हाल ही में बर्ड फ़्लू का प्रकोप बढ़ने के कारण राजस्थान, महाराष्ट्र, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश समेत कई अन्य राज्यों को इसका सामना करने में मुशक्कत करनी पड़ रही है. इसी बीच सोशल मीडिया पर कई लोग दावा करने लगे कि पक्षियों की मौत का कारण रिलायंस जियो के 5G का ट्रायल है.
कांग्रेस नेता चुन्नी लाल साहू, गांव दस्तक के पत्रकार महेंद्र कुडिया और समाजवादी पार्टी की नेता रचना सिंह ये दावा शेयर करने वाले लोगों में शामिल थे.
खबर फैल रही है कि Jio के 5G टेस्टिंग से पक्षी
मर रहे हैं और बर्ड फ्लू का नाम दिया जा रहा है ?— Chunni Lal Sahu (@Chunni_lal_sahu) January 12, 2021
खबर फैल रही है कि Jio के 5G टेस्टिंग से पक्षी मर रहे हैं और बर्ड फ्लू का नाम दिया जा रहा है।
— Gaon Dastak (@GaonDastak) January 12, 2021
ऑल्ट न्यूज़ को इसके फ़ैक्ट-चेक के लिए कुछ लोगों ने व्हाट्सऐप नंबर (+917600011160) पर रिक्वेस्ट भी भेजी.
फै़क्ट-चेक
इस फ़ैक्ट-चेक को 2 हिस्सों में बांटा गया है:
1. क्या 5G स्पेक्ट्रम भारत में आवंटित किया जा चुका है?
2. क्या मोबाइल टॉवर के कारण पक्षियों की मौत हो सकती है?
1. 5G स्पेक्ट्रम का भारत में आवंटित किया जाना अभी बाक़ी है
भारत में 5G शुरू किया जाना अभी बाक़ी है. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, “ये हाई-स्पीड इन्टरनेट तकनीक सबसे पहले अप्रैल 2019 में साउथ कोरिया में लॉन्च की गयी थी. उसके बाद से इसमें 26 देश और जुड़े. फ़िलहाल 5G के 19 करोड़ से ज़्यादा सब्सक्राइबर हैं. इनमें से अधिकतर चीन के हैं जहां 5G अक्टूबर 2019 में ही लॉन्च हुआ था.”
बिज़नेस स्टैंडर्ड ने रिपोर्ट किया कि 5G स्पेक्ट्रम को इस बार भारत में टेलिकॉम स्पेक्ट्रम नीलामी से बाहर रखा गया है जो मार्च 2021 में आयोजित की जायेगी. 4G बैंड्स, जिन्हें इस नीलामी में रखा गया है,ये हैं- 700 MHz, 800 MHz, 900 MHz, 1,800 MHz, 2,100 MHz, 2,300 MHz and 2,500 MHz. रिपोर्ट में लिखा है, “3,300 MHz से लेकर 3,600 MHz तक का बैंड इस बार (नीलामी में) अपनी जगह नहीं बना पाया है. यही 5G स्पेक्ट्रम बैंड भी कहलाता है.”
द इकॉनमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में 5G प्लान क्यों अटका हुआ है. इसका कारण है- “पहला, टेलिकॉम कंपनियों के लिए स्पेक्ट्रम की कीमत विवाद का मुद्दा रही है. दूसरा, स्पेक्ट्रम का कितना हिस्सा नीलामी के लिए ऑफ़र किया जाए. और तीसरा, इस वित्तीय वर्ष में 5G की नीलामी की जाये या नहीं.”
भारत में 5G ट्रायल 2021 की पहली छमाही में किये जा सकते हैं. आईटी और टेलिकॉम मंत्री रविशंकर प्रसाद ने पिछले महीने बताया था कि ट्रायल जल्द ही शुरू होंगे. लेकिन उन्होंने तारीख नहीं बताई. रिलायंस के चेयरमैन मुकेश अम्बानी ने कहा था, “जियो भारत में दूसरी छमाही में 5G क्रांति लायेगा.”
“Jio will pioneer the 5G revolution in India in the second half of 2021.”
