जामिया मिलिया इस्लामिया की छात्रा सफ़ूरा ज़रगर को गैरकानूनी गतिविधि रोकने के कानून के तहत 10 अप्रैल को गिरफ्तार किया गया और गैर जमानती धाराओं में उन पर मामला दर्ज किया गया. गिरफ़्तारी के बाद से ही उन पर घटिया व्यक्तिगत हमले किए जा रहे हैं. मनोज कुमार आज़ाद जो कि अपनी पहचान भाजपा सदस्य के रूप में बताता है, के हैंडल से 4 मई को ट्वीट किया गया, “#शाहीन_बाग में दंगा भड़काने को लेकर चर्चा में आई अविवाहित जामिया की लॉ की छात्रा #सफूरा_जरगर जो कि इस समय तिहाड़ जेल में बंद हैं!जेल में कोरोना टेस्ट किया गया तो ये दो महीने की #प्रेग्नेंट निकली! भाई, ये चल क्या रहा है? बचाव में अब ये मत कहना कि ये ऊपर वाले की देन है!!”
#शाहीन_बाग में दंगा भड़काने को लेकर चर्चा में आई अविवाहित जामिया की लॉ की छात्रा #सफूरा_जरगर जो कि इस समय तिहाड़ जेल में बंद हैं!जेल में कोरोना टेस्ट किया गया तो ये दो महीने की #प्रेग्नेंट निकली! भाई, ये चल क्या रहा है? बचाव में अब ये मत कहना कि ये ऊपर वाले की देन है!! 🙄😏 pic.twitter.com/FJGSc2DvX0
— मनोज कुमार आजाद (@AzadmanojBjp) May 4, 2020
RSS सदस्य होने का दावा करने वाली एक अन्य यूज़र श्वेता सिंह ने इसी दावे के साथ जरगर का फोटो शेयर किया था. अब ये ट्वीट डिलीट कर लिया गया है. हमने पाया कि ये हिन्दी मेसेज ट्विटर पर बहुत ज़्यादा वायरल है.
सोशल मीडिया की वायरल पोस्ट्स में दावा किया जा रहा है कि सफ़ूरा ज़रगर अविवाहित हैं और उनकी प्रेग्नेंसी का पता उनकी कैद के दौरान चला.
Safura Zargar, a law student of unmarried Jamia, who is currently lodged in Tihar Jail, came to the fore regarding the incitement of riot in Shahin Bagh, Delhi. When the #corona test was done in the jail, she turned out to be two months pregnant #mondaythoughts #MondayMotivation pic.twitter.com/jch5oKtYJy
— Jasleen kaur (@Jasleen_Kaur11) May 4, 2020
इसे बंगाली भाषा में भी शेयर किया गया है- “#শাহীনবাগ ধরর্নায় #বসা বিপ্লবী #সাফুরা_জার্গার তিহার #জেলের একটি #মেডিকেল চেকআপে #দুই মাসের #গর্ভবতী ধরা #পড়ছেে যার #অর্থ হলো ওটা #কি …… ছিল? #সাফুরা_জার্গার একজন #ছাত্রী এবং #অবিবাহিত সে #কি করে #গর্ভবতী হয়? #শাহীনবাগ এর সমর্থকরা এর উত্তর দিন।”
फ़ैक्ट-चेक
फ़ैक्ट चेक की शुरुआत करने से पहले ध्यान देना ज़रूरी है कि सोशल मीडिया पर महिलाओं को बुरी तरह से निशाना बनाया जाता है. उन पर सेक्सिस्ट और घटिया स्तर के कमेंट किए जाते हैं. यह उत्पीड़न और बढ़ जाता है अगर महिला अल्पसंख्यक समुदाय की हो. ज़रगर की व्यक्तिगत ज़िंदगी का उनके केस से कोई संबंध नहीं है फिर भी लोग उनको निशाना बना रहे हैं और उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा को बर्बाद कर रहे हैं.
