दुनिया भर के सोशल मीडिया यूजर्स कोरियन वेब सीरीज ‘माय सीक्रेट, टेरियस’ का एक सीन शेयर कर रहे हैं. दावा किया जा रहा है कि इस वेब सीरीज के दसवें एपिसोड में नोवेल कोरोना वायरस महामारी की भविष्यवाणी की गई थी. भारतीय क्रिकेटर हरभजन सिंह और एक्टर मीरा चोपड़ा ने भी इस क्लिप को शेयर किया है.

दिल्ली बीजेपी आईटी सेल के मुखिया पुनीत अग्रवाल ने भी इस सीन को ट्वीट कर लिखा कि ये शो ‘कोरोना वायरस नामक जैविक हथियार’ के बारे में बताता है.

जो एपिसोड चर्चा में है, आप उसको नीचे इंग्लिश सबटाइटल्स के साथ देख सकते हैं.

इस कथित भविष्यवाणी को द इंडियन एक्सप्रेस, वनइंडिया, द हिंदू, द क़्विंट, पीटीआई, इंडिया टुडे, नवभारत टाइम्स, दैनिक जागरण, आजतक और लाइव हिंदुस्तान जैसे कई मीडिया संस्थानों ने भी रिपोर्ट किया है.

दक्षिणपंथी वेबसाइट ऑपइंडिया ने इस सीरीज़ को ‘कोरोना वायरस की भविष्यवाणियां’ पर छपे एक आर्टिकल में भी शामिल किया.

The English translation of the dialogues is as follows:

डॉक्टर: “हमें और रिसर्च करने की ज़रूरत है, लेकिन ये म्यूटेंट कोरोना वायरस जैसा दिख रहा है.”
एजेंट: “कोरोना? तो क्या ये मर्स है?”
डॉक्टर: “MERS, SARS, कॉमन फ़्लू. ये सभी एक ही जीन परिवार का हिस्सा हैं. इनका जीन इंफॉर्मेशन भी एक ही है. कोरोना वायरस श्वसन तंत्र पर हमला करते हैं. 2015 में आई MERS महामारी में मृत्यु दर 20 प्रतिशत से अधिक थी.”
एजेंट: “लेकिन इसे हथियार के तौर पर इस्तेमाल में नहीं लाया जा सकता. क्या मैं ग़लत हूं?”
डॉक्टर: “मैंने पहले भी बताया है, ये एक म्यूटेंट वायरस है. किसी ने इसमें बदलाव करके मृत्यु दर को 90 प्रतिशत तक बढ़ा दिया है. चिंता की बात ये है कि कोरोना वायरस 2 से 14 दिनों तक एक्टिव रह सकता है. इस वायरस को एक्सपोजर के पांच मिनट के भीतर फेफ़ड़ों को नुकसान पहुंचाने के लिए म्यूटेट किया गया है.”

दावा:

अपनी बातचीत में, एक्टर्स कोरोना वायरस के बारे में निम्नलिखित जानकारियां देते हैं.

1. ये मानव-निर्मित म्यूटेंट वायरस है.
2. मृत्यु दर लगभग 90 फ़ीसदी है.
3. वायरस के संपर्क में आने के पांच मिनट के अंदर फेफ़ड़ों को नुकसान पहुंचाता है.

सोशल मीडिया यूजर्स ने इस बातचीत के आधार पर दावा करना शुरू कर दिया कि इस शो में कोविड-19 महामारी के बारे में पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी.

नतीजा:

झूठ.

फ़ैक्ट-चेक:

‘माय सीक्रेट, टिरियस’ (ओरिजिनल टाइटल ‘Nae Dwie Teriuseu’) 2018 में रिलीज़ हुई एक साइंस-फ़िक्शन ड्रामा सीरीज़ है. इसमें नेशनल इंटेलिजेंस सर्विस (एनआइएस) का एक एजेंट षडयंत्र में फंसे पति का पता लगाने के लिए एक महिला की मदद करता है. एक काल्पनिक सीरीज़ ने भविष्य के बारे में सच-सच बताया था, ऐसा दावा करना अपने आप में बेमतलब है. हालांकि, इस फ़ैक्ट-चेक के दौरान, हम आपको बताएंगे कि सीरीज़ में जिस ‘म्यूटेंट कोरोना वायरस’ के बारे में कहा गया है. वो नोवेल कोरोना वायरस से किस तरह से अलग है.

1. अ. नोवेल कोरोना वायरस (SARS-CoV-2) मानव-निर्मित नहीं है.

