21 सितंबर को उत्तर प्रदेश पुलिस ने कथित रूप से फर्जी मुठभेड़ के एक मामले में, अलीगढ़ के हरदुआगंज में दो कथित अपराधियों – मुस्तक़ीम और नौशाद को गोली मार दी और इसको फिल्माने के लिए ‘मीडिया’ को आमंत्रित किया। बाद में अलीगढ़ एसपी अतुल श्रीवास्तव ने मुठभेड़ के दिखावटी होने को खारिज किया।

पुलिस का दावा था कि मारे गए युवक 18 सितंबर को हुई छह हत्याओं के आरोपी थे और फरार थे। दो दिन बाद सामना होने पर, उन्होंने कथित रूप से पुलिस पर फायरिंग शुरू कर दी। जवाबी फायरिंग में उनकी मौत हो गई। दूसरी ओर, मृतकों के परिजनों ने एकदम अलग घटनाक्रम का वर्णन किया। परिजनों ने दावा किया कि दोनों युवाओं को 16 सितंबर को उनके घर से उठाया गया था और बाद में पुलिस ने उन्हें मार दिया था। परिजनों ने यह भी कहा कि नौशाद 17 साल का नाबालिग था।

27 सितंबर को उमर खालिद समेत अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्र नेता, कार्यकर्ता और पत्रकारों ने मुठभेड़ों की जांच के लिए मारे गए युवाओं के परिवारों का दौरा किया। अगले दिन, कई मीडिया संस्थानों ने बताया कि खालिद कथित अपराधियों के परिवार के सदस्यों का अपहरण करने में शामिल था।

1. दैनिक जागरण

ऐसा दावा करने वालों में दैनिक जागरण पहला था। इसकी रिपोर्ट का शीर्षक था – “नामी बदमाश की मां की किडनैपिंग में घिरा उमर खालिद, कई जेएनयू छात्र नेता भी आरोपी” – हालांकि, इस रिपोर्ट में खालिद के खिलाफ दायर शिकायत के बारे में कुछ भी उल्लेख नहीं है।

मृतकों के परिजनों के साथ खालिद की बैठक का वर्णन करते हुए, दैनिक जागरण ने बताया, “दिल्ली से यूनाइटेड अगेंस्ट हेट की टीम के नदीम, अब्दुल माजिद, उमर खालिद के साथ एएमयू से छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष मशकूर अहमद उस्मानी, फैजुल हसन व वामपंथी नेता रंजन राना मुस्तक़ीम व नौशाद के परिजनों से मिलने पहुंचे थे।”

इस रिपोर्ट में, अपहरण में खालिद के शामिल होने को स्पष्ट रूप से दोहराए बिना, आगे कहा गया कि, “मुस्तक़ीम की पत्नी हिना ने मशकूर, फैजुल समेत सभी पर जबरन सास शबाना व नौशाद की मां शाहीन को ले जाने की रिपोर्ट दर्ज कराई है।”

2. जनसत्ता

इंडियन एक्सप्रेस के स्वामित्व वाले जनसत्ता ने “जेएनयू छात्र उमर खालिद पर बदमाश की माँ को अगवा करने का आरोप; बजरंग दल पहुंचा कोतवाली”, शीर्षक रिपोर्ट में दावा किया कि “उमर खालिद, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के दो पूर्व छात्र नेताओं और कई अन्य छात्रों पर हरदुआगंज मुठभेड़ में मारे गए अपराधियों की माताओं का अपहरण करने का आरोप है।”

हालांकि, इसी रिपोर्ट में आगे कहा गया है- “उधर, मुस्तक़ीम की पत्नी हिना ने एएमयू के निवर्तमान व पूर्व अध्यक्ष को नामजद करते हुए सास शबाना व शाहीन उर्फ रानी का अपरहण करने का आरोप लगाया।” जनसत्ता की रिपोर्ट के इस अंश में खालिद का नाम नहीं है।

3. ज़ी न्यूज़

ज़ी न्यूज़ ने भी वैसी ही रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसका शीर्षक था- “अलीगढ़ एनकाउंटर का एएमयू और जेएनयू कनेक्शन, उमर खालिद पर लगा ये गंभीर आरोप।”


इस लेख के शुरुआत में कहा गया है- “पुलिस ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के एक समूह के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज किया है. इनमें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) और जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के छात्र नेता भी शामिल हैं. इनपर आरोप है कि उन्होंने मुस्तक़ीम की मां और दादी का अपहरण किया था।”

हालांकि ज़ी न्यूज़ का रिपोर्ट आगे कहता है- “कार्यकर्ताओं के समूह में जेएनयू के छात्र नेता उमर खालिद भी शामिल हैं लेकिन शिकायत में उनको नामजद नहीं किया गया है.”

