जीका वायरस संक्रमण एक बीमारी है जो जीका वायरस के कारण होती है I जीका वायरस का संक्रमण एडीस प्रजाति के मच्छर के काटने से होता है। यह संक्रमण एक गर्भवती महिला से उसके भ्रूण में भी जा सकता है और नवजात शिशु के लिए खतरनाक होता है क्योंकि इसके परिणामस्वरूप भ्रूण में माइक्रोसेफली हो सकती है। भ्रूण में माइक्रोसेफली की विशेषता भ्रूण में छोटे सिर और छोटे मस्तिष्क के आकार का होना है I इससे शिशु में मिर्गी, विकासात्मक देरी, चलने और संतुलन में कठिनाई, बोलने और देखने में समस्या जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

3 नवंबर 2018 को, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) ने एक प्रेस विज्ञप्ति दी I इस विज्ञप्ति का शीर्षक था : “जीका वायरस का वो प्रकार जो माइक्रोसेफली का कारण होता है, राजस्थान में नहीं पाया जाता” -(अनुवाद)I इस विज्ञप्ति में मंत्रालय ने कहा कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने 5 प्रकार के जीका वायरस को जयपुर से एकत्र किया एवं उनका अध्ययन किया ताकि इन ज़ीका वायरस में उन आनुवंशिक परिवर्तन (जेनेटिक म्युटेशन) को समझा जा सके, जो भ्रूण में माइक्रोसेफली और संक्रमण से संबंधित उच्च संप्रेषण को जन्म दे सकते हैं। इस अध्ययन में ज़ीका वायरस के प्रकारों का आनुवंशिक अनुक्रमण (sequencing) किया गया I प्रेस विज्ञप्ति में दावा किया गया कि माइक्रोसेफली से जुड़े ज्ञात आनुवंशिक परिवर्तन उन ज़ीका वायरस के प्रकारों में नहीं मौजूद हैं जो राजस्थान क्षेत्र को प्रभावित करते हैं।

यह लेख MoHFW प्रेस विज्ञप्ति में किए गए पूर्वोक्त दावे की जांच करता हैI

दावे

मंत्रालय ने बताया कि इस अध्ययन के परिणामों में भ्रूण में माइक्रोसेफली और उच्च संप्रेषण से जुड़ा कोई ‘ज्ञात आनुवंशिक परिवर्तन’ नहीं मिला है। इस प्रकार, सरकार सुझाव दे रही है कि:

  1. भारत में जीका वायरस के प्रकारों में भ्रूण में माइक्रोसेफली करने वाले आनुवंशिक परिवर्तन नहीं हैं
  2. ज़ीका वायरस का प्रकोप छोटे क्षेत्रों में सीमित है, जिससे रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी), (संयुक्त राज्य अमेरिका) की चेतावनी के बावजूद भारत में गर्भवती महिलाओं के लिए आवश्यक सावधानी में कमी कि जा सकती है ।

तथ्यों की जांच

माइक्रोसेफली से सम्बंधित ज्ञात आनुवंशिक परिवर्तन

इंस्टीट्यूट ऑफ जेनेटिक्स एंड डेवलपमेंट बायोलॉजी, बीजिंग, चीन में युआन और साथियों द्वारा 2017 में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि जीका वायरस की आनुवंशिक सामग्री (genetic material) में ‘S139N’ नामक आनुवंशिक परिवर्तन अधिक विषपूर्ण और नवजात शिशु के मस्तिष्क की कोशिकाओं को अधिक नुकसान पहुंचाने माइक्रोसेफली के लिए जिम्मेदार था। हालांकि ज़ीका वायरस के उन प्रकारों ने भी मस्तिष्क की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाया जिनमें ये परिवर्तन मौजूद नहीं थे। यह अध्ययन प्रयोगशाला में कोशिकाओं पर किया गया था और मानव संक्रमण के विषय में बहुत कम जानकारी देता है। इसका ICMR द्वारा कपटपूर्वक मतलब निकालते हुए कहा गया कि ज़ीका वायरस के केवल वो प्रकार ही भ्रूण में माइक्रोसेफली के लिए ज़िम्मेदार हैं जिनमें ‘S139N’ नामक आनुवंशिक परिवर्तन मौजूद हैंI

