अक्सर ग़लत जानकारी फ़ैलाने वाला ट्विटर हैंडल मेघ अपडेट्स ने 19 जनवरी, 2023 को एक ट्वीट में दावा किया कि खाने में ‘थूक’ मिलाने का तर्क देते हुए कोर्ट में ये कहा गया कि कोई भी खाद्य पदार्थ बिना ‘थूक’ के ‘हलाल’ नहीं बन पाता.

विश्व हिन्दू परिषद् से जुड़े गिरीश भारद्वाज सहित और भी कई यूज़र्स ने ये दावा किया है.

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2021 से शेयर

नवंबर. 2021 में तमिलनाडु की राइट विंग पार्टी इंदु मक्कल काची ने एक ट्विटर थ्रेड पोस्ट किया. इसके शुरुआती ट्वीट में लिखा था, “एक अदालती मामले में उन्होंने (मुसलमानों ने) स्वीकार किया है कि तमिलनाडु सहित पूरे देश में हलाल का मतलब तब तक पूरा नहीं होता जब तक बनाने वाला उसमें थूके नहीं.” पार्टी ने दावा किया कि मुस्लिम समुदाय के लोगों ने अदालत में स्वीकार किया कि हलाल की प्रक्रिया पूरी करने के लिए खाने पर थूकना ज़रुरी है. इस ट्वीट को 2600 से ज़्यादा रिट्वीट मिले.

दूसरे ट्वीट में लीगल न्यूज़ पोर्टल ‘बार एंड बेंच’ के एक आर्टिकल का स्क्रीनशॉट दिखता है. इसके एक हिस्से में लिखा है, “मुस्लिम समुदाय के धार्मिक जानकार सार्वजनिक रूप से ये बताते रहे हैं कि हलाल के प्रक्रिया की तसदीक़ के लिए खाना पकाने के सामानों में लार (थूक) एक ज़रूरी हिस्सा है. धार्मिक जानकारों का ये विचार पवित्र ग्रंथों और इसकी वैध व्याख्याओं पर आधारित है. हालांकि, कुछ धार्मिक नेताओं ने भी इस पर अपने अलग-अलग विचार व्यक्त किए थे. हलाल बनाने के लिए खाने पर थूकने और धार्मिक जानकारों की प्रतिक्रिया के संबंध में हाल के विवाद को देखते हुए बड़े पैमाने पर लोग घरेलू उपयोग के लिए भी हलाल प्रमाणित खाने के सामानों को लेकर चिंतित हैं और इसे बिल्कुल पसंद नहीं करते. ये बेहद निराशाजनक है कि एक हिंदू मंदिर, जिसके अपने अलग रीति-रिवाज हैं, वहां किसी दूसरे धर्म के रीति-रिवाजों और धार्मिक प्रथाओं के साथ तैयार किए गए खाने के सामानों को प्रसाद बनाने के लिए स्वीकार किया जाता है.”

ऑल्ट न्यूज़ के व्हाट्सऐप नंबर (+91 76000 11160) पर इस दावे की सच्चाई जानने के लिए कई रिक्वेस्ट मिलीं. व्हाट्सऐप पर ये मेसेज वायरल है जिस वजह से व्हाट्सऐप ने इसे कई बार फ़ॉरवर्ड का लेबल दिया है.

ऑल्ट न्यूज़ ने सोशल मीडिया टूल क्राउडटेंगल का इस्तेमाल करते हुए देखा कि इस ट्विटर थ्रेड को ऐसे कई पेज/ग्रुप्स में शेयर किया गया है जिनके फ़ॉलोअर्स की तादाद ज़्यादा है. इनमें से कुछ तमिल एकाउंट्स थे. श्राइन-ग्लोरीज़-पिल्ग्रिमेजेज‎ [1 लाख फ़ॉलोअर्स], आई सपोर्ट पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ [1 लाख से ज़्यादा फ़ॉलोअर्स], हिंदू यूनिटी [1.5 लाख से ज़्यादा फ़ॉलोअर्स], द पेट्रियटस् (भारत) [30 हजार से ज़्यादा फ़ॉलोअर्स], इटरनल भारत [20 हज़ार से ज़्यादा फ़ॉलोअर्स], हिंदू (ऑफ़िसियल) [15 हज़ार से ज़्यादा फ़ॉलोअर्स] ऐसे कुछ नाम हैं.

