ट्विटर पर एक तस्वीर काफ़ी वायरल है जिसमें 8 तस्वीरों का कोलाज बना हुआ है. इन सभी तस्वीरों में दिख रहा है कि कुछ लोग सड़क पर लगे साइनबोर्ड्स पर काला रंग पोत रहे हैं. लोगों ने इसे नए कृषि बिल के खिलाफ़ किसानों के प्रदर्शन से जोड़ते हुए लिखा, “#रिलायंस जियो के टॉवर तोड़ने के बाद अब अगला काम #हिंदी_नही_चलेगी क्या ये #किसान है ? ये समाधान नहीं #व्यवधान चाहते हैं ये शांति नहीं #संघर्ष चाहते है ये #विकास नहीं, विनाश चाहते हैं ये स्वतंत्रता नहीं, स्वछंदता चाहते हैं ये सड़क नहीं, स्पीड ब्रेकर चाहते हैं। #फर्जी_किसान_आन्दोलन.”
भाजपा सदस्य जवाहर यादव ने 9 जनवरी को ये तस्वीर ट्वीट कर इसे किसान आन्दोलन का बताया.
फे़सबुक यूज़र कृष्ण कान्त सिंह ने ये तस्वीर ‘I SUPPORT NARENDRA MODI JI‘और ‘Pushpendra kulshrestha Fan club‘ पेज पर शेयर की थी. इसी तरह फे़सबुक पेज ‘Ambedkar and Politics‘ ने भी उसे शेयर किया जिसे अबतक 500 से ज़्यादा लोग शेयर कर चुके हैं.
ये तस्वीरें इसी दावे के साथ फे़सबुक और ट्विटर पर काफ़ी वायरल है और साथ ही एक वीडियो भी इससे जोड़कर शेयर किया जा रहा है. इस वीडियो में एक सिख व्यक्ति बोर्ड पर लिखे हिंदी और अंग्रेज़ी में लिखी जगह के नाम पर कालिख पोत रहा है. इसपर लिखा है- ‘उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र’.
रिलायंस जियो के टावर तोड़ने के बाद
अगला कामहिंदी नहीं चलेगी
कौन कहता है ये किसान है???
Posted by Rahul Naagar on Saturday, January 9, 2021
कई यूज़र्स ने ये वीडियो और तस्वीर शेयर की और साथ ही ऐसा ही कैप्शन लिखा.
फै़क्ट-चेक
ऑल्ट न्यूज़ ने इन तस्वीरों का रिवर्स इमेज सर्च किया और पाया कि ये 2017 की हैं.
इमेज वेरिफ़िकेशन1: वायरल तस्वीर में 4 तस्वीरों वाला कोलाज और नीचे बायीं तरफ़ लगी तस्वीर अक्टूबर 2017 में एक ब्लॉग पर पोस्ट की गयी थीं. इस ब्लॉग के मुताबिक ये तस्वीरें पंजाब की हैं. इन तस्वीरों में से 2 पंजाबी खुर्की पर भी अपलोड की गयी थीं.
इमेज वेरिफ़िकेशन 2: सबसे ऊपरी हिस्से में दाई तरफ़ जो तस्वीर है उसे अक्टूबर 2017 में हिंदुस्तान टाइम्स ने पब्लिश किया था. इस आर्टिकल के मुताबिक, सड़क पर लगे साइनबोर्ड्स को दल खालसा, शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर), भारतीय किसान यूनियन (क्रन्तिकारी), मालवा यूथ फ़ेडरेशन और अन्य संगठनों के सदस्यों ने ख़राब किया था. इनका मानना था पंजाबी को बोर्ड्स में सबसे नीचे लिखकर इसे ‘अपमानित’ किया जा रहा है.
इमेज वेरिफ़िकेशन 3: तीसरी तस्वीर सिख सियासत न्यूज़ ने पब्लिश की थी. ये रिपोर्ट भी इसी मुद्दे से जुड़ी हुई है.
वीडियो वेरिफ़िकेशन: ऑल्ट न्यूज़ ने InVid टूल की मदद से इस वीडियो के कीफ़्रेम्स का रिवर्स इमेज सर्च किया. हमने पाया कि ये वीडियो पिछले साल सितम्बर में तमिल न्यूज़ आउटलेट साथियम न्यूज़ ने पब्लिश किया था.
रिपोर्ट के मुताबिक इस वीडियो में एक व्यक्ति हिंदी थोपे जाने के खिलाफ़ प्रदर्शन कर रहा है.
यानी, 2017 में दल खालसा, शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर), भारतीय किसान यूनियन (क्रन्तिकारी), मालवा यूथ फे़डरेशन और अन्य संगठनों ने पंजाबी के ‘अपमान’ के विरोध में प्रदर्शन किया जिसकी तस्वीर किसान आंदोलनों से जोड़कर शेयर की गयी. इसके साथ ही ये भी ग़लत दावा किया गया कि प्रदर्शनकारी हिंदी भाषा का विरोध कर रहे हैं. बता दें कि इससे पहले भी एक फ़र्ज़ी दावे में कहा गया था कि किसानों ने जियो मोबाइल टॉवर में आग लगा दी है. मालूम चला कि 2017 में एक मोबाइल टावर में आग लगने की घटना का वीडियो शेयर किया जा रहा था.
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