हमने पहले भी इस तरह की हरकतों को देखा है. सोशल मीडिया पर महिलाओं की आवाज़ जिनमें सामाजिक कार्यकर्ता, लेखिका, पत्रकार, छात्र-नेता आदि शामिल होती हैं,को पहले भी शर्मनाक कमेंट्स का सामना करना पड़ा है. व्यक्तिगत हमले करना सबसे आसान लगता है. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रसंघ उपाध्यक्ष शेहला राशिद ने ऑल्ट न्यूज़ से कहा, “इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि महिला शादीशुदा है या नहीं. वह कैसे प्रेग्नेंट हुई यह उसकी इच्छा है. मां सिर्फ मां है. यह शर्म की बात है कि दक्षिणपंथी ट्रोल एक मां बनने वाली महिला का भी सम्मान नहीं कर सकते. इस तरह के हमले बताते हैं कि सरकार के पास उसके खिलाफ कोई मामला नहीं है. ये दिखाता है कि मोदी सरकार की शह में किस तरह से गंदा बहुसंख्यवाद फैलाया जा रहा है.” राशिद सोशल मीडिया पर जानी-मानी आवाज़ हैं जो अक्सर इस तरह की ट्रोलिंग का शिकार होती रही हैं. ज़रगर की तरह ही उनका मुस्लिम नाम घटिया ट्रोलिंग से उनका सामना कराता रहता है.
सोशल मीडिया पर ज़रगर के अविवाहित होने के जो दावे किए जा रहे हैं वो झूठ हैं. ऑल्ट न्यूज़ ने ज़रगर के पति से बात की, उन्होंने बताया कि उनकी शादी 2018 में हो चुकी है.
यह दावा कि उनकी प्रेग्नेंसी का पता जेल जाने के बाद चला, ये भी झूठा है. यह अप्रैल की शुरुआत से ही खबरों में था जब उन्हें पुलिस ने हिरासत में लिया था. नीचे IANS के द्वारा 12 अप्रैल को की गई एक ख़बर का स्क्रीनशॉट है. इसमें कहा गया है कि 10 अप्रैल को गिरफ़्तारी के बाद ज़रगर ने बताया था कि वे तीन महीने की प्रेग्नेंट हैं और इसी आधार पर ज़मानत अर्जी दी थी.
अल जज़ीरा की एक रिपोर्ट बताती है कि 10 फ़रवरी को पुलिस और छात्रों के बीच विवाद में ज़रगर घायल हो गई थीं जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था. उनके पति का बयान रिपोर्ट में लिखा था जिसमें उन्होंने कहा कि, “उनकी प्रेग्नेंसी के बढ़ते दिनों की वजह से उन्हें ज़्यादा शारीरिक मेहनत करने से रोका गया था. देश में COVID-19 फैलने के बाद उन्होंने घर के बाहर जाना बन्द कर दिया था, ज़रूरी काम से ही निकलती थीं. वह ज़्यादातर घर से ही काम कर रही थीं.”
21 अप्रैल को अदालत में एक और ज़मानत अर्जी दाखिल की गई जिसमें मेडिकल कंडीशन का हवाला दिया है.
महिला अधिकार कार्यकर्ता और वकील वृंदा ग्रोवर ने ऑल्ट न्यूज़ से कहा, “जब यह जानकारी सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध है कि वह शादीशुदा है, जानबूझकर घटिया पोस्ट्स के ज़रिए उसके खिलाफ दुष्प्रचार किया जा रहा है. यह इस बात का सबूत है कि ये मामला उसे और CAA विरोधी शाहीनबाग प्रदर्शन को बदनाम करने के उद्देश्य और उम्मीद से उठाया जा रहा है. यह बहुत ही चिंता का विषय है कि उसका स्वास्थ्य और रहन सहन जेल में बुरी तरह से प्रभावित होगा.”
ग्रोवर ने आगे कहा, “महिला की व्यक्तिगत ज़िंदगी को निशाना बनाकर उसके खिलाफ झूठे आरोप लगाना और दुष्प्रचार करना, उसे मजबूर करना कि वह अपनी सेक्शुअलिटी को लेकर शर्मिंदा हो, यह बहुत पुराना मर्दवादी और मिसोजिनिस्ट हथियार है जिससे लोग अपनी राजनीति चमकाते हैं. यह महिला पर बहुत बुरा प्रभाव डालता है और उन्हें सार्वजनिक जीवन से दूर करता है. यह दिखाता है कि महिलाओं के लिए, खासतौर से युवा और हाशिये पर खड़ी बोल्ड महिलाओं के लिए सामाजिक नागरिक ढांचे में हिस्सा लेना कितना मुश्किल है. यह उसकी आवाज को, उस राजनीति को जिसकी वह सहायक है, वह जिस आंदोलन से जुड़ी रही है उसे दबाने का नीच और घटिया प्रयास है. सफूरा के संविधान विरोधी CAA से जुड़े तर्कसंगत सवालों का सामना करने की बजाय उनके चरित्र पर उंगली उठाकर उन्हें खामोश किया जा रहा है.”
सोशल मीडिया का दावा कि सफ़ूरा ज़रगर अविवाहित हैं, गलत है. उनकी प्रेग्नेंसी का पता कैद में जाने पर चला, ये दावा भी निराधार है.
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