2 साल पुरानी एक रिपोर्ट फिर से सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही है. इसे शेयर करते हुए कहा जा रहा है कि UK के एक रेस्टोरेंट के दो मालिक को खाने में मल मिलाकर अपने ग्राहकों को खिलाने के आरोप में हिरासत में लिया गया. दावा है कि ये होटल के मालिक मुस्लिम हैं जो अपने हिन्दू ग्राहकों को ऐसा खाना खिलाते थे. यहां ये ध्यान दिया जाए कि इस आर्टिकल में ऐसा कोई दावा नहीं किया गया है.

पूर्व CBI एम नागेश्वर राव ने भी न्यूज़ट्रैक का पिछले साल का आर्टिकल शेयर किया. हालांकि उन्होंने ये दावा नहीं किया कि होटल के मालिक मुस्लिम थे जो गैर मुस्लिम ग्राहकों को ये खाना खिलाते थे लेकिन उन्होंने ट्वीट में ‘धार्मिक कट्टरपंथी’ शब्द का इस्तेमाल किया है जो ये बताता है कि इस घटना के पीछे सांप्रदायिक मकसद था.

नागेश्वर राव के ट्वीट का स्क्रीनशॉट फ़ेसबुक पर वायरल है. इसे ‘इंडिया अगेंस्ट अर्बन नक्सल‘ नाम के एक फ़ेसबुक पेज में शेयर किया गया है.

This slideshow requires JavaScript.

इन्स्ताग्राम पेज ‘नेशन एभव सेल्फ़‘ ने भी ये कहानी शेयर की है और इसे ‘जिहाद बढ़ता हुआ’बताया है.

2020 में ज़ी न्यूज़ ने भी इसे सांप्रदायिक ऐंगल के साथ शेयर किया था

24 अप्रैल 2020 को ‘ज़ी न्यूज़’ ने एक ख़बर प्रकाशित की थी, जिसका टाइटल था, “कबाब में परोसते थे शरीर की गंदगी, विदेश में भी वही जमाती मानसिकता“. लेकिन अगर आप इस लिंक पर क्लिक करते हैं तो आपको कुछ और ही कहानी दिखेगी. ऐसा इसीलिए क्यूंकि इस आर्टिकल के लिखे जाने तक ‘ज़ी न्यूज़’ ने इस स्टोरी को अपडेट कर दिया है. आर्टिकल को एडिट किये जाने से पहले इसकी शुरुआत में लिखा था, “मजहबी कट्टरपंथ वाली मानसिकता से कहां तक बचेंगे. भारत ही नहीं विश्व भर में इस तरह की मानसिकता फैली हुई है. ब्रिटेन में दो युवक मोहम्मद अब्दुल बासित और अमजद भट्टी अपने होटल में आए गैरधर्म के लोगों को इंसानी शरीर की गंदगी खिला देते थे. ” फ़ेसबुक के इस पोस्ट को 11 हज़ार से ज़्यादा शेयर मिले. इसे शेयर करते हुए लिखा गया है, “गैरधर्म के लोगों के साथ करते थे नीच हरकत.”

zee news

इस आर्टिकल में आगे लिखा था, “यहां एक रेस्टोरेंट के मालिक मोहम्मद अब्दुल बासित और अमजद भट्टी थे. जानकारी के मुताबिक यह दोनों ही मालिक गैरधर्म वाले लोगों को इंसानी मल मिलाकर खाना खिला रहे थे. ये दोनों ही लम्बे समय से ब्रिटेन के नॉटिंघम में अपना होटल चला रहे हैं.” ज़ी न्यूज़ की स्टोरी में कहीं भी इस बात का ज़िक्र नहीं है कि ये घटना कब की है.

