वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार के दो अलग-अलग प्रसारणों के अंशों को एक साथ जोड़कर सोशल मीडिया में प्रसारित किया गया। संयुक्त रूप से 1.11 मिनट की इस क्लिप में एक के तुरंत बाद दूसरा वीडियो चलाकर यह दिखलाने का प्रयास किया गया है कि वरिष्ठ पत्रकार मुस्लिम के प्रति सहानुभूति रखते हैं, लेकिन हिंदू के लिए उनका ऐसा व्यवहार नहीं दिखता है। पहली क्लिप में, कुमार को यह कहते सुना जा सकता है, “भोपाल से बीजेपी के उम्मीदवार प्रज्ञा ठाकुर होने जा रही है उनके नाम के आगे साध्वी लगाया जाता है, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर… वो आरोपी हैं आतंकवाद के मामले में उनपर मुकदमा चल रहा है, लेकिन बीजेपी को इससे फर्क नहीं पड़ता…

इस वीडियो के तुरंत बाद, जोड़े गए दूसरे प्रसारण की क्लिप चलती है जिसमें रवीश कुमार कहते हैं, “आप हमारे स्क्रीन पर इस वक्त दो तस्वीरें देख रहे हैं। एक तस्वीर उस नौजवान की है, जो 20 साल का था, यानी 1994 की। ये तस्वीर आज की है यानी 31 मई, 2016 की। इसकी उम्र है 43 साल। इन तस्वीरों के बीच, इस शख्स की ज़िंदगी के 8150 दिन जेल में गुजरे हैं। 23 साल जेल में गुजारने के बाद, एक दिन जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिन बयानों के आधार पर निसार को आजीवन कारावास की सजा काटनी पड़ी है, वे सबूतों के तौर पर पर्याप्त नहीं हैं। जेल से बाहर आने की खुशी में कोई भी पागल हो जाए मगर निसार को क्यों लगा कि अब वह सिर्फ एक ज़िंदा लाश की तरह बचा हुआ है… –

प्रज्ञा ठाकुर के बारे में प्रसारण पहले चलता है और बाईं ओर एक लेबल के साथ रखा गया है जिसमें लिखा है — “जब आरोपी हिंदू है”। दूसरा प्रसारण, जिसमें कुमार निसार के बारे में बात करते हैं, उसपर लगे दूसरे लेबल में लिखा है — “जब आरोपी मुस्लिम है – (अनुवाद)”। वीडियो को — “पत्रकारिता स्तर – रवीश कुमार” — का कैप्शन दिया गया है। ‘इंडिया अगेंस्ट अर्बन नक्सल्स‘ नामक एक पेज से पोस्ट किए गए इस वीडियो को 1 लाख बार देखा गया है।

यह वीडियो ट्विटर पर भी प्रसारित किया गया है। एक अकाउंट, BALA (@erbmjha) से इसे लगभग एक लाख से ज्यादा बार देखा गया है।

यह वीडियो ‘पॉलिटिकल कीड़ा‘ नामक एक फेसबुक पेज ने बनाया है।

 

क्या रविश कुमार सच में निष्पक्ष पत्रकार हैं? जान ने के लिए इस वीडियो को जरूर देखें

Posted by Political Kida on Thursday, April 18, 2019

पॉलिटिकल कीड़ा‘ अंकुर सिंह (@iankursingh) द्वारा चलाया जाता है, जो पहले ‘नेशन वांट्स नमो’ पेज चलाते थे, जिसे फेसबुक ने अपने हाल के “अप्रामाणिक व्यवहार” में शामिल पेजों को हटाने के क्रम में हटा दिया था। ‘पॉलिटिकल कीड़ा’ को अब ‘नेशन वांट्स नमो’ से जुड़े फोन नंबर का ही उपयोग करके प्रचारित किया जाता है। अंकुर सिंह ने फोन नंबर को कई बार ट्वीट किया है।

संदर्भ से अलग रखा गया रवीश कुमार का प्रसारण

सोशल मीडिया में वायरल वीडियो में, रवीश कुमार पहले भाजपा की भोपाल उम्मीदवार ‘साध्वी’ प्रज्ञा ठाकुर के बारे में बात करते हैं जो 2008 के मालेगांव विस्फोटों में आरोपी हैं। 2017 में, NIA ने महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट (मकोका) के तहत उनके खिलाफ लगाए गए आरोप हटा लिए। उनकी उम्मीदवारी की घोषणा के बाद से, सोशल मीडिया पर झूठे दावे किए जा रहे हैं कि प्रज्ञा ठाकुर को बरी कर दिया गया है, हालांकि, यह सच्चाई से कोसों दूर है, क्योंकि वह अभी भी गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम के तहत आरोपों के घेरे में हैं और वर्तमान में स्वास्थ्य संबंधी आधार पर ज़मानत पर बाहर हैं। इस बारे में रवीश कुमार के पूरे प्रसारण का वीडियो यहां देखा जा सकता है।

दूसरा प्रसारण निसार-उद-दीन अहमद से संबंधित है, जिन्हें बाबरी सालगिरह ट्रेन विस्फोट मामले में गलत तरीके से दोषी ठहराया गया था और 23 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया था। रवीश कुमार की रिपोर्ट 31 मई 2016 को NDTV द्वारा प्रसारित की गई थी।

कौन है निसार-उद-दीन अहमद?

