एक ट्विटर हैंडल @umagarghi ने एक मंदिर की तस्वीर को इस संदेश के साथ ट्वीट किया, “जब कर्नाटक के रायचुर में सड़क को चौड़ा करने के लिए एक मस्जिद को तोड़ा गया तो उन्हें यह मंदिर मिला। हमें सभी मस्जिदों को तोड़ने की जरूरत है – (अनुवाद)।”

कई यूजर्स ने उसी संदेश के साथ इस तस्वीर को ट्वीट किया है। फेसबुक पर इस तस्वीर को पोस्ट करने वाले पहले व्यक्ति रमानी परशुरामन थे।

सच क्या है?

इस तस्वीर के निचले दाएं भाग पर, “चंद्रा कलरिस्ट” (Chandra Colourist) का लोगो देखा जा सकता है। इससे संकेत मिलता है कि यह तस्वीर किसी कलाकार की रचना हो सकती है। हमें चंद्रा कलरिस्ट नामक फेसबुक अकाउंट मिला, जिसने 8 मई, 2016 को वही तस्वीर पोस्ट की थी। मंदिर के स्थान के बारे में अपनी पोस्ट के कमेंट में पूछे गए एक प्रश्न का कलाकार ने जवाब दिया था कि यह उनका डिजिटल कलाकारी था। इसलिए, वह तस्वीर जिसके बारे में दावा प्रसारित किया जा रहा है कि यह एक मस्जिद तोड़ने पर मिला मंदिर है, वास्तव में एक कलाकार का डिजिटल कलाकारी है।

जब हमने गूगल पर इस तस्वीर की रिवर्स सर्च की, तो हमें 12 अप्रैल, 2016 को मेईकियानबाओ (Meiqianbao) द्वारा क्लिक की गई एक तस्वीर मिली। चंद्रा ने संभवतः उसी पर अपनी उपरोक्त डिजिटल रचना बनाई। दोनों तस्वीरों की सावधानीपूर्वक जांच की जाए, तो चंद्रा द्वारा बनाई गई उपरोक्त तस्वीर की कई विशेषताएं नीचे दी गई तस्वीर में भी देखी जा सकती हैं।

अमेरिकी फोटो स्टॉक एजेंसी शटरस्टॉक (Shutterstock) के मुताबिक – लॉंगमेन ग्रोट्टो (Longmen Grottoes) की यह तस्वीर – चीन के हेनान में लुओयांग स्थितफेंग्जियांग मंदिर के बौद्ध पत्थर (Fengxiang temple stone Buddhas) की है।

यह तस्वीर, जिसका वर्तमान में उपयोग यह दावा करने के लिए किया जा रहा है कि वे कर्नाटक के रायचूर में एक मस्जिद को तोड़ने पर मिले मंदिर के अवशेषों को दर्शाते हैं; वास्तव में एक कलाकार का डिजिटल सृजन है। किये गए दावे से एक और सवाल आता है कि क्या कभी रायचूर में किसी मस्जिद को तोड़ने पर कोई मंदिर पाया गया था?

2016 से प्रसारित

हमें सोशल मीडिया में 2016 में प्रसारित लगभग इसी तरह के संदेश वाले चित्रों का एक अलग सेट मिला।

नकली समाचार वेबसाइट पोस्टकार्ड न्यूज के संस्थापक महेश विक्रम हेगड़े और केपी गणेश, जिन्हें ट्विटर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फॉलो करते हैं, ने दावा किया कि सड़क को चौड़ा करने के लिए एक मस्जिद को तोड़ने के दौरान मंदिर पाया गया था।

कांग्रेस मुक्त भारत ने 11 अप्रैल, 2016 को उसी दावे को ट्वीट किया था, जिसे 1500 से अधिक बार रीट्वीट किया गया था। स्ट्रगल फॉर हिंदू एक्सीस्टेंस नामक एक वेबसाइट ने भी उसी संदेश के साथ एक लेख लिखा था।

ऑल्ट न्यूज़ ने वहां के पूर्व जिला मजिस्ट्रेट से संपर्क किया जो 2016 में सड़क-चौड़ाई के आदेश पारित किए जाने के समय वहां उपस्थित थे।

उन्होंने कहा, “सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही जानकारी असत्य है। जब रायचूर में तोड़फोड़ हुई, तो वहां कुछ पारंपरिक इमारतें थीं। एक मीनार, जो एक बहुत पुरानी संरचना है, यह सड़क को चौड़ा करने के लिए ध्वस्त की गई इमारतों में से एक थी। इस तरह की पुरानी संरचनाओं में विभिन्न प्रकार की नक्काशी होती है और यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि यह केवल एक खंभा, मूल रूप से कोई मंदिर था। कुछ वर्गों ने यह दावा करने की कोशिश की, लेकिन जब उनसे सवाल-जवाब हुए तो उन्होंने दावे को आगे नहीं बढ़ाया – (अनुवादित)।”

इस प्रकार, एक ओर सोशल मीडिया पर वर्तमान में प्रसारित दावे के लिए एक कलाकार के डिजिटल सृजन का उपयोग किया जा रहा है; वहीं दूसरी ओर 2016 का मूल दावा, आधिकारिक पुष्टि के अनुसार, एक अंतर्निहित वास्तुकला की गलत व्याख्या पर आधारित था। यह मीडिया संगठनों के लिए तथ्यों की जांच और भी अच्छे ढंग से करने की आवश्यकता को दिखलाता है। सोशल मीडिया में बार-बार प्रसारित किए जाने वाले भ्रामक दावों का खुलासा करने और जनता को सच्चाई बताने के लिए मीडिया संगठन पर्याप्त कार्य नहीं कर रहे हैं।

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About the Author

Jignesh is a writer and researcher at Alt News. He has a knack for visual investigation with a major interest in fact-checking videos and images. He has completed his Masters in Journalism from Gujarat University.