– Mukesh D. AmbaniOne more reason to look forward to the new year 😊. #JioAtIMC #Jio5GInternet #IMC2020Virtual #DigitalIndia #JioDigitalLife #5G @exploreIMC
— Reliance Jio (@reliancejio) December 10, 2020
2. 5G टॉवर से निकले रेडिएशन से पक्षियों की मौत नहीं हो सकती
मोबाइल फ़ोन इलेक्ट्रोमैगनेटिक स्पेक्ट्रम की हाई फ़्रीक्वेंसी (HF) पर काम करते हैं. इंटरनेशनल कमीशन ऑन नॉन-आयोनायज़िंग रेडिएशन प्रोटेक्शन (ICNIRP) के मुताबिक मोबाइल फ़ोन इलेक्ट्रोमैगनेटिक स्पेक्ट्रम की हाई फ़्रीक्वेंसी 100 kHz (0.1 MHz) से लेकर 300 GHz (3 lakh MHz) के बीच होती है. भारत ICNIRP की गाइडलाइन्स का पालन करता है और EMF रेडिएशन से जुड़े सबसे कड़े नियम अपनाने वाले देशों में शामिल है. एयरटेल और वोडाफ़ोन फ़िलहाल 1800MHz और 2100MHz बैंड्स पर 4G ऑफ़र करते हैं, वहीं जियो 800 MHz का लोअर बैंड इस्तेमाल करता है. 2021 के ऑक्शन में 2,500MHz तक का बैंड ऑफ़र किया जाने वाला है.
फ़िलहाल दूरसंचार विभाग (DoT) 5G के लिए 3300-3600 MHz फ़्रीक्वेंसी रेंज वाले स्पेक्ट्रम की बात कर रहा है. अभी तक जितनी भी फ़्रीक्वेंसी रेंज की बात की गयी है, सभी गाइडलाइन्स के मुताबिक हैं.
बीबीसी के एक आर्टिकल में बताया गया है, “5G और अन्य मोबाइल फ़ोन्स तकनीक इलेक्ट्रोमैगनेटिक स्पेक्ट्रम की लो-फ़्रीक्वेंसी के तहत आती हैं. ये मेडिकल x-rays और सूरज की किरणों की नुकसानदायक, हाई फ़्रीक्वेंसी के विपरीत विज़िबल लाइट से भी कम पॉवरफ़ुल हैं और कोशिकाओं को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकते.”
ये अफ़वाह अमेरिका में फैलने के बाद अमेरिकी फ़ैक्ट-चेकिंग वेबसाइट स्नोप्स (Snopes) ने हेल्थ काउंसिल ऑफ़ द नीदरलैंड्स के सदस्य और ICNIRP के अध्यक्ष डॉक्टर एरिक वान रोंगन से बात की. नीदरलैंड के हेग में 8 अक्टूबर 2018 और 3 नवम्बर 2018 के बीच सैकड़ों गोरैया और अन्य पक्षियों की मौत हो गयी थी. डॉ एरिक ने स्नोप्स को बताया, “पक्षियों की मौत इससे तभी हो सकती है जब इलेक्ट्रोमैगनेटिक फ़ील्ड का एक्सपोज़र इतना शक्तिशाली हो कि उससे नुकसान पहुंचाने वाली गर्मी पैदा हो… लेकिन मोबाइल टेलिकॉम का ऐन्टिना इतना शक्तिशाली नहीं होता है. पूरी दुनिया में ऐसे लाखों ऐन्टिना हैं लेकिन ऐसे मामले कहीं से नहीं आये. अगर 5G का एक्सपोज़र भी होता, फिर भी ये नामुमकिन है कि इससे मौत (पक्षी की) हो जाये.”
2008 में 2G स्पेक्ट्रम के आवंटन के बाद भी ये अफ़वाह फ़ैली थी कि मोबाइल टॉवर के रेडिएशन से पक्षियों की मौत हो रही है.
हालांकि पक्षियों की इन टॉवरों से टकराकर मौत होना आम बात है. खासकर प्रवासी पक्षियों के लिए. टॉवर पर लगी लाल बत्तियां भी पक्षियों को कई बार रास्ते भ्रमित करती हैं और वो रास्ता भटक जाते हैं.
ये दावा कि भारत में पक्षियों की मौत 5G ट्रायल से हो रही है, बेबुनियाद है. ये पहले भी 2018 में तमिल फ़िल्म ‘2.0‘ की रिलीज़ के बाद वायरल हो चुका है. साइंस फ़िक्शन पर बेस्ड इस फिल्म में पक्षियों पर इलेक्ट्रोमैगनेटिक फ़ील्ड रेडिएशन का प्रभाव दिखाया गया था.
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