15 जुलाई को कई प्रमुख राजनेताओं ने ट्विटर पर ‘संसदीय बुलेटिन भाग II’ नामक एक सर्कुलर ट्वीट किया. इस फ़रमान के मुताबिक, सदस्य किसी भी प्रदर्शन, धरना, उपवास आदि के लिए संसद भवन परिसर का इस्तेमाल नहीं कर सकते. इस सर्कुलर पर राज्यसभा के महासचिव का हस्ताक्षर है.
कांग्रेस नेता मनीष तिवारी, जयराम रमेश और आम आदमी पार्टी के संजय सिंह ने ट्वीट करते हुए इस सर्कुलर को लेकर निराशा व्यक्त की.
मनीष तिवारी ने लिखा कि पीठासीन अधिकारी आखिर क्यूं सदस्यों के साथ टकराव की स्थिति बनाना चाहते हैं? उन्होंने आगे उन शब्दों की सूची का ज़िक्र किया जिन्हें हाल ही में असंसदीय घोषित किया गया था. ये ध्यान रखना ज़रूरी है कि असंसदीय अभिव्यक्ति का मतलब ये नहीं है कि इन शब्दों को बैन कर दिया गया है. (ट्वीट आर्काइव लिंक)
Why are the Presiding officers setting the stage for confrontation with the Members ? First the word war & now this.
It is indeed unfortunate. @ombirlakota @MVenkaiahNaidu pic.twitter.com/FFXJUs5wFf— Manish Tewari (@ManishTewari) July 15, 2022
जयराम रमेश ने इस सर्कुलर को एक वर्डप्ले के साथ ट्वीट किया. (आर्काइव लिंक)
Vishguru’s latest salvo — D(h)arna Mana Hai! pic.twitter.com/4tofIxXg7l
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) July 15, 2022
संजय सिंह ने इस सर्कुलर को ट्वीट करते हुए इसे सांसदों का अपमान बताया. (आर्काइव लिंक)
संसद का नया फ़रमान, सांसदों का है अपमान। pic.twitter.com/g4Le7xJqGO
— Sanjay Singh AAP (@SanjayAzadSln) July 15, 2022
अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा ने भी ट्विटर पर इस आदेश पत्र को शेयर किया.
Why not just remove Gandhiji’s statue from the premises?
And erase Article 19 (1) a of the constitution. pic.twitter.com/PriwGof3rE— Mahua Moitra (@MahuaMoitra) July 15, 2022
द इंडियन एक्सप्रेस, द प्रिंट, NDTV, द हिंदू, नेशनल हेराल्ड, इंडिया टीवी, लाइव मिंट, फ़र्स्टपोस्ट जैसे कई मीडिया आउटलेट्स ने विपक्षी नेताओं के ट्वीट के आधार पर रिपोर्ट्स पब्लिश कीं. इनमें से ज़्यादातर आउटलेट्स ने स्टोरी के लिए प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया (PTI) को क्रेडिट दिया है. उपर लिखे लगभग सभी मीडिया आउटलेट्स ने इस तरह रिपोर्ट की है जैसे ये कोई नया नियम है.
फ़ैक्ट-चेक
की-वर्ड्स सर्च करने पर ऑल्ट न्यूज़ को राज्यसभा की वेबसाइट पर मौजूद पार्लियामेंट बुलेटिन पार्ट-II पेज मिला. जुलाई महीने के पोस्ट तलाशने पर हमें एक सर्कुलर मिला. इस सर्कुलर का टाइटल था, “संसद भवन परिसर के भीतर प्रदर्शन, धरना, हड़ताल, उपवास, आदि.”
ये आदेश पत्र बिल्कुल वैसा ही है जैसा सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.
इस फरमान की ख़बर पर प्रतिक्रिया देते हुए NCP चीफ़ शरद पवार ने कहा कि ऐसा कोई “प्रतिबंध” नहीं है. “हमें संसद अध्यक्ष से एक बयान मिला है कि ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है. सभी राजनीतिक दलों के नेता कल दिल्ली में एक साथ बैठकर इस पर चर्चा करेंगे.”
इसके अलावा, हमें लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला का एक बयान भी मिला जिसमें सभी राजनीतिक दलों से फ़ैक्ट्स का पता लगाए बिना इस तरह के आरोप लगाने से बचने की अपील की गई थी.
ओम बिरला ने कहा, “ये (सदस्यों के लिए इस तरह के आदेश) एक प्रक्रिया है. ये प्रथा लंबे समय से चली आ रही है. सभी राजनीतिक दलों से मेरी अपील है कि वे संसद या विधानसभाओं में फ़ैक्ट्स का पता लगाए बिना आरोप-प्रत्यारोप से दूर रहें…”
स्पीकर ओम बिरला की बात ध्यान में रखते हुए, हमने आगे की जांच की और देखा कि 2019, 2020, 2021 और यहां तक कि जनवरी 2022 में भी यही फरमान जारी किया था.
पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने 2009 में यानी, UPA के दौर में जारी यही फरमान ट्वीट किया था. राज्यसभा की तरह लोकसभा भी पहले कई बार ये परिपत्र जारी कर चुकी है. (यहां देखिए.)
The no dharna, no religious ceremony rule in parliament precincts is not new. Has been there from UPA times. This is Feb 2009. pic.twitter.com/Vp9Q8eMrZN
— Rajdeep Sardesai (@sardesairajdeep) July 15, 2022
2012 और 2013 में जारी ये आदेश राज्य सभा की वेबसाइट पर भी देखा जा सकता है. राज्य सभा के सदस्यों के लिए हैंडबुक (2010) में जनरल मैटर्स टॉपिक में ये निर्देश मौजूद है.
कुल मिलाकर, संसद के दोनों सदनों द्वारा नियमित रूप से जारी एक आदेश कई प्रमुख राजनेताओं ने शेयर की जिसमें राज्यसभा के सदस्यों को संसद भवन परिसर का इस्तेमाल प्रदर्शनों या धरने के लिए न करने का निर्देश दिया गया है. कई मीडिया आउटलेट्स ने भी विपक्षी दलों के बयानों पर रिपोर्ट की, लेकिन उन्होंने ये स्पष्ट नहीं किया कि ये आदेश नया नहीं है.
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