दावोस, स्विटजरलैंड में विश्‍व आर्थिक मंच के पूर्ण अधिवेशन में प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी का भाषण बहुआयामी था। पीएम मोदी ने अपने भाषण में उनके स्वाभाविक अंदाज में साइबर सुरक्षा और परमाणु सुरक्षा से लेकर आतंकवाद और ग्लोबल वार्मिंग तक व्‍यापक मुद्दों को उठाया था। हालांकि उनकी कही गई ज्‍़यादातर बातों को फिर सुनने के लिए पीएम मोदी के ऐतिहासिक भाषण का वीडियो देखना होगा क्‍योंकि इनका कोई उल्‍लेख विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर नहीं मिला। विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर एक सेक्‍शन ‘मीडिया सेंटर’ है। इसके सबसेक्‍शन ‘भाषण और बयान’ में विदेश मंत्रालय द्वारा प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री, विदेश सचिव आदि के सभी भाषण, बयान और मूल वक्तव्‍य अपलोड किए जाते हैं। दावोस में पीएम द्वारा भाषण समाप्‍त करने के कुछ ही समय बाद वेबसाइट पर प्रधानमंत्री का भाषण अपलोड कर दिया गया था।

पीएम मोदी का दावोस भाषण और विदेश मंत्रालय के वेबसाइट पर छपे भाषण में बड़ा अंतर है। पीएम मोदी ने अपने संबोधन में जिन मुद्दों को उठाया था, आश्‍चर्यजनक रूप से इस दस्‍तावेज़ में उनका कोई उल्‍लेख नहीं मिला।

1. “आज डेटा सबसे बड़ी संपदा है। डेटा के ग्लोबल फ्लो से सबसे बड़े अवसर बन रहे हैं, और सबसे बड़ी चुनौतियाँ भी”

इस भाषण के आधिकारिक पाठ में डेटा और डेटा के वैश्विक प्रवाह का कोई उल्‍लेख नहीं है। पीएम के भाषण का यह हिस्‍सा दस्‍तावेज़ से पूरी तरह गायब है।

2. “आतंकवाद एक बड़ा खतरा है लेकिन इससे भी बड़ा खतरा तब पैदा होता है जब आप ‘अच्‍छा आतंकवाद’ और ‘बुरा आतंकवाद’ जैसे परिभाषाएं देते हैं”

प्रधानमंत्री के मूल वक्तव्‍य संबोधन के बारे में विदेश मंत्रालय के दस्तावेज़ में यह हिस्‍सा भी गायब था। बल्कि इसके बजाय हमें वहाँ यह मिला:

“पहला मुद्दा है आतंकवाद। क्‍योंकि नस्‍लों और धर्मों के सहअस्तित्‍व में हमारी आस्‍था के कारण; और अंहिसा में हमारे विश्‍वास की वजह से हमने हमेशा आतंकवाद का विरोध किया है। मैं पूरे संकल्‍प के साथ कहता हूँ कि आतंकवाद इसके सभी रूपों और आयामों में बुरा होता है। इसका मूल क्षेत्र या कार्रवाई का लक्ष्‍य चाहे कोई भी है, यह बुरा ही होता है। हम सभी को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एकजुट होना चाहिए। भारत ऐसी सभी ताकतों के विरुद्ध मजबूती से खड़ा है।” (अनुवाद)

3. “साइबर सुरक्षा और परमाणु सुरक्षा सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण हैं”

विदेश मंत्रालय के दस्‍तावेज़ में परमाणु सुरक्षा या साइबर सुरक्षा का कोई उल्‍लेख नहीं है। यह हिस्‍सा भी भाषण के पाठ से पूरी तरह गायब है।

4. भारत में, डेमोक्रेसी, डेमोग्राफ़ी और डाइनेमिज्‍़म मिलकर डिवेलपमेंट और डेस्टिनी को आकार दे रहे हैं