25 जनवरी, 1994 को कर्नाटक के एक 20 वर्षीय युवक निसार-उद-दीन अहमद को पुलिस ने उसके घर से उठाया था। मई 2016 में सभी आरोपों से बरी होने तक अहमद ने अपने जीवन के 23 वर्ष जेल में व्यतीत किए।

अहमद को बाबरी मस्जिद के विध्वंस की पहली बरसी पर, 5-6 दिसंबर, 1993 की मध्यरात्रि में पांच ट्रेनों में विस्फोटों की एक शृंखला की साज़िश रचने के लिए निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराया गया था। निसार, उनके भाई और एक पड़ोसी को हैदराबाद पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था और बाद में तीनों को धमाकों के लिए आरोपी बनाया गया था।

द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, “पुलिस ने जो एकमात्र सबूत पेश किया, वह हिरासत में उनका कथित कबूलनामा था — बाद में, इन्हें स्वीकार्य बनाने के लिए, आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियाँ अधिनियम (TADA) के प्रावधानों को लागू किया गया था – (अनुवाद)।” पुलिस ने दावा किया कि अपने कथित कबूलनामे में अहमद ने आतंकवादी हमले में अपनी भूमिका स्वीकार की। बाद में यह मामला सीबीआई को स्थानांतरित कर दिया गया और 1996 में, हैदराबाद मेट्रोपॉलिटन सत्र न्यायाधीश ने मामले से टाडा के प्रावधानों को रद्द कर दिया। 2001 में, कथित कबूलनामा अदालत में अस्वीकार्य हो गया।

हैदराबाद ट्रायल कोर्ट ने 2007 में सभी तीन आरोपियों को बरी कर दिया, और मामले को सर्वोच्च अदालत में ले जाया गया, जहां न्यायाधीशों ने पाया कि कथित इकबालिया बयान “बिना किसी कानूनी मंजूरी के थे और उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता था – (अनुवाद)।”

फैसले के अनुसार, अहमद की “भूमिका को न तो स्वीकारोक्ति में संदर्भित किया गया है … और न ही रिकॉर्ड पर (अहमद) उनकी स्वीकारोक्ति के अलावा कोई सामग्री है। इसलिए सज़ा और (अहमद) का कबूलनामा पूरी तरह से अरक्षणीय है – (अनुवाद)”।

12 साल तक मामले की सुनवाई के बाद, शीर्ष अदालत ने 2016 में इस मामले में अहमद और तीन अन्य आरोपियों को बरी कर दिया, लेकिन 10 अन्य लोगों की सजा को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा।

निसार-उद-दीन अहमद को अपराध के लिए गलत तरीके से दोषी ठहराए जाने के बाद 23 साल जेल में बिताने पड़े। दूसरी ओर, भाजपा की भोपाल उम्मीदवार प्रज्ञा ठाकुर अभी भी UAPA के तहत आरोपों का सामना कर रही हैं और फिलहाल ज़मानत पर बाहर हैं।

रवीश कुमार की पत्रकारिता में धार्मिक पूर्वाग्रह को गलत तरीके से चित्रित करने के लिए दो अलग-अलग मामलों के दो प्रसारण बिना किसी संदर्भ के प्रसारित किए गए।

ऑल्ट न्यूज़ से बात करते हुए रवीश कुमार ने कहा, “हर दूसरे दिन मुझे लेकर इस तरह का प्रोपेगैंडा वायरल किया जाता है। इस वीडियो को देखने के बाद लगा कि आई टी सेल का पूरा सेट अब मेरे ख़िलाफ़ काम कर रहा है। इसके लिए उन्होंने मेरा एक एक वीडियो देखा होगा इसके बाद भी वे मेरे ख़िलाफ़ कुछ भी ठोस नहीं खोज पाए। जिस लड़के या लड़की ने ये वीडियो एडिट किया होगा उसे इतना तो पता होगा कि नरेंद्र मोदी को सपोर्ट करने के लिए वह झूठ क्रिएट कर रहा है। उसे पता होगा कि वह ठगा जा रहा है। दुख होता है इन नौजवानों को लेकर। लगता है कि ये लोग आई टी सेल की फ़ैक्ट्री में ग़ुलाम बनाकर रखे गए हैं। इनसे झूठ की खेती कराई जा रही है। मैं इन नौजवानों के बारे में सोचता हूँ। मुझे पूरा भरोसा है। आई टी सेल के भीतर काम कर रहे यही नौजवान एक दिन आई टी सेल को एक्सपोज़ करेंगे। अभी तो ऑल्ट न्यूज़ बाहर से एक्सपोज़ कर रहा है एक दिन भीतर बग़ावत होगी।“

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About the Author

Pooja Chaudhuri is a senior editor at Alt News.