10 अगस्त को ‘टाइम्स नाउ’ ने एक वीडियो रिपोर्ट ट्वीट किया. पत्रकार प्रदीप दत्ता की इस पूरी रिपोर्ट को एक मस्जिद के भीतर शूट किया गया है. मस्जिद के एक कथित मौलवी को वहां मौजूद कुछ लोगों से भारतीय राष्ट्रीय झंडा के महत्व के बारे में बात करते हुए देखा जा सकता है.

इस वीडियो रिपोर्ट में हम देखते हैं कि ‘टाइम्स नाउ’ के पत्रकार कथित मौलवी के साथ-साथ वहां मौजूद लोगों के साथ बात कर रहे हैं, जो बहुत “उत्साह से” उनकी बातें सुन रहे हैं. मस्जिद के अंदर मौजूद कुल 9 लोगों में कुछ बुज़ुर्ग नागरिक भी हैं.

इसी रिपोर्ट को हिंदी में भी शूट किया गया है. ‘टाइम्स नाउ नवभारत’ ने इसे 10 अगस्त को ट्वीट किया था. हिंदी रिपोर्ट में ‘टाइम्स नाउ’ के रिपोर्टर ने उस व्यक्ति को “मौलाना” बताया. इस रिपोर्ट में 2 मिनट 20 सेकेंड पर, रिपोर्टर ने उस व्यक्ति से पूछा कि क्या उस पर कोई बाहरी दबाव है या क्या उसे झंडा फ़हराने के लिए मजबूर किया जा रहा है. व्यक्ति इस सवाल का जवाब देते हुए कहता है कि उस पर कोई दबाव नहीं है.

इस वीडियो रिपोर्ट को ‘टाइम्स नाउ नवभारत’ ने 12 अगस्त को दो बार (यहां और यहां) शेयर किया.

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वीडियो का विश्लेषण

रिपोर्ट को ध्यान से देखने पर कुछ चीजें नोटिस की जा सकती हैं:

  1. स्टोरी के केंद्र में रिपोर्टर है. वो इस तरह स्टोरी नैरेट करता है जैसे उपदेश दिया जा रहा हो.
  2. रिपोर्टर इस कार्यक्रम के बीच में ही कथित मौलवी और वहां मौजूद लोगों का इंटरव्यू लेता है. एक रिपोर्टर द्वारा किसी सार्वजनिक कार्यक्रम के बीच में जाकर लोगों से बातचीत करना अजीब है.
  3. ऐसा लगता है कि कथित मौलवी और स्थानीय लोगों के साथ रिपोर्टर की बातचीत जबरदस्ती की जा रही हो, जिसमें रिपोर्टर बातचीत की अगुआई करता है.

इन सभी चीजों पर ध्यान देने से एक सार्वजनिक कार्यक्रम को रिपोर्टिंग करने का तरीका ठीक मालूम नहीं पड़ता.

वीडियो में दिख रहे व्यक्ति कोई मौलवी नहीं, बल्कि स्थानीय नेता हैं

हमने टाइम्स नाउ के ट्वीट्स पर आए कमेंट्स पढ़े. जहां आसिफ़ इकबाल नामक यूज़र के एक कमेंट पर हमारी नज़र गई. यूज़र ने प्वाइंट के साथ लिखा कि वीडियो रिपोर्ट में दिख रहा शख्स मौलवी नहीं बल्कि किसी राजनीतिक दल से जुड़ा शख्स है. इसके बाद के एक कमेंट में, यूज़र ने ये भी बताया कि ये वीडियो जम्मू के डोडा ज़िले का है.

इन ट्वीट्स को ध्यान में रखते हुए हमने कुछ स्थानीय पत्रकारों से संपर्क किया, जिन्होंने कथित मौलवी की पहचान एक स्थानीय राजनेता के रूप में की. पत्रकारों के मुताबिक, वीडियो में दिख रहा शख्स मोहम्मद रफी शेख़ उर्फ ​​पिंका है और ये ‘जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी’ (JKAP) के लिए काम करता है. उन्होंने हमें ये भी बताया कि टाइम्स नाउ की वीडियो रिपोर्ट हिदायती फ़ागसू जामा मस्जिद (جامع مسجد ھدای پھگسو) में ली की गई है.

आगे की जांच करने के लिए हमने फ़ेसबुक पर कई की-वर्ड्स सर्च किये. हमें मोहम्मद रफी से जुड़ी खबरें मिलीं. नवंबर 2021 की एक रिपोर्ट में रफ़ी को ‘APNI पार्टी के ब्लॉक महासचिव’ बताया गया है. सितंबर 2021 के एक इंटरव्यू में रफ़ी को ‘जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी’ के सुप्रीमो अल्ताफ़ बुखारी के बगल में खड़े देखा जा सकता है.

ऑल्ट न्यूज़ ने मोहम्मद रफ़ी शेख़ से संपर्क किया. हमने उनसे जानना चाहा कि वहां क्या हुआ था. ऑल्ट न्यूज़ के साथ फ़ोन पर हुई बातचीत में रफ़ी शेख़ ने स्वीकार किया कि वो JKAP से जुड़े एक स्थानीय नेता हैं. रफ़ी ने बताया, “मैं मौलवी, इमाम, आलीम या किसी मस्जिद का सदस्य नहीं हूं.”

