सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल है जिसमें एक मैदान में आयोजन के दौरान बड़े तंबूओं से आग की लपटें उठती देखी जा सकती हैं. आग से बचने के लिए एक कार को पीछे की ओर जाते देखा जा सकता है और कुछ दूरी पर लोगों की चीखें भी सुनी जा सकती है. वीडियो इस दावे के साथ वायरल हो रहा है कि मुसलमानों ने स्वीडन में इरिट्रिया समुदाय के त्योहार पर हमला कर दिया.

लगातार ग़लत सूचनाएं शेयर करके बढ़ावा देने के लिए ट्विटर का इस्तेमाल करने वाले यूज़र, @MrSinha_ ने पत्रकार रवीश कुमार और राजदीप सरदेसाई को टैग करते हुए ये वीडियो शेयर किया. उन्होंने दावा किया कि मुसलमानों ने इस फ़ेस्टिवल पर हमला किया था, साथ ही उनसे ये सवाल भी पूछा कि क्या स्वीडन में आग भी मोनू मानेसर के कारण ही लगी थी. उनके ट्वीट को 5 लाख से ज़्यादा बार देखा गया. (आर्काइव)

मोनू मानेसर हरियाणा के बजरंग दल नेता और कथित गौरक्षक हैं जो फ़रवरी में दो मुस्लिम युवकों की हत्या के मामले के आरोपी हैं.

इसी वीडियो को शेयर करते हुए ट्विटर यूज़र @aquibmir71 ने दावा किया कि मुसलमानों ने ही इरिट्रिया समुदाय के फ़ेस्टिवल पर हमला किया था. (आर्काइव)

‘इस्लामिक टेररिस्ट’ (@raviagrawal3) नामक एक अन्य हैंडल ने भी ये वीडियो शेयर करते हुए लिखा कि ये हमला मुसलमानों द्वारा किया गया था.

 

फ़ैक्ट-चेक

सबसे पहले, हमने वीडियो वेरिफ़िकेशन टूल का इस्तेमाल करके वीडियो से कई की-फ़्रेम्स लिए और उनका रिवर्स इमेज सर्च किया. हमें जर्मन टेलीविजन न्यूज़ चैनल वेल्ट की एक वीडियो स्टोरी मिली. न्यूज़ चैनल ने 3 अगस्त को स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में इरिट्रिया समुदाय के फ़ेस्टिवल को कवर किया था. इस रिपोर्ट में 30 सेकेंड पर वायरल वीडियो का कुछ हिस्सा दिखता है.

वीडियो के ‘डिस्क्रिप्शन’ में घटना के बारे में विस्तार से बताया गया है. इसमें कहा गया है, ”…स्वीडिश की राजधानी स्टॉकहोम के पास सरकार समर्थक इरिट्रिया फ़ेस्टिवल के दौरान 50 से ज़्यादा लोग घायल हो गए और लगभग 100 लोगों को गिरफ़्तार कर लिया गया. पुलिस ने गुरुवार को कहा कि फ़ेस्टिवल वाली जगह के पास सरकार के विरोधियों की एक सभा के दौरान हिंसक दंगे भड़क गए. घटनास्थल से मिली तस्वीरों के मुताबिक, कई कारों और कम से कम एक तंबू में आग लगा दी गई… टैब्लॉइड “एक्सप्रेसन” ने रिपोर्ट किया कि सरकार के विरोध में लगभग एक हज़ार प्रदर्शनकारियों ने कानूनी रूप से रजिस्टर्ड विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस बैरीयर को तोड़ दिया और फ़ेस्टिवल पर हमला कर दिया. प्रदर्शनकारियों ने टेंट तोड़ दिए और टेंट के खंभों को पुलिस अधिकारियों के खिलाफ़ हथियार के रूप में इस्तेमाल किया.”

इरिट्रिया लाल सागर के तट पर स्थित एक अफ़्रीकी देश है. द गार्डीयन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, “मानवाधिकार समूहों ने लंबे समय से पूर्वी अफ़्रीकी देश को दुनिया के सबसे दमनकारी देशों में से एक बताया है. तीन दशक पहले इथियोपिया से आजादी मिलने के बाद से देश में कभी चुनाव नहीं हुआ है. देश के शरणार्थियों ने फ़ोर्स लेबर के एक पुलिस स्टेट का वर्णन किया है, जहां युवा लड़कों और लड़कियों को सैन्य भर्ती और सिविल सेवा में जाने के लिए मजबूर किया जाता है और वहां उन्हें यातना और यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है. हाल के दशकों में इन चीजों की वजह से लाखों लोग देश से भागने के लिए मजबूर हुए हैं.”

रिपोर्ट में बताया गया है कि टोरंटो, सिएटल और स्टॉकहोम सहित अलग-अलग शहरों में इसी तरह की सरकार विरोधी प्रदर्शन किए गए.

स्टॉकहोम में हुई इस विशेष घटना के बारे में और ज़्यादा जानने के लिए, हमने कई न्यूज़ रिपोर्ट्स देखीं. AP की एक रिपोर्ट के मुताबिक, “स्वीडन इरिट्रिया मूल के हज़ारों लोगों का घर है. इरिट्रिया की सांस्कृतिक विरासत को समर्पित त्योहार एक वार्षिक कार्यक्रम है जो 1990 के दशक से आयोजित किया जाता रहा है, लेकिन कथित तौर पर अफ़्रीकी राष्ट्र की सरकार के लिए प्रचार उपकरण और पैसों के सोर्स के रूप में काम करने के लिए इसकी आलोचना की गई है.

WFMG न्यूज़ की एक अन्य रिपोर्ट में लिखा है, ‘…यूरोप और उत्तरी अमेरिका में इरिट्रिया के प्रवासी लोगों द्वारा आयोजित फ़ेस्टिवल पर निर्वासितों द्वारा हमला किया गया है जिन्हें शासन द्वारा “शरणार्थी मैल” कहकर खारिज कर दिया जाता है. हॉर्न ऑफ़ अफ़्रीका देश से भागे लोगों का कहना है कि जर्मनी, स्वीडन और कनाडा में त्योहारों के ख़िलाफ़ हिंसा एक दमनकारी सरकार के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन है जिसे “अफ़्रीका का उत्तर कोरिया” कहा जाता है.

द गार्डीयन के मुताबिक, सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों को स्टॉकहोम में महोत्सव के आस-पास विरोध प्रदर्शन करने के लिए ऑथोराइज्ड किया गया था. लेकिन विरोध प्रदर्शन के दौरान, उनमें से कई, लगभग 1 हज़ार प्रदर्शनकारियों ने पुलिस बैरियर तोड़ दिया और फ़ेस्टिवल के टेंट तोड़ दिए, बूथों और गाड़ियों में आग लगा दी. प्रदर्शनकारी माइकल कोबराब ने स्वीडिश ब्रॉडकास्टर टीवी4 को बताया, “ये कोई फ़ेस्टिवल नहीं है, वे अपने बच्चों को नफरत भरी बातें सिखा रहे हैं.”

कुल मिलकर, वायरल वीडियो के साथ किया गया दावा मनगढ़ंत और झूठा है. हमलावर मुस्लिम नहीं थे. स्टॉकहोम में इरिट्रिया सामुदायिक महोत्सव में हमलावर सरकार विरोधी प्रदर्शनकारी थे जो इरिट्रिया में वर्तमान शासन से नाखुश थे.

श्रेयतामा दत्ता ऑल्ट न्यूज़ में इंटर्न हैं.

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