इस लेख में शुरुआत से ही स्पष्ट रूप से लिखा गया था कि जेएनयू छात्र नेता अपहरण में शामिल थे और शीर्षक खालिद के खिलाफ गंभीर आरोप का सुझाव देते थे। लेकिन आगे यह रिपोर्ट खालिद या किसी अन्य जेएनयू छात्र नेताओं की अपहरण में स्पष्ट भूमिका नहीं बताता।

इसके अलावा, दैनिक जागरण की रिपोर्ट के विपरीत, जिसमें दावा किया गया था कि मुस्तक़ीम की पत्नी हीना ने शिकायत दर्ज कराई थी, ज़ी न्यूज ने कहा कि बजरंग दल के सचिव राम कुमार लिखित शिकायत के सह-लेखक थे – “तहरीर बजरंग दल के सचिव राम कुमार आर्य और मुस्तक़ीम की पत्नी हिना की ओर से दी गई थी.”

कई अन्य मीडिया संस्थानों ने “10 कार्यकर्ताओं” पर अपहरण के आरोप की रिपोर्ट की

मारे गए कथित अपराधियों के परिवार के सदस्यों का अपहरण करने के लिए उमर खालिद का नाम शामिल होने के उपर्युक्त दावों के अलावा, कई मुख्यधारा मीडिया संस्थानों ने विपरीत रूप से बताया कि इस मामले में “10 कार्यकर्ता” बुक किए गए थे। टाइम्स ऑफ इंडिया, द वीक, स्क्रॉल, आउटलुक, न्यूज 18, द हिंदू और एनडीटीवी इनमें थे। सभी की रिपोर्ट पीटीआई के हवाले से थी।

रिपोर्टों के मुताबिक, “दो संदिग्ध अपराधियों के कथित नकली मुठभेड़ के विवाद ने शुक्रवार को नया मोड़ लिया जब पुलिस ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र नेताओं सहित 10 कार्यकर्ताओं को यह कहते हुए बुक किया कि उन्होंने एक मृतक के परिजनों का अपहरण कर लिया था।” मामला अतरौली पुलिस स्टेशन में पंजीकृत था।

रिपोर्टों में आगे कहा गया है, “कार्यकर्ताओं पर मुस्तक़ीम की मां शबाना और दादी रफीकन का अपहरण करने का आरोप लगाया गया है।” दिलचस्प बात यह है कि टाइम्स ऑफ इंडिया ने 29 सितंबर को एक और रिपोर्ट प्रकाशित की और दावा किया कि दोनों की माताओं का अपहरण कर लिया गया है – “पुलिस मुठभेड़ में मारे गए दो अपराधियों की माताओं का अपहरण करने के लिए एएमयू के छात्रों को बुक किया गया है।”

सच क्या है?

ऑल्ट न्यूज ने अतरौली पुलिस थाने के एसएचओ परवेश राणा से संपर्क किया, जिन्होंने कहा, “मुस्तक़ीम की पत्नी हीना ने मामला दर्ज कराया है, जिन्होंने अपराधियों की मां शाहीन और शबाना का अपहरण करने के लिए एफआईआर में एएमयू के छात्रों मस्कूर उस्मानी और फैजुल हसन को नामजद किया है।”

ऑल्ट न्यूज़ को प्राप्त हुई एफआईआर की प्रति में, आरोपी व्यक्तियों के नाम मिलते हैं। 27 सितंबर को हीना के नाम से दायर की गई शिकायत में कहा गया है कि सात से आठ लोगों ने उनके घर में प्रवेश किया और बलपूर्वक उनकी सास शबाना (मुस्तक़ीम की मां) और शाहीन (नौशाद की मां) का अपहरण कर लिया। एफआईआर के मुताबिक मकान मालिक इमरान, सास रफीकन और नफीस नाम के एक व्यक्ति अपहरण के प्रत्यक्षदर्शी थे। इसमें आगे कहा गया है कि शबाना ने लगभग 2 बजे 100 नंबर पर डायल किया और पुलिस को अपहरण की सूचना दी।

