एक तस्वीर शेयर की जा रही है जिसमें ज़मीन पर बड़ी संख्या में पक्षी पड़े हुए दिख रहे हैं. इसे शेयर करते हुए लोग सरकार से गुज़ारिश कर रहे हैं कि उन्हें 5G नहीं चाहिए बस इन बेजुबान परिंदों की जान बख्श दी जाए. उनका कहना है कि ये परिंदे इसलिए बेहोश होकर गिरे हैं क्यूंकि 5G नेटवर्क की टेस्टिंग हो रही है.
फ़ेसबुक पर कई लोग ये तस्वीर शेयर करते हुए ऐसा दावा कर रहे हैं.
फ़ैक्ट-चेक
इस तस्वीर का रिवर्स इमेज सर्च करने पर पता चला कि ये हाल की नहीं बल्कि 2016 की तस्वीर है. 21 अप्रैल 2016 को द न्यूज़ मिनट में छपे एक आर्टिकल में बताया गया है कि ये तस्वीर उस समय चेन्नई की गर्मी से मरने वाली पक्षियों की बताकर शेयर की जा रही थी जिसे वन्यजीव संरक्षणकर्मियों ने फ़र्ज़ी बताया.
न्यूज़ मिनट के आर्टिकल में चेन्नई वन्यजीव बचाव दल के श्रवण कृष्णन का बयान शामिल है. उन्होंने कहा, “ये तस्वीर फ़ोटोशॉप की मदद से बनायी गयी है. तस्वीर में दिखने वाले लोगों के कपड़े देखकर इसे स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है. अगर ये चेन्नई में होता तो हमें सबसे पहले ख़बर होती.” उन्होंने ये भी कहा कि ये तस्वीर बिहार में 7 साल पहले ली गयी थी जब कीटनाशक मिलाए गए बीज खाने से पक्षियों की मौत हुई थी.
ऑल्ट न्यूज़ स्वतंत्र रूप से इस बात की पुष्टि नहीं कर रहा कि ये तस्वीर बिहार की है लेकिन ये 2016 से इन्टरनेट पर मौजूद है. यानी, कम से कम 5 साल पुरानी एक तस्वीर शेयर करते हुए इसे 5G टेस्टिंग से जोड़ा जा रहा है.
5G टॉवर से निकले रेडिएशन से पक्षियों की मौत नहीं हो सकती
मोबाइल फ़ोन इलेक्ट्रोमैगनेटिक स्पेक्ट्रम की हाई फ़्रीक्वेंसी (HF) पर काम करते हैं. इंटरनेशनल कमीशन ऑन नॉन-आयोनायज़िंग रेडिएशन प्रोटेक्शन (ICNIRP) के मुताबिक मोबाइल फ़ोन इलेक्ट्रोमैगनेटिक स्पेक्ट्रम की हाई फ़्रीक्वेंसी 100 kHz (0.1 MHz) से लेकर 300 GHz (3 lakh MHz) के बीच होती है. भारत ICNIRP की गाइडलाइन्स का पालन करता है और EMF रेडिएशन से जुड़े सबसे कड़े नियम अपनाने वाले देशों में शामिल है. एयरटेल और वोडाफ़ोन फ़िलहाल 1800MHz और 2100MHz बैंड्स पर 4G ऑफ़र करते हैं, वहीं जियो 800 MHz का लोअर बैंड इस्तेमाल करता है. 2021 के ऑक्शन में 2,500MHz तक का बैंड ऑफ़र किया जाने वाला है.
जनवरी 2021 में, ऑल्ट न्यूज़ ने 5G ट्रायल्स के कारण पक्षियों के मरने के दावे को गलत पाया था. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, “5G और अन्य मोबाइल फ़ोन्स तकनीक इलेक्ट्रोमैगनेटिक स्पेक्ट्रम की लो-फ़्रीक्वेंसी के तहत आती हैं. ये मेडिकल x-rays और सूरज की किरणों की नुकसानदायक, हाई फ़्रीक्वेंसी के विपरीत विज़िबल लाइट से भी कम पॉवरफ़ुल हैं और कोशिकाओं को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकते”. आप हमारी पूरी फ़ैक्ट-चेक रिपोर्ट यहां पर पढ़ सकते हैं.
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