ट्रिगर चेतावनी: हिंसा के दृश्य

सोशल मीडिया पर तुर्की का बताकर एक हिंसक वीडियो वायरल है. वीडियो में वर्दी पहने लोग कुछ के आंखों पर पट्टी बांधकर एक गड्ढे में गिराकर उन्हें गोली मारते हुए दिख रहे हैं. ये दावा किया जा रहा है कि जिन्हें गोली मारा जा रहा है वो कॉन्ट्रैक्टर्स हैं जिन पर स्ट्रक्चर्स बनाने के आरोप हैं और ये सरकारी जांच के दायरे में हैं. इस स्ट्रक्चर्स की वजह से हाल में आए भूकंपों में हज़ारों लोगों की जान चली गई थी.

व्हाट्सऐप पर इस क्लिप को अलग-अलग दावों के साथ शेयर किया गया है. ऐसे ही एक टेक्स्ट में लिखा है, “तुर्की सैनिकों ने ठेकेदारों को गोली मारी जिनके घटिया काम से हजारों निर्दोष लोगों की जान चली गई थी. भूकंप को अवशोषित करने के लिए इन्हें सिस्मिक डैम्पर्स के लिए भुगतान किया गया था लेकिन फिर भी इन्होंने बड़ी ऊंची इमारतों की नींव के नीचे कार के टायर गाड़ दिए.”

ऑल्ट न्यूज़ को इस क्लिप की सच्चाई जानने के लिए व्हाट्सऐप नंबर (+91 7600011160) पर कई रिक्वेस्ट मिलीं.

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ये क्लिप ट्विटर और फ़ेसबुक पर भी शेयर की जा रही है. पाठकों के लिए हमने नीचे वायरल क्लिप की कुछ तस्वीरें एक साथ रखीं हैं.

दिलीप कुमार नाम के एक ट्विटर यूज़र ने ये वीडियो शेयर करते हुए लिखा, “तुर्की के सैनिकों ने उन कंस्ट्रक्शन ठेकेदारों को गोली मार दी जिनके घटिया काम ने हजारों निर्दोष लोगों को मार डाला।भूकंप को अवशोषित करने के लिए उन्हें भूकंपीय डैम्पर्स के लिए भुगतान किया था लेकिन उन्होंने ऊंची इमारतों की नींव के नीचे कार के टायर गाड़ दिए.क्या भारत में ऐसा संभव है.”

फ़ैक्ट-चेक

ऑल्ट न्यूज़ ने गूगल पर की-वर्ड्स से सर्च किया. हमें अप्रैल 2022 में पब्लिश न्यूज़ लाइन मैगज़ीन का एक आर्टिकल मिला. इस आर्टिकल में एक सैनिक की तस्वीर थी जो वायरल क्लिप में दिख रहे एक सैनिक से मेल खाती है. रिपोर्ट में कहा बताया गया है कि ये क्लिप सीरिया की है जहां सैन्यकर्मियों ने 2013 में सैकड़ों नागरिकों का नरसंहार किया था.

आर्टिकल में वायरल क्लिप में देखे गए सैनिकों की पहचान के बारे में बताया गया है. इसमें कहा गया है कि ये वीडियो सीरिया के उपनगर तदामोन के पड़ोस का है. दो सैनिकों की पहचान की गई है. एक “36 साल के अमजद यूसुफ़, (जो नरसंहार के समय सैन्य रैंक के वारंट अधिकारी थे), और मारे जा चुके नजीब अल-हलाबी, जिनका जन्म 1984 में हुआ था और उनके पास कोई ऑफ़िशियल रैंक नहीं था, क्योंकि वे सशस्त्र मिलिशिया में सेवारत थे जिसे अब राष्ट्रीय रक्षा बल (NDF) के रूप में जाना जाता है.”

द गार्डियन ने भी अप्रैल 2022 में इसी डिटेल के साथ एक रिपोर्ट पब्लिश की थी. पहले एक सोर्स ने फ्रांस के एक एक्टिविस्ट को ये वीडियो लीक कर दिया था और फिर एम्स्टर्डम विश्वविद्यालय के होलोकॉस्ट एंड जेनोसाइड सेंटर के रिसर्चर, अंसार शाहौद और प्रोफ़ेसर उउर उमित उंगोर को ये वीडियो मिला था.

रिसर्चर अंसार ने दो साल से ज़्यादा समय तक फ़ेसबुक के माध्यम से सीरियाई सैन्य कर्मियों के साथ बात की. इसके बाद सैनिक अमजद का कंफेशन मिला.

इस मामले की एक वीडियो रिपोर्ट द गार्डियन ने अपनी वेबसाइट पर अपलोड की थी.

कुल मिलाकर, 2013 में सीरिया में नागरिकों को मारने वाले सैनिकों का वीडियो तुर्की का बताकर ग़लत दावे के साथ शेयर किया गया. साथ ही ये झूठा दावा भी किया गया कि सरकार ग़लत तरीके से बिल्डिंग्स बनाने वाले उन ठेकेदारों को मार रही है जिनकी वजह से हाल के विनाशकारी भूकंप में हज़ारों लोगों की जानें चली गयीं.

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Kalim is a journalist with a keen interest in tech, misinformation, culture, etc