अतिरिक्त अध्ययनों से पता चलता है कि इन आनुवंशिक परिवर्तन के बिना भी जीका वायरस के अन्य प्रकार शिशु में जन्म-दोष पैदा कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, थाईलैंड में 2018 के एक अध्ययन से पता चलता है कि S139N परिवर्तन की अनुपस्थिति में भी, माइक्रोसेफली के मामले पाये गए थे।

डॉ नाथन ग्रुबॉ, सहायक प्रोफेसर, येल स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ ब्राजील और अमेरिका में ज़ीका महामारी के अध्ययनों में शामिल रहे हैं। उन्होंने ऑल्ट न्यूज़ से बात की और “ज्ञात आनुवंशिक परिवर्तन (म्यूटेशन)” के आधार पर कार्यान्वित नीतियों के बारे में गहरी चिंता व्यक्त की। ’उन्होंने कहा कि,”कोई सबूत नहीं है कि S139N नामक परिवर्तन 100% माइक्रोसेफली मामलों के लिए जिम्मेदार है। उपलब्ध लैब सबूत बताते हैं कि किसी भी जीका वायरस का प्रकार जन्म-दोष पैदा कर सकता है। हमें सभी प्रकारों को तब तक एक जैसा ही खतरनाक मानना चाहिए जब तक कि आगे के शोध इससे विपरीत सबूत पेश करें।” उन्होंने सेल प्रेस रिव्यू (Cell Press Review) और द हिंदू (The Hindu) में अपने लेखों में अपने विचार व्यक्त किए हैं। इस भावना को अन्य वैज्ञानिकों ने साझा किया जैसे टेक्सास विश्वविद्यालय में एक माइक्रोबायोलॉजिस्ट स्कॉट सी वीवर जिन्होंने ब्राजील में ज़ीका महामारी पर काम किया था। उन्होंने कहा “यह निष्कर्ष निकालना अभी भी जल्दबाजी है कि कोई विशेष ज़ीका प्रकार माइक्रोसेफली का कारण नहीं बन सकता है।”

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी), पुणे ने जयपुर, राजस्थान से 10 मानव सीरम नमूनों से जीका वायरस के प्रकारों का अध्ययन किया, जो Infection, Genetics and Evolution में प्रकाशित हुए। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के दावे के विपरीत, एनआईवी के लेखकों ने स्पष्ट रूप से कहा है कि हालांकि परीक्षण किए गए प्रकारों में कोई भी S139N नामक आनुवंशिक परिवर्तन नहीं देखा गया, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि जीका के वर्तमान प्रकारों से शिशु में जन्म दोष और बड़ी महामारी नहीं हो सकती है।

इस प्रकार, विशेषज्ञों की राय और भारत एवं विदेश के विभिन्न अनुसंधान तथ्य, यह सुझाव देते हैं कि प्रेस विज्ञप्ति में किया गया दावा, (भारत में पाए जाने वाले ज़ीका वायरस में भ्रूण में माइक्रोसेफली करने वाले ज्ञात अनुवंशिक परिवर्तन नहीं हैं), गलत सूचना है। यह अधिक खतरनाक है क्योंकि इस गलत सूचना की धारणा भारत में उन क्षेत्रों में यात्रा करने वाली गर्भवती महिलाओं को बचाने और शिक्षित करने के लिए प्रारूपण नीति का आधार रही है जहां जीका वायरस का प्रकोप पाया गया है।

जीका वायरस का प्रकोप छोटे क्षेत्रों तक सीमित है

भारत का जलवायु एडीज एजिप्टी मच्छर द्वारा बीमारियों के संक्रमण के लिए अनुकूल है जो जीका के प्रसार के लिए जिम्मेदार है, विशेष रूप से वर्षा वाले महीनों के दौरान। भारत में सितंबर-अक्टूबर 2018 में जीका के दो प्रकोपों ​​का पता चला है। राजस्थान में 154 और मध्य प्रदेश में 127 मामले सामने आए थे। रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी), (संयुक्त राज्य अमेरिका) ने एक चेतावनी जारी की थी और गर्भवती महिलाओं को भारत की यात्रा करने से बचने की सलाह दी थी। हालांकि, भारत सरकार ने इस चेतावनी को वापस लेने या संशोधित करने के लिए सीडीसी को एक खंडन भेजा था यह कहते हुए कि ज़ीका का प्रकोप छोटे क्षेत्रों तक ही सीमित रहा है।