रफ़ी ने ये भी आरोप लगाया कि भारतीय सेना ने टाइम्स नाउ के रिपोर्टर के साथ मिलकर उन्हें मस्जिद के अंदर झंडा फ़हराने और वहां बोलने के लिए मजबूर किया था. हमने मस्जिद के नायब इमाम (उप मौलवी) अब्दुल कबीर (नीचे लाल घेरे में दिख रहे व्यक्ति) से भी बात की, जो वीडियो शूट करते समय मस्जिद में मौजूद थे. इन्होंने भी मोहम्मद रफ़ी शेख़ के बयान से सहमती जताई.

ऑल्ट न्यूज़ को ‘द चिनाब टाइम्स’ के 26 मिनट लंबे वीडियो के बारे में पता चला. इसमें मस्जिद में मौजूद स्थानीय लोगों सहित रफ़ी शेख़ और नायब इमाम ने भी रिपोर्टर से बात की थी. इस वीडियो में भी उन्होंने बताया है कि उन्हें सेना द्वारा मस्जिद के अंदर झंडा फ़हराने के लिए मजबूर किया गया था.

रफ़ी शेख़ ने बताया, “7 अगस्त की शाम को एक पुलिस अधिकारी मेरे घर आया और मुझसे झंडे के साथ पोज देने के लिए कहा. उन्होंने मुझसे कहा कि मैं एक OGW (ओवर ग्राउंड वर्कर) हूं और मुझे इसका पालन करना पड़ेगा. जैसा मुझे बताया गया मैंने वैसा ही किया. अगले दिन यानी 8 अगस्त को सेना के अधिकारियों ने मुझे फ़ोन किया और मुझसे पूछा कि मैं कहां हूं. मैंने उनसे कहा कि मैं अपने घर पर हूं.”

उन्होंने आगे कहा, “अगली बार जब उन्होंने मुझे फ़ोन किया, तो मैं अपने घर के पास अपने दर्जी दोस्त की दुकान पर बैठा था. वे दुकान पर आए और मुझे और मेरे दोस्त को एक तरफ़ ले गए. उन्होंने हमें राष्ट्रीय झंडे के बारे में बोलने के लिए कहा, इसलिए हम मान गए… उन्होंने कुछ लोगों को इकट्ठा किया और हमें मस्जिद के अंदर इसके बारे में बोलने के लिए कहा… हमें ऐसा करने का मन नहीं था, पर हम मान गए.”

ऑल्ट न्यूज़ ने दर्जी शफ़कत हुसैन (नीचे हरे रंग के घेरे में दिख रहे व्यक्ति) से बात की, जो मोहम्मद रफ़ी शेख़ के साथ वहां मौजूद थे. उन्होंने रफी ​शेख़ ​के दावे को सही बताया. शफ़कत हुसैन ने कहा, “हम ग्रामीण हैं, हम नहीं जानते कि सेना और OGW के बीच क्या होता है. सेना को देखकर मैं डर गया इसलिए मैंने वैसा ही किया जैसा मुझे कहा गया.”

टाइम्स नाउ के अंग्रेजी वाली रिपोर्ट में 3 मिनट 15 सेकेंड पर एक फौजी को देखा जा सकता है. एक स्थानीय व्यक्ति के मुताबिक, मस्जिद के बाहर सेना का खड़ा होना आम बात नहीं है. ऑल्ट न्यूज़ ने फ़ागसू में तैनात सेना के वरिष्ठ अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने रिकॉर्ड पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया और हमें सेना के PRO से संपर्क करने के लिए कहा. PRO का जवाब था कि उन्हें इस तरह की किसी भी घटना की जानकारी नहीं थी.

हमें एक फ़ेसबुक लाइव भी मिला. इस लाइव वीडियो में पत्रकार शकील राजा से बात करते हुए एक स्थानीय नेता ने कहा कि सेना के एक मेजर ने उन्हें बताया कि मस्जिद परिसर के अंदर वीडियो शूट करना रफ़ी शेख़ का विचार था. राजनेता ने रफ़ी शेख़ से बात करने का भी दावा किया, रफ़ी शेख़ ने बताया कि उसने जो किया वो जबरदस्ती किया. [3 मिनट 10 सेकेंड से ये हिस्सा देखा जा सकता है]

ऑल्ट न्यूज़ ने पत्रकार प्रदीप दत्ता से रफ़ी और घटनास्थल पर मौजूद अन्य लोगों द्वारा लगाए गए आरोपों पर बात करने के लिए संपर्क किया. प्रदीप दत्ता ने हमारा फ़ोन काट दिया और हमारे मेसेज का कोई जवाब नहीं दिया. अगर प्रदीप इन आरोपों पर जवाब देते हैं तो ये आर्टिकल अपडेट किया जाएगा.

हालांकि, फ़ागसू के एक मस्जिद के अंदर राष्ट्रीय झंडा फ़हराने के बारे में लोगों के अलग-अलग विचार हैं, लेकिन ये साफ़ है कि टाइम्स नाउ ने अपने प्रसारण में एक स्थानीय नेता को मौलवी के रूप में ग़लत तरीके से पेश किया है. मोहम्मद रफ़ी शेख़ उर्फ ​​पिंका मस्जिद के मौलवी या आलीम नहीं हैं. वो ‘जम्मू एंड कश्मीर अपनी पार्टी’ (JKAP) से जुड़े नेता हैं.

 

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Kalim is a journalist with a keen interest in tech, misinformation, culture, etc