वेबसाइट msn.com, जो अलग- अलग संस्थानों के आर्टिकल्स री-पब्लिश करती है, वहां ज़ी न्यूज़ का ये आर्टिकल अभी भी पढ़ा जा सकता है (ख़बर का आर्काइव लिंक). इस ख़बर का एक स्क्रीनशॉट आप नीचे देख सकते हैं. जी न्यूज़ ने लिखा था कि होटल में दो तरह का खाना बनता था और ये लोग अपने धर्म को छोड़कर बाक़ी लोगों को मानव मल वाला खाना खिलाते थे.zee news1

‘ज़ी न्यूज़’ ने अब इस आर्टिकल को पूरी तरह अपडेट करते हुए लिखा है कि भारत में ही नहीं इंग्लैंड में भी भोजन दूषित करने का मामला हो चुका है. नीचे तस्वीर में आप देख सकते हैं कि ज़ी न्यूज़ का अपडेटेड आर्टिकल का लिंक वही है जो ‘जमाती मानसिकता’ की बात करता है. – https://zeenews.india.com/hindi/zee-hindustan/odd-news/the-human-potty-was-served-in-kebabs-the-same-tabligi-jamati-mentality-abroad/671691

updated zee news

‘ज़ी न्यूज़’ की ख़बर का सोर्स – एक वायरल मेसेज

21 अप्रैल से एक वायरल एक मेसेज के आधार पर ज़ी न्यूज़ ने ख़बर प्रकाशित कर दी. हालांकि वायरल हो रहे मेसेज में डेली मेल की एक खबर का लिंक भी दिया गया है, लेकिन ज़ी न्यूज़ ने वो मिस कर दिया. इसीलिए शायद पहले की स्टोरी में कहीं भी सोर्स की जानकारी या घटना कब की है, ये नहीं बताया गया था. डेली मेल का ये आर्टिकल सितम्बर, 2015 का है.

facebook daily

फ़ैक्ट-चेक

इस आर्टिकल में हम दो दावों की पड़ताल करेंगे :

  1. क्या खाने में गंदगी किसी धर्म को ध्यान में रखकर मिलाई जाती थी?
  2. क्या सच में खाने में मानव मल मिलाया जाता था?

डेली मेल‘ की इस ख़बर का हवाला दिया जा रहा है, उसमें कहीं नहीं लिखा है कि ये लोग दूसरे धर्म के लोगों को गंदा खाना दे रहे थे. हमने पाया कि सितम्बर, 2015 में इस मामले पर बीबीसी, द गार्डियन ने भी ख़बर प्रकाशित की थी. इन दोनों ही आर्टिकल में कहीं भी धर्म का ज़िक्र तक नहीं है. इस तरह पहला दावा गलत साबित होता है.

अब दूसरे दावे की बात करते हैं. ‘डेली मेल’ की ही खबर के मुताबिक, “कबाब की दुकान के दो मालिक अब्दुल बासित और अमजद भट्टी को मुआवजे के रूप में £28,000 देने का आदेश दिया गया था. इनपर आरोप था कि उन्होंने अपने लगभग 150 ग्राहकों को मानव मल से दूषित खाना खिलाकर बीमार कर दिया. उन्हें चार महीने की जेल की सज़ा भी सुनाई गई और 12 महीने के लिए निलंबित कर दिया गया.” इसी आर्टिकल में ये भी लिखा है कि इंस्पेक्टर ने जांच में पाया कि इस होटल में काम करने वाले वर्कर्स की साफ़-सफाई का तरीका ठीक नहीं था. साथ ही ये भी बताया है कि 2014 में वहां स्वच्छता का ध्यान रखने का स्तर बहुत कम था. इस आर्टिकल में कहीं भी ये नहीं लिखा है कि ऐसा जान-बूझ कर किया गया था.

daily mail

द गार्डियन‘ की रिपोर्ट में बताया गया है, “इस मामले की जांच करने वाले बर्नार्ड थोरोगुड का कहना है कि यूरोप में ‘E. coli’ नाम के बैक्टीरिया से दूषित खाने का ये सिर्फ़ दूसरा मामला था. उन्होंने कहा कि ये बैक्टीरिया सिर्फ़ मानव मल से ही फैल सकता है. इसलिए शौचालय का उपयोग करने के बाद हाथ सही तरीके से नहीं धोना इसके प्रसार का कारण था. ये बैक्टीरिया खांसी से नहीं फ़ैल सकता, जिसका मतलब है कि शौच के बाद हाथ ठीक से नहीं धोया गया था. उन्होंने ये भी कहा कि 12 स्टाफ़ में से जो 9 लोग टेक-अवे पर काम संभालते थे, उनमें बैक्टीरिया की मौजूदगी पाई गई थी.”