WEF समिट में अनुप्रास अलंकार का उपयोग पीएम मोदी के भाषण में बखूबी देखा जा सकता है लेकिन भाषण के आधिकारिक दस्तावेज में यह नहीं है।

5. “जलवायु परिवर्तन फिलहाल एक बड़ा खतरा है। आर्कटिक में बर्फ पिघल रही है; कई द्वीप डूब रहे हैं या डूबने वाले हैं”

प्रधानमंत्री के इस उद्धरण का कोई संदर्भ आधिकारिक टेक्स्ट में नहीं है। आर्कटिक का कोई जिक्र नहीं है। इसके बजाय, इस पाठ में प्रधानमंत्री के हवाले से निम्‍नलिखित शब्‍द कहे गए:

“दूसरी वैश्विक चुनौती जलवायु परिवर्तन की समस्‍या है। हमारी संस्‍कृति में, हम प्रकृति को मां समझते हैं। हम यह भी मानते हैं कि मनुष्‍य केवल इसका उपयोग कर सकता है; इसे नष्‍ट नहीं कर सकता। यही वजह है कि पेरिस समझौते के माध्‍यम से हमने वैश्विक समुदाय को आश्‍वस्‍त किया कि हमारी विकास प्रक्रिया पूरी तरह से पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों के प्रति हमारे सांस्‍कृतिक लोकाचार के अनुरूप रहेगी। असल में, हम जलवायु परिवर्तन की न सिर्फ अपनी जिम्‍मेदारी समझते हैं; बल्कि इसके असर को कम करने के लिए अगुवाई करने के भी इच्‍छुक हैं।” (अनुवाद)

6. “आवश्‍यकता के अनुसार चीजों के उपयोग के बारे में महात्‍मा गांधी का ट्रस्‍टीशिप का सिद्धांत महत्‍वपूर्ण हैं। वह किसी के लालच के लिए किसी भी चीज के उपयोग के खिलाफ थे। आज हम अपने लालच के लिए प्रकृति का दोहन कर रहे हैं। हमें खुद से पूछना होगा कि क्‍या यह प्रगति है या प्रतिगम है”

जबकि आधिकारिक टेक्स्ट में महात्‍मा गांधी और ट्रस्‍टीशिप पर उनके दर्शन का कोई संदर्भ नहीं है, इसे अलग तरह से कहा गया है और यह प्रधानमंत्री की कही गई बातों से मेल नहीं खाता है। यह टेक्स्ट इस प्रकार से है:

“इस ट्रस्‍टीशिप के दर्शन का हाल के दिनों का सबसे बड़ा पक्षसमर्थक महात्‍मा गांधी थे; गांधी जी कहा करते थे कि आपकी जरूरत के लिए प्रकृति के पास पर्याप्‍त है; लेकिन आपके लालच के लिए पर्याप्‍त नहीं है; उनके इस विश्‍वास के कारण हमने इस प्रकार से जीना सीखा जो मनुष्‍य के अस्तित्‍व साथ-साथ मनुष्‍य बनाम प्रकृति के लिए भी हितकर है; जो आज के साथ-साथ अगली पीढ़ी की जरूरतों के लिए भी हितकर है” (अनुवाद)

7. “कई समाज और देश आत्‍म-केंद्रित बनते जा रहे हैं। ऐसा लगता है कि वैश्वीकरण अपनी परिभाषा के उलट संकुचित हो रहा है। ऐसी गलत प्राथमिकताओं को किसी भी प्रकार से आतंकवाद या जलवायु परिवर्तन से कम बड़ा खतरा नहीं माना जा सकता है। हमें मानना चाहिए कि वैश्वीकरण की चमक फीकी पड़ रही है।”

WEF समिट में वैश्वीकरण की पीएम मोदी की आलोचना आधिकारिक पाठ से गायब है। असल में, इसमें ‘वैश्‍वीकरण’ शब्‍द का कहीं जिक्र नहीं है।

