उत्तर प्रदेश के कासगंज में गणतंत्र दिवस पर सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी। मुख्यधारा की मीडिया ने इसे प्रमुखता से कवर किया। हालांकि, कुछ समाचार संस्थानों द्वारा इस खबर को रिपोर्ट करने का अंदाज कई गंभीर प्रश्न खड़े करता है। यहां, हम यह देखेंगे कि आज तक ने इस मुद्दे को कैसे पेश किया।

तिरंगा यात्रा के दौरान दो समुदायों के बीच हिंसा भड़कने के बाद स्तिथि तनावग्रस्त हो गयी। आज तक के कुछ प्रमुख पत्रकारों ने जानबूझकर रिपोर्ट को सांप्रदायिक मोड़ देने की कोशिश की।

आज तक के वरिष्ठ पत्रकार रोहित सरदाना ने इस मुद्दे पर एक प्राइम टाइम शो आयोजित किया, जिसमें उत्तेजक प्रश्न उठाए गए थे जैसे “कासगंज से देशद्रोहियों को कब दबोचेगी सरकार?” “हिंदुस्तान में नहीं तो क्या पाकिस्तान में जाकर फहराएंगे तिरंगा?”

कासगंज की घटना को भारत-पाकिस्तान विरोधाभास बनाकर तनाव बढ़ाने की कोशिश की गयी जिससे हिंसा बढ़ी। 100 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया और पुलिस की जांच अभी भी चल रही है, फिर भी आज तक ने जनता के एक हिस्से को अप्त्यक्ष रूप से राष्ट्र विरोधी बताकर विवाद को उकसाने का प्रयास किया।

रोहित सरदाना इसमें अकेले नहीं थे। आज तक की कार्यकारी संपादक श्वेता सिंह ने भी एक विवादास्पद बयान दिया।

दिलचस्प बात यह है कि आज तक के पत्रकारों और उनके द्वारा किए गए रिपोर्ट को जिस तरह से बाद में समाचार चैनल पर चलाया गया, वह शुरुआत में पूरी तरह से अलग था। पत्रकार रोहित सरदाना की रिपोर्ट के विपरीत आशुतोष मिश्रा द्वारा प्रस्तुत की गई बाद की रिपोर्ट जमीन से जुड़ी थी।

कासगंज के जिला मजिस्ट्रेट ने कहा कि यह दोनों समुदायों के बीच भड़का हिंसा था जिसमें दोनों तरफ से फायरिंग हुई थी। उन्होंने कहा, “मौके पर नजर रखने वालों का कहना है कि जब ये लोग (बाईकर्स) घटनास्थल पर पहुंचे, तो उनके हाथ में डंडा और हॉकी स्टिक्स थे। संभव है कि वहां पे गोली-बारी हुई हो जिस वजह से नौशाद घायल हुआ। लेकिन यह जांच का विषय है।”

इस प्रकार, जब जांच अभी भी चल ही रही है तो आज तक की प्रारंभिक रिपोर्ट एक हद तक पूर्वाग्रह से भरी थी, जिसने केवल चन्दन गुप्ता पर ही ध्यान केंद्रित किया था। प्रारंभिक रिपोर्टों के मुताबिक, बहुसंख्यक समुदाय के खिलाफ अल्पसंख्यक आक्रामकता को अपनाना एकतरफा आक्रमण नहीं बल्कि दो समुदायों के बीच संघर्ष था। गोलीबारी में घायल हुए नौशाद का बहुत कम या कोई जिक्र भी नहीं था।

कासगंज त्रासदी पर आज तक की रिपोर्टिंग ने संपादकीय दृष्टिकोण और चैनल के फैसले पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक तरफ, रोहित सरदाना और श्वेता सिंह जैसे पत्रकार काल्पनिक रचनाओं से इसको सनसनीखेज बताकर रिपोर्ट करते है, दूसरी ओर इसी खबर को गंभीरता से रिपोर्ट की जाती है, तथ्यों को सही से दिखाया जाता है। एक ही घटना पे दो तरह के खबर की रिपोर्टिंग वो भी एक ही चैनल पे आज तक की यह प्रवृति TRP से सम्बंधित हो सकती है या नहीं भी, लेकिन कासगंज जैसे संवेदनशील मुद्दों पर आज तक ने न्याय नहीं किया है।

चिंता का एक गंभीर विषय यह है कि कैसे संबंधित चैनलों के अधिकारी बुनियादी सत्यापन के बिना संवेदनशील मुद्दे पर रिपोर्ट कर रहे हैं। आज तक के ही मीडिया ग्रुप का चैनल इंडिया टुडे ने दिसम्बर 2017, में कर्नाटक में सांप्रदायिक हिंसा की खबर दी थी। ‘सिर काटा गया‘ (Head cut open), ‘नपुंसक बनाया गया‘ (castrated) और ‘उबलता हुआ तेल चेहरे पर डाला गया‘ (boiling oil poured on face) इस भयानक तरह से परेश मेस्टा की मौत का वर्णन किया गया था। हालांकि यह जानकारी पूरी तरह से गलत साबित हुई। महत्वपूर्ण मुद्दों पर भ्रामक जानकारी देने और उन्हें सनसनीखेज बताने के बाद पीछे हट जाना, यह एक ऐसा पैटर्न है जिसे बार-बार इंडिया टुडे समूह के द्वारा अपनाया जाता है।

अनुवाद: Priyanka Jha

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