सोशल मीडिया में कुछ तस्वीरें इस दावे से साझा की जा रही है कि सिलीगुड़ी के गेट बाज़ार काली मंदिर में हिन्दू देवी काली की मूर्ति को ध्वस्त किया गया है। ट्विटर उपयोगकर्ता रूप दरक इन तस्वीरों को साझा करने वालों में से एक हैं, जिनके ट्विटर परिचय के अनुसार, वे BJYM तेलंगाना राज्य के आधिकारिक प्रवक्ता हैं।

एक अन्य उपयोगकर्ता @vaishnavi_mish ने भी ये तस्वीरें समान दावे से ट्वीट की है। यह दावा फेसबुक पर वायरल है।

कुछ उपयोगकर्ताओं ने इस बात पर ज़ोर देते हुए कहा कि इस घटना के पीछे “मुस्लिम उपद्रवी” शामिल हैं।

एक फेसबुक पेज ‘स्टैंड विद हिन्दू’ ने तस्वीरें साझा करते हुए लिखा, “पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में जिहादियों ने काली माता की मूर्ति को तोड़ दिया…जिहादियों ने मंदिरों में तोडफ़ोड़ किया।।”

चोरी की घटना

गूगल पर सम्बंधित की-वर्ड्स से सर्च करने पर हमें 21 जनवरी, 2020 को प्रकाशित सिलीगुड़ी टाइम्स का एक लेख मिला। लेख के अनुसार, चोरों ने मंगलवार की सुबह को काली मंदिर में तोड़फोड़ की थी।

मीडिया संगठन जागरण ने इस घटना के बारे में 21 जनवरी को खबर प्रकाशित की थी। लेख के मुताबिक, मंदिर में आठ बार चोरी की घटना हुई है। मंदिर प्रबंधन की ओर से बताया गया कि यह आठवीं बार चोरी की घटना हुई है। बांस व लोहे के पाइप से प्रतिमा से जेवरात उतारने की कोशिश की गई होगी, जिसमें प्रमिता गिर कर टूट गई है। 22 जनवरी को प्रकाशित प्रभात खबर की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस मामले में पुलिस ने पांच लोगों को गिरफ्तार किया है।

ऑल्ट न्यूज़ ने इस घटना की अधिक जानकारी प्राप्त करने हेतु, न्यू जलपाईगुड़ी पुलिस स्टेशन से सम्पर्क किया, हमें बताया गया कि चोरी करने का प्रयास किया गया था। चोरों ने किसी हुक वाली लाठी या डंडे से ज़ेवर चुराने का प्रयास किया था, उसी दौरान मूर्ति टूट कर गिर गयी। कोई भी ज़ेवरात चोरी नहीं किया गया है। हालांकि, प्रभात खबर के लेख से विपरीत, पुलिस ने हमें बताया कि अभी तक किसी भी व्यक्ति को हिरासत में नहीं लिया गया है और मामले की जांच की जा रही है। इस प्रकार, सोशल मीडिया का दावा कि वो लोग मुस्लिम समुदाय से हैं, गलत साबित होता है।

पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में हुई चोरी की घटना को सोशल मीडिया में सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की गयी है। कुछ उपयोगकर्ताओं ने दावा किया कि हिन्दू देवी काली की मूर्ति को तोड़ा गया है, जबकि कुछ उपयोगकर्ताओं का कहना है कि इस घटना के पीछे मुस्लिम समुदाय के लोग है, दोनों दावे तर्कहीन हैं।

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