“बरखा दत्त का कहना है कि 1990 के दशक में कश्मीरी पंडितों का सही तरीके से नरसंहार हुआ था – (अनुवादित),” यह पत्रकार बरखा दत्त की क्लिप की हुई एक न्यूज वीडियो का कैप्शन है। 9 नवंबर, 2018 को, ट्विटर हैंडल चयन चटर्जी ने उपरोक्त कैप्शन के साथ निम्नलिखित क्लिप को ट्वीट किया। 23-सेकंड की इस क्लिप को कश्मीरी पंडितों के नरसंहार को न्यायसंगत बताने के लिए पेश किया गया है।

कई सोशल मीडिया यूजर्स ने उसी दावे के साथ उस वीडियो क्लिप को ट्वीट किया है। 23-सेकंड की इस क्लिप में, दत्त को यह कहते हुए सुना जा सकता है- “आज के बदकिस्मत पीड़ित, वे कभी घाटी के विशेषाधिकार प्राप्त कुलीन थे। वे अल्पसंख्यक हो सकते थे, लेकिन उस समय, उन्होंने सरकारी नौकरियों, महत्वपूर्ण पोस्टिंग और ऐसे अन्य सामाजिक लाभों पर एकाधिकार कर लिया था। दरअसल, पंडितों और गरीब मुस्लिम बहुमत के बीच गहरी आर्थिक असमानता राज्य में प्रचलित असंतोष के शुरुआती कारणों में से एक थी – (अनुवादित)। इस क्लिप्ड वीडियो के आधार पर, सोशल मीडिया यूजर्स ने दावा किया कि बरखा दत्त ने कश्मीरी पंडितों के नरसंहार का बचाव किया था।

2015 से वायरल

ऑल्ट न्यूज को इस क्लिप का सबसे पुराना उदाहरण 2015 का मिला। नकली समाचार फ़ैलाने के लिए जाना जाने वाला फेसबुक पेज शंख नाद ने 6 नवंबर, 2015 को यह वीडियो शेयर किया था। इसे 2.37 लाख से अधिक बार देखा और 5,400 बार शेयर किया गया था। वीडियो के साथ लिखे संदेश में कहा गया है, “बरखा दत्त ने कश्मीरी पंडितों के नरसंहार को न्यायसंगत बताया”

वीडियो को क्लिप कर झूठे दावे

इसका पूरा वीडियो ऑल्ट न्यूज ने एनडीटीवी की वेबसाइट पर देखा जो 7 मई, 2013 को प्रकाशित हुआ था। इस वीडियो का शीर्षक ही सोशल मीडिया में किए गए दावों से पूरी तरह विरोधाभासी है- “कश्मीरी पंडित : भुला दिए गए अल्पसंख्यक (अक्टूबर 2004 में प्रसारित)”। इसमें बरखा दत्त ने घाटी के अल्पसंख्यक कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा के बारे में बात की है।

इसके अलावा, वीडियो के साथ प्रकाशित कैप्शन के रूप में इसके लिखे गए सारांश आगे यह पुष्टि करता है कि दत्त की रिपोर्ट नरसंहार को औचित्यपूर्ण नहीं ठहराती, बल्कि 1990 में घाटी से बाहर किए जाने के बाद, कश्मीरी पंडितों की खराब हुई परिस्थितियों पर केंद्रित है। वीडियो का कैप्शन कहता है- “जम्मू और कश्मीर राज्य पर सभी प्रकार से ध्यान देने के बावजूद, एक मुद्दा – कश्मीरी पंडितों का – अक्सर भुला दिया गया। जब से पंडित घाटी से बाहर कर दिए गए, तभी से वे सार्वजनिक और राजनीतिक तवज्जो के हाशिये पर रहे हैं। वास्तविक बयानों की इस कड़ी में, बरखा दत्त ने उन घटनाओं की जांच की जो इस बड़े पैमाने पर पलायन का कारण बनीं और यह भी कि कैसे घटती हुई इस आबादी का खतरा निर्वासन के जीवन में और भी बदतर हुआ है, क्योंकि नई संस्कृतियों और नए शहरों को आत्मसात करने का मतलब है पुराने लोकाचार को छोड़ नए रिवाजों को गले लगाना – (अनुवादित)। यह स्पष्ट रूप से बताता है कि सोशल मीडिया पर फैलाए जा रहे दावे झूठे हैं।

संदर्भ से विपरीत वीडियो को पेश किया

बरखा दत्त इस रिपोर्ट की शुरुआत भुला दिए और हाशिये पर आ गए कश्मीरी पंडितों के दुखों के वर्णन से करती हैं। उन्होंने कहा, “दिल्ली में उनके साथ बैठक के बाद यह घोषणा करते हुए कि प्रधानमंत्री अप्रैल में श्रीनगर जाएंगे, जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने कहा कि उच्चतम स्तर पर एक नई राजनीतिक वार्ता जल्द ही शुरू होनी चाहिए। लेकिन राज्य पर सभी प्रकार से ध्यान देने के बावजूद, अक्सर भुला दिया गया एक मुद्दा कश्मीरी पंडितों का है। यह ठीक 13 साल पहले हुआ जब इसी महीने उन पंडितों को घाटी से बाहर निकाल दिया गया था और तभी से वे सार्वजनिक और राजनीतिक तवज्जो के हाशिये पर रहे हैं – (अनुवादित)।