ऑल्ट न्यूज ने इस मामले में आरोपी उस्मानी और हसन दोनों से बात की, जिन्होंने दावा किया कि एफआईआर झूठी थी। हीना को शिकायत दर्ज कराने के लिए मजबूर किया गया था। उन्होंने आरोप लगाया कि उसके अंगूठे की निशान झूठे बहाने से ली गई थी।

हमने उमर खालिद से भी संपर्क किया, जिन्होंने इसे दोहराया और कहा कि मारे गए युवकों की माताएं अपनी स्वतंत्र इच्छा से उनके साथ आई थीं।

जब ऑल्ट न्यूज़ ने शबाना (मुस्तक़ीम की मां) और शाहीन (नौशाद की मां) के साथ बात की, तो उन्होंने भी खालिद से मिलते-जुलते बयान दिए। “हम सिर्फ अपने बेटों के लिए न्याय चाहते हैं,” उन्होंने कई बार दोहराया। दोनों महिलाओं ने कहा कि उनका अपहरण नहीं किया गया था, बल्कि उन्होंने खुद खालिद और दूसरों के साथ जाने का फैसला किया था।

जब अतरौली पुलिस स्टेशन के एसएचओ से पूछा गया कि क्या इस मामले में माताओं का पक्ष जानने के लिए उनसे संपर्क किया गया, तो परवेश राणा ने कहा कि पुलिस उनके ठिकाने से अनजान थी इसलिए महिलाओं से संपर्क नहीं हुआ था। एसएचओ राणा ने ऑल्ट न्यूज़ को बताया, “हम नहीं जानते कि शबाना और शाहीन को कहाँ और किन स्थितियों में रखा गया है।”

एफआईआर और पुलिस के बयान के दावों के एकदम विपरीत, दोनों महिलाओं को, जिनका कथित रूप से अपहरण किया गया था, 29 सितंबर को दिल्ली में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते देखा जा सकता है। एफआईआर दर्ज होने के दो दिन बाद ही मीडिया को संबोधित करतीं इन महिलाओं के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनके कथित अपहर्ताओं को भी देखा जा सकता है।

खालिद, उस्मानी और हसन की उपस्थिति में शबाना ने कहा, “पुलिस ने हमारे लड़कों को घर से उठाया और उन्हें मार दिया। बाद में, जब हमें अस्पताल में उनसे मिलने के लिए कहा गया, तो हमारे बेटे मर चुके थे। पुलिस ने हमारे घरों पर छापे मारे, हमारे पैसा और सभी दस्तावेज ले लिए।”

Encounter or Murder: Press Conference on the reality of Aligarh encounter. #UnitedAgainstHate

Posted by Umar Khalid on Saturday, 29 September 2018

हालांकि मामला एक आपराधिक जांच से संबंधित है, फिर भी इसकी सूचना का तरीका चिंता का मुद्दा है। कई मीडिया रिपोर्टों के शीर्षक ने उमर खालिद को अपहरण में शामिल बताया, मगर उनके लेख इसे स्थापित करने में नाकाम रहे। जेएनयू के पूर्व छात्र खालिद राजनीतिक रूप से सक्रिय हैं। मीडिया संस्थानों की भ्रामक रिपोर्टिंग पाठकों/दर्शकों को आकर्षित करने के लिए परिचित नाम के उपयोग का स्पष्ट इशारा करती हैं।

इसके अलावा, एएमयू के छात्र नेता मस्कूर अहमद उस्मानी और फैजुल हसन हालांकि एफआईआर में सह आरोपी हैं, फिर भी दोनों को सार्वजनिक मंच पर कथित रूप से उनके द्वारा अपहरण कर ली गईं महिलाओं के साथ देखा जा सकता है। उन पर अभियोग की जांच लंबित है और ऐसी परिस्थितियों में, एक ऐसी घटना जिसकी जाँच चल रही हो उसकी जानकारी को भ्रामक रूप में प्रस्तुत करना गैरजिम्मेदार पत्रकारिता है।

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About the Author

Pooja Chaudhuri is a senior editor at Alt News.