जीका के प्रकोप और संचरण की सीमा पूर्व निर्धारित नहीं की जा सकती है क्योंकि जीका से संक्रमित 5 में से 4 व्यक्ति कोई लक्षण नहीं दिखाते हैं और वायरस को प्रसारित कर सकते हैं। ऐसी निगरानी जो रिपोर्ट किए गए मामलों पर निर्भर करती है, उन संक्रमित व्यक्तियों की पहचान करने में सक्षम नहीं होगी जो लक्षण नहीं दिखाते हैं। यह गलत है कि ज़ीका संक्रमण के मामले स्थानीय थे क्यूंकि अधिकाँश मामले पहचाने ही नही जा सके।

सिराज और साथियों द्वारा 2017 का एक शोध पत्र भविष्यवाणी करता है कि एक जीका महामारी भारत में 45 करोड़ से अधिक संक्रमण का कारण बन सकती है जो किसी भी अन्य देश से छह गुना अधिक है। इसलिए, विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं के लिए निदान, निगरानी और सामुदायिक शिक्षा की आक्रामक रणनीतियों की आवश्यकता है।

दूसरे तरफ, सरकार भारत में जीका के खतरों को कम कर प्रसारित कर रही है, लेकिन गर्भवती महिलाओं को गर्भपात की सलाह दी जा रही है। कम से कम 2 मामलों में, अधिकारियों ने ज़ीका संक्रमित गर्भवती माताओं को गर्भपात से गुजरने की सलाह दी जिसको DownToEarth द्वारा रिपोर्ट किया गया है।

जीका संक्रमित गर्भवती महिलाओं की निगरानी के लिए डब्ल्यूएचओ (WHO) द्वारा निर्धारित प्रोटोकॉल अल्ट्रासाउंड और माइक्रोसेफली के निदान पर आधारित हैं। इनमें गर्भपात के लिए सलाह शामिल नहीं है। जैसा कि नाथन ग्रुबॉ ने टिप्पणी की है, ज़ीका संक्रमण पर आधारित गर्भपात की सलाह देने वाले चिकित्सक दुनिया के बाकी हिस्सों में नहीं सुने गए हैं और यह भयावह है।

निष्कर्ष

इस प्रकार, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रेस विज्ञप्ति में माइक्रोसेफली के लिए ‘ज्ञात म्यूटेशन’ की कमी का उल्लेख वायरस के आनुवंशिक सामग्री पर किए गए वैज्ञानिक अध्ययनों की गलत व्याख्या पर आधारित है। यह कहना अनिर्णायक है कि संक्रमण के सबसे खतरनाक लक्षण, (अर्थात् सिर के आकार का जन्म दोष), से जुड़ा एक आनुवंशिक परिवर्तन भारत में जीका वायरस के प्रकारों में मौजूद नहीं है।

इसके अलावा, यह कहने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं कि ज़ीका छोटे क्षेत्रों तक ही सीमित है जैसा कि सीडीसी को दिए गए खंडन में उल्लेख किया गया है। यह संभावना है कि अधिकांश संक्रमणों के लक्षण दिखाई न देने के कारण प्रकोप की सीमा कमतर रूप से आंकी जा रही है।

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को जीका वायरस पर हो रहे वैज्ञानिक अध्ययनों की जिम्मेदारी से व्याख्या करनी चाहिए और बीमारी के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए उचित उपाय करने चाहिए।

अनुवाद: सबीह कामिल

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About the Author

Rohan Gurjar has a PhD in Pharmacology from the University of Liverpool. The main area of his research has been to investigate drug-drug interactions and the influence of genetic polymorphisms on the treatment of HIV/AIDS and Tuberculosis.