इस वीडियो के 5:15वें मिनट से विस्थापित कश्मीरी पंडितों के संगठन पानुन कश्मीर के एक प्रतिनिधि को यह कहते हुए सुना जा सकता है, “एक कश्मीरी पंडित आर्थिक तौर पर बहुत अच्छा नहीं हो सकता, यह महत्वपूर्ण नहीं है। यह पहचान है, कश्मीरी पंडित की जातीय पहचान … कश्मीर पंडित भारत में एक प्रसिद्ध पहचान थी। कश्मीरी पंडित के विविध रिवाज रहे हैं, उनकी अलग भाषा है, उनकी अलग संस्कृति है। हमें लगता है कि हमने उसे खो दिया है – (अनुवादित)।

डॉ शक्ति भान का उपरोक्त उद्धरण उस भाग (5:36) को संदर्भित करता है जिसमें दत्त कहती हैं, वास्तव में, इतिहास कश्मीरी पंडितों के लिए पूरा घूम गया है …। दत्त का यह कथन जानबूझकर क्लिप्ड वीडियो में छोड़ दिया गया था, जब दत्त कहती हैं – “आज के बदकिस्मत पीड़ित, वे कभी घाटी के विशेषाधिकार प्राप्त कुलीन थे। वे अल्पसंख्यक हो सकते थे, लेकिन उस समय, उन्होंने सरकारी नौकरियों, महत्वपूर्ण पोस्टिंग और ऐसे अन्य सामाजिक लाभों पर एकाधिकार कर लिया था …(अनुवादित) केवल इन पंक्तियों को पढ़ने से धारणा बनती है कि दत्त की टिप्पणी कश्मीरी पंडितों को खराब रूप में चित्रित करती है। जबकि, पत्रकार अपने दर्शकों को इनके पलायन से पहले और बाद के इनके जीवन के अंतर को दिखलाने की कोशिश कर रही थी।

ऑल्ट न्यूज से बातचीत में, पत्रकार बरखा दत्त ने सोशल मीडिया में वायरल दावों को स्पष्ट रूप से खारिज किया। उन्होंने कहा, “यह उस बड़े एपिसोड से एकदम अलग टिप्पणी है। दरअसल, कश्मीरी पंडितों के जबरन पलायन के विरुद्ध मैंने बार-बार बात की है और इसे दिखलाने के लिए कई कार्यक्रम किए हैं। इस भयानक पलायन को किसी प्रकार औचित्यपूर्ण ठहराने या मैं किसी जातीय समुदाय के सफाये का सुझाव दे रही हूं ऐसा बताने के लिए इन टिप्पणियों को विकृत करना, जैसा कि मुझे मिल रहे ट्वीट्स में किया गया है, मुझे बिल्कुल अपमानजनक और बेहद खतरनाक लगता है। आप तर्क दे सकते हैं कि एक युवा संवाददाता के रूप में मेरा ऐतिहासिक विश्लेषण गलत था या आज मेरे पास इसमें शामिल करने के लिए ढेर सारी जानकारी और अनुभव हैं। लेकिन यह सब कुछ तब है जब आप बहस करें पूरे एपिसोड को लेकर, जिसमें से क्लिप बनाई गई है, जो कि वास्तव में इस बारे में है कि यह पलायन कितना भयानक है और उन पंडितों के साथ क्या हुआ है जो विस्थापन की इस वास्तविकता में जी रहे हैं। झूठ एक बात है, लेकिन सांप्रदायिक झूठ और मेरे मुंह से कहे गए शब्दों को गलत तरीके से रखना दूसरी बात है।”

वीडियो को क्लिप करना और उसके असली संदर्भों से बाहर के अर्थों में उसे रखना सोशल मीडिया में आम बात है। पहले भी हमने देखा है कि प्रतिष्ठित व्यक्तियों के भ्रामक क्लिप किये गए वीडियो झूठे दावे के साथ प्रसारित किए जाते हैं। उपर्युक्त मामले में, विस्थापित कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रिपोर्ट से 23-सेकंड की क्लिप को गलत दावे से प्रसारित किया गया, ताकि यह दिखलाया जा सके कि पत्रकार बरखा दत्त जातीय विस्थापन को न्यायसंगत बता रही थीं।

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About the Author

Jignesh is a writer and researcher at Alt News. He has a knack for visual investigation with a major interest in fact-checking videos and images. He has completed his Masters in Journalism from Gujarat University.