8. “पिछली बार कोई भारतीय प्रधानमंत्री दावोस में 1997 में आया था जब देवगौड़ा जी आये थे। उस समय हमारी जीडीपी 400 बिलियन डॉलर से कुछ ही अधिक थी, अब यह छह गुना अधिक हो गई है”

भूतपूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा का उल्‍लेख दस्‍तावेज़ में कहीं नहीं है, और न ही भारत की बढ़ती जीडीपी का कहीं उल्‍लेख है।

9. “30 वर्ष के बाद, 2014 में, 600 करोड़ भारतीयों ने केंद्र में सरकार बनाने के लिए किसी राजनीतिक पार्टी को संपूर्ण बहुमत दिया है”

भाषण वाले दिन सोशल मीडिया पर पीएम मोदी की यह बड़ी गलती चर्चा का विषय बनी। जबकि उम्‍मीद के मुताबिक गलती को आधिकारिक पाठ से निकाल दिया गया है लेकिन प्रधानमंत्री के इस दावे के बारे में कोई उल्‍लेख नहीं था।

10. “1997 में चिड़िया ट्वीट करती थी, अब मनुष्‍य करते हैं, तब अगर आप एमेजॉन इंटरनेट पर डालते तो नदियों और जंगल की तस्‍वीर आती”

पीएम मोदी मनोरंजक प्रभाव डालने के लिए शब्‍दों से खेलने की अपनी विशेषता का उपयोग कर रहे थे। इसकी तुलना में आधिकारिक पाठ नीरस है और उसमें भाषण का यह वाला हिस्‍सा नहीं है।

दावोस में प्रधानमंत्री के भाषण का पाठ प्रकाशित करने वाले मीडिया संस्‍थानों – इंडियन एक्‍सप्रेस, एनडीटीवी, हिंदुस्‍तान टाइम्‍स और एबीपी लाइव ने भी इस भाषण के पाठ को शब्‍दश: प्रस्‍तुत नहीं किया बल्कि विदेश मंत्रालय द्वारा इसकी वेबसाइट पर डाले गए आधिकारिक पाठ को केवल पुनर्प्रस्‍तुत कर दिया। दिलचस्‍प बात यह रही कि प्रधानमंत्री की व्‍यक्तिगत वेबसाइट www.narendramodi.in पर दावोस के उनके भाषण को शब्‍दश: प्रकाशित किया गया है जिससे यह हैरानी होती है कि मुख्‍यधारा का मीडिया इस भाषण के विदेश मंत्रालय वाले संस्‍करण को प्रकाशित करने के पीछे क्‍यों भागा और मूल संस्‍करण को उस तरह नहीं लिया जिस तरह वह मौजूद है, जबकि वह पीएम मोदी की वेबसाइट पर उपलब्ध है। साथ ही, विदेश मंत्रालय ने मूल भाषण को प्रकाशित क्‍यों नहीं किया?

(बाएँ: भाषण का विदेश मंत्रालय का संस्‍करण। दाएँ: www.narendramodi.in पर भाषण का संस्‍करण)

फोरम के पूर्ण अधिवेशन में प्रधानमंत्री ने जो कहा, उसमें और विदेश मंत्रालय द्वारा प्रस्‍तुत भाषण के आधिकारिक संस्‍करण में यह भारी असंगतता एकदम साफ दिखती है और गंभीर प्रश्‍न खड़े करती है। किसी अंतर्राष्‍ट्रीय मंच पर प्रधानमंत्री का भाषण एक रिकॉर्ड का विषय है। पीएम मोदी के भाषण के त्रुटियुक्‍त संस्‍करण को विदेश मंत्रालय द्वारा प्रस्‍तुत करने से इसके साथ अक्षरश: न्‍याय नहीं हुआ है।

ऑल्ट न्यूज़ के अंग्रेजी वेबसाइट पे लेख आने के बाद विदेश मंत्रालय ने भाषण का लेख बदल दिया।

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