नोवेल कोरोना वायरस को जैविक हथियार बताने वाले कई फ़र्ज़ी दावों का, कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म्स, ने पर्दाफाश किया है. द लैंसेट में प्रकाशित स्टेटमेंट में पब्लिक हेल्थ साइंटिस्ट्स ने कहा है, “हम उन सभी साज़िश वाली थ्योरीज की निंदा करते हैं जिसमें ये दावा किया गया है कि कोविड-19 प्रकृति से नहीं आया है. कई देशों के वैज्ञानिकों ने उत्पादक एजेंट, सीवियर एक्यूट रिस्पायरेट्री सिंड्रोम (SARS-CoV-2) के जीनोम की छानबीन कर पता लगाया है. उनका एक ही मत है कि इस कोरोना वायरस की उत्पत्ति वन्यजीव से हुई है. उनमें कई दूसरे इमर्जिंग पैथोजन भी होते हैं.”

21 फ़रवरी को आई विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक सिचुएशन रिपोर्ट के अनुसार, “चमगादड़, SARS-CoV-2 के सबसे मुफ़ीद पर्यावरणीय कोष होते हैं. लेकिन ऐसा देखा गया है कि ये वायरस स्पेसिज के बैरियर से परे जाकर किसी दूसरे जानवर के ज़रिए इंसानों तक पहुंचा होगा. ये इंटरमीडिएट एनिमल होस्ट, खाया जाने वाला कोई पालतू जानवर, कोई जंगली जानवर या पालतू बनाया गया कोई जंगली जानवर भी हो सकता है. इसकी पहचान अभी तक नहीं हो सकी है.”

WHO की एक दूसरी सिचुएशन रिपोर्ट के अनुसार, “एक रिसर्च है, जिसमें पेंगुलिन का ज़िक्र है और ये भी कि उनका कोविड-19 वायरस से संबंध है. पेंगुलिन कोरोना वायरस के इंटरमीडिएट होस्ट हो सकते हैं. लेकिन ये पूरी कहानी नहीं है. इसलिए इंटरमीडिएट होस्ट्स की पुष्टि करने के लिए कई क्षेत्रों में काम करने की ज़रूरत होगी…” चीन में वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं कि क्या अवैध तौर पर खरीदे-बेचे गए पेंगुलिन इंटरमीडिएट होस्ट थे.

1. ब. नोवेल कोरोना वायरस, कोरोना वायरस फैमिली का नया सदस्य है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़, “कोरोना वायरस (CoV), वायरसों का एक बड़ा समूह हैं, जिनकी वजह से कॉमन कोल्ड से लेकर MERS-CoV और SARS-CoV जैसी गंभीर बीमारियां होती हैं.”

सेंटर्स फ़ॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेन्शन (CDC) के अनुसार, इंसानी कोरोना वायरस का पता पहली बार 1960 के दशक के मध्य में चला था. असल में, कई कोरोना वायरस हैं जो अलग-अलग किस्म के जानवरों को संक्रमित करते हैं. 60 के दशक के बाद से, इंसानों को संक्रमित करने वाले सात कोरोना वायरसों का पता चला है. नोवेल कोरोना वायरस (nCoV) और कोविड-19, इंसानों में पहले कभी नहीं देखा गया. कोविड-19 महामारी से पहले, इस वायरस के किसी प्रकार के हालिया प्रकोपों की बात करें तो, 2002 में चीन में शुरू हुआ SARS-CoV या सीवियर एक्यूट रिस्पायरेट्री सिंड्रोम, जबकि 2012 में सऊदी अरब में मिडिल ईस्ट रिस्पायरेट्री सिंड्रोम (MERS-CoV) का ज़िक्र आता है.

वायरल हो रहे एपिसोड में, डॉक्टर SARS और MERS, दोनों का संदर्भ देता है. इससे पता चलता है कि पूरा प्लॉट पिछले कोरोना वायरस के प्रकोपों से प्रेरित है और इसका कोविड-19 से कोई मतलब नहीं है.

2. नोवेल कोरोना वायरस में अनुमानित मृत्यु दर 3-4 प्रतिशत है

6 मार्च को आई WHO की एक सिचुएशन रिपोर्ट के अनुसार, “कोविड-19 के मामलों में वास्तविक मृत्यु दर का पता लगाने में थोड़ा समय लगेगा. अभी तक जो डेटा हमारे सामने आया है, उसके अनुसार मृत्यु का रेशियो (मौतों की संख्या को कुल मामलों से भाग देने पर) 3-4 प्रतिशत है, संक्रमण मृत्यु दर (मौतों की संख्या को संक्रमण की संख्या से भाग देने पर) काफी कम होगा.”

हालांकि, मृत्यु दर, स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता, संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए देशों द्वारा उठाए गए कदम और किसी क्षेत्र की जनसांख्यिकी जैसे फैक्टर्स पर निर्भर करती है. जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी एंड मेडिसीन के पास उपलब्ध डेटा के अनुसार, इटली में मृत्यु दर दस प्रतिशत से थोड़ी अधिक है. वहीं चीन में ये दर लगभग चार प्रतिशत है. जबकि चीन में वायरल संक्रमण की शुरुआत हुई थी. नागरिकों की आवाजाही पर सख्त पाबंदियों के बावजूद इटली में हो रही मौतें देश की उम्रदराज जनसंख्या से जुड़ी है.

