“ઈકો ગાદી લઈને આવે છે નાના બાળકો લઈ જાય છે અને કિટની વેચે છે જલ્દી સારે મોબાઇલ મા ફોરવર્ડ કરો હમારા બાળકો ની જીદગી બચી જાય મહેસાણા પાટન પાલનપુર જલ્દી જપ્ત કરાવો GJ19AF 0827″ (वो इक्को कार में आते हैं, आपके बच्चों का अपहरण करते हैं और उनकी किडनी बेच देते हैं। अपने बच्चों को बचाने के लिए तुरंत इस संदेश को सभी मोबाइल फोन पर भेजें। मेहसाणा पाटन पालनपुर में अलर्ट GJ19AF 0827 कार को जब्त करें। – अनुवादित)
उपरोक्त संदेश को व्हाट्सप्प पर कुछ तस्वीरों और वीडियो के साथ साझा किया गया है। इसे फेसबुक और ट्विटर पर भी साझा किया गया है। तस्वीरों और वीडियो का विवरण कुछ इस प्रकार है:
1. वीडियो – पुलिसकर्मी को बिना सिर के शरीर को कपड़े में लपेटते हुए देखा जा सकता है। उसका सिर शरीर के पास ही पड़ा हुआ है।
2. पहली तस्वीर – कुछ लोग एक कतार में खड़े हैं।
3. दूसरी तस्वीर – एक खंभे से बंधे हुए दो लोग, जिन्हें कुछ लोगों ने घेर कर रखा है।
तथ्य जांच
ऑल्ट न्यूज़ ने पाया कि यह वीडियो और तस्वीरें पुरानी है, जिनका अवैध अंग व्यापार और बच्चों को अगवा करने वाली गैंग से कोई लेना देना नहीं है।
वीडियो
वीडियो में दिख रहे पुलिसकर्मी की वर्दी को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि यह उत्तर प्रदेश की पुलिस फाॅर्स से जुड़ा हो सकता है। गूगल पर “boy beheaded Uttar Pradesh” कीवर्ड्स से सर्च करने पर, हमें 22 फरवरी, 2017 को हिंदुस्तान टाइम्स द्वारा प्रकाशित किया गया लेख मिला। “उत्तर प्रदेश में एक नशाखोर ने 7 वर्षीय बच्चे का सिर काट दिया और उसका मांस खा लिया”-(अनुवाद) इसे आप लेख के शीर्षक में पढ़ सकते है। पीड़ित मोहम्मद मोनिस, जो अपने घर के बाहर खेल रहा था। बीस वर्षीय पड़ोसी उसे बहला फुसला कर घर के अंदर ले गया और उसे मार दिया। पुलिस अफसर के मुताबिक, बच्चे का शरीर ज़मीन पर था जिसके साथ उसका सिर भी वहां पर पड़ा हुआ था। उन्होंने कहा कि,“पेट के अंदर की चमड़ी गायब थी और शरीर के अंदरूनी अंग और खून पुरे कमरे में फैला हुआ था”। हमे इस वीडियो की पुस्टि करने वाला एक वीडियो यूट्यूब पर भी मिला है।
पहली तस्वीर
इस तस्वीर को 26 अगस्त, 2017 के पत्रिका के एक लेख में प्रकाशित किया गया था। चोरों की एक गैंग को होशंगाबाद पुलिस ने मध्य प्रदेश में गिरफ्तार किया था। राजस्थान पत्रिका के लेख के मुताबिक, “इस गैंग में अलग अलग टीमें है और सभी काम अलग अलग है। एक टीम रैकी करती है और दूसरी टीम चोरी करती है और तीसरी टीम चोरी के सामान को बेचने का काम करती थी”।
दूसरी तस्वीर
इस तस्वीर को “बच्चों को अगवा करने” की अफवाहों के साथ 2018 से सोशल मीडिया में साझा किया जाता रहा है। जून 2018 में, ऑल्ट न्यूज़ ने ऐसी कई तस्वीरों की पड़ताल की थी, जिसमें यह तस्वीर भी शामिल थी। इस तस्वीर को बच्चों को अगवा करने के दावे के साथ साझा किया जाता रहा है। हम इसकी स्वतंत्र रूप से जांच और इस तस्वीर के स्रोत के बारे में पता नहीं लगा पाये। हालांकि, इसकी जांच कन्नड़ समाचार पत्र प्रजावाणी ने 2018 में की थी। मीडिया संगठन के लेख में, कन्नड़ पुलिस के मुताबिक, यह तस्वीर 3-4 साल पुरानी है। उस समय, पुलिस ने लोगों से अपील की थी कि वह व्हाट्सअप पर की इन अफवाहों पर यकीन ना करे।
वायरल संदेश के साथ किये गये दावे में गाड़ी के रजिस्ट्रेशन नंबर के बारे में जब ऑल्ट न्यूज़ ने बारडोली (सूरत) पुलिस से संपर्क किया, उन्होंने बताया कि वे इस मामले की जांच कर रहे हैं।
2014 से, पूरे देश में बच्चों को अगवा करने की अफवाहों ने लोगों को भड़का दिया है, जिसकी वजह अब तक करीब 30 लोगों की मौत हो चुकी है। हालांकि पुलिस ने अफवाहों को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए है मगर सोशल मीडिया में फिर भी यह प्रसारित हो जाती है। ऐसे संदेश में थोड़ा बदलाव कर एक जैसे तस्वीर और वीडियो के साथ सोशल मीडिया में पोस्ट किये जाते है। उदहारण के लिए, पिछले साल रोहिंग्या मुसलमानों को इन अफवाहों का हिस्सा बनाया गया था। इन संदेशों को आम तौर पर लक्षित राज्य की भाषा में ही साझा किया जाता है। इसी तरीके से संदेश अब गुजराती भाषा में साझा किया गया है। ऑल्ट न्यूज़ ने पिछले साल भी इन अफवाहों की पड़ताल की थी, जब अहमदाबाद में एक गरीब औरत को भीड़ ने पिट पिट कर मार डाला था। इन अफवाहों को परखने का सबसे अच्छा तरीका है कि इनसे जुड़े समाचार लेखों को ढूंढा जाए और अगर ऐसा कोई समाचार ना मिले तो यह इशारा है कि सोशल मीडिया में किया गया दावा सत्यापित नहीं है।
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