नॉटिंघम सिटी काउंसिल के भोजन, स्वास्थ्य और सुरक्षा टीम के पॉल डेल्स ने बीबीसी से कहा: “ये एक गंभीर फ़ूड पॉइज़निंग का मामला था. इससे काफ़ी लोग प्रभावित हुए. कुछ ने गंभीर लक्षण विकसित किए. ये अच्छी बात है कि कोई नुकसान नहीं हुआ, क्योंकि दुनिया में ई कोली शायद ही कभी पाया जाता है. यह यूरोप में सिर्फ़ दूसरा मामला था.” साथ ही उन्होंने ये भी कहा, “ये स्पष्ट है कि कुछ वर्कर्स के हाथ धोने का तरीका ठीक नहीं था जिसके कारण भोजन दूषित हो गया.”

इस तरह खाने में जान-बूझ कर मानव मल मिलाये जाने का दावा भी गलत साबित होता है.

हमने पाया कि ये रेस्टोरेंट अभी भी चालू है. फ़ेसबुक पर ‘द खैबर पास‘ पेज पर कई लोगों ने फ़रवरी, 2020 में टैग करते हुए पोस्ट किया है.

हालांकि, ट्रिप एडवाइज़र पर इस रेस्टोरेंट को कुछ खास रिव्यु नहीं मिले हैं. कुछ लोगों ने फ़रवरी, 2020 में भी ये लिखा है कि इसके स्टाफ़ सफ़ाई का ख्याल नहीं रखते हैं.

The Khyber Pass, Nottingham -

तो इस तरह ज़ी न्यूज़ ने पहले तो ख़बर छापते हुए ये नहीं देखा कि ये सारा मामला 5 साल पुराना है. इस सब से आगे बढ़कर उन्होंने इसे सांप्रदायिक रंग दे डाला. बाद में बिना कोई स्पष्टीकरण दिये इसे अपडेट कर दिया कि ये पुरानी घटना है. बूमलाइव ने सबसे पहले इस ख़बर की पड़ताल की है. इस ग़लत ख़बर के प्रकाशित होने के बाद बूम ने ज़ी हिंदुस्तान के एडिटर से बात करने की कोशिश की थी, लेकिन उन्होंने इस पर कमेंट करने से मना कर दिया था. इसके कुछ ही देर बाद ज़ी न्यूज़ ने बिना माफ़ी मांगे अपनी स्टोरी अपडेट कर दी.

डोनेट करें!
सत्ता को आईना दिखाने वाली पत्रकारिता का कॉरपोरेट और राजनीति, दोनों के नियंत्रण से मुक्त होना बुनियादी ज़रूरत है. और ये तभी संभव है जब जनता ऐसी पत्रकारिता का हर मोड़ पर साथ दे. फ़ेक न्यूज़ और ग़लत जानकारियों के खिलाफ़ इस लड़ाई में हमारी मदद करें. नीचे दिए गए बटन पर क्लिक कर ऑल्ट न्यूज़ को डोनेट करें.

बैंक ट्रांसफ़र / चेक / DD के माध्यम से डोनेट करने सम्बंधित जानकारी के लिए यहां क्लिक करें.

About the Author

She specializes in information verification, examining mis/disinformation, social media monitoring and platform accountability. Her aim is to make the internet a safer place and enable people to become informed social media users. She has been a part of Alt News since 2018.