हो सकता है कि इन संख्याओं का संक्रमित जनसंख्या से कोई संबंध न हो. क्योंकि कई देश उन्हीं मरीज़ों की टेस्टिंग पर ध्यान दे रहे हैं जिनमें गंभीर लक्षण दिख रहे हैं या जिनकी कोई ट्रैवल हिस्ट्री है. साधारण लक्षण वालों का टेस्ट नहीं किया जा रहा है या उन्हें घर में अलग-थलग रहने की सलाह दी जा रही है. दक्षिण कोरिया में मृत्यु दर सबसे कम है. सरकार द्वारा पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा न करने के बावजूद, ये दर लगभग 1.4 प्रतिशत है. अल जज़ीरा की रिपोर्ट के अनुसार, “15 मार्च तक, इटली ने लगभग 1.25 लाख टेस्ट किए. जबकि दक्षिण कोरिया ने बड़े पैमाने पर टेस्टिंग की और 15 मार्च तक साधारण या बिना किसी लक्षण वाले लोगों पर लगभग 3.40 लाख टेस्ट कम्पलीट किए.” इसलिए, मृत्यु दर काफ़ी हद तक देशों द्वारा उठाए गए सुरक्षा उपायों पर भी निर्भर करती है.

किसी भी साइंटिफ़िक या मीडिया रिपोर्ट में 90 प्रतिशत मृत्यु दर की बात नहीं आई है. जैसा कि कोरियन ड्रामा सीरीज़ में म्यूटेंट कोरोना वायरस को लेकर कहा गया है.

3. नोवेल कोरोना वायरस 2-14 दिनों तक एक्टिव रहता है

ड्रामा सीरीज़ में, म्यूटेंट कोरोना वायरस, संपर्क में आने के पांच मिनट के अंदर फेफ़ड़ों पर हमला करता है. कोरोना वायरस पर WHO का Q&A कहता है, “इनक्युबेशन पीरियड का अर्थ होता है, वायरस का संपर्क होने से बीमारी के लक्षण दिखने की शुरुआत तक की अवधि. कोविड-19 के मामले में इनक्युबेशन पीरियड 1-14 दिनों का है. सामान्य तौर पर पांच दिनों के अंदर लक्षण दिखने लगते हैं. जैसे-जैसे आंकड़े आते जाएंगे, इन गणनाओं को लगातार अपडेट किया जाएगा.”

हार्वर्ड मेडिकल स्कूल का कोरोना वायरस रिसर्च सेंटर भी इस दावे की पुष्टि करता है. सेंटर के अनुसार, ‘इनक्युबेशन पीरियड 3 से 13 दिनों का हो सकता है’. “हाल ही में प्रकाशित हुई एक स्टडी बताती है कि इनक्युबेशन पीरियड औसतन पांच दिनों का है.”

इसलिए, ये दावा कि कोरियाई ड्रामा सीरीज़ ‘माय सीक्रेट, टेरियस’ ने कोविड-19 संकट की भविष्यवाणी की थी, पूरी तरह से बकवास है. सीरीज़ में दिखाए गए ‘म्यूटेंट कोरोना वायरस’ और नोवेल कोरोना वायरस में कोई समानता नहीं है.

नोट: भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 950 के पार जा पहुंची है. इसकी वजह से सरकार ने बुनियादी ज़रुरतों से जुड़ी चीज़ों को छोड़कर बाकी सभी चीज़ों पर पाबंदी लगा दी है. दुनिया भर में 6 लाख से ज़्यादा कन्फ़र्म केस सामने आये हैं और 28 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. लोगों में डर का माहौल बना हुआ है और इसी वजह से वो बिना जांच-पड़ताल किये किसी भी ख़बर पर विश्वास कर रहे हैं. लोग ग़लत जानकारियों का शिकार बन रहे हैं जो कि उनके लिए घातक भी साबित हो सकता है. ऐसे कई वीडियो या तस्वीरें वायरल हो रही हैं जो कि घरेलू नुस्खों और बेबुनियाद जानकारियों को बढ़ावा दे रही हैं. आपके इरादे ठीक हो सकते हैं लेकिन ऐसी भयावह स्थिति में यूं ग़लत जानकारियां जानलेवा हो सकती हैं. हम पाठकों से ये अपील करते हैं कि वो बिना जांचे-परखे और वेरीफ़ाई किये किसी भी मेसेज पर विश्वास न करें और उन्हें किसी भी जगह फ़ॉरवर्ड भी न करें.

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About the Author

Pooja Chaudhuri is a senior editor at Alt News.