रदायिक सदभाव का दुष्प्रचार सोशल मीडिया पर निरंतर जारी है, लेकिन कुछ घटनाओं को भड़काने वाली मीडिया रिपोर्टों से यह और ख़राब हो गया।
1. मीडिया ने अंकित गर्ग हत्या के मामले को सांप्रदायिक बनाया
31 वर्षीय शिक्षक अंकित कुमार गर्ग को 1 अक्टूबर को दिल्ली में गोली मार दी गई थी। घटना के तुरंत बाद, कई समाचार संगठनों ने बताया कि यह ऑनर किलिंग का मामला था। इन ख़बरों के आधार पर पीड़ित के परिवार द्वारा आरोप लगाया गया था कि जिस मुस्लिम लड़की के साथ उसके संबंध थे, उसी के परिवार द्वारा अंकित की हत्या हुई थी। कई समाचार संगठनों ने इस हत्या को एक सांप्रदायिक रंग दे दिया था।
अंकित कुमार गर्ग की हत्या ऑनर किलिंग का मामला नहीं था। 5 अक्टूबर, 2018 को एक प्रेस रिलीज़ के द्वारा दिल्ली पुलिस ने इसकी पुष्टि की थी। प्रेस विज्ञप्ति में स्पष्ट रूप से कहा गया कि 21 वर्षीय आकाश को अंकित गर्ग की हत्या के लिए गिरफ्तार कर लिया गया है। हत्या का मकसद अभियुक्त के मित्र के साथ पीड़ित के रिश्ते पर ईर्ष्या थी।
2. “कट्टर इंजीलवाद” को गुरुग्राम हत्या काण्ड के मकसद के रूप में घोषित कर दिया
13 अक्टूबर को, गुरुग्राम जिला न्यायाधीश की पत्नी और पुत्र को उनके निजी सुरक्षा अधिकारी (पीएसओ) ने ड्यूटी के दौरान दिन-दहाड़े गोली मार दी थी। 16 अक्टूबर को, पुलिस ने घोषित किया कि हत्या के पीछे एकमात्र मकसद “अचानक क्रोध” था। हालांकि, कई शुरुआती मीडिया रिपोर्टों ने पुलिस जांच पूरी होने से पहले ही, इन हत्याओं को “धार्मिक रूपांतरण” से जोड़ दिया। उन्होंने घोषणा कर दी कि सुरक्षा अधिकारी महिपाल ने ईसाई धर्म अपनाने के लिए न्यायाधीश के परिवार पर दबाव बनाया था जिससे लगातार तकरार होती थी और बाद में यह हमला हुआ। इन रिपोर्टों का आधार अपराधी का आध्यात्मिक झुकाव और पुलिस पूछताछ के दौरान दिए उसके कई बयान थे।
हत्या महिपाल के आध्यात्मिक झुकाव से जुड़ी नहीं थी। हरियाणा पुलिस ने 16 अक्टूबर को हमले की जांच के बारे में ब्योरा देने के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की और कहा कि हत्या के पीछे एकमात्र उद्देश्य क्रोध था जब उसकी अनुपस्थिति पर उसपर सवाल उठाया गया और उसे कार की चाबियाँ सौंपने के लिए कहा गया था।
गुजरात में प्रवासी लोगों पर हिंसा की अफवाहें
अक्टूबर में गुजरात में हिंदी भाषी प्रवासियों पर हमले की खबर ने सोशल मीडिया पर अफवाहबाजों को एक और मौका दे दिया।
1. 2010 की ट्रेन की तस्वीर गुजरात छोड़ने वाले प्रवासियों की बताकर वायरल
“गुजरात से भागते बिहार और यूपी के लोग भारत पाकिस्तान विभाजन 1947 याद आ गया।” इस कैप्शन के साथ एक भीड़ वाली लोकल ट्रेन की तस्वीर फेसबुक और ट्विटर पर पोस्ट की गई थी और निजी उपयोगकर्ताओं द्वारा हजारों बार इसे शेयर किया गया।
ऑल्ट न्यूज ने गूगल रिवर्स इमेज सर्च की सहतयता से खोज की तो हमें BBC द्वारा 2012 की एक रिपोर्ट मिली, जिसमें उस तस्वीर का इस्तेमाल किया था, जो रॉयटर्स की थी। इस तस्वीर को वर्ष 2010 में उत्तर प्रदेश में लिया गया था। मीडिया संगठन ने इसे कैप्शन किया था, “हिंदू भक्त गुरु पूर्णिमा त्यौहार में भाग लेने के लिए भीड़ भाड़ वाली यात्री ट्रेन पर गोवर्धन शहर की यात्रा कर रहे हैं जो की एक उत्तर भारतीय शहर है मथुरा के पास ” 24 जुलाई, 2010. “
