2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में आरोपी साध्वी प्रज्ञा भाजपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं। भोपाल, मध्यप्रदेश से प्रज्ञा के नामांकन की खबर ने हंगामा मचा दिया था। सोशल मीडिया में कई इंटरनेट यूज़र्स ने आतंकवाद की आरोपी को नामजद करने के लिए भाजपा को निशाना बनाया।

उनमें से एक अभिनेत्री स्वरा भास्कर थीं, जो प्रज्ञा को ‘मालेगांव आतंकवादी अभियुक्त’ और ‘संभावित आतंकवादी’ के रूप में संदर्भित करते हुए, सत्तारूढ़ दल पर खूब बरसीं। पत्रकार और नेटवर्क-18 के कार्यकारी संपादक अमीश देवगन ने उन्हें कोट-ट्वीट किया कि प्रज्ञा को अदालत ने बरी कर दिया है।

देवगन के ट्वीट को उनके इसे 17 अप्रैल को पोस्ट करने के बाद से, 6000 से अधिक बार रिट्वीट और 16,000 से अधिक बार ‘लाइक’ किया गया। देवगन के अलावा, कई प्रमुख भाजपा समर्थक हैंडल ने ट्वीट कर कहा है कि साध्वी प्रज्ञा को मालेगांव ब्लास्ट मामले में बरी कर दिया गया है।

उपरोक्त ट्वीट को अब तक 900 से अधिक बार रिट्वीट किया जा चुका है। अन्य प्रमुख हैंडल जो यह दावा करते हैं, उनमें रितु राठौर और डेसिमोजिटो शामिल हैं।

साध्वी प्रज्ञा को बरी नहीं किया गया है

बरी होने का मतलब एक ऐसा फैसला है जो किसी अपराध के अभियुक्त व्यक्ति को दोषमुक्त करता है। विचाराधीन व्यक्ति को फैसले के माध्यम से दोषी नहीं घोषित किया जाता है। हालांकि इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है (यदि निचली अदालत द्वारा फैसला सुनाया गया है), बरी होना अनिवार्य रूप से गैर-अपराध की पुष्टि है। साध्वी प्रज्ञा के मामले में, यह ध्यान देने योग्य है कि उन्हें बरी नहीं किया गया है

साध्वी प्रज्ञा फिलहाल ज़मानत पर बाहर हैं। उन्हें स्वास्थ्य आधार पर ज़मानत दी गई थी। जस्टिस शालिनी फनसालकर जोशी और रंजीत मोरे की अध्यक्षता वाली बॉम्बे हाईकोर्ट की खंडपीठ द्वारा दिए गए जमानत आदेश के अनुसार, साध्वी प्रज्ञा को इसलिए ज़मानत दी गई थी क्योंकि वह “स्तन कैंसर से पीड़ित” थीं और वह “बिना सहारे के चल भी नहीं सकती” थीं।

2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में आरोपी साध्वी प्रज्ञा और अन्य का मुकदमा अभी भी चल रहा है। प्रज्ञा पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं। दिसंबर 2017 में, एक विशेष एनआईए अदालत ने फैसला किया था कि साध्वी प्रज्ञा, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रशांत पुरोहित और छह अन्य को UAPA के तहत आरोपित किया जाना चाहिए।

गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, “व्यक्तियों और संगठनों की कुछ गैरकानूनी गतिविधियों की अधिक प्रभावी रोकथाम के लिए [और आतंकवादी गतिविधियों से निपटने के लिए] और जुड़े हुए मामलों के लिए एक अधिनियम है।” यह 1967 में घोषित किया गया था और तब से कई बार संशोधित किया गया है।

अदालत ने हालांकि आरोपियों के खिलाफ सख्त महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट (MCOCA) को हटा दिया था। यह ध्यान देने योग्य है कि MCOCA आरोपों को हटाना किसी भी मामले में बरी होना कहकर भ्रमित नहीं किया जा सकता। ब्लास्ट में इस्तेमाल मोटरसाइकिल कथित रूप से उनके नाम पर पंजीकृत होने के बाद प्रज्ञा की भूमिका सवालों के घेरे में आ गई। महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) द्वारा दायर चार्जशीट के अनुसार, प्रज्ञा 2006 से कट्टरपंथी कार्यकर्ताओं की अधिकांश बैठकों का हिस्सा थीं, जिन्होंने मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों पर हमला करने की योजना बनाई थी। उन्होंने कथित तौर पर हमलों को अंजाम देने के लिए लोगों को ढूँढने का जिम्मा लिया था।

इस मामले में, तथ्य यह है कि साध्वी प्रज्ञा को 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में उनकी कथित भूमिका से अदालत ने बरी नहीं किया है। भाजपा समर्थक सोशल मीडिया यूज़र्स और कुछ प्रमुख हस्तियों द्वारा इस संबंध में किए गए दावे गलत हैं।

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About the Author

Arjun Sidharth is a writer with Alt News. He has previously worked in the television news industry, where he managed news bulletins and breaking news scenarios, apart from scripting numerous prime time television stories. He has also been actively involved with various freelance projects. Sidharth has studied economics, political science, international relations and journalism. He has a keen interest in books, movies, music, sports, politics, foreign policy, history and economics. His hobbies include reading, watching movies and indoor gaming.