फ़ैक्ट-चेक

इंदु मक्कल काची के ट्विटर थ्रेड में एक वीडियो क्लिप भी शामिल है जिसमें एक मुस्लिम रसोइया को गूंथे हुए आटे पर थूकते या फूंकते हुए देखा जा सकता है. पाठकों को ध्यान देना चाहिए कि पिछले कुछ सालों में ऐसे कई वीडियोज़ शेयर किए गए हैं. इन्हें शेयर करते हुए कहा गया कि मुसलमान हिंदुओं के खिलाफ़ साजिश कर रहे हैं. पिछले साल जब कोरोना वायरस फैल रहा था उस समय ग़लत सूचनाएं फ़ैलाने वाले एंटी-मुस्लिम अभियान के तहत इस दावे को हवा दी गई थी कि मुसलमान खाने पर “थूक” रहे हैं.

एक की-वर्ड्स सर्च से पता चलता है कि बार एंड बेंच के जिस हिस्से का स्क्रीनशॉट लिया गया है, वो 27 नवंबर को केरल उच्च न्यायालय में एस जे आर कुमार बनाम त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड एंड Ors. की सुनवाई पर की गई रिपोर्ट का है. बार एंड बेंच के आर्टिकल में ऐसी बातें एक “याचिका” के हवाले से लिखी गई है. नीचे स्क्रीनशॉट में लाल रंग से इसे हाइलाइट किया गया है. यानी, मुस्लिम समुदाय के लोगों ने नहीं बल्कि याचिकाकर्ता S. J. R कुमार ने ये दावा किया था.

इस हिस्से के शुरुआत में लिखा है, ” ये पेश किया गया है कि सबरीमाला देवस्वम प्रशासन भी प्रसाद की तैयारी के लिए हलाल प्रमाणित गुड़ की अनुमति देकर मंदिर में प्रथाओं और अनुष्ठानों की देखभाल करने में असफल रहा.” नीचे दी गई तस्वीर में वायरल स्क्रीनशॉट के हिस्से और याचिका के लंबे हिस्से में समानता देखी जा सकती है. याचिका में पीले रंग से हाइलाइट किया गया टेक्स्ट वायरल स्क्रीनशॉट में भी दिखता है.

याचिका में आरोप लगाया गया है कि सबरीमाला मंदिर के प्रसाद में हलाल प्रमाणित गुड़ का उपयोग किया जा रहा है. याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया, “मंदिर प्रशासन की ओर से की गई कार्रवाई बिल्कुल अवैध है और भारत के संविधान के भाग III के तहत ये पूरी तरह से धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन है.”

द न्यूज़ मिनट ने इस घटना पर विस्तार से रिपोर्ट पब्लिश की. TNM ने बताया कि S. J. R कुमार विश्व हिंदू परिषद (VHP) केरल के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, “18 नवंबर को सबरीमाला में भगवान अयप्पा मंदिर के प्रबंधनकर्ता, त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड (टीडीबी) ने अदालत को बताया कि उन्हें जो गुड़ मिला उसके पैकेजिंग पर ‘हलाल’ का ज़िक्र था क्योंकि सबरीमाला को आपूर्ति करने वाली कंपनी अरब देशों में भी निर्यात करती है.”

रिपोर्ट में ये भी लिखा है कि जस्टिस अनिल के नरेंद्रन और पीजी अजितकुमार की पीठ ने कुमार को हलाल की अवधारणा ठीक से समझने की सलाह दी. अदालत ने कहा, “हलाल की अवधारणा सिर्फ ये कहती है कि कुछ चीजें प्रतिबंधित हैं, दूसरी सारी चीजें हलाल हैं. ये स्पष्टीकरण सिर्फ इतना बताता है कि जो प्रतिबंधित सामग्री है वो किसी विशेष प्रोडक्ट में शामिल नहीं हैं.”

टीडीबी प्रमुख और माकपा के वरिष्ठ नेता, K अनंतगोपन ने इन आरोपों को खारिज़ किया. उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “2018 में महाराष्ट्र की एक कंपनी ने सबरीमाला के लिए गुड़ की आपूर्ति की. कंपनी गुड़ के निर्यात में लगी हुई थी और इन निर्यात बैगों में हलाल सर्टिफ़िकेशन का ज़िक्र था. चूंकि वे बैग घटिया किस्म के पाए गए थे, इसलिए हमने मंदिर में उसका इस्तेमाल नहीं किया था. आरोप निराधार है और हम कानूनी कार्रवाई करेंगे.”

कुल मिलाकर, 2021 में इंदु मक्कल काची ने एक याचिकाकर्ता के बयान के एक स्क्रीनशॉट को इस ग़लत दावे के साथ शेयर किया कि मुस्लिम समुदाय के लोगों ने ये स्वीकार किया कि इस्लाम में हलाल के लिए थूकना ज़रुरी है. यही ग़लत दावा फिर से 2023 की शुरुआत में किया जाने लगा है.

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🙏 Blessed to have worked as a fact-checking journalist from November 2019 to February 2023.