2. पश्चिम बंगाल के एक असंबंधित वीडियो को गुजरात से भागने वाले प्रवासियों के रूप में शेयर किया गया
सोशल मीडिया पर रेलवे स्टेशन पर ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहे लोगों का एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें यह दावा किया गया कि यह यूपी और बिहार के प्रवासी हैं जो हमले के बाद गुजरात छोड़ने के लिए ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहे हैं। @SirRavish1 नाम के ट्वीटर हैंडल से एक वीडियो शेयर किया गया जिसके साथ किये गए पोस्ट में कहा गया, “गुजरात मे UP/बिहार से आए लोगो पर लगातार हमलो की बजह से 8000 भारतियो के गुजरात से पलायन की खबर चिताजनक है! भारत की एकता,अखंडता पर खतरा मोदी,आपके गुजरात मे ऐसे हालात क्यो ? दावे तो बहुत बडे करते हो,एक गुजरात संभलता नही चले है पूरा देश संभालने।”
गुजरात मे UP/बिहार से आए लोगो पर लगातार हमलो की बजह से 8000 भारतियो के गुजरात से पलायन की खबर चिताजनक है!
भारत की एकता,अखंडता पर खतरामोदी,आपके गुजरात मे ऐसे हालात क्यो ?
दावे तो बहुत बडे करते हो,एक गुजरात संभलता नही चले है पूरा देश संभालनेकुछ दृश्य 👇pic.twitter.com/2bcHmCIqOB
— Ravish Kumar (@SirRavish1) 8 October 2018
ऑल्ट न्यूज ने जब InVID की मदद से वीडियो के एक फ्रेम का गूगल रिवर्स इमेज सर्च किया तो 23 सितम्बर, 2018 को YouTube पर “Krishnanagar Bongaon Local Train- Ranaghat Station” शीर्षक से पोस्ट किया गया यह वीडियो मिला। इससे यह पता चला कि यह वीडियो पश्चिम बंगाल के कृष्णनगर बोंगाव के रानाघाट स्टेशन का है। वीडियो में लोगों को बंगाली बोलते सुना जा सकता है। वीडियो गुजरात से नहीं था।
स्टेचू ऑफ़ यूनिटी के बारे में झूठी खबर
31 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्टेचू ऑफ़ यूनिटी की प्रतिमा का अनावरण किया था, लेकिन उद्घाटन से पहले और बाद में सोशल मीडिया पर इस परियोजना के बारे में झूठी खबरे फैलाई गयी।
1. सरदार पटेल प्रतिमा की फोटोशॉप इमेज सोशल मीडिया पर शेयर की गई
सोशल मीडिया पर, पत्रकार दिलीप मंडल ने एक फोटो शेयर की, जिसमें एक गरीब परिवार को जमीन पर खाना बनाते और उसके पीछे पटेल की मूर्ति नज़र आ रही है। उन्होंने इन शब्दों के साथ इस फोटो को ट्वीट किया था, “अगर सरदार पटेल जिंदा होते तो क्या इस बात की इजाजत देते की आदिवासी किसानो की जमीन और खेत छीनकर उस जमीन पर उनकी मूर्ति बनाई जाये?” इसे शिल्पा बोधखे ने भी शेयर किया, जो खुद को महाराष्ट्र प्रदेश महिला कांग्रेस कमेटी के सचिव बताती हैं।
सोशल मीडिया पर ट्वीट की गई इमेज फ़ोटोशॉप है। ऑल्ट न्यूज़ ने पटेल की मूर्ति के आगे के हिस्से को क्रोप किया और गूगल रिवर्स इमेज सर्च टूल का उपयोग करके पाया कि जमीन पे बैठी मां और उसके बच्चों की एक दूसरी तस्वीर है जिसे पटेल की मूर्ति वाली तस्वीर में फोटोशॉप किया है। माँ और बच्चों वाली मूल तस्वीर अहमदाबाद में 2010 में खींची गई थी।
