कर्नाटका, चिकमगलूर के टेंपल टाउन श्रृंगेरी में 13 अगस्त को शंकराचार्य की मूर्ति पर एक झंडा देखा गया. राज्य के भारतीय जनता पार्टी से जुड़े नेताओं ने तुरंत ही कहना शुरू कर दिया कि झंडा सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) का है. चिकमगलूर विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी विधायक सीटी रवी और एमपी शोभा करंदलाजे ने दावा किया कि SDPI ने मूर्ति पर झंडा लगाया. भाजपा प्रवक्ता मालविका अविनाश ने भी इसे दोहराया. आदि शंकराचार्य आठवीं शताब्दी के हिंदू दर्शनशास्त्री थे.

एसडीपीआई 11 अगस्त के बेंगलुरु दंगे से ही समाचारों में है जिसमें पुलिस फ़ायरिंग में 3 लोग मारे गए थे. पॉपुलर फ़्रंट ऑफ़ इंडिया (PFI) से जुड़े 16 SDPI सदस्यों समेत 300 लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गयी थी.

पुलिस के बयान भाजपा के दावों को खारिज करते हैं

चिकमगलूर पुलिस ने 14 अगस्त को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की जिसमें कहा गया है कि न ही शंकराचार्य की मूर्ति के ऊपर लगा कपड़ा SDPI से जुड़ा है न ही आरोपी के पार्टी से कोई संबंध हैं.

प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, एक 28 वर्षीय व्यक्ति ने ईद मिलाद पर्व में इस्तेमाल हुए झंडे को श्रृंगेरी जामिया मस्जिद से लेकर शंकराचार्य की मूर्ति पर लगे खंभे में लगा दिया. वह आदमी नशे में था. उसने 12 अगस्त की रात को बारिश से बचने के लिए मस्जिद से बैनर उठा लिया. पुलिस ने सार्वजनिक तौर पर एक सीसीटीवी फ़ुटेज जारी किया जिसमें वह व्यक्ति उस बैनर से खुद को ढकता हुआ दिख रहा है.

पुलिस के स्टेटमेंट में आगे लिखा था, “जांच के दौरान यह भी पता चला कि यह बैनर किसी राजनीतिक पार्टी या संगठन से संबंधित नहीं है. न ही वह व्यक्ति किसी पार्टी या संगठन से जुड़ा है. इससे यह साफ़ होता है कि यह सोचा समझा कदम नहीं था और न ही इसके पीछे कोई मंशा थी.

बैनर और SDPI के झंडे की तस्वीर देख कर ही मालूम होता है कि दोनों में ज़मीन-आसमान का फर्क है. पार्टी के झंडे से अलग, बैनर नीले रंग का है.

बैनर पर सऊदी अरब की मदीना मस्जिद (अल मस्जिद अन नबावी) की तस्वीर छपी है जो इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद की बनाई गई आखिरी मस्जिद है.

कहानी को मुस्लिमों से जोड़ने की कोशिश

द न्यूज़ मिनट की एक रिपोर्ट में आरोपी की पहचान मिलिंद के रूप में की गई है. चिकमगलूर पुलिस ने भी प्रेस कॉन्फ़्रेंस में गिरफ़्तार किए गए व्यक्ति का नाम मिलिंद मनोहर ही बताया था. लेकिन OneIndia कन्नड़ा ने दावा किया कि पुलिस ने रफ़ीक नाम के शख्स को गिरफ़्तार किया है. इसी से हिंट लेते हुए दक्षिणपंथी प्रोपेगेंडा वेबसाइट ऑप इंडिया ने कहा कि रफ़ीक और साहिल को अरेस्ट किया गया है और SDPI पर साज़िश का आरोप है.

ऑप इंडिया के लेख को इसकी संपादक नूपुर शर्मा ने ट्वीट किया जिसे 2000 बार रीट्वीट किया गया.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के मुखपत्र ‘ऑर्गेनाइजर’ ने कहा कि ‘जिहादियों ने शंकराचार्य की मूर्ति पर इस्लाम का झंडा लपेट दिया.’ उन्होंने भी पुलिस द्वारा रफ़ीक और साहिल को गिरफ़्तार करने का दावा किया.

ट्विटर अकाउंट True Indology ने ऑर्गेनाइज़र की रिपोर्ट शेयर की जिसे 2500 से ज्यादा बार रीट्वीट किया गया था. फे़क न्यूज़ फैलाने वाले प्लेटफ़ॉर्म पोस्टकार्ड न्यूज़ के संस्थापक महेश विक्रम हेगड़े ने भी इसी दावे को प्रोमोट किया.

