कर्नाटक के कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर ट्वीट करते हुए लिखा, “सरदार ऐसी सलामी देखकर चौंक जाते. ये उनका अपमान है.” इस पोस्ट को अबतक 1,300 से ज़्यादा बार रीट्वीट किया जा चुका है (आर्काइव लिंक). उनके ट्वीट को लेखक फार्रुख के पिताफ़ी ने भी कोट ट्वीट किया. (आर्काइव लिंक)

उप्साला यूनिवर्सिटी के प्रोफे़सर अशोक स्वैन ने भी पीएम मोदी के नाज़ी सेल्यूट देने की तरफ़ इशारा किया. उन्होंने लिखा, “अगर हिटलर कर सकता है तो मोदी क्यूं नहीं?” उनके ट्वीट को 850 से ज़्यादा बार रीट्वीट किया जा चुका है (आर्काइव लिंक). ऑल्ट न्यूज़ ने अशोक स्वैन द्वारा पोस्ट की गयी ग़लत सूचनाओं को डॉक्यूमेंट किया है.

कश्मीर के ऑल पार्टी पार्लियामेंट्री ग्रुप के सदस्य, नाज़िर अहमद ने ऑल इंडिया रेडियो का ट्वीट रीट्वीट किया जिसमें पीएम मोदी की ऐसी ही तस्वीर थी. साथ ही उन्होंने ने लिखा, “मोदी का नाज़ी सेल्यूट.” (आर्काइव लिंक)

भ्रामक टिप्पणी

प्रधानमंत्री मोदी 31 अक्टूबर को भारत के पहले उप प्रधानमंत्री वल्लभभाई पटेल की 144वीं जयंती पर शपथ ले रहे थे. ये कार्यक्रम गुजरात के केवड़िया में हो रहा था और राज्यसभा TV समेत कई चैनल्स इसका प्रसारण कर रहे थे.

जिस विज़ुअल को शेयर किया जा रहा है वो ब्रॉडकास्टमें 35 सेकंड पर देखा जा सकता है.

एक तरफ़ लोग पीएम मोदी के संकेत की तुलना नाज़ी सेल्यूट से कर रहे हैं, वहीं भारत में इस तरह शपथ लेने का तरीका काफ़ी समय से चला आ रहा है. पाठकों को ये भी मालूम हो को इस तरह सलामी देने को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है और कहा गया है कि जब तक इसका इस्तेमाल जातिवाद की विचारधारा को बढ़ावा देने के लिए नहीं किया जाता, ये आपराधिक नहीं है. और सरदार पटेल की जयंती, जिसे राष्ट्रीय एकता दिवस के तौर भी मनाया जाता है, इस मौके पर इस तरह शपथ लेना कोई नया नहीं है. स्कूलों में भी ये काफ़ी आम बात है.

इसके अलावा, ये कोई पहली बार नहीं है जब किसी नेता ने इस तरह अपने हाथ आगे करके शपथ लिए हैं. नीचे 2018 की तस्वीर में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंदिया (पूर्व कांग्रेस सदस्य) ने भी इसी तरह हाथ आगे किया हुआ है.

विश्व युद्ध के शोधकर्ता और द टाइम्स ऑफ़ इंडिया के संपादक मणिमुग्ध शर्मा ने भारत में शपथ-ग्रहण और अगर नाज़ी सेल्यूट से इसके कोई संभावित संबंध हैं, तो उसके बारे में विस्तार से बताया है. उन्होंने ऑल्ट न्यूज़ को बताया, “इसका उत्तर थोड़ा जटिल है. इस तरह सेल्यूट करने का तरीका उन्नीसवीं सदी के आखिर में अमेरिकन प्लेज ऑफ़ एलिजियांस से हुई थी. इटली के फ़ासीवादियों ने इसे अमेरिकी लोगों से सीखा और इसमें बदलाव किया. और नाजियों ने इसे फ़ासीवादियों (इटेलियंस) से लिया- हिटलर ने खुद कहा था कि उसने ये II D (बेनिटो मुसोलिनी) से लिया था. लेकिन दुसरे विश्व युद्ध के बाद इसका नाज़ियों से सम्बन्ध के कारण अमेरिकियों को ये छोड़ना पड़ा. साथ ही, इसमें बदलाव किया गया और इसमें बदलाव किया जो वर्तमान में हम देखतें है, यानी, दायां हाथ दिल के ऊपर. ये पक्के तौर पर कहना मुश्किल है कि भारतीयों ने इसे शपथ ग्रहण के लिए कब इस्तेमाल करना शुरू किया, पर मुझे लगता है 1960 के शुरुआत में जब नेशनल प्लेज की शुरुआत हुई. और वो अमेरिकन प्लेज ऑफ़ एलिजियांस से ही प्रेरित था.”

‘अल्लाहु अकबर: अंडरस्टैंडिंग द ग्रेट मुग़ल इन टुडेज़ इंडिया’ के लेखक, मणिमुग्ध शर्मा ने आगे कहा, “हालांकि, ये ज़रुर कहा जाना चाहिये कि हिन्दू राष्ट्रवाद काफ़ी हद तक यूरोपियन राष्ट्रवादी आंदोलनों से लिया गया है, अधिकतर जो फ़ासीवाद से प्रभावित है. और इसलिए यूरोपियन फासीवादियों से ली गयीं काफ़ी चीज़ें हिन्दू राष्ट्रवादी समूहों का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. कुछ समय बाद ये सभी अपने ओरिजिनल सन्दर्भों से अलग होती चलीं गयीं. शपथ ग्रहण का ये तरीका भारत में तब प्रसिद्ध हुआ जब दुनियाभर में इसे छोड़ दिया गया या आपराधिक बना दिया गया. इससे पता चलता है कि भारत के लोगों के चेतना फ़ासीवाद और उसके भयानक परिणामों से कितनी दूर थी. भारत में राष्ट्रवाद अभी भी कोई खतरनाक शब्द नहीं है, और विश्व स्तर पर चिंताजनक होने के बावजूद इसके अलगाववादी रूप को भी लिबरल्स (उदारवादी) के अलावा कोई भी इससे असहमति नहीं रखता. सरदार पटेल की जयंती पर पीएम मोदी के प्रसाशन के शपथ ग्रहण को नाज़ी सेल्यूट से जोड़ना स्मार्ट है. लेकिन अकादमिक तौर पर देखा जाये तो बेकार है. ये कहना ग़लत होगा कि नाज़ियों ने ये किया था तो प्रधानमंत्री भी वही कर रहे हैं. हम दशकों से स्कूल और कॉलेजों में ऐसे ही शपथ लेते आ रहे हैं.”

कांग्रेस नेता जयराम रमेश और अन्य लोगों ने पीएम मोदी को शपथ-ग्रहण सेल्यूट को लेकर चुनिंदा तौर से आलोचना की लेकिन सीग हाइल (Seig Heil) के नाम से जाना जाने वाला ये सेल्यूट दशकों से इस्तेमाल करते आ रहे हैं.

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🙏 Blessed to have worked as a fact-checking journalist from November 2019 to February 2023.