2. 2008 में बनी पटेल की कांस्य प्रतिमा ‘स्टैचू ऑफ यूनिटी’ के रूप में फैला दी गयी
सोशल मीडिया पर ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ की पहली तस्वीरों से पता चलता है कि सरदार पटेल के चेहरा चीन के लोगों के तरह मूर्तिबद्ध किया गया था। कुछ तस्वीरों के आधार पर कांग्रेस समर्थकों ने दावा किया कि मूर्ति चीनी दिखती है। यह दावा ट्विटर और फेसबुक पर व्यापक रूप से शेयर किया गया था।
गूगल रिवर्स इमेज सर्च टूल का उपयोग करते हुए, ऑल्ट न्यूज ने पाया कि सोशल मीडिया पर शेयर की गई तस्वीरें 2008 में बनी गुजरात में एक कांस्य प्रतिमा की थीं, और वे ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी की प्रतिमा नहीं थीं।
लगातार राजनीतिक आरोप
1. ‘शिवलिंग पर बिच्छू’ विवाद: शशि थरूर को गलत उद्धृत किया गया
“नरेंद्र मोदी को हटाने के लिए शिवलिंग में भी चप्पल मारनी पड़ी तो मैं मरुंगा” यह बयान है जो कि कांग्रेस सांसद शशि थरूर के कथन के रूप में एक स्क्रीनशॉट आजतक के फ्रेम के साथ पोस्ट की गयी। यह तस्वीर फेसबुक पेज I Support Narendra Bhai Modi Bjp द्वारा शेयर की गई थी (जिस पेज का नाम पहले Bjp All India था)। कई व्यक्तिगत उपयोगकर्ताओं ने भी थरूर को उद्धृत करते हुए इस तस्वीर को शेयर किया था।
28 अक्टूबर को बैंगलोर साहित्य समारोह में बोलते हुए, शशि थरूर 2012 के Caravan के लेख का स्रोत देकर एक अज्ञात आरएसएस नेता का हवाला देते हुए बिच्छू समानता का उदाहरण दिए थे। थरूर ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया था और आज तक का स्क्रीनशॉट नकली था।
2. विमान के अंदर महिला के बगल में बैठे पीएम मोदी की फोटोशॉप तस्वीर
सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक तस्वीर प्रसारित की गई थी। इस तस्वीर में दिखता है कि पीएम मोदी एक महिला के बगल में बैठे हैं। कनाडा के पूर्व प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर भी इस तस्वीर में देखे जा सकते हैं। तस्वीर के साथ संदेश लिखा है, “तो देख लो साहब विदेशी दौरा क्यों करते हैं।”
रिवर्स इमेज सर्च टूल का उपयोग करके, Alt News ने पाया कि तस्वीर फ़ोटोशॉप है। मूल तस्वीर एक वेबसाइट “Live Cities” पर मिली थी, जिसने मूल तस्वीर में दिख रही, डॉ गुरदीप कौर चावला के बारे में एक लेख प्रकाशित किया था।
3. राहुल गांधी और पाकिस्तान डिफेन्स पर झूठा दावा
“रीट्वीट संकेत देता है कि कोई भारत में पाकिस्तान के लिए लड़ रहा है” इस कैप्शन के साथ, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम राज्य मंत्री गिरिराज सिंह ने 25 अक्टूबर को पूर्व सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा पर राहुल गांधी के ट्वीट के एक स्क्रीनशॉट पर इसी शीर्षक साथ ट्वीट किया। गांधी के ट्वीट को “पाकिस्तान डिफेंस” नाम के ट्विटर अकाउंट द्वारा रीट्वीट किया गया था और गिरिराज सिंह द्वारा उनके ट्वीट में इस्तेमाल की गई भाषा से यह संकेत देने का प्रयास किया गया कि कांग्रेस अध्यक्ष को “पाकिस्तान डिफेंस” विंग द्वारा समर्थन प्राप्त है।