चिकमगलूर के एसपी ने ऑल्ट न्यूज़ को सूचना दी कि पुलिस संदिग्धों की छानबीन कर रही थी. हालांकि मिलिंद को ही हिरासत में लिया गया है. प्रेस विज्ञप्ति में यह जानकारी दी गई है कि संदिग्धों से पूछताछ और जांच के बाद पुलिस को सीसीटीवी फु़टेज मिला जिसने उन्हें आरोपी तक पहुंचाया. मिलिंद ने कुबूल किया है कि उसने शराब के नशे में बैनर को वहां लगाया था.

पुलिस के बयान के बाद OpIndia ने एक दूसरी स्टोरी पब्लिश की जिसमें बताया कि मिलिंद को हिरासत में लिया गया है.

भ्रामक मीडिया रिपोर्ट्स

पुलिस के बयानों से पहले ही एशियानेट न्यूज़ ने बगैर जांच-पड़ताल के एक रिपोर्ट जारी कर बताया था कि शंकराचार्य की मूर्ति के ऊपर लगा बैनर SDPI का झंडा है. मज़ेदार बात यह है कि चैनल ने बैनर का विज़ुअल भी दिखाया है जिसमें साफ़ नज़र आ रहा है कि यह SDPI का झंडा नहीं है.

डेक्कन हेरल्ड ने रिपोर्ट किया, “गुरुवार की सुबह अज्ञात बदमाशों ने कथित तौर पर ऋषि शंकराचार्य की मूर्ति को सोशलिस्ट डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) के झंडे से ढक दिया.” इस रिपोर्ट में भी पुलिस के बयानों की बजाय केवल BJP सदस्यों और हिंदू संगठनों के आरोप लिखे गए हैं.

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा कि झंडा SDPI का है.

एक घटना जहां श्रृंगेरी में एक आदमी ने शराब के नशे में मस्जिद से बैनर उठाकर शंकराचार्य की मूर्ति पर लगे खंभे पर टांग दिया, उसको BJP नेताओं ने बड़ा मुद्दा बना दिया. इसके बाद भ्रामक मीडिया रिपोर्ट्स में भी फ़र्ज़ी दावे को सही बताने की कोशिश की गयी कि बैनर एसडीपीआई का झंडा था. वन इंडिया और ऑप इंडिया ने इस घटना में सामुदायिक एंगल देने की कोशिश की. जैसा कि इन दावों में कहा गया था, हिरासत में लिया गया व्यक्ति मुस्लिम समुदाय का नहीं है.

कर्नाटका की राजधानी को कुछ दिनों पहले ही एक फे़सबुक पोस्ट की वजह से भड़के दंगों का सामना करना पड़ा है. मीडिया द्वारा असत्यापित खबर या विभाजित करने वाली गलत सूचनाएं अक्सर धार्मिक तनाव पैदा करती हैं. बेंगलुरु हिंसा के बाद यह दूसरी बार है जब OpIndia ने अफ़वाह को बढ़ावा दिया है. इस प्लेटफ़ॉर्म ने हिंदुस्तान टाइम्स की ग़लत रिपोर्ट शेयर करते हुए दावा किया कि हिंसा के दौरान ’60,000 लोगों की भारी भीड़ थी’.

हालांकि, हिंदुस्तान टाइम्स ने अपना रिपोर्ट अपडेट कर दी थी, वहीं ऑप इंडिया के प्लेटफॉर्म पर अभी भी ग़लत जानकारी देने वाली रिपोर्ट मौजूद है. गैर-ज़िम्मेदाराना रिपोर्ट्स के, जो बिना पुष्टि के छाप दी जाती हैं, गंभीर परिणाम हो सकते हैं. इसलिए इन्हें लोगों तक पहुंचने से रोका जाना चाहिए.

डोनेट करें!
सत्ता को आईना दिखाने वाली पत्रकारिता का कॉरपोरेट और राजनीति, दोनों के नियंत्रण से मुक्त होना बुनियादी ज़रूरत है. और ये तभी संभव है जब जनता ऐसी पत्रकारिता का हर मोड़ पर साथ दे. फ़ेक न्यूज़ और ग़लत जानकारियों के खिलाफ़ इस लड़ाई में हमारी मदद करें. नीचे दिए गए बटन पर क्लिक कर ऑल्ट न्यूज़ को डोनेट करें.

बैंक ट्रांसफ़र / चेक / DD के माध्यम से डोनेट करने सम्बंधित जानकारी के लिए यहां क्लिक करें.

About the Author

Pooja Chaudhuri is a senior editor at Alt News.