31 दिसंबर, 2024 को कम से कम दो भारतीय न्यूज़ आउटलेट ने ऐसी रिपोर्ट पब्लिश कीं जिसमें अनुमान लगाया गया कि बांग्लादेश सिविल सेवा (BCS) परीक्षा में हिंदुओं के साथ भेदभाव किया जा रहा है. बंगाली न्यूज़ आउटलेट Zee24Ghanta और Ei Samay ने इस बारे में आर्टिकल्स लिखें और X (पूर्व में Twitter) पर पोस्ट शेयर किये जिसमें दावा किया गया कि बांग्लादेश में अधिकारियों ने सिविल सेवा नियुक्तियों पर पहले की अधिसूचना को रद्द कर दिया है और एक नई सूची जारी की है जिसमें कथित तौर पर 168 लोगों को बाहर रखा गया है जिनमें से ज़्यादातर हिंदू हैं.
Zee24Ghanta (@Zee24Ghanta) के X हैंडल ने 31 दिसंबर को पोस्ट किया कि BCS भर्तीकर्ताओं की एक नई सूची 30 दिसंबर को जारी की गई थी जिसमें चयनित उम्मीदवारों पर 15 अक्टूबर की अधिसूचना को ओवरराइट किया गया था. पोस्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि भर्तीकर्ताओं की नई सूची से हटाए गए 168 नामों में से ज़्यादातर हिंदू उम्मीदवार थे जिन्होंने परीक्षा पास की थी. (आर्काइव)
#BREAKING বিসিএসের নতুন করে তালিকা প্রকাশ হয়, বিভিন্ন পদ থেকে ১৬৮ জনের নাম বাদ।#LatestNews #Zee24Ghanta #Bangladesh pic.twitter.com/8pWVfeYM5m
— zee24ghanta (@Zee24Ghanta) December 31, 2024
Zee24Ghanta ने भी इसे अपने फ़ेसबुक पेज पर पोस्ट किया जिस पर इस आर्टिकल के लिखे जाने तक करीब 2 हज़ार रिप्लाइ और लगभग 180 शेयर मिलें. (आर्काइव)
ईआई समय की रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि अस्पष्ट सोर्स का हवाला देते हुए बाहर किए गए उम्मीदवारों में से ज़्यादातर हिंदू थे. मीडिया आउट्लेट ने ये भी कहा कि बांग्लादेश में कई हिंदू संगठन भी इस कदम पर सवाल उठा रहे हैं. इन संगठनों ने आरोप लगाया कि परीक्षा पास करने के बाद भी हिंदुओं को सिविल सेवक के रूप में नौकरी देने से इनकार करना इस बात का सबूत है कि बांग्लादेश सरकार अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ पक्षपाती है. आगे, अंग्रेजी वर्ज़न में आर्टिकल के सबंधित हिस्से का स्क्रीनशॉट एड किया गया है:
बंगाल भाजपा नेता दिलीप घोष ने इस दावे को और आगे बढ़ाया. 1 जनवरी को उनके अकाउंट (@dilipghosh64) से इंस्टाग्राम पर की गई पोस्ट में कहा गया है, “हाल ही में, यूनुस सरकार ने सरकारी नौकरियों से हिंदुओं को बाहर करने के लिए एक अनौपचारिक फतवा जारी किया. एक चौंकाने वाले घटनाक्रम में, 168 उम्मीदवार (जिनमें से ज़्यादातर हिंदू थे) जो अक्टूबर 2024 के गजट नोटिफ़िकेशन में बांग्लादेश सिविल सेवा (BCS) के लिए अंतिम मेरिट सूची में शामिल थे, उन्हें अंतिम चयन से बाहर कर दिया गया.” (आर्काइव)
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जेल में बंद हिंदू साधु चिन्मय कुमार दास के वकील रवींद्र घोष ने भी दावा किया कि हिंदू उम्मीदवारों को बाहर करना बांग्लादेश सरकार का “असंवैधानिक” कदम है.
इस बीच ‘बांग्लादेशी हिंदुओं की आवाज़’ (@VHindus71) ने भी वायरल दावे को X पर शेयर किया और इसे अधिकारियों द्वारा “व्यवस्थित भेदभाव” बताया. (आर्काइव)
‼️Discrimination Against Hindus in Bangladesh🚨
The Bangladesh Civil Service Exam recruitment process has been marred by what appears to be systemic discrimination against minorities.
The latest notification from the Ministry of Public Administration for the 43rd BCS has… pic.twitter.com/jbzSCHhYGL
— Voice of Bangladeshi Hindus 🇧🇩 (@VHindus71) December 30, 2024
फ़ैक्ट-चेक
दावों की सच्चाई की जांचने के लिए, ऑल्ट न्यूज़ ने बांग्लादेश के लोक प्रशासन मंत्रालय द्वारा प्रकाशित दोनों अधिसूचनाओं – 15 अक्टूबर को जारी की गई पहली अधिसूचना और 30 दिसंबर को जारी की गई संशोधित अधिसूचना – का बारीकी से विश्लेषण किया. उम्मीदवारों के पूरे नामों के आधार पर, हमारा अनुमान है कि 200 से ज़्यादा हटाए गए उम्मीदवारों में से कम से कम 124 मुस्लिम थे. इसका मतलब है कि लिस्ट से बाहर किए गए ज़्यादातर लोग असल में मुस्लिम थे, न कि हिंदू.
इसके अलावा, 2 जनवरी को मंत्रालय द्वारा एक तीसरा नोटिस जारी किया गया जिसमें संशोधित सूची में कुछ नामों को बाहर करने के कारणों को सूचीबद्ध किया गया. इस नोटिस में मंत्रालय ने कहा कि ये BCS भर्ती नियम, 1981 के नियम 4 के अनुसार था जिसमें पुलिस एजेंसियां चयनित उम्मीदवारों का व्यक्तित्व मूल्यांकन करती हैं ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि इन सेवाओं में कार्यरत लोगों की “साफ सुथरी छवि” हो.
पहली सूची में नामित 2,163 उम्मीदवारों में से 227 इस जांच में पास नहीं हुए नोटिस में बताया गया कि इसके अलावा, 40 अन्य को बाहर कर दिया गया क्योंकि वो चिकित्सा परीक्षा के लिए उपस्थित नहीं हुए. इस तरह, तीसरे नोटिस के अनुसार, कुल मिलाकर 267 लोगों को नई सूची से हटा दिया गया.
9 जनवरी को बांग्लादेश के न्यूज़ आउटलेट ने रिपोर्ट किया कि मंत्रालय के साथ-साथ खुफ़िया एजेंसियां 227 उम्मीदवारों के बारे में रिपोर्ट की आगे समीक्षा करने और अंतिम निर्णय पर पहुंचने की योजना बना रही हैं जिन्हें बाहर रखा गया था.
उससे एक हफ्ते पहले, 2 जनवरी को बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार के प्रेस विंग ने भी एक बयान जारी कर उन दावों को खारिज कर दिया था कि बांग्लादेश सरकार किसी भी नागरिक के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव करती है.
कुल मिलाकर, मीडिया आउटलेट्स द्वारा की गई रिपोर्ट्स झूठी और भ्रामक हैं कि यूनुस मोहम्मद के नेतृत्व वाली बांग्लादेश सरकार ने सरकारी नौकरियों के लिए हिंदू नागरिकों के रोजगार का विरोध किया.
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