Retweet indicates that someone is fighting for Pakistan in India. pic.twitter.com/5mcEPznqtK
— Shandilya Giriraj Singh (@girirajsinghbjp) 25 October 2018
रीट्वीट् के कुछ ही घंटों के भीतर, यह संकेत दिया गया था कि जिस ट्विटर अकाउंट ने राहुल गांधी के ट्वीट को रीट्वीट किया था वह पाकिस्तान के रक्षा मंत्रालय का आधिकारिक ट्वविटर अकाउंट नहीं था। इसके अलावा, ऐसे कई संकेत हैं जो दर्शाते हैं कि ट्विटर अकाउंट “पाकिस्तान डिफेंस (@defencedotpk), जिन्होंने राहुल गांधी के ट्वीट को रीट्वीट किया, उसका पाकिस्तान के डिफेन्स विंग से कोई लेना देना नहीं है ।
उपर्युक्त वर्गीकरण के अलावा, गलत जानकारी के कुछ अन्य महत्वपूर्ण उदाहरण भी थे।
1. नेहरू सरकार पर बोस वाले करेंसी नोटों को समाप्त करने का झूठा दावा किया गया
सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर वाले एक करेंसी नोट की तस्वीर सोशल मीडिया में इस दावे के साथ चल रही है कि जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा इस नोट का चलन बंद किया गया था। इस तस्वीर के साथ संदेश भी है, जिसमें कहा गया था, “यह नेताजी सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर वाला 5 रुपये का नोट हैं, जिसे नेहरूजी ने बंद करवा दिया था, ताकि भारतीय इस सच्चे स्वतंत्रता सेनानी को भूल जाये लेकिन इसे इतना शेयर करो की सरकार इसे वापस प्रिंट करना शुरू कर दे”। करेंसी नोट के अनुसार, यह आज़ाद हिंद बैंक द्वारा जारी किया गया है और इसमें अपनी प्रचलित टोपी पहने बोस सलामी की मुद्रा में हैं।
यह दावा झूठा था, साधारण कारण यह है कि ये नोट्स आजाद हिंद सरकार द्वारा पूर्व-स्वतंत्र भारत में जारी किए गए थे, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध प्रयास को वित्त पोषित करने के लिए आज़ाद हिंद बैंक की स्थापना की थी। ये मुद्रा नोट कभी कानूनी निविदा नहीं थे और इसलिए, यह दावा कि नेहरू सरकार ने इन करेंसी नोटों का चलन बंद किया, साफतौर पर गलत है।
2. कपिल मिश्रा ने “बांग्लादेशी ड्रग माफिया” द्वारा दिल्ली के निवासी की हत्या का झूठा दावा किया
4 अक्टूबर को, आप के बागी विधायक कपिल मिश्रा ने एक ट्वीट में आरोप लगाया कि दिल्ली में “बांग्लादेशी ड्रग माफिया” द्वारा रुपेश बैसोया नामक एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई थी। बाद में, उन्होंने खुद को दोहराते हुए एक वीडियो को ट्वीट किया, जिसमें कहा गया कि बैसोया की हत्या इसलिए कर दी गई थी क्योंकि उन्होंने तैमूर नगर की अवैध बांग्लादेशी झोपड़पट्टी से कथित तौर पर संचालन करने वाले ड्रग विक्रेताओं का विरोध किया था। मिश्रा ने ड्रग माफिया की सहायता के लिए दिल्ली पुलिस को दोषी ठहराया।
दिल्ली में बांग्लादेशियों ने दिन दहाड़े रूपेश बैसोया की हत्या कर दी
रूपेश ने बांग्लादेशी ड्रग माफिया के खिलाफ पुलिस में शिकायत की थी
हरियाणा और यूपी में हर अपराध पर तुरंत रिएक्शन करने वाले CM केजरीवाल चार दिन बाद भी चुप क्यों?
मैं अभी रूपेश के परिवार से मिलने जा रहा हूँ
— Kapil Mishra (@KapilMishra_IND) 4 October 2018
यह घटना 30 सितंबर को हुई थी और दिल्ली पुलिस ने कथित अपराधियों को 4 अक्टूबर को गिरफ्तार कर लिया था। तीनों गिरफ्तार लोगों में से कोई “बांग्लादेशी” नहीं था। हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, अपराधियों को लूट के एक अलग मामले में पकड़ा गया था जिसमें उन्होंने 2 अक्टूबर की रात को बंदूक दिखलाकर बाइक, सोने की चेन और मोबाइल फोन लूट लिए थे। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार पुलिस उपायुक्त (दक्षिण) विजय कुमार ने बताया कि पूछताछ के दौरान, इन लोगों ने 34 वर्षीय रुपेश बैसोया की हत्या में भी अपनी भागीदारी कबूल की, जिसे उसके निवास के बाहर गोली मार दी गई थी।
3. ग्लोबल हंगर इंडेक्स रैंकिंग में भारत के फिसलने का झूठा दावा
2018 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) 11 अक्टूबर को प्रकाशित हुआ, जिसमे भारत का स्थान 119 देशों में 103 पर बताया गया। भारत के इस स्थान पर पहुंचने के लिए बहुत बातें हो चुकी है, खासकर मीडिया घरानों और विपक्ष के सदस्यों द्वारा, जिन्होंने इस गिरावट से सरकार की खूब आलोचना की है। उन सबने दावा किया है कि 2014 में भारत का स्थान 55वे नंबर पर था।
भारत में भुखमरी: इस मामले में पूरी तरह फेल हुई मोदी सरकार, 4 साल में 55 से 103वें पायदान पर पहुंचा देश, नेपाल-बांग्लादेश भी हमसे आगे https://t.co/FWjoRTNx9H
— Dainik Bhaskar (@DainikBhaskar) 14 October 2018
ऑल्ट न्यूज़ ने GHI रिपोर्ट का गहन अध्ययन किया। पहली नजर में, रिपोर्टों में भारत की रैंकिंग 2014 में 55वाँ, 2015 में 80वाँ, 2016 में 97वाँ, 2017 में 100वाँ दर्शाती है। लेकिन ध्यान से ये रिपोर्ट पढ़ें तो पता चलता है की 2016 से पहले, उन्होंने मुख्य तालिका के साथ ही एक और तालिका शामिल की है, जिसमें उन देशों को शामिल किया गया है जिनका GHI इंडेक्स 5 से कम था। जिन देशों का GHI इंडेक्स 5 से ऊपर था, उन्ही को मुख्य तालिका में शामिल किया गया था। कम जीएचआई स्कोर बेहतर प्रदर्शन का तात्पर्य है। 2014 में, भारत 99वें स्थान पर था और 55 नहीं।
Alt News ने देखा कि वर्तमान घटनाओं पे भड़काऊ झूठी खबरों की प्रवृत्ति अक्टूबर में सबसे अधिक थी। सबरीमाला मंदिर प्रवेश मुद्दा, गुजरात में प्रवासियों पर हमला, स्टैच्यू ऑफ यूनिटी की प्रतिमा का उद्घाटन हो या अमृतसर ट्रेन त्रासदी, ये सारे मुद्दे सोशल मीडिया पर गलत जानकारी फैलाने वालों के लिए अवसर बन गए। चूंकि भारत में अभी चुनावी समय आने वाला है, ऐसे में इस तरह के व्यवस्थित और संगठित झूठी खबरे व् दुष्प्रचार आगे भी मिलने की संभावना है।
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